भारत का संविधान/भाग १४

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भारत का संविधान  (1957) 
अनुवादक
राजेन्द्र प्रसाद

[ ११४ ] 

भाग १४
संघ और राज्यों के अधीन सेवाएं
अध्याय १.—सेवाएं

३०८. इस भाग में जब तक प्रसंग से अन्यथा अपेक्षित न हो "राज्य" पद निर्बंधन [१][के अन्तर्गत जम्मू और कश्मीर राज्य नहीं है।

संघ या राज्य की
सेवा करने वाले
व्यक्तियों की भर्ती
तथा सेवा की
शर्ते
३०९. इस संविधान के उपबन्धों के अधीन रहते हये समुचित विधानमंडल के अधिनियम संघ या किसी राज्य के कार्यों से संबद्ध लोक-सेवायों और पदों के लिये भर्ती का, तथा नियुक्त व्यक्तियों की सेवा की शर्तों का, विनियमन कर सकेंगे :

परन्तु जब तक इस अनुच्छेद के अधीन समुचित विधानमंडल के अधिनियमके द्वारा या अधीन उस लिये उपबन्ध नहीं बनाये जाते तब तक यथास्थिति संघ केकार्यों से सम्बद्ध सेवाओं और पदों के बारे में राष्ट्रपति को, अथवा ऐसे व्यक्ति को,जिसे वह निर्देशित करे, तथा राज्य के कार्यों से सम्बद्ध सेवाओ और पदों के बारे में गज्य के राज्यपाल [२]* * * * को, अथवा ऐसे व्यक्ति को, जिसे वह निर्देशित करें, ऐसी सेवाओ और पदों के लिये भर्ती तथा नियुक्त व्यक्तियों की सेवा की शर्तों का विनि- यमन करने वाले नियमों के बनाने की क्षमता होगी तथा किनी ऐसे अधिनियम के उपबन्धों के अधीन रहते हये उम प्रकार निर्मित कोई नियम प्रभावी होंगे।

संघ या राज्यों की
सेवा करने वाले
व्यक्तियों की
पदावधि
३१०. (१) इस मंविधान द्वारा स्पष्टता पूर्वक उपवन्धित अवस्था को छोड़ कर प्रत्येक व्यक्ति जो संघ की प्रतिरक्षा सेवा या असैनिक मेवा का या अखिल भारतीय सेवा करने वाले संवा का सदस्य है, अथवा संघ के अधीन प्रतिरक्षा से संबंधित किसी पद को अथवा किसी असैनिक पद को धारण करता है, राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यन्त पद धारण करता है तथा प्रत्येक व्यक्ति, जो राज्य की असैनिक सेवा का सदस्य है अथवा राज्य के अधीन किसी असैनिक पद को धारण करता है, [३][राज्य के राज्यपाल] के प्रसाद पर्यन्त पद धारण करता है।

(२) इस बात के होते हुए भी कि संघ या राज्य के अधीन असैनिक पद को धारण करने वाला कोई व्यक्ति यथास्थिति राष्ट्रपति अथवा राज्य के राज्यपाल [२]* * * के प्रसाद पर्यन्त पद धारण करता है कोई संविदा, जिस के अधीन कोई व्यक्ति. जो प्रतिरक्षा सेवा या अखिल भारतीय सेवा अथवा मंघ या राज्य की असैनिक सेवा का सदस्य नहीं है, ऐसे किसी पद को धारण करने के लिये इस संविधान के अधीन नियुक्त होता है, यह उपबन्ध कर सकेगी कि यदि यथास्थिति राष्ट्रपति या राज्यपाल {{|sfn|"या राजप्रमुख" शब्द उपरोक्त के ही द्वारा लुप्त कर दिये गये।|}}* * * विशेष अर्हताओं वाले किसी व्यक्ति की सेवा को प्राप्त करने के लिये यह आवश्यक समझता है तो, यदि करार की हुई काला- वधि की समाप्ति से पहिले उस पद का अन्त कर दिया जाता है अथवा उस के द्वारा किये गये किसी अवचार से असम्बद्ध कारणों के लिये उस से पद रिक्त करने की अपेक्षा की जाती है तो, उसे प्रतिकर दिया जायेगा। [ ११५ ]

