भारतवर्ष का इतिहास/१८—राजपूत
(६०० ई॰ से १२०० ई॰ तक)
१—आर्य और प्राचीन हिन्दुओं के समय में राजा सरदार और सिपाही क्षत्रियजाति के होते थे। बुद्धमत के समय में भी जैसे बुद्ध जी आप थे वैसे ही बहुधा राजा और सरदार क्षत्रिय थे। कोई कोई शूद्र भी थे जैसे चन्द्रगुप्त मौर्य और अशोक मौर्य। बुद्ध मत के समय के मध्य से ईसा से ५०० बरस तक पश्चिम और उत्तर भारत में सिथिया या शक जाति के राजाओं का राज रहा।
२—विक्रमादित्य के समय में सिथियावालों और क्षत्रिय राजाओं और राज्यों का नाम सुनने में नहीं आता। उनकी जगह ६०० ई॰ से १२०० ई॰ तक जिधर देखो राजपूत राजाओं के राज्य दिखाई देते हैं। अब यह प्रश्न उठता है कि राजपूत कौन है?
३—राजपूत कहते हैं कि हम क्षत्रिय हैं और श्रीरामचन्द्र जी से और प्राचीन काल के और क्षत्रियकुलों से हमारी वंशावली मिलती है। बहुतेरे विद्वानों का यह मत है कि यह दावा उनका ठीक है। राजपूत शब्दका अर्थ राजाओं का बेटा है। प्राचीनकाल के क्षत्रिय सचमुच राजाओं के बेटे पोते थे। यह समझ में नहीं आता कि एकाएकी क्षत्रियों की बली जात समूल नष्ट हो गई हो। किसी किसी विद्वान का यह बिचार है कि राजपूत सिथियन था शकजाति के लोग हैं जो ईस्वी सन् की पांचवीं शताब्दी में झुण्ड के झुण्ड हिन्दुस्थान के पश्चिमोत्तर भाग में आकर बस गये, या यूनान देश के रहनेवाले हैं जो शकों के पहिले हिन्दुस्थान में आकर रह गये थे। हमको यह ठीक जान पड़ता है कि राजपूतों की विशेष जातियां जो दिल्ली कन्नौज और मध्यदेश में राज करती थीं निःसन्देह क्षत्रिय हैं। और जातियां जिनका नाम पहिले ही पहिल राजपूताना मालवा और गुजरात में सुनने में आता था जहां शक भीड़ के भीड़ धावा मारकर बस गये सिथियन वंशके हैं। राजपूतों की जाति बहुत ऊंची है; यह लोग बड़े बीर होते हैं और लड़ने मरने में बड़े मर्द हैं। वह बुद्ध के दयाधर्म को कब मानने लगे। बुद्ध का बचन है कि किसी जीव को न मारो न सताओ। राजपूतों ने भरसक ब्राह्मणों की सहायता की, बुद्ध मत को दबाया और पुराने हिन्दूमत को नये सिरे से फैलाया। जिस समय का हम हाल लिख रहे हैं उस समय में बहुत से राजपूत राजा हुए थे। इसी से हम ६०० ई॰ से १२०० ई॰ तक राजपूतों के राज्य का समय कह सकते हैं।
४—आर्यों के समय में गुजरात को श्रीकृष्ण की द्वारका कहते थे। पीछे इसका नाम सोरठ या सौराष्ट्र हुआ। यहां ४१६ ई॰ से अनुमान ३०० बरस तक वल्लभी कुल के राजा राज करते थे। जब चीनी यात्री ह्वौनच्वांग सौराष्ट्र में आया तो उसने सौराष्ट्र को बड़ा शक्तिमान राज पाया और उस समय में यहां वल्लभी कुल के राजा राज करते थे। देश भरा पुरा था और प्रजा प्रसन्न थी और दूर दूर देशों से व्यापार होता था। ७४६ ई॰ से मुसलमानों की बादशाही तक सौराष्ट्र पर राजपूतों का अधिकार रहा। लोग चालुक्य कहलाते थे और अन्हलवारा या अन्हलपत्तन जिसको अब केवल पत्तन कहते हैं इनकी राजधानी थी।
