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भारत का संविधान/द्वितीय अनुसूची

विकिस्रोत से
भारत का संविधान
अनुवादक
राजेन्द्र प्रसाद

पृष्ठ १५४ से – १५८ तक

 

 

द्वितीय अनुसूची
अनुच्छेद ५ (३), ६५ (३), ७५ (६), ९७, १२५, १४८ (३), १५८ (३), १६४ (५), १८६ और २२१
भाग क

राष्ट्रपति तथा []* * * राज्यों के राज्यपालों के लिये उपबन्ध

१. राष्ट्रपति तथा * * * राज्यों के राज्यपालों को निम्नलिखित उपलब्धियां प्रतिमास दी जायेंगी अर्थात्—

राष्ट्रपति को १०,००० रुपया
राज्य के राज्यपाल को ५५०० रुपया

२. राष्ट्रपति तथा []* * * राज्यों के राज्यपालों को ऐसे भत्ते भी दिये जायेंगे जैसे कि क्रमशः भारत डोमिनियन के गवर्नर जनरल को तथा तत्स्थानी प्रान्तों के गवर्नरों को इस संविधान के प्रारम्भ से ठीक पहिले दिये थे।

३. राष्ट्रपति तथा [][राज्यों] के राज्यपाल को अपनी अपनी सम्पूर्ण पदावधि में ऐसे विशेषाधिकारों का हक्क होगा जैसे कि इस संविधान के प्रारम्भ में ठीक पहिले क्रमशः गवर्नर जनरल तथा तत्स्थानी प्रान्तों के गवर्नरों को था।

४. जब कि उपराष्ट्रपति अथवा कोई अन्य व्यक्ति राष्ट्रपति के कृत्यों का निर्वहन अथवा उस के रूप में कार्य कर रहा है अथवा कोई व्यक्ति राज्यपाल के कृत्यों का निर्वहन कर रहा है। वैसी ही उपलब्धियों, भत्तों और विशेषाधिकार का हक्क होगा जैसा कि यथास्थिति राष्ट्रपति या राज्यपाल को है जिस के कृत्यों का वह निर्वहन करता है अथवा यथास्थिति जिसके रूप में वह कार्य करता है।

[]

भाग ग

लोक-सभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के तथा राज्य-सभा के सभापति और उपसभापति के तथा []* * * राज्य की विधान-सभा क अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के तथा "[][राज्य] को विधान-परिषद् के सभापति और उपसभापति के सम्बन्ध में उपबन्ध

७. लोक-सभा के अध्यक्ष तथा राज्य-सभा के सभापति को एम वेतन और भत्ते दिय जायेंगे जैसे कि भारत डोमीनियन की संविधान-सभा के अध्यक्ष को इस संविधान के प्रारम्भ से ठीक पहिले देय थे तथा लोक-सभा के उपाध्यक्ष को और राज्य-सभा के उपसभापति को ऐसे वेतन और भत्ते दिये जायेंगे जैसे कि भारत डोमीनियन की संविधान-सभा के उपाध्यक्ष को इस संविधान के प्रारम्भ से ठीक पहिले देय थे।  

द्वितीय अनुसूची

८. []* * * राज्य की विधान-सभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को तथा [][राज्य] की विधान-परिषद् के सभापति और उपसभापति को ऐसे वेतन और भत्ते दिये जायेंगे जैसे कि क्रमशः तत्स्थानी प्रान्त की विधान-सभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को तथा विधान-परिषद् के सभापति और उपसभापति को इस संविधान के प्रारम्भ से ठीक पहिले देय थे, तथा जहां तत्स्थानी प्रान्त की ऐसे प्रारम्भ से ठीक पहिले कोई विधान-परिषद् न थी वहां उस राज्य की विधान-परिषद् के सभापति और उपसभापति को ऐसे वेतन और भत्ते दिये जायेंगे जैसे कि उस राज्य का राज्यपाल निर्धारित करे।