भाग १४—संघ और राज्यों के अधीन सेवाएं—
अनु॰३११-३१२

संघ या राज्य के
अधीन असैनिक
हैसियत से नौकरी
में लगे हुए
व्यक्तियों की पद-
च्युति,पद से हटाया
जाना, या पक्ति-
च्युत किया जाना
३११. (१) जो व्यक्ति संघ की असैनिक सेवा का या अखिल भारतीय सेवा का या राज्य की असैनिक सेवा का सदस्य है, अथवा संघ के या राज्य के अधीन असैनिक पद को धारण करता है, वह अपनी नियुक्ति करने वाले प्राधिकारी से निचले किसी प्राधिकारी द्वारा पदच्युत नहीं किया जायेगा अथवा पद से हटाया नहीं जायेगा।

(२) उपर्युक्त प्रकार का कोई व्यक्ति तब तक पदच्युत नहीं किया जायेगा अथवा पद से नहीं हटाया जायेगा, अथवा पंक्तिच्युत नहीं किया जायेगा. जब तक कि उस के बारे में प्रस्थापित की जाने वाली कार्यवाही के खिलाफ कारण दिखाने का युक्तियुक्त अवसर उसे न दे दिया गया हो:

परन्तु यह खंड वहां लागू न होगा—

(क) जहां कोई व्यक्ति ऐसे प्राचार के आधार पर पदच्युत किया गया या हटाया गया या पंक्तिच्युत किया गया है जिस के लिये दंड-दोषारोप पर वह सिद्धदोष हुआ है;
(ख) जहां किसी व्यक्ति को पदच्युत करने या पद से हटाने या पंक्तिच्युत करने की शक्ति रखने वाले किसी प्राधिकारी का समाधान हो जाता है कि किसी कारण से, जो उस प्राधिकारी द्वारा लेखबद्ध किया जायेगा, यह युक्तियुक्त रूप में व्यवहार्य नहीं है कि उस व्यक्ति को कारण दिखाने का अवसर दिया जाये; अथवा
(ग) जहां यथास्थिति राष्ट्रपति या राज्यपाल [४]**** का समाधान हो जाता है कि राज्य की सुरक्षा के हित में यह हटकर नहीं ह कि उस व्यक्ति को ऐसा अवसर दिया जाये।

(३) यदि कोई प्रश्न पैदा होता है कि क्या खंड (२) के अधीन किसी व्यक्ति को कारण दिखाने का अवसर देना युक्तियुक्त रूप में व्यवहार्य है या नहीं तो ऐसे व्यक्ति को यथास्थिति पदच्युत करने या पद से हटाने अथवा उसे पंक्तिच्युत करने की शक्तिवाले प्राधिकारी का उस पर विनिश्चय अंतिम होगा।

अखिल भारतीय
सेवाएं
३१२. (१) भाग ११ में किसी बात के होते हुये भी यदि राज्य-सभा ने उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों की दो तिहाई से अन्यून संख्या द्वारा समर्थित संकल्प द्वारा घोषित कर दिया है कि राष्ट्र-हित में ऐसा करना आवश्यक या इष्टकर है तो संसद् विधि द्वारा संघ और राज्यों के लिये सम्मिलित एक या अधिक अखिल भारतीय सेवाओं के सृजन के लिये उपबन्ध कर सकेगी तथा इस अध्याय के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुये किसी ऐसी सेवा के लिये भर्ती का तथा, नियुक्त व्यक्तियों की सेवा की शर्तों का, विनियमन कर सकेगी।

(२) इस संविधान के प्रारंभ पर भारत प्रशासन सेवा और भारत आरक्षी सेवा नाम से ज्ञात सेवायें इस अनुच्छेद के अधीन संसद् द्वारा सृजित सेवायें समझी जायेंगी।

अन्तर्वर्ती उपबन्ध

३१३. जब तक इस संविधान के अधीन इस लिये अन्य उपबन्ध नहीं किया जाता तब तक इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहिले सब प्रवृत्त विधियां, जो किसी ऐसी लोक-सेवा या किसी ऐसे पद को, जो इस संविधान के प्रारंभ के पश्चात् अखिल भारतीय सेवा के अथवा संघ या राज्य के अधीन सेवा या पद के रूप में बने रहते हैं, लागू हों, वहां तक प्रवृत्त बनी रहेंगी जहां तक कि वे इस संविधान के उपबन्धों से संगत हों। [ ११६ ]

