भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र का जीवन चरित्र/7

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भारतेन्दु बाबू हरिश्चंद्र का जीवन चरित्र  (1904) 
द्वारा राधाकृष्ण दास

[ ११५ ]ग्रन्थों की सूची नाटक १ आख्यायिका वा उपन्यास २ १ प्रवास नाटक (अपूण, अप्रकाशित) १ रामलीला ( गद्य पद्य ) २ सत्य हरिश्च द्र २ हमीरहठ (असम्पूण अप्रका- ३ मुद्राराक्षस शित) ४ विद्या सुन्दर ३ राजसिह (अपूर्ण) ५ धनञ्जय विजय ४ एक कहानी कुछ आप बीती ६ चन्द्रावली ___ कुछ जग बीती (अपूर्ण) ७ कर्पूर मञ्जरी ५ सुलोचना ८ नीलदेवी ६ मदालसोपाख्यान - & भारत दुदशा ७ शीलवती १० भारत जननी ८ सावित्री चरित्र ११ पाषण्ड बिडम्बन १२ वैदिकी हिंसा हिसा न भवति काव्य ३ १३ अन्धेर नगरी १४ विषस्य विषमौषधम १ गीत गोविन्दानन्द (गाने के १५ प्रेम योगिनी (अपूर्ण) पद्य) १६ दुलभ बन्धु (अपूर्ण) २ प्रेम माधुरी (शृङ्गार रस के १७ सती प्रताप (अपूर्ण) कवित्त सवैया) १८ नव मल्लिका (अपूण, अप्रकाशित) ३ प्रेमफुलवारी ( गाने के पद्य) १९ रत्नावली (अपूण ). ४ प्रेममालिका ( तथैव ) २० मच्छकटिक (अपूण, अप्र- ५ प्रेमप्रलाप ( तथैव ) काशित, अप्राप्य ) ६ प्रेमतरङ्ग (तथैव ) १ ( नम्वर १६, २० बहुत कम २ (सुलोचना और सावित्री चरित्र लिखे गए ) मे सन्देह है ) [ ११६ ]भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्र (६९) ७ मधुमकुल (तथैव) २६ रानी छदम लीला (तथव ) ८ होली (तथव) २७ चित्र काव्य & मानलीला (तथैब) २८ होली लीला १० दानलीला (तथव) ११ देवी छद्म लीला ( तथैव ) स्तोत्र ४ १२ कार्तिक स्नान (तथव) १ श्री सीतावल्लभ स्नोक १३ विनय पचासा (तथैव ) (संस्कृत पद्य) १४ प्रेमाश्रुवषण (कवित्त २ भीष्मस्तवराज सवया) ३ सर्वोत्तम स्तोत्र १५ प्रेम सरोवर (दोहे-अपूण) ४ प्रातस्मरण मङ्गल पाठ १६ फूलो का गुच्छा ( लावनी) ५ स्वरूप चिंतन १७ जैन कुतूहल (गाने के पद्य) ६ प्रबोधिनी १८ सतसई शृङ्गार (बिहारी । ७ श्रीनायाष्टक के. दोहो पर कुण्डलिया- अपूण) अनुवाद वा टीका ५ १६ नए जमाने की मुकरी २० विनोदिनी (बगला) १ नारदसूत्र २१ वर्षाविनोद ( गाने के पद्य) २ भक्तिसूत्र वैजयन्ती ३ तदीय सवस्व २२ प्रात समीरन (बग छन्द) ४ अष्टपदी का भाषार्थ २३ कृष्णचरित्र ५ श्रुति रहस्य २४ उरहना ( गाने के पद्य ) ६ कुरान शरीफ का अनुवाक २५ तन्मय लीला (गाने के पद्य) (गद्य अपूरण) ७ श्री वल्लभाचाय कृत चतु. ३ ( नम्बर १०, ११, १२, २०, २३, शश्लोको २५, २६, २७, २८, २९ यह सब बहुत छोटे काव्य हैं नम्बर १४, २२, २४ ४ ( यह सब छोटे छोटे काव्य है) हरिश्चद्र कला के सम्पादक ने सडग्रह ५ ( नम्बर ४, ५, ७ बहुत ही किया है। छोटे हैं) [ ११७ ]- (१००) भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्र प्रेमसूत्र (अपूर्ण) धर्म सम्बन्धीय इतिहास तथा चिन्हादि वर्णन १ भक्त सवस्व परिहास ६ २ वष्णव सर्वस्व १ पाचवें पैग़म्बर ( गद्य) ३ वल्लभीय सवस्व २ स्वग मे बिचार सभा का ४ युगल सवस्व अधिवेशन ( गद्य) ५ पुराणोपक्रमणिका ३ सबै जाति गोपाल की ( गद्य) ६ उत्तराध भक्तमाल ४ बसन्त पूजा (गद्य) ७ भारतवर्ष और वष्णवता ५ वेश्या स्तोत्र ( पद्य) ६ अग्रेज स्तोत्र (गद्य) माहात्म्य ७ मदिरास्तवराज (गद्य पद्य) १ गो महिमा ( सग्रह-गद्य) ८ कडूड स्तोत्र २ कार्तिक कम बिधि (गद्य ) ६ बकरी विलाप (पद्य) ३ कातिक नमित्तिक कम विधि १० स्त्री दण्ड संग्रह (कानून ता- [गद्य] जीरात शौहर उर्दू-गद्य) ४ वैशाष स्तान बिधि [गद्य] ११ परिहासिनी (गद्य) ५ माघ स्नान बिधि [गद्य] १२ फूल बुझौवल ( पद्य) ६ पुरुषोत्तम मास बिधि [गद्य] १३ मुशाइरा (गद्य-पद्य) ७ माग शीष महिमा [पद्य ] १४ स्त्री सेवा पद्धति (गद्य) ८ उत्सवावली [ गद्य] १५ रुद्री का भावाथ (गद्य ) ६ श्रावण कृत्य [ गद्य] १६ उर्दू का स्यापा ( पद्य) १७ मेला झमेला (गद्य) ऐतिहासिक ७ १८ बन्दर सभा (अपूर्ण) १ काश्मीर कुसुम २ बादशाह दपण ६ (प्राय यह सभी छोटे छोटे लेख ७ ( जीवन चरित्रो मे कई एक वा काव्य हैं) बहुत छोटे है) [ ११८ ]भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्र (१०१) ३ महाराष्ट्र देश का इतिहास २४ जार का सक्षिप्त जीवन चरित्र ४ उदयपुरोदय २५ कालचक्र '५ बूंदी का राजवश २६ सीतावट निणय “६ अग्रवालो को उत्पत्ति २७ दिल्ली दर्बार दपण ७ खत्रियो की उत्पत्ति ८ पुरावृत्त सग्रह राजभक्ति सूचक ८ ६ पञ्च-पवित्रात्मा १ भारत वीरत्व १० रामायण का समय २ भारत भिक्षा ११ श्री रामानुज स्वामी का ३ मुंह दिखावनी जीवन चरित्र ४ मानसोपायन [सग्रह] १२ जयदेव जी का " ५ मनो-मुकुल माला १३ सूरदास जी का , ६ लुइसा विवाह वणन] १४ कालिदास का ७ राजकुमार-बिवाह वर्णन १५ विक्रम और विल्हण ८ विजयिनी विजय वैजयन्ती १६ काष्ठजिह्वास्वामी का जीवन सुमनोञ्जलि [ सग्रह] चरित्र (अप्रकाशित) १७ पडित राजा राम शास्त्री का ११ विजय वल्लरी जीवन चरित्र १२ जातीय सगीत National १८ श्री शङ्कराचाय का जीवन Anthem का अनुवाद चरित्र १३ राजकुमार सुस्वागतपत्र १६ श्री बल्लभाचार्य जी का जीव- [ग ] न चरित्र २० नेपोलियन का जीवन च- स्फुट ग्रन्थ, लख तथा रित्र व्याख्यान प्रादि २१ जज द्वारकानाथ मित्र का १ नाटक [नाटक के भेद इति. जीवन चरित्र हास प्रादि का वरणन] २२ लार्ड म्यो का जीवन चरित्र २३ लार्ड लारेन्स का जीवन ८ ( नम्बर ३, ६, ७, ८, १२, १३ चरित्र बहुत छोटे है ) १० रिपनाष्टक अप्रकाशित) [ ११९ ](१०२) भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्र का दानपत्र ७ कनौज ८ नागमङ्गला का दानपत्र ६ चित्रकूटस्थ रमाकुण्ड प्रश- स्ति १० गोविन्ददेव जी के मन्दिर की प्रशस्ति ११ प्राची- न काल का सम्बत् निणय १२ शिवपुर का द्रोपदी कुण्ड २ हिन्दी भाषा ३ सङ्गीतसार ४ कृष्णपाक ५ हि दी व्याकरण ६ शिक्षा कमीशन मे साक्षी [अग्रेजी] ७ तहकीकात पुरी की तहकी- कात ८ प्रशस्ति सग्रह ६ प्रतिमा पूजन विचार १० रस रत्नाकर [ असम्पूण ] ११ व्यारयान १ खुशी २ हिदी [ दोहो मे [ ३ भारत वर्षोन्नति कैसे हो सकती है ? १२ यात्रा १. मेवाड यात्रा २ जनकपुर यात्रा ३ सरयूपार की यात्रा ४ वैद्यनाथ यात्रा १३ ज्योतिष १ भूगोल सम्बन्धी बातें २ भडरी ३ वषमालिका ४ मध्या- न्ह सारिणी ५ मूक प्रश्न १४ ऐतिहासिक १ वृत्त सग्रह २ राजा जन्मे- जय का दानपत्र ३ मङ्गली- श्वर का दानपन ४ मणिक- णिका ५ काशी ६ पम्पासर १५ प्रबन्ध १ भ्रूणहत्या २ हाँ हम मूर्ति पूजक है [असम्पूण, अप्रका- शित] ३ दुजन चपेटिका ४ ईशूखुष्ट और ईशकृष्ण ५ शब्द मे प्रेरक शक्ति ६ भक्ति ज्ञानादिक से क्यो बडी है ? ७ पबलिक ओपीनियन ८ बङ्गभाषा की कविता विनय पत्र १० कुरान दशन १६ कौतुक १ इन्द्रजाल २ चतुरङ्ग १७ स्त्री शिक्षा के लेख १ लाजवन्ती २ पतिव्रत ३ कुलबधू जनो की चितावनी ४ स्त्री ५ वर्षा ६ सती चरि- व [?] ७ राम सीता स- म्बाद [?] ८ लवली और मालती सम्बाद [१] & बसन्त और कोकिला [?] १० सरस्वती और सुमति [ १२० ]भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्र (१०३) का सम्बाद [?] ११ प्रेम- २ कजली मलार सग्रह [काष्ठ पथिक [?] जिह्वास्वामी कृत-] १८ छोटे छोटे लेख आदि ३ चैती घाटो संग्रह [तयव] १ मित्रता २ अपव्यय ३ ४ श्री सीताराम