५—मालवे में विक्रमादित्य की सन्तान का राज्य रहा। इस वंश में विक्रमादित्य के पीछे सब से बड़ा राजा शीलादित्य दूसरा हुआ जिसका हाल ह्वौनच्वांग के लेखों से जाना जाता है। इनके पीछे राजपूत आये। और तब से मालवा की गिनती राजपूतों के बड़े बली राज्यों में होने लगी।
६—प्राचीन समय में उड़ैसा अंध्र राज्य के नाम से प्रसिद्ध था। ४७४ ई॰ तक यहां केशरीवंश के राजपूत राज करते थे। इनकी राजधानी भरोनेश्वर में थीं जहां उन्हों ने बड़े बड़े सुन्दर मन्दिर बनवाये। इस वंश के पहिले राजा का नाम व्यातकेशरी था। प्राचीन काल में उड़ैसे में बुद्ध धर्म प्रबल था। पर केशरियों की राजधानी के नाम से सिद्ध होता है कि उनके समय में सारे देश में हिन्दू धर्म का प्रचार था और शिवजी की पूजा होती थी केशरी राजाओं के पीछे गंगापुत्र वंश का अधिकार हुआ। यह भी राजपूत थे। ११३२ ई॰ से १५३४ ई॰ तक उड़ैसा में इनका राज रहा। गंगापुत्र विष्णु के उपासक थे। पुरी में जगन्नाथ जी का प्रसिद्ध मन्दिर इसी कुल के एक राजा का बनवाया हुआ है।
७—नर्मदा नदी से कृष्णा नदी तक दक्खिन देश में ५०० ई॰ से १२०० ई॰ तक चालुक्य राजपूत शासन करते थे। इस वंश की दो शाखाएं थीं; पूर्वीयशाखा की राजधानी गोदावरी नदी के तीर पर राजमहेन्द्री और पश्चिमीय की महाराष्ट्र देश में कल्याण नगरी थी। अब इन राजाओं के नामही नाम रह गये हैं।
८—मैसूर देश ९०० ई॰ से १३१० ई॰ तक बल्लालवंश राजपूतों के हाथ में रहा। द्वारसमुद्र इनकी राजधानी थी। यहां उन्होंने हलीबैद का प्रसिद्ध मन्दिर बनवाया। मुसल्मानों ने इनको जीत कर देश अपने अधिकारों में कर लिया।
९—तिलङ्गाने में ११०० ई॰ से १३३३ ई॰ तक ककाती वंश के राजपूत राज करते थे। उनकी राजधानी वारङ्गल थी। १३२३ ई॰ में मुसल्मानों ने वारङ्गल ले लिया और उसको अपनी राजधानी बनाकर गोलकुंडे का राज स्थापित किया।
१०—बंगाले में ५०० बरस तक पाल और सेन वंश के राजा राज करते थे। ८०० ई॰ से लेकर १०५० ई॰ तक पाल राजाओं ने राज किया और १०५० ई॰ से १३०० ई॰ तक सेनवंश का अधिकार रहा। इसके पीछे यह देश मुसल्मानों ने जीत लिया।
११—देवगिरि जो महाराष्ट्र में है वहां ११०० ई॰ से १३०० ई॰ तक यादव वंशी राजपूत राज करते थे और यह कहते थे कि हम श्रीकृष्ण की संतान हैं। १३०० ई॰ के लगभग मुसल्मानों ने देवगिरि को जीतकर उसका नाम दौलताबाद रख दिया।
१२—राठौर चौहान और तोमर राजपूतों के प्रसिद्ध वंश हैं। ११९० ई॰ के लगभग कन्नौज अजमेर और देहली में इनका शासन था। ११९० ई॰ में ग़ोर मुसल्मान भारतवर्ष में आ गये।