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असल बात

हो जायेंगे।

“देश की भीतरी कमज़ोरी या प्रसन्तोष से जर्मन सरकार की जल्दी ही कमर टूट जाये तो बात दूसरी है नहीं तो मुझे लड़ाई के तीन ही परिणाम सम्भव प्रतीत होते हैं: (१) जर्मनी की जीत (२) अंग्रेजों और उनके मित्रों की जीत (३) किसी भी पकष की साफ जीत न होकर गाड़ी रुक जाये।

“इसमें से पहली बात हो तो मेरे ख़याल से उससे बढ़कर और कोई विपति-ख़ासकर कमज़ोर शैर-युरोपियन जातियों के लिए-नहीं हो सकती। मैं बहुत भूल नहीं कर रहा हूँ तो उनके लिए यह बात ‘खड्डे में से निकलकर कुएँ में गिरने' जैसी होगी और वह भी पहले से बदतर।

“मुझे ऐसा भी लगता है कि अगर अंग्रेज़ों और फूांसीसियों की पूरी और भारी जीत हुई और जर्मन फिर उनकी दया पर रह गये, तो भी संसार के लिए मुसीबत ही होगी। हाँ, यह मुसीबत जर्मनी की जीत से कहीं कम होगी। मगर इसमें उन अवस्थाओं के स्थायी होने की सम्भावना रहेगी जो इस लड़ाई और पिछले महायुद्ध के मूल कारण हैं और कुछ साल बाद सब राष्ट्रों के नौजवानों को फिर घरों से निकल-निकलकर विशेष स्वार्थों और साम्राज्य के अधिकारों को क्रायम रखने के लिए अपने प्राण देने पड़ेंगे। नहीं, मित्र राष्ट्रों की जीत से भी समस्या हल न होगी। हमें फिर वही वसाई की संधि के परिणाम भुगतने पड़ेंगे।

“तीनों में सब से अच्छा नतीजा तो यही हो सकता है कि