भारत का संविधान/भाग १२

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भारत का संविधान  (1957) 
अनुवादक
राजेन्द्र प्रसाद

[ ९८ ] 

भाग १२

वित्त, सम्पत्ति, संविदाएं और व्यवहार-वाद—
अध्याय १—वित्त

साधारण

निर्वचन[१][२६४. इस भाग में "वित्त आयोग" से इस संविधान के अनुच्छेद २८० के अधीन गठित वित्त-आयोग अभिप्रेत हैं।]

विधि-प्राधिकार के
सिवाय करों का
आरोपण न करना
२६५. विधि के प्राधिकार के सिवाय कोई कर न तो आरोपित और न संगृहीत किया जायेगा।

 

भारत और राज्यों
की संचित निधियां
और लोक-लेखें
[२]२६६. (१) अनुच्छेद २६७ के उपबन्धों के, तथा कुछ करों और शुल्कों के शुद्ध आगम के राज्यों को पूर्णतः या अंशतः सौंपे जाने के बारे में इस अध्याय के उपबन्धों के, अधीन रहते हुए भारत सरकार द्वारा प्राप्त सब राजस्व, राज-हुंडियों को निकाल कर, उधार द्वारा और अर्थोपाय पेशगियों द्वारा लिये गये सब उधार, तथा उधारों के प्रतिदान में उस सरकार को प्राप्त सब धनों की एक संचित निधि बनेगी जो "भारत की संचित निधि" के नाम से ज्ञात होगी तथा राज्य की सरकार द्वारा प्राप्त सब राजस्व, राज-हुंडियों को निकाल कर, उधार द्वारा और अर्थोपाय पेशगियों द्वारा लिये गये सब उधार, तथा उधारों के प्रतिदान में उस सरकार को प्राप्त सब धनों की एक संचित निधि बनेगी जो "राज्य की संचित निधि" के नाम से ज्ञात होगी।

(२) भारत की सरकार या राज्य की सरकार द्वारा, या की ओर से, प्राप्त अन्य सब सार्वजनिक धन यथास्थिति भारत के या राज्य के लोक-लेखे में जमा किये जायेंगे।

(३) भारत की या राज्य की संचित निधि में से कोई धन विधि की अनुकूलता से, तथा इस संविधान में उपबन्धित प्रयोजनों और रीति से, अन्यथा विनियुक्त नहीं किये जायेंगे।

आकस्मिकता
निधि
२६७. (१) संसद्, विधि द्वारा, अग्रदाय के रूप में "भारत की आकस्मिकता निधि" के नाम से ज्ञात आकस्मिकता निधि की स्थापना कर सकेगी जिसमें ऐसी विधि द्वारा निर्धारित राशियां, समय समय पर डाली जायेंगी, तथा अनवेक्षित व्यय का अनुच्छेद ११५ या अनुच्छेद ११६ के अधीन संसद् द्वारा, विधि द्वारा, प्राधिकृत होना लम्बित रहने तक ऐसी निधि में से ऐसे व्यय की पूर्ति के लिये अग्रिम धन देने के लिये राष्ट्रपति को योग्य बनाने के हेतु उक्त निधि राष्ट्रपति के हाथ में रखी जायेगी।

[३](२) राज्य का विधानमंडल विधि द्वारा अग्रदाय के रूप में "राज्य की आकस्मिकता-निधि" के नाम से ज्ञात आकस्मिकता निधि की स्थापना कर सकेगा जिस में ऐसी विधि द्वारा निर्धारित राशियां समय समय पर डाली जायेंगी, तथा अनवेक्षित व्यय का अनुच्छेद २०५ या अनुच्छेद २०६ के अधीन राज्य के विधान [ ९९ ]

भाग १२—वित्त, सम्पत्ति, संविदाएं और व्यवहार-वाद—
अनु॰ २६७—२६९

मंडल द्वारा, विधि द्वारा, प्राधिकृत होना लम्बित रहने तक ऐसी निधि में से ऐसे व्यय की पूर्ति के लिये अग्रिम धन देने के लिये उस को योग्य बनाने के हेतु ऐसी निधि राज्य के राज्यपाल [४]* * * के हाथ में रखी जायेगी।

संघ तथा राज्यों में राजस्वों का वितरण

संघ द्वारा आरोपित
किये जाने वाले किन्तु
राज्यों द्वारा संगृहीत
तथा विनियोजित किये
जाने वाले शुल्क
२६८. (१) ऐसे मुद्रांक-शुल्क तथा औषधीय और प्रसाधनीय सामग्री पर ऐसे उत्पादन-शुल्क, जो संघ-सूची में वर्णित हैं, भारत सरकार द्वारा आरोपित किये जायेंगे, किन्तु—

(क) उस अवस्था में जिसमें कि ये शुल्क [५][संघ राज्यक्षेत्र] के भीतर उद्गृहीत किये जाने वाले हों, भारत सरकार द्वारा, तथा
(ख) अन्य अवस्थाओं में जिन जिन राज्यों के भीतर ऐसे शुल्क उद्गृहीत किये जाने वाले हों, उन उन राज्यों द्वारा,

संगृहीत किये जायेंगे।

(२) जो शुल्क किसी राज्य के भीतर उद्गृहीत किये जाने वाले हैं उन में से किसी के, किसी वित्तीय वर्ष में के आगम, भारत की संचित निधि के भाग न होंगे किन्तु उस राज्य को सौंप दिये जायेंगे।

संघ द्वारा आरोपित
और संगृहीत, किन्तु
राज्य को सौंपे जाने
वाले कर
२६९. (१) निम्नलिखित शुल्क और कर भारत सरकार द्वारा आरोपित और संगृहीत किये जायेंगे, किन्तु राज्यों को खंड (२) में उपबन्धित रीति से सौंप दिये जायेंगे, अर्थात्—

(क) कृषि-भूमि से अन्य सम्पत्ति के उत्तराधिकार विषयक शुल्क;
(ख) कृषि-भूमि से अन्य सम्पत्ति-विषयक सम्पत्ति-शुल्क;
(ग) रेल-समुद्र या वायु से वाहित वस्तुओं या यात्रियों पर सीमा-कर;
(घ) रेल भाड़ों और वस्तु-भाड़ों पर कर;
(ङ) श्रेष्ठि-चत्वरों और वायदा बाजारों के सौदों पर मुद्रांक-शुल्क से अन्य कर;
(च) समाचारपत्रों के क्रय-विक्रय तथा उन में प्रकाशित विज्ञापनों पर कर।
[६][(छ) समाचारपत्रों से भिन्न वस्तुओं के क्रय या विक्रय पर उस सूरत में कर जिसमें कि ऐसा क्रय या विक्रय अन्तर्राज्यिक व्यापार या वाणिज्य की चर्या में हो।
[ १०० ]

भाग १२--वित्त, सम्पत्ति, संविदाएं और व्यवहार-वाद--अनु० २६९-२७०'

