प्रेमसागर/६ कृष्ण-जन्मोत्सव

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प्रेमसागर  (1922) 
द्वारा लल्लूलाल जी
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छठा अध्याय

इतनी कथा कह श्रीशुकदेवजी बोले―राजा एक समै नंद जसोदा ने पुत्र के लिये बड़ा तप किया वहाँ श्रीनारायन ने आय बर दिया कि हम तुम्हारे यहाँ जन्म ले जायँगे। जब भादों बदी अष्टमी बुधवार को आधी रात के समै श्रीकृष्ण आये तब जसोदा ने जागतेही पुत्र को मुख देख नंद को बुला अति आनंद माना औ अपना जीतब सुप्फल जाना। भोर होतेही उठके नंदजी ने पंडित औ जोतिषियों को बुला भेजा। वे अपनी अपनी पोथी पत्रे ले ले आए। तिनको आसन दे दे आदर मान से बैठाए। विन्होने शास्त्र की बिधि से संवत्, महीना, तिथ, दिन, नक्षत्र, जोग, करन, ठहराय लगन बिचार, मुहूर्त साध के कहा―महाराज, हमारे शास्त्र के बिचार में तो ऐसा आता है कि यह लड़का दूसरा बिधाता हो, सब असुरों को मार ब्रज का भार उतार गोपीनाथ कहावेगा, सारा संसार इसीका जस गावेगा।

यह सुन नंदजी ने कंचन के सींग, रूपे के खुर, ताँबे की पीठ समेत दो लाख गौ पादंबर उड़ाय संकल्प की और अनेक दान कर ब्राह्मन को दछना दे दे असीस ले ले बिदा किया। तब नगर के सब मंगलामुखियों को बुलवाया। वे आय आय अपना अपना गुन प्रकाश करने लगे, बजंत्री बजाने, नृत्यक नाचने, गायक गाने, ढाढी ढाढिन जस बखानने और जितने गोकुल के गोप ग्वाल थे वे भी अपने नारियों के सिर पर दहेड़ियाँ लिवाये, भाँति भाँति के भेष बनाये, नाचते गाते नंद को बधाई देने आए। आतेही ऐसा [ २७ ]दधिकादौ किया कि सारे गोकुल में दही दही कर दिया। जब दुधिकादौ खेल चुके तब नंदजी ने सब को खिलाय पिलाय, बागे पहराय, तिलक कर पान दे बिदा किया।

इसी रीति से कई दिन तक बधाई रही। इस बीच नंदजी से जिस जिसने जो जो आय आय माँगा सो पाया। बधाई से निश्चिंत हो नंदजी सब ग्वालो को बुलाय के कहा—भाइयो, हमने सुना है कि कंस बालक पकड़ मँगवाता है, न जानिये कोई दुष्ट कुछ बात लगा दे, इससे उचित है कि सब मिल भेंट ले चले औ बरसौड़ी दे आवे। यह वचन मान सब अपने अपने घर से दूध, दही, माखन और रुपए लाए, गाड़ी में लाद लाद नंद के साथ हो गोकुल से चल मथुरा आए। कंस से भेटकर भेट दी। कौड़ी कौड़ी चुकाय बिदा हो जुहार कर अपनी बाट ली।

जोही जमुना तीर पै आए तोही समाचार सुन बसुदेवजी आ पहुँचे। नंदजी से मिल कुशल क्षेम पूछ कहने लगे―तुम सा सगा औ मित्र हमारा संसार में कोई नही, क्योंकि जब हमें भारी विपत भई तत्र गर्भवती रोहनी तुम्हारे यहाँ भेज दी, किसके लड़का हुआ सो तुमने पाल बड़ा किया, हम तुम्हारा गुन कहाँ तक बखाने। इतना कह फेर पूछा―कहो राम कृष्ण और जसोदा रानी आनंद से है। नंदजी बोले―आपकी कृपा से सब भले हैं और हमारे जीवनमूल तुम्हारे बलदेवजी भी कुशल से हैं, कि जिनके होते तुम्हारे पुन्य प्रताप से हमारे पुत्र हुआ, पर एक तुम्हारेई दुख से हम दुखी है। बसुदेव कहने लगे-मित्र, विधाता से कुछ न बसाय, कर्स की रेख किसी से मेटी न जाय। इस संसार में

आय दुःख पीर पाय कौन पछुताय। ऐसे ज्ञान जनाय के कहा― [ २८ ]

तुम घर जाहु बेग अपने। कीने कंस उपद्रव घने॥
बालक ढूँढे मँगावे नीच। हुई साध परजा की मीच॥

तुम तो सब यहाँ चले आए हो और राक्षस ढूँढ़ते फिरते हैं। न जानिये कोई दुष्ट जाय गोकुल में उपाध मचावे। यह सुनते ही नंदजी अकुलाकर सबको साथ लिये सोचते मथुरा से गोकुल को चले।



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