भाग घ

उच्चतमन्यायालय तथा []* * * उच्चन्यायालयों के न्यायाधीशों के सम्बन्ध में उपबन्ध

[]९. (१) उच्चतमन्यायालय के न्यायाधीशों को वास्तविक सेवा में बिताये समय के बारे में निम्नलिखित दर में प्रति मास वेतन दिया जायेगा अर्थात—

मुख्य न्यायाधिपति ५,००० रुपया
कोई अन्य न्यायाधीश ४,००० रुपया

परन्तु यदि उच्चतमन्यायालय के न्यायाधीश को अपनी नियुक्ति के समय भारत सरकार की या उस की पूर्ववती सरकारों में से किसी की अथवा राज्य की सरकार को अथवा उनकी पूर्ववर्ती सरकारों में से किसी की पहिले की गई सेवा के बारे में (निर्योग्यता या क्षत-पेन्शन से अतिरिक्त) कोई निवृत्ति-वेतन मिलता हो तो उच्चतमन्यायालय में सेवा के बारे में उस के वेतन में से

[१०](क) निवृत्ति-वेतन की राशि, और
(ख) यदि उसने ऐसी नियुक्ति से पूर्व, ऐसी पूर्व सेवा के सम्बन्ध में अपने को देय निवृत्ति-वेतन के एक प्रभाग के बदले में उसका संराशित मूल्य प्राप्त किया है तो निवृत्ति-वेतन के उस प्रभाग की राशि, और
 

द्वितीय अनुसूची

(ग) यदि उसने ऐसी नियुक्ति से पूर्व, ऐसी पूर्व सेवा के सम्बन्ध में निवृत्ति उपदान प्राप्त किया है तो उस उपदान का समतुल्य निवृत्ति वेतन, घटा दिया जाएगा।]

(२) उच्चतमन्यायालय के प्रत्येक न्यायाधीश को, बिना किराया दिये, पदावास के उपयोग का हक्क होगा।

(३) इस कंडिका की उपकंडिका (२) में की कोई बात उस न्यायाधीश को, जो इस संविधान के प्रारम्भ से ठीक पहिले—

(क) फेडरलन्यायालय के मुख्य न्यायाधिपति के रूप में पद धारण किये था, तथा जो ऐसे प्रारम्भ पर अनुच्छेद ३७४ के खंड (१) के अधीन उच्चतमन्यायालय का मुख्य न्यायाधिपति बन गया है, अथवा
(ख) फेडरलन्यायालय के किसी अन्य न्यायाधीश के रूप में पद धारण किये था तथा ऐसे प्रारम्भ पर उक्त खंड के अधीन उच्चतमन्यायालय का (मुख्य न्यायाधिपति से अन्य) कोई न्यायाधीश बन गया है,

उस कालावधि में, जिस में कि वह ऐसे मुख्य न्यायाधिपति या अन्य न्यायाधीश के रूप में पद धारण करता है, लागू न होगी, तथा प्रत्येक न्यायाधीश को, जो इस प्रकार उच्चतमन्यायालय का मुख्य न्यायाधिपति या अन्य न्यायाधीश हो जाता है, यथास्थिति ऐसे मुख्य न्यायाधिपति या अन्य न्यायाधीश के रूप में, वास्तविक सेवा में बिताये समय के बारे में इस कंडिका की उपकंडिका (१) में उल्लिखित वेतन से अतिरिक्त विशेष वेतन के रूप में ऐसी राशि पाने का हक्क होगा जो कि इस प्रकार उल्लिखित वेतन तथा ऐसे प्रारम्भ से ठीक पहले उसे मिलने वाले वेतन के अन्तर के बराबर

(४) उच्चतम न्यायालय का प्रत्येक न्यायाधीश भारत राज्य क्षेत्र के भीतर अपने कर्तव्य पालन में की गई यात्रा में किये गये व्ययों की पूर्ति के लिये ऐसे युक्तियक्त भत्ते पायेगा तथा यात्रा सम्बन्धी उसे ऐसी सुविधाएं दी जायेगी जैसी कि राष्ट्रपति समय समय पर विहिन करे