(२) किसी वित्तीय वर्ष में के ऐसे किसी शल्क या कर के शद्ध आगम, वहां तक भारत की संचित-निधि के भाग न होंगे, जहां तक कि वे आगम संघ [राज्य-क्षेत्रों] से मिलने वाले माने जायें, किन्तु उन राज्यों की सौंप दिये जायेंगे जिनमें वह शुल्क या कर उस वर्ष में उद्‌गृहीत होना है तथा उन राज्यों में ऐसे वितरण-सिद्धान्तों के अनुकूल वितरित किये जायेंगे जैसे कि संसद् विधि द्वारा सूत्रित करे।

[(३) यह अवधारित करने के लिये कि अन्तर्राज्यिक व्यापार या वाणिज्य की चर्या में वस्तुओं का क्रय या विक्रय कब होता है संसद् विधि द्वारा सिद्धांत सूत्रित कर सकेगी।]

'२७०.' (१) कृषि-आय से अतिरिक्त आय पर करों को भारत सरकार संघ द्वारा द्वारा उद्गृहीत और संग्रहीत किया जायेगा तथा खंड (२) में उपबन्धित रीति के हीत और अनुसार संघ और राज्यों के बीच में वितरित किया जायेगा।

संघ द्वारा
हीत और
तथा संघ और
राज्यों के बीच
वितरित कर

२) किसी वित्तीय वर्ष में के किसी ऐसे कर के शद्ध आगम का, जहां तक विता वह आगम [संघ राज्य-क्षेत्रों] में से अथवा संघ-उपलब्धियों के सम्बन्ध में देय करों से मिला हुआ आगम माना जाये वहां तक के सिवाय, ऐसा प्रतिशत भाग, जैसा विहित किया जाये, भारत की संचित निधि का भाग न होगा किन्तु उन राज्यों को सौंपा जायेगा जिन के भीतर वह कर उद्गृहीत होना है तथा वह उन राज्यों को उस रीति और उस समय से, जो विहित किया जाये, वितरित होगा।

(३) खंड (२) के प्रयोजनों के लिये प्रत्येक वित्तीय वर्ष में आय पर करों के उतने शुद्ध आगम का, जितना कि संघ-उपलब्धियों के सम्बन्ध में देय करों का शुद्ध प्रागम नहीं है, वह प्रतिशत भाग, जो विहित किया जाये, '[संघ राज्य-क्षेत्रों]में से मिला हुआ आगम समझा जायेगा।

(४) इस अनुच्छेद में-
(क) “आय पर करों" के अन्तर्गत निगम-कर नहीं हैं ;
(ख) “विहित" का अर्थ है कि --
(१)जब तक वित्त-आयोग गठित न हो जाये तब तक राष्ट्रपति द्वारा आदेश द्वारा विहित;तथा
(२)वित्त-आयोग के गठित हो जाने के पश्चात् वित्त-आयोग की सिपारिशों पर विचार करने के पश्चात् राष्ट्रपति द्वारा
आदेश द्वारा विहित;

(ग)“संघ-उपलब्धियों" के अन्तर्गत भारत की संचित निधि में से दी जाने वाली सब उपलब्धियां और निवृत्ति-वेतन, जिनके सम्बन्ध में आय-कर पारोपित किया जा सकता है,भी हैं।

'संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा २६ और अनुसूची द्वारा"प्रथम अनुसूची के भाग (ग) में उल्लिखित राज्यों" के स्थान पर रखे गये।

संविधान (षष्ठ संशोधन) अधिनियम, १६५६, धारा ३ द्वारा जोड़ा गया। [ १०१ ] 

भाग १२—वित्त, सम्पत्ति, संविदाएं और व्यवहार-वाद—अनु॰ २७१-२७४

२७१.अनुच्छेद २६६ और २७० में किसी बात के होते हुए भी संसद् उन संघ के प्रयोजनों अनुच्छेदों में निर्दिष्ट शल्कों या करों में से किसी की भी किसी समय संघ के प्रयोजनों के लिये कछ के लिये अधिभार द्वारा वृद्धि कर सकेगी तथा ऐसे किसी अधिभार के समस्त पागम शल्कों और करों भारत की संचित निधि के भाग होंगे।

संघ के प्रयोजन
के लिए कुछ
शुल्कों और करों
पर अधिभार

२७२.संघ सूची में वर्णित औषधीय तथा प्रसाधन-सामग्री पर उत्पादन- कर जो संघ द्वारा शुल्क से अन्य संघ-उत्पादन शुल्क भारत सरकार द्वारा उद्‌गृहीत और सगहीत किये जायेंगे, किन्तु यदि संसद् विधि द्वारा यह उपबन्धित करे तो शुल्क लगाने वाली विधि जो संघ और जिन राज्यों को लाग होती हो उन राज्यों को भारत की संचित निधि में से उस राज्यों के बीच शुल्क के शुद्ध आगमों के पूर्ण अथवा किसी भाग के बराबर राशि दी जायेगी और वे राशियां उन राज्यों के बीच ऐसे वितरण-सिद्धान्तों के अनुसार वितरित की जायेंगी जैसे की संसद् विधि द्वारा सूत्रित करे ।

कर जो संघ द्वारा
उद्‌गृहीत है तथा
जो संघ और
राज्यों के बीच
वितरित किए जा
सकेंगे

[७]२७३.(१) पटसन या पटसन से बनी हुई वस्तुओं पर निर्यात-शुल्क पटसन या पटसन के प्रत्येक वर्ष के शद्ध मागम के किसी भाग को आसाम, उड़ीसा, पश्चिमी बंगाल और से बनी वस्तनों बिहार राज्यों को सौंपने के स्थान में उन राज्यों के राजस्व में सहायक अनुदान के पर निर्यात शल्क रूप में प्रत्येक वर्ष में भारत की संचित निधि पर ऐसी राशियां भारित की जायेंगी के स्थान में अन-जैसी कि विहित की जायें।

पटसन या पटसन
से बनी वस्तुओं
पर निर्यात शुल्क
के स्थान में
अनुदान

(२) पटसन या पटसन से बनी हुई वस्तुओं पर जब तक भारत सरकार कोई निर्यात-शुल्क उद्गृहीत करती रहे अथवा इस संविधान के प्रारम्भ से दस वर्ष की समाप्ति,इन दोनों में से जो भी पहिले हो उसके होने तक, इस प्रकार विहित राशियाँ भारत की संचित निधि पर भारित बनी रहेंगी।

(३) इस अनुच्छेद में "विहित” पद का वही अर्थ है जो इस संविधान के अनुच्छेद २७० में है।

२७४.(१) कोई विधेयक या संशोधन, जिस कर या शुल्क में राज्यों राज्य हितों से का हित सम्बद्ध है, उस को आरोपित या आपरिवर्तित करता है, अथवा जो भारत सम्बद्ध करों पर आय-कर से सम्बद्ध अधिनियमितियों के प्रयोजनों के लिये परिभाषित "कृषि-आय" प्रभाव डालने पदावलि के अर्थ को परिवर्तित करता है, अथवा जो उन सिद्धान्तों को प्रभावित वाले विधेयकों के करता है जिनसे कि इस अध्याय के पूर्ववर्ती उपबन्धों में से किसी के अधीन राज्यों लिये राष्ट्रपति को धन वितरणीय हैं या हो सकेंगे, अथवा जो संघ के प्रयोजन के लिये ऐसा कोई अधि-की पूर्व सिरिश भार आरोपित करता है जैसा कि इस अध्याय के पूर्ववर्ती उपबन्धों में वर्णित की अपेक्षा है, राष्ट्रपति की सिपारिश के विना संसद् के किसी सदन में न तो पुरःस्थापित और न प्रस्तावित किया जायेगा।

