प्रताप पीयूष/होली है अथवा होरी है।

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[ १८८ ]

भयो अचानक दुसह दुःख दै हरि पुर राही॥
तेरे बिन हा हन्त कतहुं कछु नहिं सुहायरे।
हाय हायरे हाय हायरे हाय हायरे॥
कहां जायं का करैं कौन बिधि जिय समुझावैं।
हम कोउ ऋषि मुनि नाहिं क्यों न फिर ज्ञान गंवावै॥
जो जनम्यो सो अवसि मरैगो हमहूं जानैं।
पै ऐसो दुख देखि चित्त नहिं रहत ठिकानैं॥
कबहुं काहु बिन कछु जग कारज रहत न अटके।
पै ऐसे थल नहिं मानत मन बिन सिर पटके॥
याते रहि रहि कहि कहि आवत उर ते एही।
हाय ब्रैडला हाय सत्य के सहज सनेही॥
अमित पंचमी माघ की हरि शशि संवत् सात।
स्वर्ग सिधारे ब्रैडला तजि मित्रन बिलखात॥
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होली है अथवा होरी है।
बीती सीतकाल की सांसति ब्यार बसन्ती डोली है।
फूले फूल बिपिन बागन के जीह कोकिलन खोली है॥
बदली गति मति जड़ चेतन की सुखमा सुखद अतोली है।
भयो नयो सो जगत देखियत अहो आय गइ होली है॥१॥
यों तो माँह सुदी पाँचे ते उर उमङ्ग नहिं थोरी है।
राग रङ्ग रस चहल पहल की चरचा चारहुं ओरी है॥

[ १८९ ]

पै अब तो फागुन महिना है मस्ती को जुनि चोरी है।
यामें कौ अभागि ऐसो जाहि चढ़त नहि होरी है॥२॥
जब ह्वै चुक्यो होलिका पूजन चढ़ि भइ अच्छत रोली है।
तब काहे की लाज कौन डर सव विधि उचित मखोली है॥
आओ चलि देखिये कहां कह कैसी कैसी टोली है।
केहि केहि के सिर कौन कौन से बाहन आई होली है॥३॥
आहा! अजब रङ्ग है सब पै देह न तनिको कोरी है।
कारे पीले लाल रंग सों लथ पथ पाग पिछौरी है॥
कर मुख पै लपिट्यो लखात काजर गुलाल अरु रोरी है।
नख ते सिख लौं छाय रही बहु रंग रंगीली होरी है॥४॥
कतहुं कीच उछरै कहुं पानी कहुं कहुं माटी घोली है।
जूती उछरै धूरि उडै कहुं गाली गीत ठठोली है॥
कतहूं बिंदुली देत समय आये २--की बोली है।
बिना खरच हूं हंसी खुशी में दिवस बितावत होली है॥५॥
कोऊ डफ कोउ ढोल बजावत कोउ झांझ की जोरी है।
कोऊ गावत कोउ बकत निलज है बातैं फोरी फोरी है॥
कोऊ बेढंग नाच रह्यो कोउ पीटत वृथा थपोरी है।
बैठे ठाढ़े चलत मिलत जग भाखत होरी होरी है॥६॥
कहुं पिचकारी चलै रङ्ग की कहुं अबीर की झोली है।
कहुं कबीर कहुं फाग होत कहुं हांसी बोली ठोली है।
कहुं दूधिया भांग छनै कहुं जाती बोतल खोली है।
जित देखो तित भांति भांति से मोद मचावत होली है॥७॥

[ १९० ]

कोऊ भाट बने डोले है संग मैं भाटिन गोरी गोरी है।
सुथरे साई बन्यो फिरै कोउ लै डंडन की जोरी है॥
साहब मेम कञ्जरी कञ्जर कुंजड़ा सिड़ी अघोरी है।
गलियन गलियन विविध रूप के स्वांग दिखावत होरी है॥८॥
नृत्य सभा में नव रसिकन की लसति रंगीली टोली है।
बीच बिराजति बार बधूटी सूरत भोली भोली है॥
देति महासुख बात २ में निधरक हंसी ठठोली है।
हीय हरति वह गोरे मुख सो मधुर सुरन की होली है॥९॥
निज निज बित अनुसार सबन के सुख सीमा इक ठोरी है।
कुशल मनावत बरस बरस की जाकी बुधि नहिं कोरी है॥
बालक युवक वृद्ध नर नारिन अति उछाह चहुं ओरी है।
सबके मुख सुनियत घर बाहर होरी है भइ होरी है॥१०॥
याहू अवसर देश दशा की सुधि दुख देति अतोली है।
सब प्रकार सों देखि दीनता लगति हिए जनु गोली है।
दिन दिन निरबल निरधन निरबस होतिप्रजा अतिभोली है।
हाय कौन सुख देखि समुझिये अजहु हमारे होली है॥११॥
कहं कञ्चन पिचकारी है कहं केसर भरी कटोरी है।
कहं निचिन्त नर नारिन को गन बिहरत है इक ठोरी है॥
चोआ चन्दन अतर अरगजा कहुं बरसत केहि ओरी है।
है गई सपने की सी सम्पति रही कथन में होरी है॥१२॥
कटि गये कटे जात किंसुक बन बिकत लकरियों तोली है।
टेसू फूल मिलत औषधि इव पैसा पुरियो घोली है॥

