भारत का संविधान/भाग १८

विकिस्रोत से
भारत का संविधान  (1957) 
अनुवादक
राजेन्द्र प्रसाद

[ १३२ ] 

भाग १८

आपात-उपबन्ध

आपात की
उद्घोषणा
[१]३५२. (१) यदि राष्ट्रपति को समाधान हो जाये कि गम्भीर आपात विद्यमान है जिससे कि युद्ध या बाह्य आक्रमण या आभ्यन्तरिक अशान्ति से भारत या उस के राज्यक्षेत्र के किसी भाग की सुरक्षा संकट में है तो वह उद्घोषणा द्वारा उस आशय की घोषणा कर सकेगा।

(२) खंड (१) के अधीन की गई उद्घोषणा—

(क) उत्तरवर्ती उद्घोषणा द्वारा प्रतिसंहृत की जा सकेगी;
(ख) संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखी जायेगी;
(ग) दो मास की समाप्ति पर प्रवर्तन में न रहेगी जब तक कि संसद् के दोनों सदनों के संकल्पों द्वारा वह उस कालावधि की समाप्ति से पहिले अनुमोदित न कर दी जाये;

परन्तु यदि ऐसी कोई उद्घोषणा उस समय निकाली गई है जब कि लोक-सभा का विघटन हो चुका है अथवा लोक-सभा का विघटन इस खंड के उपखंड (ग) में निर्दिष्ट दो मास की कालावधि के भीतर हो जाता है, तथा यदि उद्घोषणा का अनुमोदन करने वाला संकल्प राज्य-सभा द्वारा पारित हो चुका है किन्तु ऐसी उद्घोषणा के विषय में लोक-सभा द्वारा उस कालावधि की समाप्ति में पहिले कोई संकल्प पारित नहीं किया गया है तो उद्घोषणा उस तारीख में, जिसमें कि लोक-सभा अपने पुनर्गठन के पश्चात् प्रथम बार बैठती है, तीस दिन की समाप्ति पर प्रवर्तन में न रहेगी जब तक कि उक्त तीस दिन की कालावधि की समाप्ति से पूर्व उद्घोषणा को अनुमोदन करने वाला संकल्प लोक-सभा द्वारा भी पारित नहीं हो जाता।

(३) यदि राष्ट्रपति का समाधान हो जाये कि युद्ध या बाह्य आक्रमण या आभ्यन्तरिक अशान्ति का संकट सन्निकट है तो चाहे वास्तव में युद्ध अथवा ऐसा कोई आक्रमण या अशान्ति नहीं हुई हो तो भी भारत की अथवा भारत के राज्यक्षेत्र के किसी भाग की सुरक्षा इस प्रकार से संकट में है ऐसे घोषित करने वाली आपात की घोषणा की जा सकेगी।

आपात की
उद्घोषणा का
प्रभाव
३५३. जब आपात की उद्घोषणा प्रवर्तन में है तब—

(क) इस संविधान में किसी बात के होते हुये भी संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार किसी राज्य को इस विषय में निदेश देने तक होगा कि वह राज्य अपनी कार्यपालिका शक्ति का किस रीति से प्रयोग करें;
(ख) किसी विषय के संबंध में विधि बनाने की संसद् की शक्ति के अन्तर्गत ऐसी विधियां बनाने की शक्ति भी होगी जो उस विषय के बारे में संघ अथवा संघ के पदाधिकारियों और प्राधिकारियों को शक्तियां देती तथा कर्त्तव्य सौंपती हो अथवा शक्तियों का दिया जाना और कर्तव्यों का सौंपा जाना प्राधिकृत करती हो चाहे फिर वह विषय ऐसा हो जो संघ सूची में प्रगणित नहीं है।
[ १३३ ]

भाग १८—आपात-उपबन्ध—अनु॰ ३५४—३५६

आपात की उद्घोषणा
जब प्रवर्तन में है तब
राजस्वों के वितरण
सम्बन्धी उपबन्धों की
प्रत्युक्ति
३५४. (१) जब कि आपात की उद्घोषणा प्रवर्तन में है, तब राष्ट्रपति आदेश द्वारा निदेश दे सकेगा कि इस संविधान के अनुच्छेद २६८ से २७९ तक के सब या कोई उपबन्ध ऐसी किसी कालावधि में, जैसी कि उस आदेश में उल्लिखित की जाये और जो किसी अवस्था में भी उस वित्तीय वर्ष की समाप्ति से आगे विस्तृत न होगी, जिसमें कि उद्घोषणा प्रवर्तन में नहीं रहती, ऐसे अपवादों या रूपभेदों के अधीन प्रभावी होंगे जैसे कि वह उचित समझे।