भाग १४—संघ और राज्यों के अधीन सेवाएं
अनु० ३१४–३१६

कतिपय सेवाओं के
वर्तमान पदाधिका-
रियों के संरक्षण के
लिये उपबन्ध
३१४. इस संविधान द्वारा स्पष्टता पूर्वक उपबन्धित अवस्था को छोड कर प्रत्येक व्यक्ति को, जो सेक्रेटरी आफ स्टेट या सेक्रेटरी आफ स्टेट इन कौंसिल द्वारा भारत में सम्राट की किमीसी असैनिक सेवा में नियुक्त होने के पश्चात इस संविधान के प्रारंभ पर और पश्चात भारत की या किमी राज्य की सरकार के अधीन सेवा में बना रहता है, भारत सरकार या राज्य की सरकार से, जिस की सेवा वह समय समय पर करता रहता है, पारिश्रमिक छुट्टी और निवृत्ति-वेतन के बारे में उन्हीं सेवा-शर्तों का, तथा अनुशासनीय विषयों के बारे में उन्हीं अधिकारों का अथवा उन के तुल्य ऐसे अधिकारों का, जैसा कि परिवर्तित परिस्थितियों में संभव हों, हक्क होगा जिन का कि उस व्यक्ति को ऐसे प्रारंभ मे ठीक पहिले हक्क था।

अध्याय २—लोक सेवा-पायोग

संघ और राज्यों के
लिये लोकसेवा-
आयोग
३१५. (१) इस अनुच्छेद के उपबन्धों के अधीन रहते हुए संघ के लिये एक लोकसेवा-आयोग तथा प्रत्येक राज्य के लिये एक लोकसेवा-आयोग होगा।

(२) दो या अधिक राज्य यह करार कर सकेंगे कि राज्यों के उस समूह के लिए एक ही लोकसेवा-आयोग होगा तथा यदि उस उद्देश्य का संकल्प उन राज्यों में से प्रत्येक के विधानमंडल के सदन द्वारा अथवा जहां दो सदन हैं वहां प्रत्येक सदन द्वारा पारित कर दिया जाता है तो संसद् उन राज्यों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये विधि द्वारा संयुक्त राज्य लोकसेवा-पायोग (जो इस अध्याय में "संयुक्त आयोग" के नाम से निर्दिष्ट है) की नियुक्ति का उपबन्ध कर सकेगी।

(३) उपरोक्त विधि में ऐसे प्रासंगिक तथा आनुपंगिक उपबन्ध भी अन्तर्विष्ट हो सकेंगे जैसे कि उस विधि के प्रयोजनों को सिद्ध करने के लिये आवश्यक या वांछनीय हों।

(४) यदि किसी राज्य का राज्यपाल [५]*** संघ के लोकसेवा आयोग से ऐसा करने की प्रार्थना करे तो, राष्ट्रपति के अनुमोदन से, वह उस राज्य की सब या किन्हीं आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये कार्य करना स्वीकार कर सकेगा।

(५) यदि प्रसंग से अन्यथा अपेक्षित न हो तो इस संविधान में संघ के लोक सेवा-पायोग अथवा किसी राज्य के लोकसेवा-आयोग के निर्देशों को ऐसे आयोग के प्रति निर्देश समझा जायेगा जो प्रश्नास्पद किसी विशेष विषय के बारे में यथास्थिति संघ की अथवा राज्य की आवश्यकताओं की पूर्ति करता हो।

सदस्यों की नियुक्ति
तथा पदावधि
३१६. (१) लोकसेवा आयोग के अध्यक्ष और अन्य सदस्यों की नियुक्ति, यदि वह संघ-आयोग या संयुक्त आयोग है तो, राष्ट्रपति द्वारा तथा यदि वह राज्य-आयोग है तो, राज्य के राज्यपाल [५]*** द्वारा की जायेगी:

परन्तु प्रत्येक लोकसेवा-आयोग के सदस्यों में से यथाशक्य निकटतम आधे ऐसे व्यक्ति होंगे जो अपनी अपनी नियुक्तियों की तारीख पर भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार के अधीन कम से कम दस वर्ष तक पद धारण कर चुके हैं तथा उक्त दस वर्ष की कालावधि की संगणना में ऐसी कालावधि भी सम्मिलित होगी, जिस में इस संविधान के प्रारम्भ से पूर्व किसी व्यक्ति ने भारत के सम्राट् के अधीन या देशी राज्य के अधीन पद धारण किया है। [ ११७ ]