राज्य हितों से
संबंध करो पर
प्रभाव डालने
विधायको के
लियेरास्ट्रपति
पूर्व सिफारिस
की अपेक्षा

(२) इस अनुच्छेद में "जिस कर या शुल्क में राज्यों का हित सम्बद्ध है पदावलि से अभिप्रेत है—

(क) कोई कर या शुल्क जिसका शुद्ध आगम पूर्णतः या अंशतः किसी राज्य को सौंप दिया जाता है, अथवा
(ख) कोई कर या शुल्क जिसके शुद्ध पागम के निर्देश से भारत संचित निधि में से तत्समय किसी राज्य को राशियां दी जानी हैं।

[ १०२ ]

भाग १२-वित्त, सम्पत्ति, संविदाएं और व्यवहार-वाद-अनु० २७५-२७६


कतिपय राज्यों को
संघ से अनुदान

२७५.ऐसी राशियां, जो संसद् विधि द्वारा उपबन्धित करे, उन राज्यों के कतिपय राज्यों को राजस्वों के सहायक अनुदान के रूप में प्रतिवर्ष भारत की संचित निधि पर भारित होंगी जिन राज्यों के विषय में संसद् यह निर्धारित करे कि उन्हें सहायता की आवश्य-कता है, तथा भिन्न-भिन्न राज्यों के लिये भिन्न-भिन्न राशियां नियत की जा सकेंगी:

परन्तु किसी राज्य के राजस्वों के सहायक अनुदान के रूप में भारत की संचित निधि में से वैसी मल तथा आवर्तक राशियां दी जायेंगी जैसी कि उस राज्य को उन विकास योजनाओं के खर्चों के उठाने में समर्थ बनाने के लिये आवश्यक हों, जो उस राज्य के अन्तर्गत अनुसूचित आदिम जातियों के कल्याण की उन्नति करने के प्रयोजन के लिये अथवा उसाज्य के अन्तर्गत अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन-स्तर को उस राज्य के शेप क्षेत्रों के प्रशासन-स्तर तक उन्नत करने के प्रयोजन के लिये उस राज्य ने भारत सरकार के अनुमोदन से हाथ में ली हों :

परन्तु यह और भी कि आसाम राज्य के राजस्वों के सहायक अनदान के रूप में रत की संचित निधि में से वैसी मूल तथा आवर्तक राशियां दी जायेंगी-

(क) जो षष्ठ अनुसूची की कंडिका २० से (क)संलग्न सारणी के भाग में उल्लिखित आदिमजाति-क्षेत्रों के प्रशासन के बारे में इस संविधान के प्रारम्भ से ठीक पहिले दो वर्ष में राजस्वों से औसतन अधिक व्यय के बराबर हों;तथा
(ख)जो उक्त क्षेत्रों के प्रशासन-स्तर को उस राज्य के शेष क्षेत्रों के प्रशासन-स्तर तक उन्नत करने के प्रयोजन के लिये उस राज्य द्वारा भारत सरकार के अनुमोदन से हाथ में ली गई योजनाओं के खर्चों के बराबर हों।

(२) जब तक खंड (१) के अधीन संसद् द्वारा उपबन्ध नहीं किया जाता तब तक उस खंड के अधीन संसद् को प्रदत्त शक्तियां राष्ट्रपति से आदेश द्वारा प्रयोक्तव्य होंगी तथा इस खंड के अधीन राष्ट्रपति द्वारा दिया कोई आदेश संसद् द्वारा इस प्रकार निर्मित किसी उपबन्ध के अधीन रह कर ही प्रभावी होगा :

परन्तु वित्त-आयोग गठित हो जाने के पश्चात् वित्त आयोग की सिपारिशों पर विचार किये विना इस खंड के अधीन कोई आदेश राष्ट्रपति द्वारा नहीं दिया जायेगा।

वृतियों व्यापारों,
आजीविकाओं
और नौकरियों पर कर

२७६.(१) अनुच्छेद २४६ में किसी बात के होते हुए भी किसी राज्य वृत्तियों व्यापारों,के विधानमंडल की ऐसे करों सम्बन्धी कोई विधि, जो उस राज्य या किसी नगर-पालिका, जिला-मंडली, स्थानीय मंडली अथवा उसमें अन्य स्थानीय प्राधिकारी और के हित साधन के लिये वृत्तियों, व्यापारों आजीविकाओं या नौकरियों के बारे में लागू होती है, इस आधार पर अमान्य न होगी कि वह आय पर कर है।

(२) राज्य को अथवा उसमें की किसी एक नगरपालिका, जिला-मंडली स्थानीय मंडली या अन्य स्थानीय प्राधिकारी को किसी एक व्यक्ति के बारे में वृतियो व्यापारों आजीविकाओं और नौकरियों पर करों द्वारा देय समस्त राशि दो सौ पचास रुपये प्रतिवर्ष से अधिक न होगी : [ १०३ ]

भाग १२--वित, सम्पत्ति, संविदाएं और व्यवहार-वाद-अनु० २७६-२७९

परन्तु यदि इस संविधान के प्रारम्भ से ठीक पहिले वाले वित्तीय वर्ष में किसी राज्य में अथवा किसी ऐसी नगरपालिका, मंडली या प्राधिकारी में वृत्तियों, व्यापारों आजीविकाओं या नौकरियों पर ऐसा कर लागू था जिसकी दर या जिस की अधिक-तम दर दो सौ पचास रुपये प्रति वर्ष से अधिक थी तो ऐसा कर उस समय तक उद्-गृहीत होता रहेगा जब तक कि संसद् विधि द्वारा इस के प्रतिकूल उपबन्ध न करे तथा संसद द्वारा इस प्रकार बनाई हुई कोई विधि या तो सामान्यतया या किन्हीं उल्लि-खित राज्यों, नगरपालिकाओं, मंडलियों या प्राधिकारियों के सम्बन्ध में बनाई जा सकेगी

(३)वृत्तियों,व्यापारों,आजीविकाओं और नौकरियों पर कर के विषय में उक्त प्रकार विधियां बनाने की राज्य के विधानमंडल की शक्ति का यह अर्थ न किया जायेगा कि वत्तियों, व्यापारों, आजीविकाओं और नौकरियों से प्रोद्भूत या उत्पन्न प्राय पर करों के विषय में विधियां बनाने की संसद की शक्ति किसी प्रकार सीमित की गई है।

व्यावृति

२७७.जो कर, शुल्क, उपकर या फीस, इस संविधान से ठीक पहिले किसी राज्य की सरकार द्वारा, अथवा किसी नगरपालिका या अन्य स्थानीय प्राधिकारी या निकाय द्वारा उस राज्य , नगर, जिला अथवा अन्य स्थानीय क्षेत्र के प्रयोजनों के लिये विधिवत् उद्गृहीत किये जा रहे थे, वे कर, शुल्क, उपकर या फीस संघ-सूची में वर्णित होने पर भी उद्गृहीत किये जाते रहेंगे तथा उन्हीं प्रयोजनों के हेतु उपयोग में लाये जा सकेंगे जब तक कि संसद् विधि द्वारा इस के प्रतिकूल उपबन्ध न करे ।