(२) खंड (१) के अधीन दिया प्रत्येक आदेश उसके दिये जाने के पश्चात यथासंभव शीघ्र संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखा जायगा।

बाह्य आक्रमण
और आभ्यन्तरिक
अशान्ति से राज्य
का संरक्षण करने का
संघ का कर्तव्य
३५५. बाह्य आक्रमण और आभ्यन्तरिक अशान्ति से प्रत्येक राज्य का संरक्षण करना, तथा प्रत्येक राज्य की सरकार इस संविधान के उपबन्धों के अनुसार चलाई जाये, यह सुनिश्चित करना संघ का कर्तव्य होगा।

 

राज्यों में सांविधानिक
तंत्र के विफल हो
जाने की अवस्था
में उपबन्ध
[२]३५६. (१) यदि किसी राज्य के राज्यपाल [३]* * * से प्रतिवेदन मिलने पर या अन्यथा राष्ट्रपति का समाधान हो जाये कि ऐसी स्थिति पैदा हो गई है जिसमें कि उस राज्य का शासन इस संविधान के उपबन्धों के अनुसार नहीं चलाया जा सकता तो राष्ट्रपति उद्घोषणा द्वारा—

(क) उस राज्य की सरकार के सब या कोई कृत्य, तथा [४][राज्यपाल] में, अथवा राज्य के विधानमंडल को छोड़ कर राज्य के किसी निकाय या प्राधिकारी में, निहित, या तदद्वारा प्रयोक्तव्य सब या कोई शक्तियां अपने हाथ में ले सकेगा;
(ख) घोषित कर सकेगा कि राज्य के विधानमंडल की शक्तियां संसद् के प्राधिकार के द्वारा या अधीन प्रयोक्तव्य होगी;
(ग) राज्य में के किसी निकाय या प्राधिकारी से संबद्ध इस संविधान के किन्हीं उपबन्धों के प्रवर्तन को पूर्णत: या अंशत: निलम्बित करने के लिये उपबन्ध सहित ऐसे प्रासंगिक और आनुषंगिक उपबन्ध बना सकेगा जैसे कि राष्ट्रपति को उद्घोषणा के उद्देश्य को प्रभावी करने के लिये आवश्यक या वांछनीय दिखाई दें :

परन्तु इस खंड की किसी बात से राष्ट्रपति को यह प्राधिकार न होगा कि वह उच्चन्यायालय में निहित या तदद्वारा प्रयोक्तव्य शक्तियों में से किसी को अपने हाथ में ले अथवा इस संविधान के उच्चन्यायालयों से सम्बद्ध किन्हीं उपबन्धों के प्रवर्तन को पूर्णतः या अंशतः निलम्बित कर दे।

(२) ऐसी कोई उद्घोषणा किसी उत्तरवर्ती उद्घोषणा द्वारा प्रतिसंहृत या परिवर्तित की जा सकेगी। [ १३४ ]

भाग १८—आपात-उपबन्ध—अनु॰ ३५६—३५७

(३) इस अनुच्छेद के अधीन की गई प्रत्येक उद्घोषणा संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखी जायेगी, तथा जहां वह पूर्ववर्ती उद्घोषणा को प्रतिसंहृत करने वाली उद्घोषणा नहीं है वहां वह दो महीने की समाप्ति पर, यदि उस कालावधि की समाप्ति से पूर्व संसद् के दोनों सदनों के संकल्पों द्वारा वह अनुमोदित नहीं हो जाती तो, प्रवर्तन में नही रहेगी :