(५) उच्चतमन्यायालय के न्यायाधी की अनुपस्थिति छुट्टी (जिस के अन्तर्गत छुट्टी सम्बन्धी भत्ते भी है) तथा निवृत्ति वेतन के बारे में अधिकार उन उपबन्धों से शासित होंगे जो इस संविधान के प्रारम्भ से ठीक पहिले फेडरलन्यायालय के न्यायाधीशों को लागू थे।

१०.[११][(१) उच्चन्यायालयों के न्यायाधीशों को वास्तविक सेवा में बिताये समय के बारे में निम्नलिखित दर में प्रतिमास वेतन दिया जाएगा, अर्थात्—

मुख्य न्यायाधिपति ...४,००० रुपये
कोई अन्य न्यायाधीश ...३,५०० रुपये

परन्तु यदि किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को अपनी नियक्ति के समय भारत सरकार की या उसकी पूर्ववर्ती सरकारों में से किसी की अथवा राज्य की सरकार की अथवा उसकी पूर्ववर्ती सरकारों में से किसी की पहिले की गयी सेवा के बारे में (निर्योग्यता या क्षति पेंशन के अतिरिक्त) कोई निवृत्ति-वेतन मिलता हो तो उच्चन्यायालय में सेवा के बारे में उसके वेतन में से

(क) निवृत्ति-वेतन की राशि और
(ख) यदि उसने ऐसी नियुक्ति से पूर्व, ऐसी पूर्व सेवा के सम्बन्ध में अपने को देय निवृत्ति-वेतन के एक प्रभाग के बदले में उसका संराशिकृत मूल्य प्राप्त किया है तो निवृत्ति वेतन के उस प्रभाग की राशि, और
 

द्वितीय अनुसूची

(ग) यदि उसने ऐसी नियुक्ति से पूर्व, ऐसी पूर्व सेवा के सम्बन्ध में निवृत्ति उपदान प्राप्त किया है तो उस उपदान का समतुल्य निवृत्ति-वतन, घटा दिया जाएगा।]

(२) जो व्यक्ति इस संविधान के प्रारम्भ से ठीक पहिले—

(क) किसी प्रान्त में के उच्चन्यायालय के मुख्य न्यायाधिपति के रूप में पद धारण किये था तथा ऐसे प्रारम्भ पर अनुच्छेद ३७६ के खंड (१) के अधीन तत्स्थानी राज्य में के उच्चन्यायालय का मुख्य न्यायाधिपति बन गया है, अथवा
(ख) किसी प्रान्त में के उच्चन्यायालय के किसी अन्य न्यायाधीश के रूप में पद धारण किये था तथा ऐसे प्रारम्भ पर उक्त खंड के अधीन तत्स्थानी राज्य में के उच्चन्यायालय का (मुख्य न्यायाधिपति और अन्य) कोई न्यायाधीश बन गया है,

[१२]उसको, यदि वह ऐसे प्रारम्भ से ठीक पहिले इस कंडिका की उपकंडिका (१) में उल्लिखित दर से अधिक चेतन पाता था तो, यथास्थिति ऐसे मुख्य न्यायाधिपति या अन्य न्यायाधीश के रूप में वास्तविक सेवा में बिताये समय के बारे में उक्त उपकंडिका में उल्लिखित वेतन के अतिरिक्त विशेष वेतन के रूप में ऐसी राशि पाने का हक्क होगा जो कि इस प्रकार उल्लिखित वेतन तथा ऐसे प्रारम्भ से ठीक पहिले उसे मिलने वाले वेतन के अन्तर के बराबर है।