[ १९१ ]

महंगी और टिकस के मारे सगरी वस्तु अमोली है।
कौन भांति त्योहार मनैऐ कैसे कहिए होली है॥१३॥
भूखो मरत किसान तहूं पर कर हित उपट न थोरी है।
गारी देत दुष्ट चपरासी तकति बिचारी छोरी है॥
बात कहें बिन लात लगति है गरदन जाति मरोरी है।
केहि बिधि दुखिया दिल समझावै कैसे जानै होरी है॥१४॥
बिन रुजगार बनिक जन रोवैं गांठ सबन की पोली है।
लाग्यो रहत दिवाली को डर जबते कोठी खोली है॥
अन्धा धुन्ध टिक्कस चन्दा ने सारी सम्पति ढोली है।
ताहू पै तशखीस-करैया द्वार मचावत होली है॥१५॥
दीन प्रजहि घृत दूध अन्न की आस रही इक ओरी है।
साग पात संग नोन तेल हू की तरसनि नहिं थोरी है॥
पर्यो झोपड़ी मांहि छुधित नित रोवत छोरा छोरी है॥
ज्यों त्यों करि काटत दुख जीवन का सूझति तेहि होरी है॥१६॥
ह्यां की रीति नीति दुख सुख सों मति गति जिनकी पोली है।
हम पर मन मानी प्रभुता की राह आय उन खोली है॥
प्रजा पुंज ममता बिन तिन हिन जो चेती कर सोली है।
बरबस बिबस हिन्द बासिन की कहा दिवाली होली है॥१७॥
राजकुंअर दरसन आश्रित की काहूं इज्ज़त बोरी है।
निर अपराधिन को काहू ने कैद कियों बर जोरी है॥
काहू ने मंदिर ढहवायो हठ सों मूरति तोरी है।
यह गति देखि कौन सहृदय के जिय में जरत न होरी है॥१८॥

[ १९२ ]


राह चलत हन्टर हनिबो कोउ समझत सहज ठठोली है।
कोऊ बूट प्रहार करत कोऊ निधरक मारत गोली है॥
जबरदस्त की बीसों बिसुवा कोऊ सकत न बोली है।
हा बिजयिनि ! तब प्रजा भाग में चहुं दिशि लागी होली है॥१९॥
हा अभाग तव हाथ अधौगति छाय रही चहुं ओरी है।
ताहू पर घर घर जन जन में मत विवाद मुड़ फोरी है॥
जाने काह कियों चाहत विधि अविधिन दीसति थोरी है।
मेरे चित याही चिन्ता सों जरत रहति नित होरी है॥२०॥
अहो प्रेमनिधि प्राणनाथ व्याकुलता मोहि अतोली है।
जग है सुखित दुखित मैं, यहि छिन कौन पवन धौं डोली है।
मेरे प्यारे जीवनधन, बस अब नहिं उचित बतोली है।
धाय आय दुख हरो बेगि नहिं मेरी गति सब होली है॥२१॥
अरे निठुर छलिया निर्मोही, कौन बानि यह तोरी है।
पीर न जानत काहू की बस एक सिखी चित चोरी है॥
ऐसेहु अवसर दया करत नहिं अजहुं वैसिही त्योरी है ।
हा हा कहा अजहुँ तरसै हम ? अरे आज तौ होरी है॥२२॥
अब नहिं सही जात निठुराई अन्त भई बस होली है।
अपने सों ऐसी नहिं चहिये बहुत करी करि जोली है॥
बरस दिना को दिन है प्रियतम, यह शुभ घरी अमोली है।
चूकि क्षमौ निज दिशि देखो आयो मिलि जाओ होली है॥२३॥
आज लाज को काज कहा है फाग मचों चहुं ओरी है।
भेंटौ मोंहि निसंक अंक भरि कछु काहू की चोरी है॥

[ १९३ ]

छुवन देहु ससि मुख गुलाल मिस यहै साध बस मोरी है।
गारी गाओ रंग बरसाओ मोद मचाओ होरी है॥२४॥
हम तुम एक होंहि तन मन सों यह आनन्द अतोली है।
या मैं काऊ कछू कहै तो समझै सहज मखोली है॥
प्रेमदास अति आस सहित यह मांगत ओड़े ओली है।
पूजों इतों मनोरथ प्यारे आज बड़ौ दिन होली है॥२॥


[ १९४ ]






कविता (परिहासपूर्ण)

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