भारतवर्ष का इतिहास/१३–बौद्धमत का समय

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१३—बौद्धमत का समय।
(१) यूनानियों का भारतवर्ष में प्रवेश।

१—यहां तक हमको भारत और उसके निवासियों के बिषय में जो कुछ मालूम हुआ है वह सब भारत की पुस्तकों से मिला है। भारत का सब से पहिला इतिहास साल समेत जो हमको मिलता है वह यूनानियों की लेखनी से लिखा गया था।

२—जो आर्य फ़ारस में जाकर बसे थे उन्हों ने वहां एक बड़ा राज स्थापित कर लिया था। बुद्ध के समय अर्थात ईसा से ५०० बरस पहले फ़ारस का बादशाह सिन्धुनद से लेकर रूम के समुद्र तक सारे पश्चिम एशिया पर राज्य करता था। एशियाई तुर्की, फ़ारस, अफ़गानिस्तान और पंजाब का वह हिस्सा जो सिन्धुनद के पार बसा है सब उसके राज में था।

३—फ़ारस का एक राजा ज़रकसीज़ नाम इस बड़े राज पर सन्तोष न करके उस जलडमरूमध्य के पार गया जो यूरोप और एशिया को अलग करता है, और एक बड़ी भारी सेना लेकर यूनान पर चढ़ दौड़ा। यूनानियों ने उसे हरा दिया और उसकी सेना के सब से बड़े हिस्से को मार कर उसे अपने देश से निकाल दिया।

४—इस समय यूनानी यूरोप की सारी आर्य जातियों से बढ़ थे; विद्या और गुण और शस्त्र-विद्या में भी सब से निपुण थे। ज़रकसीज़ के हारने के बहुत दिनों पीछे यूनानियों में एक बहुत बड़ा राजा हुआ जिसका नाम सिकन्दर था। इसने बिचार किया कि फ़ारस पर चढ़ाई करूं और फ़ारसवालों को यूनान पर चढ़ाई करने का स्वाद चखा दूं। इसने कोई ३५००० यूनानी सिपाही साथ लिये और फ़ारस पर चढ़ आया। [ ६२ ]५—सिकन्दर की आयु २० बरस की थी। फिर भी यह पृथ्वी के बीर धीर योद्धाओं में गिना जाता था और अब तक सिकन्दर महान के नाम से प्रसिद्ध है। इसने कुल एशियाई तुर्की और फारस को विजय किया और फ़ारस के राजा दारा से जितनी लड़ाई लड़ा सब जीतता गया। इसके पीछे तुर्किस्तान अफ़गानिस्तान पर विजय पाता हुआ खैबर दर्रे से जिधर से किसी समय में आर्य लोग पंजाब में आये थे इसने भारत में प्रवेश किया।

६—पंजाब का पौरव नाम एक क्षत्रिय राजा सिकन्दर को जीतने की आशा से उसके सम्मुख आया। झेलम नदी के तट पर महा घोर युद्ध हुआ पर सिकन्दर और उसके यूनानी योद्धाओं ने पौरव और उसके सिपाहियों को हरा दिया। जब लड़ाई बन्द हो गई तब बन्दियों के समान पौरव सिकन्दर के सम्मुख उपस्थित किया गया। सिकन्दर ने पूछा कि तुम्हारे साथ कैसा व्यवहार किया जाय। पौरव ने उत्तर दिया कि जैसा राजा राजाओं के साथ करते हैं। सिकन्दर इस उत्तर से प्रसन्न हुआ और उसका राज उसे लौटा दिया।

७—सिकन्दर चाहता था कि गंगा नदी के तरेटी की ओर बढ़े और सब भारतवर्ष को जीत ले परन्तु उसके सिपाही व्याकुल हो गये थे और वह यूनान को ही लौटना चाहते थे। इस लिए सिकन्दर को उलटा लौटना पड़ा। एशियाई तुर्की के बाबुल नगर में पहुंच कर उसे ज्वर आ गया और वह मर गया।

८—सिकन्दर के मरने के पीछे उसका बड़ा राज्य उसके सेनापतियों में बंट गया। पहिला यूनानी सेनापति जो सिकन्दर की मृत्यु के पीछे बाख़र का हाकिम हुआ मलयकेतु था। इसने पंजाब को अपने आधीन रखने का उपाय किया किन्तु सिकन्दर के भारत से लौट जाने के पीछे मगध के प्रसिद्ध राजा चन्द्रगुप्त ने [ ६३ ] पंजाब को जीत लिया। मलयकेतु चन्द्रगुप्त को आधीन न कर सका और परस्पर सन्धि कर ली गई। चन्द्रगुप्त ने पांच सौ हाथी मलयकेतु को भेट दिये, मलयकेतु ने पंजाब पर अपना अधिकार त्याग देने का प्रण किया और चन्द्रगुप्त के साथ अपनी बेटी ब्याह दी। चन्द्रगुप्त की सभा में मलयकेतु का राज-दूत भी रहने लगा जिसका नाम मेगस्थनीज़ था।

