प्रताप पीयूष/भारतेन्दु हरिश्चंद्र के स्वास्थ्य लाभ के उपलक्ष्य में।

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ऐसी कठिन पीर में कैसहु धीरज हाय न आवै॥
देशभक्त दुखिया बुध जन के जिय ते कोऊ पूछे।
तुम तौ अपने मन के राजा सब दुख सुख ते छूछे॥
तुम जो कछू करो सो नीको यह तो हमहूँ जाने।
पै तुम्हरे प्रताप की प्यारे ! बुधि नहिं आज ठिकाने॥
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भारतेन्दु हरिश्चंद्र के स्वास्थ्य लाभ
के उपलक्ष्य में।

(कसीदा)
अहा हा क्या मज़ा है क्या बहार बारिश आई है यह।
फस्ले फ़रहत अफ़ज़ा कैसी सबके जी को भाई है॥
जिधर देखो तमाशाए तरावत बख्श है तुर्फ़ा।
जिसे देखो अजब एक ताज़गी चिहरे पै छाई है॥
इधर जंगल में मोरों को चढ़ी है नाचने की धुन।
उधर गुलशन में कोयल को सरे नरमा सराई है।
कहे गर इन दिनों वायज कि मै पीना नहीं अच्छा।
तो बेशक मस्त कह बैठे कि तुमने भांग खाई है॥
किसी की कोई कुछ पर्वा नहीं करता ज़माने में।
सब अपने रंग माते हैं कुछ ऐसी बू समाई है॥

[ १८४ ]

खिले जाते हैं जामे में नहीं फूले समाते हैं।
सबा ने गोशे गुल में हां यह खुश खबरी सुनाई है।
कि जिसके नाम पर हर ज़िन्दा दिल सौजी से कुर्बां हैं।
खु़दा का शुक्र वाजिब है शिफ़ा आज उसने पाई है॥
भला वह कौन है यह मुज़दा सुन कर जो न कह उठता।
मुबारक हो मुबारक हो बधाई बधाई है॥
ख्याल आया मुझे दिल में य किसका गुस्ले सेहत है।
कि सारे हिन्द में जिस्की खुशी सबने मनाई है॥
तो मुलहिम ने कहा बाबू हरिश्चन्द्र इसमें पाक उस्का।
नहीं मालूम ? जिसकी मदहख्वां सारी खुदाई है।
बनारस की ज़मी नाजां है जिसकी पायबोसी पर।
अदब से जिसके आगे चर्ख ने गरदन झुकाई है॥
वही महताबे हिन्दुस्तां वही गैरत दिहे नैयर।
कि जिसने दिल से हर हिन्दू के तारीकी मिटाई है॥
वही ईसाए दौरां जिसने हम क़ौमौं की हिम्मत की।
हजारों साल पीछे लाशे बोसीदा जिलाई है॥
वही उसने कि उर्दू देवनी के पंजए जुलसे।
वसद तदवीरो हिम्मत जान हिन्दी की बचाई है॥
वही जो आज मालिक हैं सब इल्मों के खजाने का।
वही मुल्के हमा खूबी पय जिसकी बादशाही है॥
जिहे वह अफ़जलुल फजुला कि आज उसकी शहादत में।
ब सिदके दिल हर एक उस्ताद ने उंगली उठाई है॥

[ १८५ ]

सब उसके काम ऐसे हैं कि जिन को देख हैरत से।
हर एक आकिल ने अपनी दाँत में उंगली दबाई है॥
उसे रहबर अगर इस मुल्क का कहिये तो लावुद है।
उसी ने सबको पहिले राहे बहबूदी सुझाई है॥
बहुत लोगों को है दावा वतन की खैरख़्वाही का।
कोई पूछै तो इनसे चाल यह किसकी उड़ाई है॥
तरक्क़ी क्या है? कैसे होय है? होता है क्या उससे?
किसी को कुछ खबर भी थी उसी ने सब बताई है॥
सिवा उसके जो सच पूछो तो ऐसा कौन है जिसने।
निकाली बात जो कुछ मुँह से है वह कर दिखाई है॥
उठै है किससे बारे इश्क़े हक़ हमदरदिये अखवां।
सिवा उसके यह हिम्मत किसको कुदरत किसने पाई है॥
बरहमन यह सुरूर आया मुझे है बस्फ़ उसका सुनने से।
कि मेरी रूह इस तन में नहीं फूली समाई है॥
लिखूं तारीफ़ कुछ उसकी यह मेरी तबअ ने चाहा।
तो फिर मुहहिम ने फरमाया गुमां बेजा यह भाई है॥
उसे क्या कोई दिखलावेगा अपने खामः के जौहर।
रसा है वह खुद उसके जिहन की वां तक रसाई है॥
कि जिस जा ख्वाब में पहुंचे खयाल इंसां का क्या मुमकिन।
फ़रिश्तों ने जहां जाने में अकसर जक् उठाई है॥
जहां तक कीजिये तौसीफ़ उसकी सब बजा लेकिन।
नहीं उरफ़ी को दावा दूसरों की क्या चलाई है॥

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यही बेहतर कि उसके हक में हम हरदम दुवा माँगैं।
यही बस फर्ज अपना है इसी में सब भलाई है।।
खुदाया खुश रहे वह फ़ख्ते आलम रौजे महशर तक।
कि जिसकी जाते बा बरकत को जेबा सब बड़ाई है।।
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चार्ल्स ब्रैडला की मृत्यु पर।
हाय आज काहू बिधि धीरज धरत बनै ना।
फूटि बह्यो रकत रुकतो रोकै नहिं नैना॥
हाय ! हाय ! हम कह सूझत सब जग अँधियारो।
बिछुरि गयो हा उर-पुर-आस प्रकासन हारो॥
हाय विधाता फाटि पर्यो यह बज्र कहां ते।
उमड़ि उठ्यो हा दैव ! सोक-सागर चहुंघाते॥
अरे काल-चंडाल ! तरस तोहिं नेक न आयो।
निरबल, बूढ़े, रोग-ग्रसित पर दाँत लगायो।।
हाय अभागी हिन्द ! भाग तेरे ऐसे ही।
बेगहि जात बिलाय हाय तव सहज सनेही॥
दयानन्द, हरिचंद अलखधारी केशव कर।
दुख भूल्यो ज्यों त्यों करि छाती धरि पाथर॥
तब लगि हा दुरदैव, और इक घाव लगायो।
रहो सह्यो अवलम्ब अंकुरहि काटि गिराओ॥
हाय हमारे दुख कहं निज दुख समझन हारे।

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