प्रेमसागर/७ पूतनाबध

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सातवां अध्याय

श्रीशुकदेवजी बोले―हे राजा, कंस का मंत्री तो अनेक राक्षस साथ लिये भारता फिरता ही था कि कंस ने पूतना नाम राक्षसी को बुलाकर कहा―तू जा यदुबंसियों के जितने बालक पावे तितने मार। यह सुन वह प्रसन्न हो दंडवत कर चली तो अपने जी में कहने लगी―

भये पूत हैं नंद के सूनों गोकुल गाउँ।
छलकर अबही आनिहों गोपी ह्वै के जाउँ॥

यह कह सोलह सिगार बारह आभरन कर, कुच में विष लगाय मोहनी रूप बन, कपद किये कँवल का फूल हाथ में लिये बन ठनके ऐसे चली कि जैसे सिंगार किये लक्ष्मी अपने कंत पै जाती हो। गोकुल में पहुँच हँसती हँसती नंद के मंदिर बीच गई। इसे देख सबकी सब मोहित हो भूलीसी रहीं। यह जा जसोदा के पास बैठी, और कुशल पूछ असीस दी कि बीर तेरा कान्ह जीव कोट बरीस। ऐसे प्रति बढ़ाय लड़के को जसोदा के हाथ से ले गोद में रख जो दूध पिलावने लगी तो कृष्ण दोनों हाथों से चूँची पकड़ मुँह लगाय लगे प्रान समेत पै पीने। तब तो अति व्याकुल हो पूतना पुकारी―कैसा जसुदा तेरा पूत, मानुष नहीं यह है जमदूत। जेवरी जान मैने साँप पकड़ा जो इसके हाथ से बच जीती जाऊँगी तो फेर गोकुलमें कभी न आऊँगी। यो कह भाग गाँव के बाहर आई पर कृष्ण ने न छोड़ा। निदान विसका जी लिया। वह पछाड़ खाय ऐसे गिरी जैसे आकाश से बज्र गिरे। [ ३० ]
अति शब्द सुन रोहिनी औ जसोदा रोती पीटती वहीं आई जहॉ पूतना दो कोस में मरी पड़ी थी और विनके पीछे सब गॉव उठ धाया। देखे तो कृष्ण उसकी छाती पर चढ़े दूध पी रहे हैं। झट उठाय मुख चूँँब हृदय से लगाये घर ले आई। गुनियो को बुलाय झाड़ फूँक करने लगीं और पूतना के पास गोपी ग्वाल खड़े आपस मे कह रहे थे कि भाई इसके गिरने का धमका सुन हम ऐसे डरे है। जो छाती अब तक धड़कती है, न जानिये बालक की क्या गनि हुई होगी।

इतने मे मथुरा से नंदजी आये तो देखते क्या हैं कि एक राक्षसी मरी पड़ी हैं औ प्रजबासियों की भीड़ घेरे खड़ी है, पूछायह उपाध कैसे हुई। वे कहने लगे―महाराज, पहले तो यह अति सुंदर हो तुम्हारे घर असीस देती गई, इसे देख सब ब्रज नारी भूल रहीं, यह कृष्ण को ले दूध पिलाने लगी। पीछे हम नहीं जानते क्या गति हुई। इतना सुन नंदजी बोले―बड़ी कुशल भई जो बालक बचा औ यह गोकुल पर न गिरी, नहीं तो एक भी जीता न रहता, सब इसके नीचे दब मरते। यो कह नंदजी तो घर आय दोन पुन्य करने लगे और ग्वालो ने फरसे, फावड़े, कुदाल, कुल्हाड़ी से काट पूतना के हाड़ गोड़ हो गढ़े खोद खोद गाड़ दिये और मॉस चाम इकट्ठा कर फूँक दिया। विसके जलने से एक ऐसी सुगंध फैली कि जिसने सारे संसार को सुगंध से भर दिया है।

इतनी कथा सुन राजा परीक्षित ने शुकदेवजी से पूछा―महाराज वह राक्षसी महा मलीन, मद मॉस खानेवाली, विसके शरीर से सुगंध कैसे निकली सो कृपा कर कहो। मुनि बोले―राजा, श्रीकृष्णचंद ने दूध पी के विसे मुक्ति दी, इस कारन सुगंध निकली।