९—यूनानियों ने ३२७ बरस ईसा के पहिले जो सिकन्दर के साथ चढ़ाई की थी वह भारत के इतिहास में एक बड़ी भारी घटना जान पड़ती है। सिकन्दर के साथ विद्वान और गुणी यूनानी जो भारत में आये उन्हों ने जो बातें यहां की देखीं उन सब का हाल अपनी पुस्तकों में लिखा। उनके लिखे हुए सच्चे इतिहास तो अब नहीं मिलते हैं पर यूनानी इतिहासलेखकों ने जो बातें अपनी पुस्तकों में इनसे लिख ली थीं, अभी तक पाई जाती हैं। मेगस्थनीज़ ने भी जो सिकन्दर की मृत्यु के २० बरस पीछे पटने में राज-दूत था कुछ हाल लिखा था जो उसने अपनी आखों देखा या कानों सुना था। उसकी पुस्तक के कुछ भाग अभी तक मिलते हैं।

१०—मेगस्थनीज़ लिखता है कि भारतवासी मनुष्य जिनको उसने देखा सत्यवादी और बीर थे। स्त्रियां सीधी और पवित्र थीं। दासत्व का नाम तक न था। लोग एक दूसरे की बात पर विश्वास करते थे। कोई अपने दरवाज़े पर ताला नहीं लगाता था क्योंकि चोर और लुटेरे कहीं न थे। मुक़दमे इत्यादि होते ही न थे। बिरला ही कोई किसी पर नालिश करता था। मेगस्थनीज़ लिखता है कि उस समय हिन्दुस्थान में ११८ राजा राज्य करते थे। भारतवासियों में जो लोग गोरे थे वह ऊंची जाति के आर्य ब्राह्मण और क्षत्रिय थे और जो लोग काले थे वह शूद्र [ ६४ ] और नीची जातियों के मनुष्य थे। हर एक बस्ती और गांव अपनी सब आवश्यकता की चीज़ों से भरा था, और दूसरे के आसरे न था क्योंकि इसमें प्रत्येक जाति के और प्रत्येक उद्यम के मनुष्य बसते थे। प्रजा अपने राज में और हाकिमों की रक्षा में सुख चैन से रहती थी।

(२) भारत के यूनानी राजा।

१—जब सिकन्दर भारत से लौट गया तो उसके हज़ारों यूनानी सिपाही पीछे तुर्किस्तान में रह गये। फ़ारस के यूनानी तुर्किस्तान को बाख्रर कहते हैं। यूनानी सैनिकों ने बाख़र की स्त्रियों से ब्याह कर लिया और उन्हीं के देश में बस गये। सिकन्दर के पीछे यूनानी बादशाह फ़ारस में पांच सौ और बाख़र में सौ बरस के लगभग राज करते रहे। इसके पीछे सीथियन के बड़े बड़े झुंडों ने आकर इनको तुर्किस्तान से निकाल दिया।

२—तीन सौ पचास बरस अर्थात ईसा मसीह से दो सौ पचास बरस पहिले और सौ बरस पीछे तक बाख्रर के यूनानी राजा और उसके पीछे फ़ारस के यूनानी बादशाह अफ़गानिस्तान और पंजाब के कुछ भाग पर राज करते थे। इनके नाम के सिक्के आज तक बहुधा वहां निकलते रहते हैं। इन बादशाहों में सब से प्रसिद्ध मीनाण्डर था जिसको भारतवासी लेखकों ने मलिन्द लिखा है। वह बौद्ध हो गया था। कहा जाता है कि यह बड़ा नेक राजा था। भारत के लेखकों ने ऐसा लिखा है कि यूनानी यहां के वासियों से मिल गये थे। पीछे उनका कहीं नाम तक नहीं सुनाई देता। [ ६५ ]

(३) भारतीय सिथियन।

(ईसा मसीह से १५० बरस पहिले से ४०० ई॰ तक।)

१—जो जातियां मध्य एशिया में बसी थीं यूनानी उनको सीथियन और उनके देशको सीथिया कहते थे। इन जातियों की गिनती बहुत थी। पांच सौ बरस अर्थात ईसा मसीह से १५० बरस पहले और ४०० बरस के अन्तर में यह जातियां एक एक करके उसी भांति भारत में आती रहीं जिस तरह पहिले आर्य लोग आये थे। यह कश्मीर, अफगानिस्तान, पंजाब, सिन्ध, गुजरात और मध्य भारत के पश्चिमी भाग में बस गये। ऐसा जान पड़ता है कि पहिले पहिल उन्हों ने पंजाब में भारतीय यूनानी राजाओं के साथ छोटी छोटी रियासतें बसाईं फिर सारे देश को जीतकर स्वाधीन कर लिया।

२—इनमें से जो जातियां पहिले पहिल भारत में आईं उनमें से एक शक थी। यह लोग सिन्ध, मालवा और पश्चिमी भारत में पहुंचे। शक राजाओं का कुटुम्ब जो पश्चिमीय राजाओं के नाम से प्रसिद्ध था, ४०० ईस्वी तक उज्जैन को अपनी राजधानी बनाकर मालवा में राज करता रहा। इसके पीछे भारतवासियों के प्रसिद्ध राजा विक्रमादित्य ने शक वंश को निकाल दिया।

३—एक और भारतीय सीथियन जाति कुशन कहलाती थी। यह ४५ ई॰ से २२५ ई॰ तक अर्थात् १८० बरस तक उत्तरीय भारत में रही। कनिष्क इस जाति का प्रसिद्ध राजा हुआ है। पुरुषपुर अर्थात् पेशावर उसकी राजधानी थी। पंजाब, कश्मीर और सिन्ध में उसका राज था। तुर्किस्तान और अफ़गानिस्तान [ ६६ ] भी इसी के आधीन थे। इसके नाम के बहुत से सिक्के निकले हैं। यह बौद्ध था और उस मत को बहुत मानता और उसपर पूरा विश्वास रखता था।