बेकन-विचाररत्नावली/२ विपत्ति

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बेकन-विचाररत्नावली  (1899) 
द्वारा महावीरप्रसाद द्विवेदी
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विपत्ति २.

आपद्गतः[१] किल महाशयचक्रवर्ती
विस्तारयत्यकृतपूर्वमुदारभावम्।
कालागुरुर्दहनमध्यगतः समन्ता-
ल्लोकोत्तरं परिमलं प्रकटीकरोति॥

भामिनीविलास।

सेनेका[२]ने बहुत ठीक कहा है कि, सम्पत्ति कालकी जितनी सद्वस्तु हैं उनके मिलनेकी अभिलाषा रखनी चाहिये परन्तु विपत्तिकालकी जितनी सद्वस्तु हैं उनकी साश्चर्य प्रशंसा करनी चाहिये। मनुष्यस्वभाव के ऊपर आधिपत्य करनेको यदि विलक्षण चमत्कार कहते हों तो ऐसे ऐसे अनेक चमत्कार विपत्तिहीमें देख पड़ते हैं। उसी तत्त्ववेत्ताकी उपर्युक्त उक्तिसे बढ़कर एक और उक्ति है। वह कहता है कि, एकही व्यक्तिमें मनुष्यकी अशक्तता और ईश्वरकी निर्भयताका होनाही सच्चा बड़ापन है। इस प्रकारकी उक्ति काव्यमें अधिक शोभा देती, क्योंकि उसमें मनमानी कल्पना की जासकती है। प्राचीन ग्रीक तथा रोमन कवियोंने इसका उपयोग किया भी है। वे कहतेहैं कि, प्रोमीथियस[३]को [  ] मुक्त करनेके लिये जब हरक्यूलिस[४] बद्धपरिकर हुआ तब उसने इस प्रचंड महासागरको मृत्तिकाकी नौकापर आरोहण करके पार किया, जिससे यह अभिप्राय निकलता है कि, दृढ़ संकल्प करनेसे इस पंचभूतात्मक नश्वर शररिहीके द्वारा मनुष्य संसाररूपी समुद्रके पार जाने में समर्थ होसकता है। सम्पत्तिमें परिमिताचरण रखना सद्गुण है और विपत्तिमें धैर्य धरना भी सद्गुण है। परन्तु इन दोनों से द्वितीय सद्गुण अर्थात् विपत्तिमें धैर्य धारण करना नीतिशास्त्रवालोंने श्रेष्ठ माना है। सम्पत्तिकालमें अनेक भयप्रद और अनिच्छित बातोंका होना असम्भव नहीं और आपत्तिकालमें आशा और समाधान कारक अनेक बातोंका होनाभी असम्भव नहीं।

हम देखते हैं कि, साधारण बेल बूटा निकालने तथा जरीका काम करनेमें काले और सादे कपड़ेके ऊपर रंगीन काम जैसा शोभा देताहै वैसा चमकीले कपड़ेके ऊपर काला काम नहीं शोभा देता। अतएव अन्तःकरणके आनन्दित होनेकी कल्पना नेत्रोंके आनन्दितहोनेके प्रकारको देखकर करनी चाहिये। सत्य तो यह है कि, सद्गुण सुगन्धित वस्तुके समान हैं। जैसे बहुमूल्य सुगन्धित वस्तुको जबतक अग्निमें नहीं डालते अथवा उसे नहीं तोड़ते तबतक उसका सुवास बाहर नहीं निकलता, वैसेही जबतक विपत्ति नहीं आती तबतक सच्चे सद्गुणका होना अथवा न होनाभी नहीं जाना जाता। सम्पत्तिमें दुर्गुण भलीभांति दिखलाई देते हैं और विपत्तिमें सद्गुण भलीभाँति दिखलाई देते हैं।

  1. आपत्तिकालमें सत्पुरुष उस उदारताको दिखाते हैं जो उन्होंने पहिले कभी (अर्थात् ऊर्जितावस्थामें) भी नहीं दिखाई थी। सत्य है, कालागरुको अग्निमें रखनेहीसे उसकी लोकोत्तर सुगन्ध सब ओर फैलती है।
  2. रोमनगरमें सेनेका नामका एक प्रख्यात तत्त्ववेत्ता होगया है।
  3. प्रोमीथियसका जन्म ग्रीसदेशमें हुआ था। यह ऐसा विलक्षण चतुर और छली था कि, इसने अनेक बार देवताओंसे भी छल किया। इसीलिये जुपीटर नामक देवोंके राजाने क्रोधमें आकर इसे काकेशश पर्वतके एक शिखरसे बाँध दिया था। यहीं हरक्यूलिसने इसे बन्धमुक्त किया।
  4. हरक्यूलिस भी ग्रीसदेशमें एक महापराक्रमी पुरुष होगया है। मरनेके अनन्तर इसको लोगोंने देवताओंकी कक्षामें स्थान दिया और आदरभी इसका वैसाही किया।