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प्रताप पीयूष/गज़ल

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गज़ल
विवादी बढ़े हैं यहाँ कैसे कैसे।
'कलाम आते हैं दरमियां कैसे कैसे'॥
जहां देखिये म्लेछ सेना के हाथों।
'मिटे नामियों के निशां कैसे कैसे'॥
बने पढ़ के गौरंड भाषा द्विजाती।
'मुरीदाने पीरो-मुगां कैसे कैसे॥
बसो मूर्खते देवि आय्र्यों के जी में।
'तुम्हारे लिये हैं मकाँ कैसे कैसे'॥
अनुद्योग आलस्य सन्तोष सेवा ।
'हमारे भी हैं मिहरबाँ कैसे कैसे'॥
न आई दया गो-भक्षियों को।
'तड़पते रहे नीमज़ां कैसे कैसे'॥
विधाता ने याँ मक्खियाँ मारने को।
'बनाये हैं खुसरू जवां कैसे कैसे'॥
अभी देखिये क्या दशा देश की हो।
'बदलता है रंग आसमाँ कैसे कैसे॥
हैं निर्गन्ध इस भारती बाटिका के।
'गुलो लाल वो अरगवां कैसे कैसे'॥

हमैं वह दुखद हाल भूला है जिसने।
'तवाना किये नातवाँ कैसे कैसे'॥
प्रताप अपनी होटल में निर्लज्जता के।
'मजे लूटती है ज़बां कैसे कैसे'॥
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गज़ल
वह बदखू राह क्या जाने वफा की,
'अगर गफ़लत से बाज़ आया जफ़ा की'॥
न मारी गाय गोचारन किया बन्द,
'तलाफ़ी की जो ज़ालिम ने तो क्या की'।
मियाँ आये हैं बेगारी पकड़ने,
'कहे देती है शोखी नक्शेपा की'॥
पुलिस ने और बदकारों को शह दी,
'मरज़ बढ़ता गया ज्यों ज्यों दवा की'।
जो काफ़िर कर गया मन्दिर में विद्दत,
'वह जाता है दुहाई है खुदा की'॥
शबे क़त्ल आगरे के हिन्दुओं पर,
'हक़ीक़त खुल गई रोजे जज़ा की'॥
खबर हाकिम को दें इस फ़िक्र में हाय,
'घटा की रात और हसरत बढ़ा की'।
कहा अब हम मरे साहब कलक्टर,

'कहा मैं क्या करूँ मरजी खुदा की'।
ज़मीं पर किसके हो हिन्दू रहें अब,
'खबर लादे कोई तहतुस्सरा की'।
कोई पूछे तो हिन्दुस्तानियों से,
'कि तुमने किस तवक्का पर वफ़ा की'।
उसे मोमिन न समझो ऐ बरहमन,
'सताये जो कोई खिलकत खुदा की'।
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ककाराष्टक।
कलह करावन माहिं परम पंडित कलुषाकर।
कोटिन कल्पित पंथ प्रचारि सधर्म नीति हर॥
काम कला सिसु ताहि मोहिं सिखवत बल नासत।
कहुं मंहगी कहुं कुरुज भांति भांतिन परकाशत॥
करके मिस दीन प्रजान कर सब प्रकार सरबस हरन।
कलिराज कपटमय जयति जय भारत कहं गारत करन॥१॥
करुणानिधि पद बिमुख देव देवी बहु मानत।
कन्या अरु कामिन सराप लहि पाप न जानत॥
केवल दायज लेत और उद्योग न भावत।
करि बकरा भच्छन निज पेटहि कबर बनावत॥
का खा गा घा हू बिन पढ़े तिरबेदी पदवी धरन।
कलह प्रिय जयति कनौजिया भारत कहं गारत करन॥२॥

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