विवाह मङ्गन किसका शव कौन है ? ४ भू- [तथैव] कम्प ५ नौकरो को शिक्षा ६ ५ मुकरी [काशिराज कृत] बुरी रीत ७ सूर्योदय ८ प्रा- ६ सुन्दरी तिलक [सवैयो का शा ६ लाख लाख बात की एक सग्रह] एक बात १० बुद्धिमानो के ७ श्री राधा सुधा शतक [हठी कृत कवित्त] अनुभूत सिद्धान्त ११ भग- ८ सुजान शतक [घनमान- वत् स्तुति १२ अङ्कमय जगत् न्द जी कृत सवैया कवित्त वणन १३ ईश्वर के वतमान सग्रह] होने के विषय मे १४ इङ्ग- & कवि-हृदय-सुधाकर [चन्द्रि- लड और भारतवर्ष १५ वज्रा- का मे छपा घात से मृत्यु १६ त्यौहार १० गुलज़ारे पुरबहार [राज- १७ होली १८ वसन्त १९ लो का सग्रह] लेवी प्राण लेबी २० मसिया ११ नईबहार [होली मे गाने [कविवचनसुधा के लेख के पद्य] तथा स्फुट कविता का पूरा पता १२ चमनिस्ताने-हमेश बहार नही मिला। जिन लेखो पर [] [चार भाग, नाना काव्य चिन्ह है उनमे सन्देह है कि इन- सग्रह] के लिखे है वा दूसरो के।] १३ रसबरसात [वर्षा मे गाने के पद्य] १४ कौशलेश कवितावली [चन्द्रि- सम्पादित, सग्रहीत वा उत्साह का में प्रकाशित देकर बनवाए १५ बुढवा मङ्गल [सस्कृत हि- १ ऊन्वपुण्ड्र मातण्ड [सस्कृ न्दी मे परिहास] त] १६ रामार्या [ सस्कृत पद्य] [ १२१ ](१०४) भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्र १७ जरासन्ध-बध महाकाव्य ३६ बसत होली ( पद्य) (पद्य) ३७ भाषा व्याकरण ( पद्य) १८ भागवत-शका-निरासवाद ३८ पूण प्रकाश चन्द्रप्रभा (गद्य (सस्कृत पद्य ) उपयास) १९ पञ्चक्रोशी के माग का वि- ३९ राधारानी (गद्य उपन्यास) चार ( गद्य) ४० राग सग्रह (पद्य) २० मलारावली (पद्य) ४१ गुर सारणी (पद्य) २१ भारतीभूषण ( पद्य) ४२ होरी सगह (पद्य) २२ रामायण परिचर्या परिशिष्ट ४३ प्रदोष मे त्रिदेव पूजन ( गद्य) प्रकाश ( गद्य-पद्य ) ४४ प्रान्तर प्रदशन (गद्य ) २३ कविवचनसुधा (पावस की ४५ कलिराज की सभा (गद्य ) ' ४६ कीतिकेत नाटक (गद्य) कविता संग्रह) ४७ मार्टिन वाल्डेक के भाग्य २४ कादम्बरी (गद्य उपयास ) २५ दुर्गेशनन्दिनी (गद्य उपन्यास) ४८ तप्ता सम्बरण नाटक (गद्य) २६ सरोजिनी (गद्य नाटक) ४६ गुण सिन्धु (गद्य) २७ आनरेरी मजिस्ट्रेटी के नियम ५० अदभुत अपूर्व स्वप्न (गद्य) (अग्रेजी) ५१ एक शोक सम्बाद (गद्य) २८ शृङ्गार सप्तशती (बिहारी ५२ बाल्य विवाह प्रहसन (गद्य) के दोहो का सस्कृत अनु- ५३ धैय सिन्धु ( गद्य) वाद) ५४ प्रह्लाद नाटक ('गद्य ) २६ भग भङ्ग (गद्य) ५५ रेल का बिकट खेल (गद्य) ३० गदाधर भट्ट जी की वारणी ५६ प्रसन्नकरुणाकर (संस्कृत) (पद्य) ५७ सुलभ रसायन सक्षेप ३१ रास-पञ्चाध्याई (पद्य) ५८ धूत समागम प्रहसन (स- ३२ लालित्यलता ( पद्य) स्कृत) ३३ श्री वल्लभ दिग्विजय ( गद्य) ५६ ध्यान मञ्जरी ( पद्य) ३४ साहित्य लहरी ( गद्य पद्य ) ६० विद्या च द्रोदय ( गद्य) ३५ गजलियात ( उर्दू पद्य) ६१ भाषा गीत गोविन्द ( पद्य) [ १२२ ]भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्र (१०५) ६२ विजय पारिजात महानाटक ७१ माधुरी ( रूपक गद्य) (सस्कृत) ७२ ज्योतिर्विदया (गद्य) ६३ श्री वृन्दाबन सत (ध्रुवदास ७३ शरद ऋतु की कहानी ( गद्य) कृत) ७४ प्रेम पद्धति (घनसान द कृत, ६४ गुरुकीति कवितावली (पद्य ) पद्य) ६५ ग्राम पाठशाला नाटक (गद्य ) ७५ प्रेम दशन ( देव कृत, पद्य) ६६ मालती ( गद्य) ६७ बिजुली (गद्य) (जो जो ग्रन्य स्मरण आए ६८ शास्त्र परिचायिका (गद्य) या उत्तम लेख चन्द्रिका, बाला- ६६ शिशुपालन (गद्य) बोधिनी में मिले निजे गए हे ७० श्री बदरिकाश्रम यात्रा कविवधनसुधा में प्रकाशित (संस्कृत) नय या रोखों का पता नहीं मिला) [ १२३ ] [ १२४ ]चन्द्रास्त