२७८.[कतिपय वित्तीय विषयों के बारे में प्रथम अनुसूची के भाग (ख) के राज्यों से करार] संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, की धारा २९ और अनुसूची द्वारा निरसित ।

शुद्ध आगम की
गणना

२७९.(१) इस अध्याय के पूर्वगामी उपबन्धों में 'शुद्ध आगम" से किसी कर या शुल्क के सम्बन्ध में उस पागम से अभिप्राय है जो उसके संग्रह के खर्चों को घटाने के पश्चात बचे, तथा उन उपबन्धों के प्रयोजनों के लिये किसी क्षेत्र के भीतर अथवा उससे, मिले हुए माने जाने वाले किसी कर या शुल्क का अथवा किसी कर या शुल्क के किसी भाग का शुद्ध पागम भारत के नियन्त्रक-महालेखापरीक्षक द्वारा अभिनिश्चित तथा प्रमाणित किया जायेगा, जिसका प्रमाण-पत्र अन्तिम होगा।


(२) किसी अवस्था में जहां इस भाग के अधीन किसी शुल्क या कर का आगम किसी राज्य को विनियोजित किया जाता है या किया जाये वहां उपरोक्त उपबन्ध के तथा इस अध्याय के किसी अन्य स्पष्ट उपबन्ध के अधीन रहते हुये संसद्-निर्मित कोई विधि अथवा राष्ट्रपति का कोई आदेश, उस रीति का, जिस से कि आगम की गणना की जानी है, उस समय का, जिससे या जिस में, तथा उस रीति का, जिस से कोई शोधन किये जाने हैं, एक वित्तीय वर्ष और दूसरे वित्तीय वर्ष में समायोजन करने का तथा अन्य किसी प्रासंगिक और सहायक बातों का उपबन्ध कर सकेगा।


'जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू होने में संविधान के प्रारम्भ के प्रति निर्देशों का ऐसे अर्थ किया जाएगा मानो कि वे संविधान (जम्मू और कश्मीर को लागू होना) आदेश १९५४ के प्रारम्भ अर्थात १४ मई, १९५४ के प्रति निर्देश हैं। [ १०४ ]

भाग १२-वित्त, सम्पत्ति, संविदाएं और व्यवहार-वाद-अनु० २८०-२८३

वित्तिय आयोग२६०.(१) इस संविधान के प्रारम्भ से दो वर्ष के भीतर और तत्पश्चात् विन आयोग प्रत्येक पंचम वर्ष की समाप्ति पर, अथवा उस से पहिले ऐसे समय पर, जिसे राष्ट्रपति आवश्यक समझे, राष्ट्रपति प्रादेश द्वारा एक वित्त-पायोग गठित करेगा जो राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त एक सभापति और चार अन्य सदस्यों से मिल कर बनेगा।

(२)संसद् विधि द्वारा उन अर्हताओं का, जो आयोग के सदस्यों के रूप में नियुक्ति के लिये अपेक्षित होंगी, और उस रीति का, जिसके अनुसार उनका संवरण किया जायेगा, निर्धारण कर सकेगी।

(३)आयोग का यह कर्तव्य होगा कि वह --

(क) संघ तथा राज्यों के बीच में करों के शुद्ध आगम को, जो इस अध्याय के अधीन उन में विभाजित होता है या होवे, वितरण के बारे में,तथा राज्यों के बीच ऐसे पागम के तत्सम्बन्धी अंशों के बंटवारे के बारे में ,
(ख)भारत की संचित निधि में से राज्यों के राजस्वों के सहायक अनुदान देने में पालनीय सिद्धान्तों के बारे में ,

*******

[(ग)]सुस्थित वित्त के हित में राष्ट्रपति द्वारा आयोग को सौंपे हुए किसी अन्य विषय के बारे में,

राष्ट्रपति को सिपारिश करे।

(४)आयोग अपनी प्रक्रिया निर्धारित करेगा तथा अपने कृत्यों के पालन में उसे ऐसी शक्तियां होंगी जो संसद् विधि द्वारा उसे प्रदान करे।

वित्तिय आयोग
की सिफारिशें
२८१.राष्ट्रपति इस संविधान के उपबन्धों के अधीन वित्त आयोग द्वारा की गई प्रत्येक सिपारिश को, उस पर की गई कार्यवाही के व्याख्यात्मक ज्ञापन के सहित, सिपारिशें संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवायेगा।

प्रकीर्ण वित्तीय उम्बन्ध

संघ या राज्य
द्वारा[अपने
राजस्व से किये
जाने वाले व्यय
२८२.संघ या राज्य किसी सार्वजनिक प्रयोजन के हेतु कोई अनुदान दे सकेगा, चाहे फिर वह प्रयोजन ऐसा न हो कि जिसके विषय में यथास्थिति संसद द्वारा अपने या उस राज्य का विधानमंडल, विधि बना सकता है।

संचित निधियों
की आकस्मिक-
निधियों की
तथा लोक-लेखो
जमा धनो की
अभिरक्षा
इत्यादि
२८३.(१) भारत की संचित निधि और भारत की आकस्मिकता-निधि संचित निधियों की अभिरक्षा, ऐसी निधियों में धन का डालना उनसे धन का निकालना, ऐसी निधियों की, जमा किये जाने वाले धन से अतिरिक्त भारत सरकार द्वारा या उसकी ओर से कता-निधियों की प्राप्त लोक-धन की अभिरक्षा, उनका भारत के लोक-लेखों में दिया जाना तथा ऐसे लेखे से धन का निकालना तथा उपर्युक्त विषयों से संयुक्त या सहायक अन्य सब में जमा धनों की विषयों का विनियमन संसद् द्वारा निर्मित विधि से होगा तथा जब तक उस लिये अभिरक्षा उपबन्ध इस प्रकार न किया जाये तब तक राष्ट्रपति द्वारा निर्मित नियमों से होगा।


'उपखंड (ग) संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा २६ और अनुसूची द्वारा लुप्त कर दिया गया।

उपखंड (घ) उपरोक्त के ही द्वारा (ग) के रूप में पुनः अंकित किया गया।

जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू होने में 'राज्य' को प्रति निर्देशों का यह अर्थ न किया जायेगा कि

वे जम्मू और कश्मीर राज्य के प्रति निर्देश हैं। [ १०५ ]

भाग १२-वित्त, सम्पत्ति, संविदाएं और व्यवहार-बाद--अनु० २८३-२८६

(२)राज्य की संचित निधि और राज्य की आकस्मिकता-निधि की अभि-रक्षा ऐसी निधियों में धन का डालना, उनसे धन का निकालना, ऐसी निधियों में जमा किये धन से अतिरिक्त राज्य की सरकार द्वारा या उसकी ओर से प्राप्त लोक-धन की अभिरक्षा उनका राज्य के लोक लेख में दिया जाना तथा ऐसे लेखे मे धन का निकालना तथा उपर्युक्त विषयों से संसक्त या महायक अन्य सब विषयों का विनियमन राज्य के विधान-मंडल द्वारा निर्मित विधि से होगा तथा जब तक उस लिये उपबन्ध इस प्रकार नहीं किया जाये तब तक राज्य के राज्यपाल ** द्वारा निर्मित नियमों से होगा।

