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बेकन-विचाररत्नावली/२८ भाग्योदय

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बेकन-विचाररत्नावली
महावीरप्रसाद द्विवेदी

पृष्ठ ८३ से – ८६ तक

 

भाग्योदय।

पूर्वजन्मजनितं[] पुराविदः कर्म दैवमिति सम्प्रचक्षते।
उद्यमेन तदुपार्जितं चिराद्दैवमुद्यमवशं न तत्कथम्।

स्फुट।

इसको कौन नहीं स्वीकार करैगा कि मनुष्य का भाग्योदय बहुधा आकस्मिक घटनाओं पर निर्भर रहता है? बड़े बड़े लोगोंका अनुग्रह योग्यता प्रकाश करनेका अवसर दूसरोंका मृत्यु इत्यादि बातें भाग्योदय का कारण समझना चाहिए। परन्तु पूर्वापर विचार करनेसे यही कहना पड़ता है कि मनुष्य का सौभाग्य मनुष्यही के हाथमें है। एक कविने कहा है कि सौभाग्यरूपी मंदिर का बनानेवाला शिल्पकार मनुष्यही है। यह उक्ति बहुत यथार्थ है।

सौभाग्यको उदय करनेवाली जितनी आकस्मिक घटनाएं हैं उन सबमेंसे भाग्योदय का मूल कारण "एक की भूल-दूसरे का लाभ है"। दूसरे के प्रमाद और दूसरे की असावधानतासे जितना लाभ होता है उतना अन्यद्वारा नहीं होता। किसीने ठीक कहा है कि सर्प जबतक दूसरे सर्पको नहीं खाजाता तबतक वह स्वयं बड़ा और भयङ्कर नहींहोता। किसी किसी विषयमें ऐसे अनेक कौशल हैं जिनको मनुष्य सहजहीमें समझ सकते हैं, उनकीप्रशंसा करसकते हैं और अनुकरणद्वारा उनसे लाभ भी उठासकते हैं; परन्तु भाग्यवान् होनेके कौशल ऐसे गुप्त हैं कि उनका जानना सबका काम नहीं है उनको जो जानते हैं वे, चाहै जैसा अवसर आन पड़ैं, शान्तचित्त होकर ऐसे चातुर्य का वर्ताव करते हैं और अपनी बुद्धिकोसमयानुसार "चक्रनेमिक्रमेण" ऐसी सामञ्जसीभूत करदेतेहैं कि इष्टसिद्धी हुए बिना नहीं रहती। लीवी नामक रोमन कविने केरो मेजरके विषयमें कहा है कि वह ऐसा चाणाक्ष था और उसकी शारीरिक तथा मानसिक शक्ति ऐसी प्रबल थी कि उसका चाहै जहां जन्म होता वह अवश्यमेव भाग्यशाली पुरुष होता। अतः यह सिद्ध है कि जो चतुर मनुष्य सावधान होकर सूक्ष्म दृष्टिसे देखने का प्रयत्न करेगा उसका भाग्योदय अवश्य होगा, क्योंकि भाग्यके यद्यपि नेत्र नहीं होते तथापि भाग्यवान् होनेकी इच्छा रखनेवालोंके नेत्र होते हैं।