भाग १४-संघ और राज्यों के अधीन सेवाएं
अनु० ३१६-३१७

(२) लोकसेवा-प्रायोग का सदस्य, अपने पद-ग्रहण की तारीख से छः वर्ष की अवधि तक अथवा यदि वह संघ-आयोग है तो, पैंसठ वर्ष की आयु को प्राप्त होने तक, तथा यदि वह राज्य-आयोग या संयुक्त आयोग है तो, साठ वर्ष की आयु को प्राप्त होने तक, जो भी इन में से पहिले हो, अपना पद धारण करेगा:

परन्तु—

(क) लोकसेवा-आयोग का कोई सदस्य, यदि वह संघ-आयोग या संयुक्त आयोग है तो, राष्ट्रपति को, तथा यदि वह, राज्य-आयोग है तो, राज्य के राज्यपाल [६]*** को सम्बोधित अपने हस्ताक्षर सहित लख द्वारा पद को त्याग सकेगा;
(ख) लोकसेवा-आयोग का कोई सदस्य अपने पद से अनुच्छेद ३१७ के खंड (१) या खंड (३) में उपबन्धित रीति से हटाया जा सकेगा।

(३) कोई व्यक्ति, जो लोकसेवा-आयोग के सदस्य के रूप में पद धारण करता है, अपनी पदावधि की समाप्ति पर उस पद पर पुननियुक्ति के लिये अपात्र होगा।

लोकसेवा-आयोग
के किसी सदस्य
का हटाया जाना
या निलम्बित
किया जाना
३१७. (१) खंड (३) के उपबन्धों के अधीन रहते हुए लोकसेवा आयोग का सभापति या अन्य कोई सदस्य अपने पद से केवल राष्ट्रपति द्वारा कदाचार के आधार पर दिये गये उस आदेश पर ही हटाया जायेगा, जो कि उच्चतमन्यायालय से राष्ट्रपति द्वारा पृच्छा किये जाने पर उस न्यायालय द्वारा अनुच्छेद १४५ के. अधीन उस लिये विहित प्रक्रिया के अनुसार की गई जांच पर, उस न्यायालय द्वारा किये गये इस प्रतिवेदन के पश्चात, कि यथास्थिति सभापति या ऐसे किसी सदस्य को, ऐसे किसी आधार पर हटा दिया जाये, दिया गया है ।

(२) आयोग के सभापति या अन्य किसी सदस्य को, जिस के सम्बन्ध में खंड (१) के अधीन उच्चतमन्यायालय से पृच्छा की गई है, राष्ट्रपति, यदि वह संघ- आयोग या संयुक्त आयोग है, तथा राज्यपाल [६]*** यदि वह राज्य-यायोग है, उस को पद से तब तक के लिये निलम्बित कर सकेगा जब तक कि ऐसी पृच्छा की गई बात पर उच्चतमन्यायालय के प्रतिवेदन के मिलने पर राष्ट्रपति अपना आदेश न दे।

(३) खंड (१) में किसी बात के होते हुए भी यदि यथास्थिति लोकसेवा-आयोग का सभापति या कोई दूसरा सदस्य—

(क) दिवालिया न्यायनिर्णीत हो जाता है, अथवा
(ख) अपनी पदावधि में अपने पद के कर्तव्यों से बाहर कोई वैतनिक नौकरी करता है; अथवा
(ग) राष्ट्रपति की राय में मानसिक या शारीरिक दौर्बल्य के कारण अपने पद पर रहे पाने के लिये अयोग्य है,
तो सभापति या ऐसे अन्य सदस्य को राष्ट्रपति आदेश द्वारा अपने पद से हटा सकेगा। [ ११८ ]

भाग १४-संघ और राज्यों के अधीन सेवाएं—
अनु० ३१७--३२०

(४) यदि लोकसेवा-आयोग का सभापति या अन्य कोई सदस्य भारत सरकार के या राज्य की सरकार के द्वारा, या ओर की गई किसी संविदा या करार में, निगमित समवाय के सदस्य के नाते तथा उस के अन्य सदस्यों के साथ साथ के सिवाय, किसी प्रकार से भी संपृक्त या हित-सम्बद्ध है या हो जाता है अथवा किसी प्रकार से उस के लाभ में अथवा तदुत्पन्न किसी फायदे या उपलब्धि में भाग लेता है, तो वह खंड (१) के प्रयोजनों के लिये कदाचार का अपराधी समझा जायेगा।