२८४.यथास्थिति भारत के लोक-लेख में या राज्य के लोक-लेखों में लोक-सेवकों और न्यायालयों द्वारालोक सेवकों और
न्यायलयों द्वारा
प्राप्त वादियों के
निक्षेप और अन्य
धन्य की अभि-
रक्षा

(क) यथास्थिति भारत सरकार या राज्य की सरकार द्वारा वमूल प्राप्त वादियों के किये गये या प्राप्त राजस्व या लोक-धन को छोड़ कर, संघ या गज्य निक्षेप और अन्य के कार्यों के सम्बन्ध में नौकरी में लगे हए किमी पदाधिकारी नग हए किमी पदाधिकारी धन की अभि-को उमकी उम हैमियत में, अथवा
(ख) किमी वाद, विषय, लेखे या व्यक्तियों के नाम में जमा किये गये भारत के राज्य-क्षेत्र के अंदर किमी न्यायालय को,

प्राप्त या निक्षिप्त सब धन डाले जायेंगे।

२८५.(१) जहां तक कि संसद् विधि द्वारा अन्यथा उपबन्धन को वहां तक किसी राज्य द्वारा, अयवा राज्य के अन्तर्गत किमी प्राधिकारी द्वारा, यारोपित की राज्य के मव करों से संघ की सम्पत्ति विमुक्त होगी।संघ की संपति
की राज्य के
करों से विमुक्ति

(२) जब तक संसद विधि द्वाग अन्यथा उपबन्ध न करे तब तक खंड (१)की कोई बात किसी राज्य के अन्तर्गत किमी प्राधिकारी को संघ की किसी सम्पत्ति पर कोई ऐसा कर उद्गहीत करने में बाधा नहीं डालेगी जिस का दायित्व, इस संविधान के प्रारम्भ से ठीक पहिले, ऐमी सम्पत्ति पर था या समझा जाता था जब तक कि वह कर उस राज्य में लगा रहे।

२८६.(१) राज्य की कोई विधि, वस्तुओं के क्रय और विक्रय पर, जहां ऐसा क्रय या विक्रय--

(क)राज्य के बाहर, अथवा
(ख) भारत राज्य-क्षेत्र में वस्तुओं के पायात अथवा उसके बाहर निर्यात के दौरान में,होता है वहां कोई करारोपण न करेगी और न करना प्राधिकृत करेगी।

वस्तुओं के क्रय या
विक्रय पर
करारोपण के
बारे में निर्बंध्ं

यह खंड जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू न होगा ।

"या राजप्रभु" शब्द संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा २९ और अनुसूनी द्वारा लुप्त कर दिये गये।

जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू होने में 'राज्य' के प्रति निर्देशों का यह अर्थ न किया जायेगा कि वे जम्मू और कश्मीर राज्य के प्रति निर्देश है । [ १०६ ]

भाग १२-वित्त, सम्पत्ति, संविदाएं और व्यवहार-वाद
अनु० २८६-२८८

[८]*

[९](२) यह अवधारित करने के लिये कि खंड (१) में वणित प्रकारों में से किसी में की वस्तुओं का क्रय या विक्रय कब होता है संसद् विधि द्वारा सिद्धान्त सूत्रित कर सकेगी।

(३) जहां तक कि किसी राज्य की कोई विधि, अन्तर्राज्यिक व्यापार या वाणिज्य में ऐसी वस्तुओं के, जो कि संसद् द्वारा विधि द्वारा विशेष महत्व की घोषित की गई हैं, क्रय या विक्रय पर किसी कर का आरोपण करती है या आरोपण प्राधिकृत करती है, वहां तक वह विधि उस करके उद्ग्रहण की व्यवस्था, दरों और अन्य प्रसंगतियों के सम्बन्ध में ऐसे निर्बन्धनों और शर्तो के अध्यधीन होगी जैसी कि संसद विधि द्वारा उल्लिखित कर।]

वद्यत पर करों से
विमुक्ति
२८७. जहां तक कि संसद् विधि द्वारा अन्यथा उपबन्ध करे उस को छोड़ कर (सरकार द्वारा या अन्य व्यक्तियों द्वारा उत्पादित) विद्युत के उपभोग या क्रय पर, जो—

(क) भारत सरकार द्वारा उपभुक्त है अथवा भारत सरकार द्वारा उपभोग किये जाने के लिये उस सरकार को बेची गई है; अथवा
(ख) किसी रेलवे के निर्माण, बनाये रखने या चलाने में भारत सरकार या रेलवे समवाय द्वारा, जो उस रेलवे को चलाती है उपभक्त है, अथवा किसी रेलवे के निर्माण, बनाये रखने या चलाने में उपभोग के लिये उस सरकार अथवा किसी ऐसे रेलवे समवाय को बेची गई है।

राज्य की कोई विधि कर नहीं आरोपित करेगी और न कर आरोपित करना प्राधिकृत करेगी तथा विद्युत के क्रय पर करारोपण करने, या करारोपित करना प्राधिकृत करने वाली कोई ऐसी विधि यह सुनिश्चित करेगी कि भारत सरकार को उस सरकार द्वारा उपभोग किये जाने के लिये, अथवा किसी ऐसे रेलवे समवाय को, जैसा कि उपर्युक्त है, किसी रेलवे के निर्माण, बनाये रखने या चलाने में उपभोग के लिये, बेची गई विद्युत का मुल्य उस मूल्य से, जो कि विद्युत की प्रचूर-मात्रा के अन्य उपभोक्ताओं से लिया जाता है, इतना कम होगा, जितनी कि कर की राशि है।

पानी या विद्युत के
विषय में राज्य
द्वारा लिये जाने
वाले करों से कुछ
अवस्थानों में
विमुक्ति
२८८. (१) जहां तक कि राष्ट्रपति आदेश द्वारा अन्यथा उपबन्ध करे, पानी या विद्यालय उसको छोड़ कर इस संविधान के प्रारम्भ से ठीक पहिले किसी राज्य में की कोई प्रवृत्त विधि किसी पानी या विद्युत के बारे में, जो अन्तर्राज्यिक नदियों या नदी-दूनों के विनियमन या विकास के लिये किसी वर्तमान विधि से, अथवा संसद् द्वारा बनाई गई किसी विधि से, स्थापित किसी प्राधिकारी द्वारा जमा की गई, पैदा की गई, उपभुक्त, वितरित या बेची गई है, कोई कर नहीं आरोपित करेगी और न कर आरोपित करना प्राधिकृत करेगी।

व्याख्या—इस अनुच्छेद में “राज्य में की कोई प्रवृत्त विधि" के अन्तर्गत राज्य की ऐसी विधि भी होगी, जो इस संविधान के प्रारम्भ से पूर्व पारित या निर्मित हो तथा पहिले ही निरसित न कर दी गई हो चाहे फिर वह या उसके कोई भाग तब पूर्णतः अथवा किन्हीं विशिष्ट क्षेत्रों में, प्रवर्तन में न हों। [ १०७ ]