[१३][(३) कोई व्यक्ति जो संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, के प्रारम्भ से ठीक पहिले प्रथम अनुसूची के भाग (ख) में उल्लिखित किसी राज्य के उच्चन्यायालय के मुख्य न्यायाधिपति का पद धारण कर रहा था और ऐसे प्रारम्भ पर उक्त अधिनियम द्वारा यथा संशोधित उक्त अनुसूची में उल्लिखित किसी राज्य के उच्चन्यायालय का मुख्य न्यायाधिपति बन गया है, यदि वह ऐसे प्रारम्भ से ठीक पहिले अपने वेतन के अतिरिक्त भत्ते के रूप में कोई राशि ले रहा था वह एंगे मुख्य न्यायाधिपति के रूप में वास्तविक सेवा में बिताये समय के बारे में इस कंडिका की उपकंडिका (१) में उल्लिखित वेतन के अतिरिक्त भत्ते के रूप में वही राशि पाने का हकदार होगा

११. इस भाग में, जब तक प्रसंग में अन्यथा अपेक्षित न हो—

(क) "मुख्य न्यायाधिपति" पदावधि के अन्तर्गत कार्यकारी मुख्य न्यायाधिपति है तथा "न्यायधीश" पद के अन्तर्गत तदर्थ न्यायाधीश है।
(ख) "वास्तविक सेवा" के अन्तर्गत है—
(१) न्यायाधीश के रूप में कर्तव्य करते हुए अथवा ऐसे अन्य कृत्यों के पालन में, जिन का कि राष्ट्रपति की आकांक्षा पर उसने निर्वहन करने का भार लिया हो न्यायाधीश द्वारा व्यतीत समय;
 

द्वितीय अनुसूची

(२) उस समय को न गिन कर जिस में कि वह न्यायाधीश छुट्टी ले कर अनुपस्थित है, विश्रामावकाश; तथा
(३) उच्चन्यायालय से उच्चतमन्यायालय को अथवा एक उच्चन्यायालय से दूसरे को बदले जाने पर योगकाल।

भाग ङ

भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के सम्बंध में उपबंध

१२. (१) भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक को चार सहस्र रूपये प्रतिमास की दर से वेतन दिया जायेगा।

(२) जो व्यक्ति इस संविधान के प्रारम्भ से ठीक पहिले भारत के महालेखापरीक्षक के रूप में पद धारण किये था तथा ऐसे प्रारम्भ पर अनुच्छेद ३७७ के अधीन भारत का नियंत्रक-महालेखापरीक्षक बन गया है उसको इस कंडिका की उपकंडिका (१) में उल्लिखित वेतन के अतिरिक्त विशेष वेतन के रूप में ऐसी राशि पाने का हक्क होगा जो कि इस प्रकार उल्लिखित वेतन तथा ऐसे प्रारम्भ से ठीक पहिले भारत के महालेखापरीक्षक के रूप में उसे मिलने वाले वेतन के अन्तर के बराबर है।

(३) भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक के अनुपस्थिति-छट्टी और निवृत्ति-वेतन तथा अन्य सेवा शर्तों के बारे में अधिकार उन उपबन्धों से यथास्थिति शासित होंगे या शासित होते रहेंगे जो इस संविधान के प्रारम्भ से ठीक पहिले भारत के महालेखापरीक्षक को लागू थे तथा उन उपबन्धों में गवर्नर जनरल के प्रति सब निदेशों का ऐसा अर्थ किया जायेगा मानो कि वे राष्ट्रपति के प्रति निर्देश है।