अर्थात्

श्रीमान कविशिरोमणि भारतभूषण भारतेन्दु श्री हरिश्चन्द्र का सत्यलोक गमन।

अद्य निराधाराऽभूदिवगते श्री हरिश्चन्द्रे । भारतधरा विशेपादभाग्यरूपा महोदयानेन्द्रे ॥

अतिशय दुखित व्यास रामशङ्कर शर्मा लिखित

अमीरसिंह द्वारा बनारस हरिप्रकाश यत्रालय मे मुद्रित हुआ

१८८५ बिना मूल्य बँटता है [ १२६ ]अनर्थ । अनर्थ ।। अनर्थ ॥

सबसे अधिक अनर्थ

"दीन जानि सब दीन्ह एक दुरायो दुसह दुख । सो दुख हम कह दीन्ह कछुह न राख्यो बीरवर ॥"

आज हमको इसके प्रकाशित करने मे अत्यन्त शोक होता है और फलेजा मुंह को पाता है कि हम लोगो के प्रेमास्पद भारत के सच्चे हिनषी, और पार्यों के शुभचिन्तक श्रीमान् भारतभूषण भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्रजी कल मडगल की अमडगल रात्रि मे ६ बज के ४५ मिनट पर इस अनित्य ससार से विरक्त हो और हम लोगो को छोड कर परम पद को प्राप्त हुए ० उनकी इस अकाल मृत्यु से जो असीम दुख हुआ उसे हम किसी भाति से प्रकट नहीं कर सकते क्योकि यह वह दुसह दुख है कि जिनके वणन करने से हमारी छाती तो फटती ही है वरन्च लेखनी का हृदय भी विदीण होता जाता है और वह सहस्रधारा से अश्रुपात करती है ०

हा। जिस प्राण प्यारे हरिश्चन्द्र के साथ सदा विहार करते थे और जिसके चन्द्रमुख दशन मात्र से हृदय कुमुद विकशित होता था उसे आज हम लोग देखने के लिये भी तरसते हैं • जिसके भरोसे पर हम लोग निश्चिन्त बैठे रहते थे और पूरा विश्वास रखते थे वही आज हमको धोखा दे गया ० हा | जिस हरिश्चन्द्र को हम अपना समझते थे उसको हमारी सुध तक न रही ० हरिश्चन्द्र तुम तो बडे कोमल स्वभाव के थे परन्तु इस समय तुम इतने कठोर क्यो हो गये ? तुमको तो राह चलते भी किसी का रोना अच्छा नहीं लगता था सो अब सारे भारतवर्ष का रोना कैसे सह सकोगे • प्यारे । कहो तो सही, दया जो सदा छाया सी तुम्हारे साथ रही सो इस समय कहाँ गई ० प्रेम जो तुम्हारा एक मात्र व्रत था उसे इस वेला कहाँ रख छोडा है जो तुम्हारे सच्चे प्रेमी बिलला रहे है हे देशाभिमानी हरिश्चन्द्र | तुम्हारा देशाभिमान किधर गया जो तुम अपने देश की पूरी उन्नति किये विना इसे अनाथ छोड कर चल दिये ० तुम्हारा हिन्दी का आग्रह क्या हुआ, अभी तो वह दिन भी नहीं आये थे जो हिन्दी का भली भॉति प्रचार हो गया [ १२७ ]________________

