भारत का संविधान/भाग १३

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भारत का संविधान  (1957) 
अनुवादक
राजेन्द्र प्रसाद

[ ११२ ] 

भाग १३
भारत के राज्य-क्षेत्र के भीतर व्यापार, वाणिज्य और समागम

व्यापार, वाणिज्य
और समागम की
स्वतंत्रता
३०१. इस भाग के अन्य उपबन्धों के अधीन रहते हुये भारत राज्य-क्षेत्र में सर्वत्र व्यापार, वाणिज्य और समागम अबाध होगा।

 

व्यापार, वाणिज्य
और समागम पर
निर्बन्धन लगाने
की संसद की
शक्ति
३०२. संसद् विधि द्वारा एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच अथवा भारत राज्य-क्षेत्र के किसी भाग के भीतर व्यापार, वाणिज्य या समागम की स्वतंत्रता पर ऐमें निर्बन्धन आरोपित कर सकेगी जैसे कि लोक-हित में अपेक्षित हों।

 
 

व्यापार और
वाणिज्य के विषय
में संघ और
राज्यों की विधा-
यिनी शक्तियों
पर निर्बन्धन
[१]३०३. (१) अनुच्छद ३०२ में किसी बात के होते हुये भी सप्तम अनुसूची की सूचियों में से किसी में व्यापार और वाणिज्य संबंधी किसी प्रविष्टि के आधार पर न तो संसद को, और न राज्य के विधानमंडल को, कोई ऐसी विधि बनाने की शक्ति होगी जो एक राज्य से दूसरे राज्य से अधिमान देती या दिया जाना प्राधिकृत करती है अथवा एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच में कोई विभेद करती या किया जाना प्राधिकृत करती है।

(२) खंड (१) में की कोई बात संसद् को ऐसी कोई विधि बनाने से न रोकेगी जो कोई ऐसा अधिमान देती या दिया जाना प्राधिकृत करती है अथवा काई ऐसा विभेद करती या किया जाना प्राधिकृत करती है, यदि ऐसी विधि द्वारा यह घोषित किया गया हो कि भारत राज्य-क्षेत्र के किसी भाग में वस्तुओं की दर्लभता से उत्पन्न किसी स्थिति से निबटने के प्रयोजन के लिये ऐसा करना आवश्यक है।

राज्यों के पारस्प-
रिक व्यापार,
वाणिज्य और
समागम पर निर्व-
न्धन
३०४. ३०१ या अनुच्छेद ३०३ में किसी बात के होते हुये भी राज्य का विधानमंडल द्वारा—

(क) अन्य राज्यों या [२][संघ राज्य-क्षत्रों] से आयात की गई वस्तुओं पर कोई ऐसा कर पारोपित कर सकेगा जो कि उस राज्य में निर्मित या उत्पादित वैसी ही वस्तुओं पर लगता हो किन्तु इस प्रकार कि उस से इस तरह आयात की गई वस्तुओं तथा ऐसी निर्मित या उत्पादित वस्तुओं के बीच कोई विभेद न हो ; तथा
(ख) उस राज्य के साथ या भीतर व्यापार, वाणिज्य और समागम की स्वतंत्रता पर ऐसे युक्तियुक्त निर्बन्धन आरोपित कर सकेगा जैसे कि लोक-हित में अपेक्षित हों:
परन्तु खंड (ख) के प्रयोजनों के लिये कोई विधेयक या संशोधन राष्ट्रपति को पूर्व मंजूरी के बिना राज्य के विधानमंडल में पुरःस्थापित या प्रस्तावित नहीं किया जायेगा। [ ११३ ]

भाग १३.—भारत के राज्य-क्षेत्र के भीतर व्यापार, वाणिज्य और समागम—
अनु० ३०५-३०७

वर्तमान विधियों
और राज्य एका-
धिपत्यों के लिए
उपबन्ध करने
वाली विधियों की
व्यावृत्ति
[३]३०५. अनच्छेद ३०१ और ३०३ की कोई बात किसी वर्तमान विधि के उपबन्धों पर, वहां तक के सिवाय जहां तक कि राष्ट्रपति आदेश द्वारा अन्यथा निदेश दे कोई प्रभाव न डालेगी; और अनुच्छेद ३०१ की कोई बात संविधान (चतर्थ संशोधन) अधिनियम, १९५५ के प्रारंभ से पूर्व निर्मित किसी विधि के प्रवर्तन पर वहां तक जहां तक कि वह विधि किसी ऐसे विषय से संबद्ध है जैसा कि अनच्छेद १९ के खंड (६) के उपखंड (ii) में निर्दीष्ट है, कोई प्रभाव न डालंगी या ऐसे किसी विषय से संबद्ध, जैसा कि अनुच्छेद १९ के खंड (६) के उपखंड (ii) में निर्दिष्ट है, कोई विधि बनाने से संसद् या किसी राज्य के विधानमंडल को न रोकेगी।]

३०६. [प्रथम अनुसूची के भाग (ख) में उल्लिखित कतिपय राज्यों की व्यापार और वाणिज्य पर निर्बन्धनों के आरोपण की शक्ति] संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा २९ और अनुसूची द्वारा निरसित।

अनुच्छेद ३०१ से
३०४ तक के
प्रयोजनों को
कार्यान्वित करने
के लिये प्राधि-
कारी की नियुक्ति
३०७. संसद विधि द्वारा ऐसे प्राधिकारी की नियुक्ति कर सकेगी जैसा कि वह सेअनच्छेद ३०१, ३०२, ३०३ और ३०४ के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिये समुचित समझे तथा इस प्रकार नियुक्त प्राधिकरी को ऐमी शक्तियां और ऐसे कर्तव्य सौंप सकेगी जैसे कि वह आवश्यक समझे।

  1. जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू होने में अनुच्छेद ३०३ के खंड (१) में ("सप्तम अनुसूची की सूचियों में से किसी में व्यापार और वाणिज्य संबंधी किसी प्रविष्टि के आधार पर" शब्द लुप्त कर दिये जायेंगे।
  2. संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा २९ और अनुसूची द्वारा अन्तःस्थापित।
  3. संविधान (चतुर्थ संशोधन ) अधिनियम, १९५५, धारा ४ द्वारा प्रतिस्थापित।