आयोग के सदस्यों
तथा कर्मचारी-
वन्द की सेवाओं
की शर्तों के बारे
में विनियम बनाने
की शक्ति
३१८. संघ-आयोग या संयुक्त आयोग के बारे में राष्ट्रपति तथा राज्य-आयोग के बारे में उस राज्य का राज्यपाल [७]* * * विनियमों द्वारा—

(क) प्रायोग के सदस्यों की संख्या तथा उन की सेवानों की शर्तों का निर्धारण कर सकेगा; तथा
(ख) प्रायोग के कर्मचारी-वृन्द के सदस्यों की संख्या के तथा उन की सेवा की शर्तों के सम्बन्ध में उपबन्ध कर सकेगा:

परन्तु लोकसेवा-आयोग के सदस्य की सेवा की शर्तों में उस की नियुक्ति के पश्चात उस को अलाभकारी परिवर्तन न किया जायेगा।

आयोग के सदस्यों
द्वारा ऐसे सदस्य
न रहने पर पदों
के धारण के
सम्बन्ध में प्रति-
षेध
३१९. पद पर न रहने पर—

(क) संघ लोकसेवा-आयोग का सभापति भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार के अधीन किसी भी और नौकरी के लिये अपात्र होगा;
(ख) राज्य के लोकसेवा-आयोग का सभापति संघ-लोकसेवा आयोग के सभापति या अन्य सदस्य के रूप में अथवा किसी अन्य राज्य के लोकसेवा-आयोग के सभापति के रूप में नियुक्त होने का पात्र होगा, किन्तु भारत सरकार के या किसी राज्य की सरकार के अधीन या किसी अन्य नौकरी के लिये पात्र न होगा;
(ग) संघ-लोकसेवा आयोग के सभापति से अतिरिक्त कोई अन्य सदस्य संघ-लोकसेवा आयोग के सभापति के रूप में अथवा राज्य-लोकसेवा-आयोग के सभापति के रूप में नियुक्त होने का पात्र होगा, किन्तु भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार के अधीन किसी अन्य नौकरी के लिये पात्र न होगा;
(घ) किसी राज्य के लोकसेवा-आयोग के सभापति से अतिरिक्त अन्य कोई सदस्य संघ-लोकसेवा-आयोग के सभापति या किसी अन्य सदस्य के रूप में अथवा उसी, या किसी अन्य, राज्य-लोकसेवा-आयोग के सभापति के रूप में नियुक्त होने का पात्र होगा, किन्तु भारत सरकार के या किसी राज्य की सरकार के अधीन किसी अन्य नौकरी के लिये पात्र न होगा।

लोकसेवा आयोगों
के कृत्य

३२०. (१) संघ तथा राज्य के लोकसेवा-आयोगों का कर्तव्य होगा कि क्रमशः संघ की सेवामों और राज्य की सेवाओं में नियुक्तियों के लिये परीक्षाओं का संचालन करे। [ ११९ ]

भाग १४—संघ और राज्यों के अधीन सेवाएं—अनु० ३२०

(२) यदि संघ-लोकसेवा आयोग से कोई दो या अधिक राज्य ऐसा करने की प्रार्थना करें तो उस का यह भी कर्तव्य होगा कि ऐसी किन्हीं सेवाओं के लिये, जिन के लिये विशेष अर्हता वाले अभ्यर्थी अपेक्षित हैं, मिली जली भर्ती की योजनाओं के बनाने तथा प्रवर्तन में लाने के लिये उन राज्यों की सहायता करे।