भाग १२-वित्त, सम्पत्ति, संविदाएं और व्यवहार-बाद>
अनु० २८८-२६०

(२) राज्य का विधानमंडल विधि द्वारा खंड (१) में वर्णित कोई कर आरोपित, या आरोपित करना प्राधिकृत कर सकेगा, किन्तु ऐसी किसी विधि का तब तक कोई प्रभाव न होगा जब तक कि उसे राष्ट्रपति के विचार के लिये रक्षित रखे जाने के पश्चात् उसकी अनुमति न मिल गई हो, तथा यदि ऐसी कोई विधि ऐसे करों की दरों और अन्य प्रासंगिक बातों को किसी प्राधिकारी द्वारा, उस विधि के अधीन बनाये जाने वाले नियमों या आदेशों के द्वारा, नियत करने का उपबन्ध करती है, तो विधि ऐसे किसी नियम या आदेश के बनाने के लिये राष्ट्रपति की पूर्व सम्मति लिये जाने का उपबन्ध करेगी।

संघ के कराधान
से राज्यों की
सम्पत्ति और
आय की विमुक्ति
२८९. (१) राज्य की सम्पत्ति और आय संघ के कराधान से विमुक्त होंगी।

 

(२) खंड (१) की किसी बात से संघ को राज्य की सरकार द्वारा, या की ओर से, किये जाने वाले किसी प्रकार के व्यापार या कारबार के बारे में, अथवा उनसे सम्बन्धित किन्हीं क्रियाओं के बारे में, अथवा उनके प्रयोजनों के लिये उपयोग में आने वाली या आधिपत्य में की गई, किसी सम्पत्ति के बारे में, अथवा उनसे प्रोद्भुत या उत्पन्न किसी आय के बारे में, किसी कर को ऐसे विस्तार तक, यदि कोई हो, जिसे कि संसद् विधि द्वारा उपबन्धित करे, आरोपित करने या आरोपित करना प्राधिकृत करने में रुकावट नहीं होगी।

(३) खंड (२) की कोई बात किसी ऐसे व्यापार या कारबार अथवा व्यापार या कारबार के किसी ऐसे प्रकार को लागू न होगी जिसे कि संसद् विधि द्वारा घोषित करे कि वह सरकार के मामूली कृत्यों से प्रासंगिक है।

कतिपय व्ययों तथा
वेतनों के विषय
में समायोजन
[१०]२९०. जहां इस संविधान के उपबन्धों के अधीन किसी न्यायालय या प्रायोग के व्यय, अथवा जिस व्यक्ति ने इस संविधान के प्रारम्भ से पूर्व भारत में सम्राट के अधीन, अथवा ऐसे प्रारम्भ के पश्चात संघ के या किसी राज्य के कार्यों के सम्बन्ध में सेवा की है उसको या उसके बारे में देय निवत्ति-वेतन भारत की संचित निधि अथवा राज्यों की संचित निधि पर भारित हैं, वहां यदि—

(क) भारत की संचित निधि पर भारित होने की अवस्था में वह न्यायालय या आयोग किसी राज्य को किन्हीं पृथक आवश्यकताओं में से किसी की पूर्ति करता हो अथवा उस व्यक्ति ने राज्य के कार्यों के सम्बन्ध में पूर्णतः या अंशतः सेवा की हो, अथवा
(ख) राज्य की संचित निधि पर भारित होने की अवस्था में न्यायालय या आयोग संघ की या अन्य राज्य की पृथक् आवश्यकताओं में से किसी की पूर्ति करता हो अथवा उस व्यक्ति ने संघ या अन्य राज्य के कार्यों के सम्बन्ध में पूर्णतः या अंशत: सेवा की हो,

तो उस राज्य की संचित निधि पर अथवा यथास्थिति भारत की संचित निधि या अन्य राज्य की संचित निधि पर, व्यय विषयक या निवृत्ति-वेतन विषयक उतना अंशदान, जितना कि करार हो, अथवा करार के अभाव में उतना अंशदान, जितना कि भारत के मुख्य न्यायाधिपति द्वारा नियुक्त मध्यस्थ निर्धारित करे, भारित होगा और उस निधि से दिया जायेगा। [ १०८ ]

भाग १२—वित्त, सम्पत्ति, संविदाएं और व्यवहार-वाद
अनु० २६०क—२६३

कुछ देवस्वम
निधियों को
वार्षिक देनगी
[११][२९०क. छियालीस लाख पचास हजार रुपये की राशि केरल राज्य की संचित निधि पर प्रत्येक वर्ष भारित होगी और उस निधि में से तिरुवांकुर देवस्वम निधि को दी जायेगी, और तेरह लाख पचास हजार रुपये की राशि मद्रास राज्य की संचित निधि पर प्रत्येक वर्ष भारित होगी और उस निधि से तिरुवांकूर कोचीन राज्य से १९५६ के नवम्बर के प्रथम दिन उस राज्य को मक्रांत राज्य-क्षेत्रों में के हिन्दू मंदिरों और पवित्र स्थानों के पोषण के लिए उस राज्य में स्थापित देवस्वम निधि को दी जायेगी।

शासकों की निजी
थैली की राशि
[१२]२९१. [१३]* * * इस संविधान के प्रारम्भ से पहिले जहां किसी देशी राज्य के शासक द्वारा की गई किसी प्रसंविदा या करार के अधीन ऐसे राज्य के शासक को निजी थैली के रूप में किन्हीं राशियों की कर मुक्त देनगी भारत डोमीनियन की सरकार द्वारा प्रत्याभूत या आश्वासित की गई है वहां—

(क) वैसी राशियां भारत की संचित निधि पर भारित होंगी तथा उस से दी जायेंगी; तथा
(ख) किसी शासक को दी गई वैसी राशियां, सभी आय पर करों से विमुक्त होंगी।

[१४]*

अध्याय २—उधार लेना

भारत सरकार
द्वारा उधार लेना
२९२. भारत की संचित निधि की प्रतिभति पर ऐसी सीमाओं के भीतर, यदि कोई हों, जिन्हें संसद् समय समय पर विधि द्वारा नियत करे, उधार लेने तक तथा ऐसी सीमाओं के भीतर, यदि कोई हों, जिन्हें इस प्रकार नियत किया जाये, प्रत्याभूति देने तक, संघ की कार्यपालिका शक्ति विस्तृत है।

राज्यों द्वारा उधार
लेना
२९३. (१) इस अनुच्छेद के उपबन्धों के अधीन रहते हुए राज्य की कार्य-पालिका शक्ति, उस राज्य की संचित निधि की प्रतिभूति पर, ऐसी सीमाओं के लेना भीतर, यदि कोई हों, जिन्हें ऐसे राज्य का विधानमंडल समय समय पर विधि द्वारा नियत करे, भारत राज्य-क्षेत्र के भीतर उधार लेने तक तथा ऐसी सीमाओं के भीतर, यदि कोई हों, जिन्हें इस प्रकार नियत किया जाये, प्रत्याभूति देने तक विस्तृत है।