होता, फिर पाप को इतनी जल्दी क्या थी जो इसका हाथ ऐसी अधूरी अवस्था मे छोडा हे परमेश्वर, तूने आज क्या किया, तेरे यहाँ कमी क्या थी जो तूने हमारी महानिधि छीन ली ० जो कहो कि वह तुम्हारे भक्त थे तो क्या न्याय यही है कि अपने सुख के लिये भक्त के भक्तो को दुख दो ० अरे मौत निगोडी, तुझे मौत भी नाई जो मेरे प्यारे का प्राण छोडती ० अरे दुदैव क्या तेरा पराक्रम यही था जो हतभाग्य भारत को यह दिन दिखलाया ० हाय | आज हमारे भारतवष का सौभाग्यसूर्य अस्त हो गया, काशी का मानस्तथ टूट गया और हिन्दुओ का वन जाता रहा ० यह एक ऐसा आकस्मिक वज्रपात हुआ कि जिस के आघात से सब का हृदय चूण हो गया • हा | अब ऐसा कौन है जो अपने बन्धुनो को अपने देश की भलाई करने की राह बतलावैगा और तन मन धन से उनमे समति और अच्छे उपदेशो के फैलाने का यत्न करैगा ० अभागिनी हिन्दी के भण्डार को अपने उत्तमोत्तम लेख द्वारा कौन पुष्ट करेगा और साधारण लोगो में विद्या की रुचि बढाने के लिये नाना प्रकार के सामयिक लेख लिख कर सब का उत्साह कौन बढावेगा ० अपनी सुधामयी वाणी से हम लोगो की आवेलि कौन बढावैगा और हा। काव्यामत पान करा के हमारी प्रात्मा को कौन तुष्ट करेगा. मेरे प्राणप्यारे । अवसर पडने पर हमारे पायधम की रक्षा करने के लिये कौन मागे होगा और दीनोद्धार की श्रद्धा किसको होगी • यो तो प्राय जाति को अब कोई सकष्ट उपस्थित होता था तो वे तुम्हारे समीप दौडे जाते थे पर अब किसकी शरण जायेगे • शोक का विषय है कि तुमने इनमे से एक पर भी ध्यान न दिया और हम लोगो को निरवलम्ब छोड गये प्रियतम हरिश्चन्द्र । आज तुम्हारे न रहने ही से काशी में उदासी छा रही है और सब लोगो का अन्त करण परम दुखित हो रहा हे ० तुम को वह मोहन मत्र याद था कि जिस से सारे ससार को अपने वश में कर लिया था ० पर हा| आज एक तुम्हारे चले जाने से सारा भारतवर्ष ही नहीं, किन्तु यूरोप अमेरिका इत्यादि के लोग भी शोकनरत होगे यद्यपि तुम कहने को इस ससार मे नही हो, परन्तु तुम्हारी वह अक्षय कीति है कि जो इस संसार मे उस समय तक बनी रहेगी कि जबलो हिन्दी भाषा और नागरी अक्षरो का लोप होगा • प्यारे | तुम तो वहाँ भी ऐसे ही आदर को प्राप्त होग पर बिला मोत हम लोग मारे गये ० अस्तु परमेश्वर की जो इच्छा आप की आत्मा को सुख तथा अखण्ड स्वगनाम हो, पर देखना अपने दोन मित्र तथा गरीब भारतवष को [ १२८ ]भूलना मत ० अब सिवा इसके रह क्या गया है कि हम लोग उनके उपकारो कोयाद करके ऑसू बहावै, इसलिये यहाँ पर प्राज थोडा सा उनका चरित प्रकाशित करता हूँ, चित्त स्वस्थ होने पर पूरा जीवनचरित छापूगा ज्योकि वह स्वय भविष्य-वाणी कर गये है कि

कहेगे सबही नैन नीर भरि २ पाछ प्यारे हरिचन्द की कहानी रह जायगी ।

मानमन्दिर,

प्यारे के वियोग से निता त दुखी

७-१-८५

व्यास रामशकर शर्मा [ १२९ ]संक्षिप्त जीवनी

श्रीमान कविचूडामणि भारतेन्दु हरिश्चन्द्र जी ने सन् १८५० ई० के सितम्बर मास की हवी तारीख को जन्मग्रहण किया था। जब वह ५ वष के थे तो उनकीपूज्य माता जी वो ६ वर्ष के हुए तो महामान्य पिता जी का स्वगवास हुआ,जिससे उन को माता पिता का सुख बहुत ही कम देखने में आया, उनकी शिक्षाबालकपन से दी गई थी और उन्होंने कई वष लो कालेज मे अग्रेजी तथा हिन्दी पढी थी सस्कृत, फारसी, बगला, महाराष्ट्री इत्यादि अनेकभाषाओ मे बाबूसाहिब ने घरपर रिज परिश्रम किया था। इस समय बाबू साहिब तैलडग तथातामील भाषा को छोड कर भारत की सब देश भाषा के पण्डित थे। बाबू साहिबकी विद्वत्ता, बहुज्ञता, मीतित्रता, पाण्डित्य, तथा चमत्कारिणी बुद्धि का हालसब पर विदित हे कहने की कोई आवश्यकता नहीं। इनकी बुद्धि का चमत्कारदेख कर लोगो को आश्चर्य होता था कि इतनी अल्प अवस्था मे यह सवज्ञता।कविता की रुचि बाजू साहिब को बाल्यावस्था ही से थी, उनकी उस समय कीकविता पढने से कि जब वह बहुत छोटे थे बडा पाश्चय होता है और इस समय की तो कहना ही क्या है मूर्तिमान आशुकवि कालिदास थे जैसी कविता इनकी सरस और प्रिय होती थी वसी आज दिन किसी की नहीं होती। कविता सब भाषा की करते थे, पर भाषा की कविता मे अद्वितीय थे। उनके जीवन का बहुमूल्य समय सदा लिखने पढने में जाता था। कोई काल ऐसा नहीं था कि उनके पास कलम, दावात और कागज न रहता रहा हो। १६ वष की अवस्था मे कविवचन-सुधा पत्र निकाला था जो आज तक चला जाता है। इसके उपरान्त तो क्रमश अनेक पत्र पत्रिकाएँ और सैकडो पुस्तक लिख डाले जो युग युगान्तर तक ससार में उनका नाम जैसा का तैसा बनाये रखेगे। २० वष की अवस्था अर्थात् सन् ७० मे बाबू साहिब प्रानरेरी मजिस्ट्रेट नियुक्त हुए और सन ७४ तक रहे वो उसी के लगभग ६ वर्ष लो म्यूनिस्पल कमिश्नर भी थे। साधारण लोगो मे विद्याफैलाने के लिये सन् १९६७ ई० मे जब कि बाबू साहिब की अवस्था केवल १७ वर्ष की थी चौखम्भा स्कूल जो अबतक उनकी कीर्ति की ध्वजा है, स्थापित किया, [ १३० ](0) जिसके छात्र प्राज दिन एम० ए० बी० ए० तथा बडी २ तनखाह के नौकर हैं ।लोगो के सस्कार सुधारने तथा हिन्दी की उन्नति के लिये हिदी डिबेटिंग क्लब,अनाथरक्षिणी तदीय समाज, काव्य समाज इत्यादि सभाएँ सस्थापित की और उनके सभापति रहे, भारतवष के प्राय सब प्रतिष्ठित समाज तथा सभाओ मे से किसी के प्रेसीडेन्ट, सेक्रिटरी और किसी के मेम्बर रहे लोगो के उपकाराथ अनेकबार देश देशान्तरो मे व्याख्यान दिये। उनको वक्तृता सरस और सारग्राहिणीहोती थी। उनके लेख तथा वक्तृत्व देशगौरव झलकता था। विद्या का सम्मान,जैसा बाबू साहिब करते थे वसा करना आजकल कठिन है, ऐसा कोई भी विद्वानन होगा जिसने इनसे आदर सत्कार न पाया हो । यहाँ के पण्डितो ने जो अपना २हस्ताक्षर करके बाबू साहिब को प्रशसापन दिया था उसमे उन लोगो ने स्पष्टलिखा है कि-


