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युद्ध और अहिंसा


गया है। जर्मनी के युद्ध-तंत्र में भी पूरी-पूरी यन्त्र की निधुरता है। मशीनों को चलानेवाले आदमी भी मानों भावना-शून्य और हृदय-विहीन मशीन ही हैं। बेबस औरतों और बच्चों की शरीर-शरया के ऊपर से अपने खुश्की के फौलादी जहाज चलाकर उन्हें कुचलने में उन्हें दरेग़ नहीं आता, न असैनिक शहरों पर बम के गोले बरसाकर सैकड़ों और हजारों की तादाद में बच्चों और औरतों को कत्ल करने में ही। इन्हीं बच्चों और औरतों की धावा बोलते वक्त अपने आगे रखकर ढाल के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। जहरमिली खुराक बाँटकर हलाल करने के किस्से भी बन चुके हैं। मैं खुद कई ऐसी घटनाओं के बारे में गवाही दे सकता हूँ। आप के कई अनुयायियों के साथ जर्मनी के खिलाफ सफलता से अहिंसा का प्रयोग करने के बारे में मेरी बातचीत हुई है। मेरा एक मित्र विलायत में युद्ध के जर्मन कैदियों पर जिरह करने के काम में लगा था। उसपर इन जर्मन नवयुवकों की आध्यात्मिक संकुचितता और अधःपतन का ऐसा कड़ा आघात हुआ कि उसे कबूल करना पड़ा कि ऐसे यंत्ररूप नौजवानों के सामने अहिंसा का प्रयोग चल नहीं सकता। सबसे भयंकर बात तो यह है कि इस ७ साल के अर्से में हिटलर इस हदतक इनका नैतिक पतन करने में कामयाब हुआ है। दुनिया के इतिहास में मुझे दूसरी ऐसी कोई मिसाल दिखाई नहीं देती कि किसी प्रजा की यहाँ तक आध्यात्मिक अधोगति हुई हो।' इस मित्र ने अपना नाम व पता-ठिकाना मुझे भेजा है। मुझे