  1. "प्रथम अनुसूची के भाग (क) में उल्लिखित" शब्द और अक्षर संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा २९ और अनुसूची द्वारा लुप्त कर दिये गये।
  2. "इस प्रकार उल्लिखित" शब्द उपरोक्त क ही द्वारा लुप्त कर दिये गये।
  3. उपरोक्त के ही द्वारा "ऐसे राज्यों" के स्थान पर रखा गया।
  4. भाग (ख) संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, उपरोक्त के ही द्वारा लुप्त कर दिया गया।
  5. "प्रथम अनुसूची के भाग (क) में के शब्द" और अक्षर उपरोक्त के ही द्वारा लुप्त कर दिये गये।
  6. उपरोक्त के ही द्वारा "ऐसे किसी राज्य" के स्थान पर रखा गया।
  7. ७.० ७.१ "प्रथम अनुसूची के भाग (क) में उल्लिखित" शब्द संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम १९५६, धारा २९ और अनुसूची द्वारा लुप्त कर दिये गये।,
  8. उपरोक्त के ही द्वारा "ऐसे राज्य" के स्थान पर रखा गया।
    "प्रथम अनुसूची के भाग (क) में के राज्यों के" शब्द और अक्षर संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा २५ द्वारा लुप्त कर दिये गये।
  9. संविधान (कठिनाइयां दूर करना) आदेश संख्या ९ की कंडिका २ उपबन्ध करती है कि ७ नवम्बर १९५१ से आठ वर्ष की कालावधि तक भारत के संविधान की द्वितीय अनुसूची निम्नलिखित अनुकूलन के अधीन रहकर प्रभावी होगी, अर्थात—
    "कंडिका ९ की उपकंडिका (३) के स्थान पर निम्नलिखित उपकंडिका (ख) रख दी जाएगी, अर्थात्–
    (३) इस कंडिका की उपकंडिका (२) में की कोई बात ऐसे न्यायाधीश को, जो इस संविधान के प्रारम्भ से ठीक पहिले फेडरलन्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पद धारण कर रहा था और ऐसे प्रारम्भ पर अनुच्छेद ३७४ के खंड (१) के अधीन उच्चतमन्यायालय का न्यायाधीश हो गया है उस कालावधि के दौरान, जिसमें कि वह उस न्यायालय के मुख्य न्यायाधिपति से भिन्न न्यायाधीश के रूप में पद धारण करता है लागू न होगी; और प्रत्येक ऐसा न्यायाधीश मुख्य न्यायाधिपति से भिन्न न्यायाधीश के रूप में वास्तविक सेवा पर बिताये समय के सम्बन्ध में, या यदि वह मुख्य न्यायाधिपति होने के लिये या उस रूप में कार्य करने के लिये नियुक्त है तो ऐसे मुख्य न्यायाधिपति के रूप में वास्तविक सेवा पर बिताये समय के सम्बन्ध में उस कंडिका की उपकंडिका (१) में उल्लिखित वेतन के अतिरिक्त इन संविधान के आरम्भ से ठीक पहिले फेडरलन्यायालय के न्यायाधीश के रूप में उसको देय वतन और इस प्रकार उल्लिखित वेतन के बीच के अन्तर की समतुल्य राशि विशेष वेतन के रूप में पाने का हक्कदार होगा।
  10. संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा २५ द्वारा "निवृत्ति-वेतन की राशि घटा दी जाएगी" के स्थान पर रख गये।
  11. संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा २५ द्वारा मूल उपकंडिका (१) के स्थान पर रखी गयी।
  12. संविधान (कठिनाइयां दूर करना) आदेश संख्या ४ की कंडिका २ उपबन्ध करती है कि २६ जनवरी, १९५० से भारत के संविधान की द्वितीय अनुसूची निम्नलिखित अनुकूलन के अधीन रहकर प्रभावी होगी, अर्थात्—

    (२) कंडिका १० की उपकंडिका (२) में खंड (ख) के पश्चात् समस्त शब्दों के स्थान पर निम्नलिखित रख दिये जायेंगे, अर्थात—
    "उसको यथास्थिति ऐसे मुख्य न्यायाधिपति या अन्य न्यायाधीश के रूप में वास्तविक सेवा में बिताये समय के बारे में इस कंडिका की उपकड़िका (१) में उल्लिखित वेतन के अतिरिक्त विशेष वेतन के रूप में उतनी राशि, यदि कुछ हो, पाने का हक्क होगा जितनी से कि वह वेतन ऐसे आरम्भ से ठीक पहिले प्रान्त में के उपन्यायालय के यथास्थिति मुख्य न्यायाधिपति या किसी अन्य न्यायाधीश को देय वेतन से कम पड़ता है।"
  13. संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा २५ द्वारा मूल उपकंडिका (३) और (४) के स्थान पर रखी गयी।