सब सज्जन के मान को कारन इक हरिचन्द ।

जिमि सुभाव दिन रैन के कारन नित हरिचन्द ।।

बाबू साहिब दानियो मे कण थे, इतना ही कहना बहुत है। उनसे हजारोमनुष्य का कल्याण होता रहा । विद्योन्नति के लिये भी उन्हो ने बहुत व्यय किया।५०० रु० तो उन्होने प० परमानन्द जी की शतसई की संस्कृत टीका का दियाथा और इसी प्रकार सेकालिज, वो स्कूलो मे उचित पारितोषिक बाटे है।जब २ बगाल, बम्बई, वो मदरास मे स्त्रियाँ परिक्षोत्तीण हुई है तब २ बाबू साहिब ने उनके उत्साह बढाने के लिये बनारसी साडिया भेजी थीं। जिनमे से कई एकको श्रीमती लेडी रिपन ने प्रसन्नता पूर्वक अपने हाथ से बाटा था। बाबू साहिबने देशोपकार के लिये नेशनल फड होमियोपैथिक डिस्पेंसरी, गुजरात वो जौनपुररिलीफ फण्ड, सेलज होम, प्रिंस पाव वेल्स हास्पिटल और लैबेरी इत्यादि कीसहायता मे समय समय पर चन्दा दिये है। गरीब दुखियो की बराबर सहायताकरते रहे।

गुणग्नाहक भी एक ही थे, गुणियो के गुण से प्रसन्न होकर उनको यथेष्ट द्रव्यदेते थे, तात्पर्य यह कि जहा तक बना दिया देने से हाथ नहीं रोका। देशहितैषियो मे पहिले इन्हीं के नाम पर अगुली पडती है क्योकि यह वह हितैषी थे कि जिन्होने अपने देशगौरव के स्थापित रखने के लिये अपना धन, मान,प्रतिष्ठा एक अोर रख दी थी और सदा उसके सुधरने का उपाय सोचते रहे। [ १३१ ]उनको अपने देशवासियो पर कितनी प्रीति थी यह बात उनके भारतजननी,वो भारतदुर्दशा इत्यादि नन्थो के पढने ही से विदित हो सकती है। उनके लेखो सेउनकी हितैषिता और देश का सच्चा प्रेम झलकता था।

यद्यपि बहुत लोगो ने उनको गवर्मेन्ट का डिसलायल (अशुभचिन्तक) मानरक्खा था, पर यह उनका भ्रम था, हम मुक्तकण्ठ से कह सकते है कि वह परमराजभक्त थे। यदि ऐसा न होता तो उन्हें क्या पडी थी कि जब प्रिंस आव वेल्स। आये थे तो वह बडा उत्सव और अनेक भाषा के छन्दो मे बना कर स्वागत ग्रन्थ(मानसोपायन) उनके अपण करते। उयूक प्राव एडिम्बरा जिस समय यहापधारे थे बाबू साहिब ने उनके साथ उस समय वह राजभक्ति प्रकट की जिससेड्यूक उन पर ऐसे प्रसन्न हुए कि जब तक काशी में रहे उन पर विशेष स्नेह रक्खा सुमनोन्जलि उनके अपण किया था जिसके प्रति अक्षर से अनुराग टपकता है। महाराणी की प्रशसा में मनोनुकूल माला बनाई। मिस्त्र युद्ध के विजय परप्रकाश्य सभा की, वो विजयिनीविजय बैजयती बनाकर पूरण अनुराग सहित भक्तिप्रकाशित की। महाराणी के बचने पर सन ८२ मे चौकाघाट के बगीचे मे भारीउत्सव किया था और महाराणी के जन्म दिवस तथा राजराजेश्वरी की उपाधिलेने के दिन प्राय बाबू साहिब उत्सव करते रहे। ड्यूफ प्राव् अराबनी कीअकाल मृत्यु पर सभा कर के महाशोक किया था। जब २ देशहितषी लाड रिपन प्राये उन को स्वागत कविता देकर आनन्दित हुए। सन् ७२ मे म्यो मेमोरियलसिरीज मे १५०० रु० दिये। यह सब लायल्टी नहीं तो क्या है ?