(३) यथास्थिति संघ-लोकसेवा-आयोग या राज्य-लोकसेवा-आयोग से—

(क) असैनिक सेवाओं में और असैनिक पदों के लिये भर्ती की रीतियों से सम्बद्ध समस्त विषयों पर,
(ख) असैनिक सेवाओं और पदों पर नियक्ति करने के, तथा एक सेवा से दूसरी सेवा में पदोन्नति और बदली करने के, तथा अभ्यर्थियों की ऐसी नियुक्ति, पदोन्नति अथवा बदली की उपयुक्तता के बारे में अनुसरण किये जाने वाले सिद्धांतों पर,
(ग) ऐसे व्यक्ति पर, जो भारत सरकार अथवा किसी राज्य की सरकार की असैनिक हैसियत से सेवा कर रहा है, प्रभाव डालने वाले अनुशासन विषयों से जो अभ्यावेदन या याचिकाएं सम्बद्ध हैं उन के सहित समस्त ऐसे अनुशासन विषयों पर,
(घ) ऐसे व्यक्ति द्वारा कृत, जो भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार के अधीन या भारत के सम्राट के अधीन या देशी राज्य की सरकार के अधीन असैनिक हैसियत से सेवा कर रह है या कर चुका है, अथवा वैसे व्यक्ति के संबंध में कृत, जो कोई दावा है कि अपने कर्तव्य-पालन में किये गये, या कर्तमभिप्रेत कार्यों के सम्बन्ध में उसके विरुद्ध चलाई गई किन्हीं विधि-कार्यवाहियों में जो खर्चा उसे अपनी प्रतिरक्षा में करना पड़ा है वह यथास्थिति भारत की संचित निधि में से या राज्य की संचित निधि में से दिया जाना चाहिये उस दावे पर,
(ङ) भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार या सम्राट् के अधीन अथवा किसी देशी राज्य की सरकार के अधीन असैनिक हैसियत से सेवा करते समय किसी व्यक्ति को हुई क्षति के बारे में निवृत्ति वेतन दिये जाने के लिये किसी दावे पर तथा ऐसी दी जाने वाली राशि क्या हो, इस प्रश्न पर,

परामर्श किया जायेगा, तथा इस प्रकार उन से पृच्छा किये हुए किसी विषय पर तथा किसी अन्य विषय पर, जिस पर यथास्थिति राष्ट्रपति अथवा उस राज्य का राज्यपाल [८]*** उन से पृच्छा करे, परामर्श देने का लोकसेवा आयोग का कर्तव्य होगा।

परन्तु अखिल भारतीय सेवाओं के बारे में तथा संघ कार्यों से संसक्त अन्य सेवाओं और पदों के बारे में भी राष्ट्रपति तथा राज्य के कार्यों से संसक्त अन्य सेवाओं और पदों के बारे में [९][राज्यपाल] उन विषयों का उल्लेख करने वाले विनियम बना सकेगा, जिनमें साधारणतया अथवा किसी विशेष वर्ग के मामले में, अथवा किन्हीं विशेष परिस्थितियों में, लोकसेवा आयोग से परामर्श किया जाना आवश्यक न होगा। [ १२० ]

भाग १४—संघ और राज्यों के अधीन सेवाएं—
अनु० ३२०—३२३

(४) खंड (३) की किसी बात से यह अपेक्षा न होगी कि लोकसेवा-आयोग से उस रीति के बारे में परामर्श किया जाये जिससे कि अनुच्छेद १६ के खंड (४) में निर्दिष्ट कोई उपबन्ध बनाया जाना है अथवा जिस रीति से कि अनुच्छेद २३५ के उपबन्धों को प्रभाव दिया जाना है।

(५) खंड (३) के परन्तुक के अधीन राष्ट्रपति अथवा किसी राज्य के राज्यपाल [१०]*** द्वारा बनाये गये सब विनियम उन के बनाये जाने के पश्चात् यथासंभव शीघ्र यथास्थिति संसद के प्रत्येक सदन, अथवा राज्य के विधानमंडल के सदन या प्रत्येक सदन के समक्ष चौदह दिन से अन्यून समय के लिये रखे जायेंगे, तथा निरसन या संशोधन द्वारा किये गये ऐसे रूपभेदों के अधीन होंगे जैसे कि संसद् के दोनों सदन अथवा उस राज्य के विधानमंडल का सदन या दोनों सदन उस सत्र में करें जिस में कि वे इस प्रकार रखे गये हों।