(२) भारत सरकार ऐसी शर्तों के साथ, जैसी कि संसद् द्वारा निर्मित किसी विधि के द्वारा या अधीन रखी जायें, किसी राज्य को उधार दे सकेगी, अथवा जहां तक इस संविधान के अनुच्छेद २९२ के अनुसार निमत किन्हीं सीमाओं का उलँघन न होता हो वहां तक ऐसे किसी राज्य के द्वारा लिये गये उधारो के बारे में प्रत्याभूति दे सकेगी तथा, जो राशियां ऐसे उधार देने के प्रयोजन के लिये आवश्यक हों, वे भारत की संचित निधि पर भारित होंगी। [ १०९ ]

'भाग १२—वित्त, सम्पत्ति, संविदाए और व्यवहार-वाद
अनु० २९३-२९५'

(३) यदि किसी ऐसे उधार का, जिसे भारत सरकार ने या उसकी पूर्वाधिकारी सरकार ने उस राज्य को दिया था अथवा जिसके विषय में भारत सरकार ने अथवा उसकी पूर्वाधिकारी सरकार ने प्रत्याभूति दी थी, कोई भाग देना शेष है तो बह राज्य भारत सरकार की सम्मति के बिना कोई उधार न ले सकेगा।

(४) खंड (३) के अनुसार सम्मति उन शर्तों के अधीन, यदि कोई हों, दी जा सकेगी, जिन्हें भारत सरकार पारोपित करना उचित समझे।

अध्याय ३.—सम्पत्ति, संविदा, अधिकार, दायित्व, प्राभार
और व्यवहार-वाद

कतिपय अव-
स्थानों में सम्पत्ति,
आस्तियों, अधि-
कारों, दायित्वों
और आभारों का
उत्तराधिकार
२९४. इस संविधान के प्रारम्भ से ले कर—

(क) जो सम्पत्ति और आस्तियां भारत डोमीनियन की सरकार के प्रयोजनों के लिये सम्राट में ऐसे प्रारम्भ से ठीक पहिले निहित थीं तथा जो सम्पत्ति और आस्तियां प्रत्येक राज्यपाल प्रान्त की सरकार के प्रयोजनों के लिये सम्राट में ऐसे प्रारम्भ से ठीक पहिले निहित थीं, वे सब इस संविधान के प्रारम्भ से पहिले पाकिस्तान की डोमीनियन के अथवा पश्चिमी बंगाल, पूर्वी बंगाल, पश्चिमी पंजाब और पूर्वी पंजाब के प्रान्तों के सृजन के कारण किये गये या किये जाने वाले किसी समायोजन के अधीन रह कर क्रमशः संघ और तत्स्थानी राज्य में निहित होंगी; तथा
(ख) जो अधिकार, दायित्व और आभार भारत डोमीनियन की सरकार के तथा प्रत्येक राज्यपाल प्रान्त की सरकार के थे, चाहे फिर वे किसी संविदा से या अन्यथा उद्भूत हुए हों, वे सब इस संविधान के प्रारम्भ से पहिले पाकिस्तान की डोमीनियन के अथवा पश्चिमी बंगाल, पूर्वी बंगाल, पश्चिमी पंजाब और पूर्वी पंजाब के प्रान्तों के सृजन के कारण किये गये या किये जाने वाले किसी समायोजन के अधीन रह कर क्रमशः भारत सरकार तथा प्रत्येक तत्स्थानी राज्य की सरकार के अधिकार, दायित्व और आभार होंगी।

अन्य अवस्थाओं में
सम्पत्ति, आस्तियां,
अधिकारों,
दायित्वों और
आभारों का उत्त-
राधिकार
[१५]२९५. (१) इस संविधान के प्रारम्भ से लेकर—

(क) जो सम्पत्तियां और आस्तियां प्रथम अनुसूची के भाग (ख) में उल्लिखित राज्य के तत्स्थानी किसी देशी राज्य में ऐसे प्रारम्भ से ठीक पहिले निहित थीं वे सब ऐसे करार के अधीन रह कर, जैसा कि उस बारे में भारत सरकार उस राज्य की सरकार से करे, संघ में निहित होंगी यदि जिन प्रयोजनों के लिये ऐसी सम्पत्तियां और आस्तियां ऐसे प्रारम्भ से ठीक पहिले संधृत थीं, वे तत्पश्चात संघ-सूची में प्रगणित विषयों में से किसी से सम्बद्ध संघ के प्रयोजन हों, तथा
[ ११० ]

भाग १२—वित्त, सम्पत्ति, संविदाएं और व्यवहार-वाद—
अनु० २६५-२६८

(ख) जो अधिकार, दायित्व और आभार प्रथम अनुसूची के भाग (ख) में उल्लिखित राज्य के तत्स्थानी किसी देशी राज्य की सरकार के थे चाहे फिर वे किसी संविदा से या अन्यथा उद्भत हए हों, वे सब ऐसे करार के अधीन रह कर जैसा कि उस बारे में भारत सरकार उस राज्य की सरकार से करे, भारत सरकार के अधिकार, दायित्व और आभार होंगे यदि जिन प्रयोजनों के लिये ऐसे प्रारम्भ से ठीक पहिले ऐसे अधिकार अर्जित किये गये थे अथवा दायित्व या आभार लिये गये थे, वे संघ-सूची में प्रगणित विषयों में से किसी से सम्बद्ध भारत सरकार के प्रयोजन हों।

(२) उपरोक्त के अधीन रह कर, प्रथम अनुसूची के भाग (ख) में उल्लिखित प्रत्येक राज्य की सरकार, उन सब सम्पत्ति और आस्तियों, तथा संविदा से या अन्यथा उदभूत सब अधिकारों, दायित्वों और आभारों के बारे में, जो खंड (१) में निर्दिष्ट से भिन्न हैं, तत्स्थानी देशी राज्य की इस संविधान के प्रारम्भ से लेकर उत्तराधिकारिणी होगी।

राजगामी, व्यपगत
या स्वामिहीनत्व
होने से प्रोदभूत
सम्पत्ति
२९६. एतत्पश्चात् उपबन्धित के अधीन रहकर यदि यह संविधान प्रवर्तन में न आया होता तो जो कोई सम्पनि भारत राज्यक्षेत्र में राजगामी या व्यपगत होने से, या अधिकारयुक्त स्वामी के अभाव में स्वामिहीन-रिक्थ के रूप में यथास्थिति सम्राट को अथवा देशी राज्य के शासक को प्रोद्भत हई होती, वह सम्पत्ति यदि राज्य में स्थित हो तो ऐसे राज्य में और किसी अन्य अवस्था में संघ में निहित होगी:

परन्तु कोई सम्पत्ति, जो उस तारीख को, जब कि वह इस प्रकार सम्राट को अथवा देशी राज्य के शासक को प्रोदभूत हई होती भारत सरकार के अथवा किसी राज्य की सरकार के कब्जे या नियंत्रण में थी, तब यदि उसका जिन प्रयोजनों के लिये उस समय उपयोग या धारण था वे प्रयोजन संघ के थे तो वह संघ में और यदि वे प्रयोजन किसी राज्य के थे तो वह उस राज्य में निहित होगी।

व्याख्या—इस अनुच्छेद में "शासक" और "देशी राज्य" पदों का वही अर्थ होगा जो अनुच्छेद ३६३ में है।