बाबू साहिब भारतवष के एडयूकेशन कमीशन (विद्या सभा) के मध्यतो हुए ही थे परन्तु इन का गुण वह था कि वलायत में जो ने निरा एथम (जातीयगीत) के भारत की सब भाषामो में अनुवाद करने के लिये महारानी की ओर सेएक कमेटी हुई थी उसके मेम्बर भी थे, और उनके सेक्रेटरी ने तो पत्र लिखा थाउसमे उसने बाबू साहिब की प्रशसा लिख कर स्पष्ट लिखा था कि मुझको विश्वास है कि आप की कविता सबसे उत्तम होगी और अन्त में ऐसा ही हुमा क्यो नहींजब को भारती जिह्वा पर थी। सच पूँछिए तो कविता का महत्व उन्हीं के साथथा। बाबू साहिब की विद्वत्ता और बहज्ञता की प्रशसा केवल भारतीय पत्रो ने नहींकी वरन्च विलायत के प्रसिद्ध पत्र प्रोवरलेण्ड, इण्डियन और होम मेल्स इत्यादिक अनेक पत्रो ने की है। उनकी बहुदर्शिता के विषय मे एशियाटिक सोसाइटी के [ १३२ ]प्रधान डाक्टर राजेन्द्रलाल मित्र, एम० ए० रिग, श्रीमान पण्डितवर ईश्वरचन्द्रविद्यासागर प्रभति महाशयो ने अपने २ ग्रथो मे बडी प्रशसा की है। श्रीयुतविद्यासागर जी ने अपने अभिज्ञान शाकु तल को भूमिका मे बाब् साहिब को परमप्रमायिक, देशबन्धु धार्मिक, और सुहृद इत्यादि कर के बहुत कुछ लिखा है।बाबू साहिब अजातशत्रु थे इसमे लेश मात्र भी सन्देह नहीं और उनका शील ऐसाअपूर्व था कि साधारणो की क्या कथा भारतवर्ष के प्रधान २ राजे, महाराजे,नवाब और शहजादे इन से मित्रता का बर्ताव बरतते थे और अमेरिका वो यूरोप केसहृदय प्रधान लोग भी इन पर पूरा स्नेह रखते थे। हा | जिस समय ये लोगयह अनथकारी घोर सम्बाद सुनेंगे उनको कितना कष्ट होगा।

बाबू साहिब को अपने देश के कल्याण का सदा ध्यान रहा करता था ।उन्होने गोबध उठा देने के लिये दिल्ली दरबार के समय ६०००० हस्ताक्षर करा केलाड लिटन के पास भेजा था। हिन्दी के लिये सदा जोर देते गये और अपनीएज्यूकेशन कमीशन की साक्षी मे यहा तक जोर दिया कि लोग फडक उठते हैं।अपने लेख तथा काव्य से लोगो को उन्नति के अखाडे मे पाने के लिये सदा यत्नवानरहे। सावारण की ममता इनमे इतनी थी कि माधोराव के धरहरे पर लोहे केछड लगवा दिये कि जिससे गिरने का भय छूट गया। इनकमटक्स के समय जब लाटसाहिब यहा आये थे तो दीपदान की वेला दो नावो पर एक पर और दूसरीपर स्वागत स्वागत धन्य प्रभु श्री सर विलियम म्योर । टेक्स छुडाव्हु सबन को विनय करत कर जोर ॥ लिखा था इसके उपरान्त टिकस उठ गया लोग कहते हैंकि इसी से उठा। चाहे जो हो इसमे सन्देह नहीं कि वह अन्त तक देश के लियेहाय २ करते रहे।

सन् १९८० ई० के २० सितम्बर के सारसुधानिधि पत्र मे हमने बाबू साहिब को भारतेन्दु की पदवी देने के लिये एक प्रस्ताव छपवाया था और उसकेछप जाने पर भारत के हिन्दी समाचारपत्रो ने उसपर अपनी सम्मति प्रकटकी और सब पत्र के सम्पादक तथा गुणग्राही विद्वान् लोगो ने मिल कर उनकीभारतेन्दु की पदवी दी, तबसे वह मारतेन्दु लिखे जाते थे।

बाबू साहिब का धम्म वैष्णव था। श्रीवल्लभीय वह धम के बडे पक्के थे,पर आडम्बर से दूर रहते थे। उनके सिद्धान्त मे परम धर्म भगवत्प्रेम था।'मत वा धम्म विश्वासमूलक मानते थे प्रमाण मूलक नही। सत्य, हिसा, दया, [ १३३ ](१०) शील, नम्रता आदि चारित्न को भी धम मानते थे, वह सब जगत को ब्रह्ममयऔर सत्य मानते थे।

बाबू साहिब ने बहुत सा द्रव्य व्यय किया, परन्तु कुछ शोच न था। कदाचितशोच होता भी था तो दो अवसर पर, एक जब किसी निज प्राश्रित को या किसीशुद्ध सज्जन को बिना द्रव्य कष्ट पाते देखते थे, दूसरे जब कोई छोटे मोटे कामदेशोपकारी द्रव्याभाव से रुक जाते थे।

हा। जिस समय हमको बाबू साहिब की यह करुणा की बात याद आजाती है तो प्राण कठ में आता है। वह प्राय कहते थे कि अभी तक मेरे पासपूर्वदन बहुत धन होता तो म चार काम करता। (१) श्रीठाकुर जी को बगीचेमे पधराकर धूम धाम से घटऋतु का मनोरथ करता (२) विलायत, फरासीसऔर अमेरिका जाता (३) अपने उद्योग से एक शुद्ध हिदी की यूनिवर्सिटी स्थापनकरता (हाय रे । हतमागिनी हिन्दी, अब तेरा इतना ध्यान क्सिको रहेगा) (४) एक शिल्प कला का पश्चिमोत्तर देश मे कालिज करता।