लोकसेवा-पायोगों
के कृत्योंके विस्तार
की शक्ति
३२१. यथास्थिनि संसद द्वारा निर्मित अथवा राज्य के विधानमंडल द्वारा निर्मिन कोई अधिनियम संघ-लोकसेवा-आयोग या राज्य-लोकसेवा-आयोग द्वारा संघ की या राज्य की सेवाओ के बारे में, तथा किसी स्थानीय प्राधिकारी अथवा विधि द्वारा गठित अन्य निगम-निकाय अथवा किसी सार्वजनिक संस्था की सेवाओ के बारे में भी अतिरिक्त कृत्यों के प्रयोग के लिये उपबन्ध कर सकेगा।

लोकसेवा-पायोगों के
व्यय
३२२. संध के, या राज्य के, लोकसेवा-आयोग के व्यय, जिन के अन्तर्गत आयोग के सदस्यों या कर्मचारी-वृन्द को, या के विषय में, दिये जाने वाले कोई वेतन, भत्ते और निवृत्ति-वेतन भी हैं, यथास्थिति भारत की संचित निधि या गज्य की संचित निधि पर भारित होंगे।

लोकसेवा-पायोगों के
प्रतिवेदन
३२३. (१) संघ-आयोग का कर्तव्य होगा कि राष्ट्रपति को आयोग द्वार किये गये काम के बारे में प्रतिवर्ष प्रतिवेतन दे, तथा ऐसे प्रतिवेदन के मिलने पर राष्ट्रपति उन मामलों के बारे में, यदि कोई हों, जिन में कि आयोग का परामर्श स्वीकार नहीं किया गया, ऐसी अस्वीकृति के लिये कारणों को स्पष्ट करने वाले ज्ञापन के सहित उस प्रतिवेदन की प्रतिलिपि संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवायेगा।

(2) राज्य-आयोग का कर्तव्य होगा कि राज्य के राज्यपाल [१०]*** को आयोग द्वारा किये गये काम के बारे में प्रतिवर्ष प्रतिवेदन दे तथा संयुक्त आयोग का कर्तव्य होगा कि ऐसे राज्यों में से प्रत्येक के, जिन की आश्यकताओं की पूर्ति संयुक्त आयोग द्वारा की जाती है, राज्यपाल [१०]*** को उस राज्य के सम्बन्ध में आयोग द्वारा किये गये काम के बारे में प्रतिवर्ष प्रतिवेदन दे तथा इन में से प्रत्येक अवस्था में ऐसे प्रतिवेदन के मिलने पर [११][राज्यपाल] उन मामलों के बारे में , यदि कोई हों, जिन में कि आयोग का परामर्श स्वीकार नहीं किया गया है, ऐसी अस्वीकृति के लिये कारणों को स्पष्ट करने वाले ज्ञापन के सहित उस प्रतिवेदन की प्रतिलिपि राज्य के विधानमंडल के समक्ष रखवायेगा।

  1. संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा २९ और अनुसूची द्वारा प्रथम अनुसूची के भाग (क) या भाग (ख) में उल्लिखत राज्य अभिप्रेत ह के स्थान पर रखे गये।
  2. २.० २.१ "या राजप्रमुख" शब्द उपरोक्त के ही द्वारा लुप्त कर दिये गये।,
  3. संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा २९ और अनुसूची द्वारा " यथास्थिति राज्य के राज्यपाल या राज्यप्रमुख" शब्दों के स्थान पर रखे गय।
  4. "या राजप्रमुख" शब्द संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा २९ और अनुसूची द्वारा लुप्त कर दिये गये।
  5. ५.० ५.१ "या राजप्रमुख" शब्द संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा २६ और अनुसूची द्वारा लुप्त कर दिये गये।,
  6. ६.० ६.१ “या राजप्रमुख" शब्द संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा २९ और अनुसूची द्वारा लुप्त कर दिये गये।,
  7. "या राजप्रमुख" शब्द संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा २६ और अनुसूची द्वारा लुप्त कर दिये गये।
  8. "या राजप्रमुख" शब्द संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा २९ और अनुसूची द्वारा लुप्त कर दिये गये।
  9. उपरोक्त के ही द्वारा “यथास्थिति राज्यपाल या राजप्रमुख" के स्थान पर रखा गया।
  10. १०.० १०.१ १०.२ "या राजप्रमुख" शब्द संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम १९५६, धारा २९ और अनुसूची द्वारा लुप्त कर दिये गये।,
  11. उपरोक्त के ही द्वारा “यथास्थिति राज्यपाल या राजप्रमुख" के स्थान पर रखा गया।