प्रताप पीयूष/⁠प्रार्थना २

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प्रताप पीयूष  (१९३३) 
द्वारा प्रतापनारायण मिश्र

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( २२१ )
प्रार्थना २
पितु मात सहायक स्वामि सखा
तुमही इक नाथ हमारे हो।
जिनके कछु और अधार नहीं
तिनके तुमही रखवारे हो।।
सब भाँति सदा सुखदायक हो
दुख दुर्गन नासनहारे हो ।
प्रतिपाल करौ सगरे जग को
अतिसै करुना उर धारे हो।।
भुलिहैं हमही तुम को तुम तौ
हमरी सुधि नाहिं विसारे हो।
उपकारन को कछु अंत नहीं
छिन ही छिन जो बिस्तारे हो॥
महराज महा महिमा तुम्हरी
समुझै बिरले बुधिवारे हो।
शुभ शांतिनिकेतन प्रेमनिधे !
मन मंदिर के उजियारे हो।।
यहि जीवन के तुम जीवन हो
इन प्रानन के तुम प्यारे हो ।
तुम सों प्रभु पाय “प्रताप हरी"
किहि के अब और सहारे हो।।

यह कार्य भारत में सार्वजनिक डोमेन है क्योंकि यह भारत में निर्मित हुआ है और इसकी कॉपीराइट की अवधि समाप्त हो चुकी है। भारत के कॉपीराइट अधिनियम, 1957 के अनुसार लेखक की मृत्यु के पश्चात् के वर्ष (अर्थात् वर्ष 2024 के अनुसार, 1 जनवरी 1964 से पूर्व के) से गणना करके साठ वर्ष पूर्ण होने पर सभी दस्तावेज सार्वजनिक प्रभावक्षेत्र में आ जाते हैं।


यह कार्य संयुक्त राज्य अमेरिका में भी सार्वजनिक डोमेन में है क्योंकि यह भारत में 1996 में सार्वजनिक प्रभावक्षेत्र में आया था और संयुक्त राज्य अमेरिका में इसका कोई कॉपीराइट पंजीकरण नहीं है (यह भारत के वर्ष 1928 में बर्न समझौते में शामिल होने और 17 यूएससी 104ए की महत्त्वपूर्ण तिथि जनवरी 1, 1996 का संयुक्त प्रभाव है।