हाय । क्या प्राज दिन उन के बडे २ धनिक मित्रो मे से कोई भी मित्रका दम भरने वाला ऐसा सच्चा मित्र हे जो उनके इन मनोरथो में से एक को भीउनके नाम पर पूरा करके उनकी प्रात्मा को सुखी करे | हायरे । हतभाग्यपश्चिमोत्तर देश, तेरा इतना भारी सहायक उठ गया, अब भी तुझसे उनके लियेकुछ बन पडेगा या नही? जब कि बगाल और बम्बई प्रदेश मे साधारण हितैषियो के स्मारक चिह्न के लिये लाखो बात की बात मे इकटठे हो जाते हैं।

बाबू साहिब के खास पसन्द की चीजें राग, वाद्य, रसिक समागम, चित्र,देश २ और काल २ की विचित्र वस्तु और भाति २ को पुस्तक थीं।

काव्य उनको जयदेव जी, देव कवि, श्री नागरीदास जी, श्री सूरदास जी,और प्रानन्दघन जी का अति प्रिय था। उर्द मे नजीर और अनीस का।अनीस को अच्छा कवि समझते थे ।

सन्तति बाबू साहिब को तीन हुई। दो पुत्र एक कन्या पुत्र दोनो जाते रहे,कन्या है, विवाह हो गया।

बाबू साहिब कई बार बीमार हुए थे, पर भाग्य अच्छे थे इसलिये अच्छे होतेगये। सन् १८८२ ई० मे जब श्रीमन्महाराणा साहिब उदयपुर से मिलकर जाडे [ १३४ ]
के दिनो मे लौटे तो पाते समय रास्ते ही मे बीमार पडे। बनारस पहुंचने केसाथ ही श्वास रोग से पीडित हुए। रोग दिन २ अधिक होता गया महीनो मेशरीर अच्छा हुआ। लोगो ने ईश्वर को धन्यवाद दिया । यद्यपि देखने में कुछरोज तक रोग मालूम न पडा पर भीतर रोग बना रहा और जड से नहीं गया। बीच मे दो एक बार उभड प्राया, पर शान्त हो गया था, इधर दो महीने से फिरश्वास चलता था, कभी २ ज्वर का प्रावेश भी हो जाता था । औषधि होतीरही शरीर कृशित तो हो चला था पर ऐसा न ही था कि जिससे किसी काम मे हानि होती, श्वास अधिक हो चला क्षयी के चिह्न पैदा हुए। एका एक दूसरीजनवरी से बीमारी बढने लगी, दवा, इलाज सब कुछ होता था पर रोग बढताही जाता था ६वी तारीख को प्रात काल के समय जब ऊपर से हाल पूछने के लिये मजदूरिन आई तो आप ने कहा कि जाकर कह दो कि हमारे जीवन के नाटक काप्रोग्राम नित्य नया २ छप रहा है, पहिले दिन ज्वर की, दूसरे दिन दद की, तीसरेदिन खासी की सीन हो चुकी, देखें लास्ट नाइट कब होती है। उसी दिन दोपहर से श्वास वेग से आने लगा कफ मे रुधिर आ गया, डाक्टर वद्य अनेक मोजूद थेऔर पोषधि भी परामश के साथ करते थे परन्तु मज बढता ही गया प्यो २ दवाकी। प्रतिक्षण मे बाबू साहिब डाक्टर और वधो से नींद आने पार कफ के दूर होने की प्राथना करते थे, पर करे क्या काल दुष्ट तो सिर पर खडा था, कोई जानेक्या, अन्ततोगत्वा बात करते ही करते पावे १-बजे रात को भयकर दृश्य प्राउपस्थित हुमा । अन्त तक श्रीकृष्ण का ध्यान बना रहा । देहावसान समय मे श्रीकृष्ण । श्रीराधाकृष्ण । हे राम । आते हैं सुख देख लाओ कहा और कोई दोहापढा जिसमे से श्रीकृष्ण सहित स्वामिनी इतना धीरे स्वर से स्पष्ट सुनाई दिया।देखते ही देखते प्यारे हरिश्चन्द्र जी हम लोगो की आखो से दूर हुए। चन्द्रमुखकुम्हिला कर चारो ओर अन्धकार हो गया। सारे घर में मातम छा गया, गली २मे हाहाकार मचा, और सब काशीवासियो का कलेजा फटने लगा। लेखनी अबआगे नहीं बढती बाबू साहिब चरणपादुका पर

हा | काल की गति भी क्या ही कुटिल होती है, अचान्चक कालनिद्राने भारतेन्दु को अपने वश मे कर लिया कि जिससे सब जहा के तहा पाहन से खडेरह गये। वाह रे दुष्ट काल | तूने इतना समय भी न दिया जो बाबू साहिबअपने परम प्रिय अनुज बाबू गोकुलचन्द्र जी वो बाबू राधाकृष्णदास तथा अन्य
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( १२ )


आत्मीयो से एक बार अपने मन की बात भी कहने पाते और हमको, जिसे उस समय यह भयकर दृश्य देखना पडा था, इतना अवसर भी न मिला कि प्रतिमसम्भाषण कर लेते हा । हम अपने इस कलक को कसे दूर कर । वह मोहनी मूर्ति भुलाये से नहीं भूलती पर करै क्या । बाबू साहिब की अवस्था कुल ३४ वष ३ महीने २७ दिन १७ घ० ७ मि० ओर ४८ से की थी। पर निदयी काल से कुछ वश नही।

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