जल-प्रांगण में स्थित
मूल्यवान चीजें
संघ में निहित
होंगी
२९७. भारत के जल-प्रांगण में, समद्र के नीचे की सब भूमियां, खनिज तथा अन्य मूल्यवान चीजें संघ में निहित होंगी तथा संघ के प्रयोजनों के लिये धारण की जायेंगी।

 
 

व्यापार आदि करने
कि शक्ति
[१६][२९८. संघ की और प्रत्येक राज्य की कार्यपालिका शक्ति किसी व्यापार या कारबार के करने और किसी प्रयोजन के लिये सम्पत्ति के अर्जन, धारण और व्ययन तथा संविदाकरण तक विस्तृत होगी;

परन्तु—

क) संघ की उक्त कार्यपालिका शक्ति, वहां तक जहां तक कि ऐसा व्यापार या कारबार या ऐसा प्रयोजन वह नहीं है जिसके संबंध में संसद् विधियां बना सकती है, प्रत्येक राज्य में उस राज्य द्वारा विधान के अध्यधीन होगी, और
[ १११ ]

भाग १२—वित्त, सम्पत्ति, संविदाएं, और व्यवहार-वाद—
अनु० २९८-३००

(ख) प्रत्येक राज्य की उक्त कार्यपालिका शक्ति, वहां तक जहां तक कि ऐसा व्यापार या कारबार या ऐसा प्रयोजन वह नहीं है जिसके संबंध में उस राज्य का विधानमंडल विधियां बना सकता है, संसद द्वारा विधान के अध्यधीन होगी।]

संविदाएं [१७]२९९. (१) संघ की, अथवा राज्य की कार्यपालिका शक्ति के प्रयोग में की गई सब संविदाएं, यथास्थिति राष्ट्रपति द्वारा अथवा उस राज्य के राज्यपाल [१८]* * * द्वारा की गई कही जायेंगी तथा वे सब संविदाएं और सम्पत्ति-संबंधी हस्तान्तरण-पत्र, जो उस शक्ति के पालन में किये जायें राष्ट्रपति या राज्यपाल [१८]* * * की ओर से उस के द्वारा निर्देशित या प्राधिकृत व्यक्तियों द्वाग और रीति के अनुसार लिखे जायेंगे।

(२) न तो राष्ट्रपति और न किसी राज्य का राज्यपाल [१९]* * * इस संविधान के प्रयोजनों के हेतु, अथवा भारत सरकार विषयक इससे पूर्व प्रवर्तित किमी अधिनियमिति के प्रयोजनों के हेतु की गई अथवा लिखी गई किसी संविदा या हस्तान्तरण-पत्र के बारे में वैयक्तिक रूप से उत्तरदायी होगा और न वैसा कोई व्यक्ति ही इसके बारे में वैयक्तिक रूप से उत्तरदायी होगा जिसने उनमें से किसी की ओर से ऐसी संविदा या हस्तान्तरण-पत्र किया या लिखा हो।

व्यवहार-वाद और
कार्यवाहियां
३००. (१) भारत संघ के नाम से, भारत मरकार व्यवहारवाद ला सकेगी अथवा उसके विरुद्ध व्यवहार-वाद लाया जा सकेगा तथा किसी राज्य के नाम से, उस कार्यवाहियां गज्य की सरकार व्यवहार-वाद ला सकेगी अथवा उम के विरुद्ध व्यवहार-वाद लाया जा सकेगा, तथा इस संविधान मे दी हई शक्तियों के आधार पर, संसद द्वारा अथवा एसे राज्य के विधानमंडल द्वारा, जो अधिनियम बनाया जाये, उसके उपबन्धों के अधीन रहते हए वे अपने अपने कार्यों के बारे में उसी प्रकार व्यवहार-वाद ला सकेंगे, अथवा उन के विरुद्ध उमी प्रकार व्यवहारवाद लाया जा सकेगा जिस प्रकार भारत डोमीनियन और तत्स्थानी प्रान्त अथवा तत्स्थानी देशी राज्य-व्यवहार-वाद ला सकते अथवा उनके विरुद्ध व्यवहार-वाद लाया जा सकता, यदि इस संविधान को अधिनियम का रूप न दिया गया होता।

(२) यदि इस मंविधान के प्रारंभ पर—

(क) कोई ऐसी विधि-कार्यवाहियां लंबित हैं जिसम भारत डोमीनियन एक पक्ष है, तो उन कार्यवाहियों में उक्त डोमीनियम के स्थान में भारत संघ समझा जायेगा, तथा
(ख) कोई ऐसी विधि-कार्यवाहियां लंबित हैं जिनमें कोई प्रान्त या कोई देशी राज्य एक पक्ष है, तो उन कार्यवाहियों में उस प्रान्त या देशी गज्य के स्थान में तत्स्थानी राज्य समझा जायेगा।

  1. संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा २९ और अनुसूची द्वारा मूल अनुच्छेद २६४ के स्थान पर रखा गया।
  2. जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू होने में अनुच्छेद २६६ में राज्यों या राज्य के प्रति निर्देशों का यह अर्थ न किया जाएगा कि वे जम्मू और कश्मीर राज्य के प्रति निर्देश हैं।
  3. यह खंड जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू न होगा।
  4. "या राजप्रमुख" शब्द संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा २९ और अनुसूची द्वारा लुप्त कर दिये गये।
  5. संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा २९ और अनुसूची द्वारा "प्रथम अनुसूची के भाग (ग) में उल्लिखित राज्यों" के स्थान पर रखे गए।
  6. संविधान (षष्ठ संशोधन) अधिनियम. १९५६. धारा ३ द्वारा अन्त:स्थापित।
  7. अनुच्छेद २७३, जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू न होगा।
  8. खंड (१) की व्याख्या संविधान (षष्ठ संशोधन), अधिनियम १९५६, धारा ४ द्वारा लुप्त कर दी गयी।
  9. उपरोक्त के ही द्वारा मूल खंड (२) और (३) के स्थान पर रखे गये।
  10. अनुच्छेद २९० जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू न होगा।
  11. संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा १९ द्वारा अन्तःस्थापित।
  12. अनुच्छेद २९१ जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू न होगा।
  13. कोष्ठक और अंक "१" संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा २९ और अनुसूची द्वारा लुप्त कर दिये गये।
  14. खंड (२) उपरोक्त के ही द्वारा लुप्त कर दिया गया।
  15. जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू होने में संविधान के प्रारम्भ के प्रति निर्देशों का ऐसे अर्थ किया जायेगा मानो कि वे संविधान (जम्मू और कश्मीर को लागू होना) आदेश १९५४ के प्रारम्भ अर्थात् १४ मई, १९५४ के प्रति निर्देश हैं।
  16. संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा २० द्वारा मूल अनुच्छेद २९८ के स्थान पर रखा गया।
  17. जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू होने में राज्य या राज्यों के प्रति निर्देशों का यह अर्थ न, किया जायेगा कि वे उस राज्य के प्रति निर्देश है।
  18. १८.० १८.१ "या राजप्रमुख" शब्द संविधान (सप्तम मंशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा २६ और अनसूची द्वारा लुप्त कर दिये गये।,
  19. "या राजप्रमुख" शब्द उपरोक्त के ही द्वारा लुप्त कर दिये गये।