भारतवर्ष का इतिहास/४–वेदों का समय

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भारतवर्ष का इतिहास  (1919) 
द्वारा ई॰ मार्सडेन
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४—वेदों का समय
(ईसा के पहिले २००० से १५०० तक ।)

१—जब आर्य पंजाब में आये तो उनको यह देश कोल द्रविड़ और दूसरी जातियों से भरा मिला, जिनका अब कोई नाम तक नहीं जानता। आर्यों को उनसे बड़ी लड़ाइयां लड़नी पड़ी। इनका हाल वेदों में आया है। पर आर्य कम थे, पुराने रहनेवाले गिनती में बहुत थे। यह जान पड़ता है कि कुछ दिन पीछे आर्यों ने उनसे मेल कर लिया और उनके साथ नातेदारियां जोड़ने लगे। उस समय में जाति पांति का बिचार न था।

२—आर्य लोग धीरे धीरे पंजाब में फैल गये; बन काटे, खेत बनाये, जौ गेहूं की खेती की; जो लोग देश में पहिले से बसे थे उनसे लड़े; कभी आपस में भी लड़ बैठते थे। आर्य पंजाब में सब एक साथ नहीं आये, समय समय पर भिन्न भिन्न कुल आकर बसते गये। जो पहिले आये उन्हों ने उपजाऊ धरती अपने बस में करके अच्छे अच्छे घर बनाये। पीछे आनेवालों ने चाहा कि उनसे घर और धरती छीन लें। इसपर बड़ी लड़ाइयां हुईं जिनका हाल पोथियों में लिखा है।

३—हम यह नहीं कह सकते कि आर्यों का सब से पहिला कुल हिन्दुस्थान में कब आया और कितने दिनों में उसने सिन्धु की तरेटी पर अपना अधिकार जमा लिया। विद्वानों का यह मत है कि इस बात को लगभग ४००० बरस हुए होंगे अर्थात् ईसा से २००० बरस पहिले आर्य पहिले पहिल खै़बर की घाटी होकर हिन्दुस्थान में घुसे। विद्वान लोग यह भी मानते हैं कि आर्यों को यहां के असली रहनेवालों से लड़ते भिड़ते सरस्वती नदी तक [ २४ ]
पहुंचने में, जो सिन्धु की सब से पूर्व की सहायक नदी थी, लगभग ५०० बरस लगे होंगे।

४—जिस नदी को अब हम घाघरा कहते हैं उसका नाम उस समय में दृषहती था और अब जिसका नाम सरसुती है वह सरस्वती कहलाती थी। इन दोनों नदियों के बीच का देश बड़ा उपजाऊ था। इसकी लम्बाई ६० मील और चौड़ाई २० मील थी। आर्य लोग इस टुकड़े को परम पवित्र मानते थे और इसे ब्रह्मावर्त (देवताओं का देश) कहा करते थे। आर्य कहते हैं कि इस देश के आचार व्यवहार सब उज्ज्वल और उत्तम थे।

५—आर्यों ने ५०० बरस में पंजाब पर अपना अधिकार जमा लिया। यह समय वेदों का समय कहा जा सकता है। वेद चार हैं। सब से बड़ा और सब से पुराना ऋग् वेद है। और तीन पीछे के बने हैं। इनका व्यौरा आगे लिखा जायगा। ऋग् वेद स्तुतियों का संग्रह है। यह ग्रन्थ संसार को बहुत पुरानी पुस्तकों में से है। इसमें अग्नि, इन्द्र, और अनेक आर्य-देवताओं की स्तुति के १०२८ मन्त्र हैं। जब कोई बूढ़ा आर्य नित्य ईश्वर की स्तुति करता था तो वह सदा एकही वाक्य एकही ढंग से कहता था। उसकी सन्तान को सुनते सुनते वह वाक्य कंठाग्र हो जाते थे और बूढ़ों को देखते देखते लड़के भी वैसे ही मन्त्र पढ़ना सीख लेते थे। यही क्रम एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक और एक शताब्दी से दूसरी शताब्दी तक जारी रहा और वेद का ज्ञान, सुन सुन कर और रट रट कर एक के पीछे दूसरे को होता गया।

६—आर्य ऋषियों ने हिन्दुस्थान आने से पहिले जो मन्त्र रचे थे उनमें से बहुतों का पता भी नहीं चलता। जो बचे हैं वह सब ऋग्वेद में मिलते हैं। यह अनुमान किया जाता है कि ऋग्वेद में वह मन्त्र जो सब से पीछे जोड़े गए ईसा से १५०० बरस पहिले बने [ २५ ]
थे जब आर्य लोग सिन्धु की तरेटी के सब से पूर्व के भाग ब्रह्मावर्त में रहते थे। इन मन्त्रों में सिन्धु का नाम बहुत आया है; गङ्गा का केवल दो बार सो भी सब से पीछे बने मन्त्रों में है।

७—भारतवर्ष के पुराने आर्यों का हाल जो कुछ हमने जाना है सब ऋग्वेद से। वेद की भाषा वैदिक है जो पिछली और प्रचलित संस्कृत का पहिला रूप है। बहुत दिनों तक थोड़े से पण्डितों को छोड़ वेद को कोई समझ नहीं सकता था। आज कल अङ्गरेज़ी और कई भाषाओं में इसका अनुवाद हो गया है। वेद मन्त्र बहुत पहिले के बने हैं परन्तु बरसों तक उनका किसी ने ऐसा संग्रह न किया जैसे अब छापे जाते हैं। बनने से ५०० बरस पीछे तक उनकी गिनती भी ठीक न हुई थी।