भाग्योदय आकाशगंगा के समान है। आकाश गंगा छोटे छोटे तारागणोंका एक स्तबक मात्र है। ये तारागण पृथक् पृथक् नहीं दिखाई देते परन्तु एकत्र होनेसे दीप्तिमान् होजाते हैं और आकाश को प्रकाशित करते हैं। इसी प्रकार सौभाग्य का कोई नियत मार्ग नहीं है। छोटे छोटे गुण, बुद्धिकौशल्य, तथा देशकी साधारण रीतियां-यही सब मनुष्यके भाग्योदय का कारण होते हैं। इटली के निवासी बहुतसी ऐसी छोटी छोटी बातोंको सौभाग्यका कारण बतलाते हैं जो क्वचितही और किसी मनुष्यके ध्यानमें आती होंगी। वे जब कभी ऐसे मनुष्यके विषयमें भाषण करते हैं जिससे कभी किसी प्रकार की भूल होतीही नहीं तब वे उस बातको किसी दूसरे प्रसंगमें डाल देते हैं अर्थात् वे यह सिद्ध करते हैं कि एतादृश निष्कलंक व्यवहार किए बिना अमुक व्यक्तिका निर्वाहही नहीं हो सकता; इसीसे विवश होकर वह ऐसा करता है। इस प्रकार उस मनुष्यके आचरणकी आलोचना करकै वे कहते हैं कि। "देखो, वह कैसा चतुर पुरुष है"। भाग्यशाली होनेके लिए मुख्य करके दो बातें आवश्यक हैं। एक तो कुछ न कुछ कपट व्यवहार करना चाहिए और दूसरे प्रामाणिकता को मर्यादा के बाहर न जाने देना चाहिए। यही कारण है कि अतिशय देशाभिमानी और अतिशय स्वामिभक्त लोग कभी भाग्यवान् नहीं हुए; और वे हो भी नहीं सकते, क्योंकि जब मनुष्य अपनेको छोंड अन्य बातोंका विचार करने लगता है तब वह स्वतःकी अनुकूलता की ओर ध्यान नहीं देता।

सत्वर भाग्योदय होनेसे मनुष्य अपरिणामदर्शी होजाता है,और नित्य नए साहसके काम करने लगताहै; परन्तु परिश्रमपूर्वक शनैः शनैः जो उत्कर्ष हाताहै उससे मनुष्यकी योग्यता तथा सामर्थ्यकी बड़ाई होती है।

भाग्यवान् पुरुषोंका सन्मान करना और उनको पूज्य मानना उचित है। ऐसेमनुष्य विश्वसनीय और कीर्तिमान होते हैं इसी लिए लोग उनका इतना आदर करते हैं। विश्वास और कीर्ति यह दो सौख्यसाधनके आदिकारण हैं। विश्वाससे स्वयं सुखमिलताहै और कीर्तिसे दूसरों के द्वारा मिलताहै।

दूसरेके उत्कर्षको देखकर लोग मत्सर करने लगते हैं। इस मत्सरसे बचनेके लिए बुद्धिमान् पुरुष अपने अभ्युदयको ईश्वरदत्त अथवा भाग्यायत्त कहकर अपने महत्वको छिपाते हैं। इस प्रकारका कथन भाग्यशालीजनोंको विशेष हितावह होता है, क्योंकि देवतादिके मसादपात्र होनेमें उनका औरभी अधिक गौरव है। एकबार प्रचण्ड आंधीके समय अपने धूमपोतके नायकको सीजरने इसी अभिप्रायसे कहा कि "धूमपोतपर अपने अनुकूल दैवक समेत सीजरके उपस्थित रहते तुझको किसका भय है!" सीला[] अपनेको भाग्यवान् कहताथा परन्तु महान् नहीं और यह बात प्रसिद्ध भी है कि जो मनुष्य अपने व्यवहार, चातुर्य और बुद्धिमत्ताको अतिशय महत्व देते हैं वे अन्तमें भग्नोद्यम होकर अवश्यमेव अभाग्यके पाशमें फँसते हैं।

  1. पूर्वजन्ममें किएहुए कर्मको पुरातत्त्ववेत्ता दैव कहते हैं। यह कर्म जिसे वह दैव कहते है चिरकाल उद्योगहीसे उपार्जित होता है,–अतः दैव भी उद्यमही के वश है यह क्यों न कहना चाहिए।
  2. सीला रोममें एक प्रख्यात सेनानायक होगया है। यह बड़ाही उग्रस्वभाव वाला था। इसने अनेक बार बड़े बड़े वीरताके काम किए हैं, परन्तु सहस्रशः निरपराध मनुष्योंका वधभी इसने कराया है। इसको एक दूसरे मनुष्यने अपना उत्तराधिकारी बनायाथा जिससे इसे अकस्मात् अपार सम्पत्ति मिलगई थी। ६९ वर्षके वयमें ईसाके ७८ वर्ष पहिले इसकी जीवनलीला सम्वरण हुई।