परन्तु यदि ऐसी कोई उद्घोषणा (जो पहिले की उद्घोषणा को प्रतिसंहृत करने वाली नहीं है) उस समय निकाली गई है जब कि लोक-सभा का विघटन हो चुका है अथवा लोक-सभा का विघटन इस खंड में निर्दिष्ट दो मास की कालावधि के भीतर हो जाता है तथा यदि उद्घोषणा का अनुमोदन करने वाला संकल्प राज्य-सभा द्वारा पारित हो चुका है किन्तु ऐसी उद्घोषणा के विषय में लोक-सभा द्वारा उस कालावधि की समाप्ति से पहिले कोई संकल्प पारित नहीं किया गया है तो उद्घोषणा उस तारीख से, जिस में कि लोक-सभा अपने पुनर्गठन के पश्चात प्रथम बार बैठती है, तीस दिन की समाप्ति पर प्रवर्तन में न रहेगी जब तक कि उक्त तीस दिन की कालावधि की समाप्ति से पूर्व उद्घोषणा को अनुमोदन करने वाला संकल्प लोक-सभा द्वारा भी पारित नहीं हो जाता।

(४) इस प्रकार अनुमोदित उद्घोषणा, यदि प्रतिसंहृत नहीं हो गई हो तो, इस अनुच्छेद के खंड (३) के अधीन उद्घोषणा का अनुमोदन करने वाले संकल्पों में से दूसरे के पारित हो जाने की तारीख से छः महीने की कालावधि की समाप्ति पर प्रवर्तन में नहीं रहेगी :

परन्तु ऐसी उद्घोषणा के प्रवृत्त रखने के लिये अनुमोदन करने वाला संकल्प, यदि और जितनी बार संसद् के दोनों सदनों द्वारा पारित हो जाता है तो, और उतनी बार, वह उद्घोषणा, जब तक कि वह प्रतिसंहृत न हो जायें, उस तारीख में जिसमें कि वह इस खंड के अधीन अन्यथा प्रवर्तन में नहीं रहती, छ: महीने की और कालावधि तक प्रवृत्त बनी रहेगी, किन्तु कोई ऐसी उद्घोषणा किसी अवस्था में भी तीन वर्ष में अधिक प्रवृत्त नहीं रहेगी :

परन्तु यह और भी कि यदि लोक-सभा का विघटन छ:मास की किसी ऐसी कालावधि के भीतर हो जाता है तथा ऐसी उद्घोषणा का प्रवृत्त बनाये रखने का अनुमोदन करने वाला संकल्प राज्य-सभा द्वारा पारित हो चुका है किन्तु ऐसी उद्घोषणा को प्रवृत्त बनाये रखने के बारे में कोई संकल्प लोक-सभा द्वारा उक्त कालावधि में पारित नहीं हुआ है तो उद्घोषणा उस तारीख से जिस में कि लोक-सभा अपने पुनर्गठन के पश्चात् प्रथम बार बैठती है, तीस दिन की समाप्ति पर प्रवर्तन में न रहेगी जब तक कि उक्त तीस दिन की कालावधि की समाप्ति से पूर्व उद्घोषणा को प्रवर्तन में बनाये रखने का अनुमोदन करने वाला संकल्प लोक-सभा द्वारा भी पारित नहीं हो जाता।

अनुच्छेद ३५६ के
अधीन निकाली
गई उद्घोषणा के
अधीन विधायिनी
शक्तियों का प्रयोग
[५]३५७. (१) जहां अनुच्छेद ३५६ के खंड (१) के अधीन निकाली गई उद्घोषणा द्वारा यह घोषित किया गया है कि राज्य के विधानमंडल की शक्तियां संसद् के प्राधिकार के द्वारा या अधीन प्रयोक्तव्य होगी वहां—

(क) राज्य के विधानमंडल की विधि बनाने की शक्ति राष्ट्रपति को देने के लिये तथा ऐसी दी हुई शक्ति को किसी अन्य प्राधिकारी को जिसे राष्ट्रपति, उस लिये उल्लिखित करे, ऐसी शर्तों के अधीन, जिन्हें आरोपित करना वह उचित समझे, प्रन्यायोजन करने के लिये राष्ट्रपति को प्राधिकृत करने की संसद् की,
[ १३५ ]

भाग १८—आपात-उपबन्ध—अनु॰ ३५७—३६०

(ख) संघ अथवा उसके पदाधिकारियों और प्राधिकारियों को शक्ति देने या कर्तव्य आरोपित करने के लिये, अथवा शक्तियों का दिया जाना या कर्तव्यों का आरोपित किया जाना प्राधिकृत करने के लिये, विधि बनाने की संसद् को अथवा राष्ट्रपति की या ऐसी विधि बनाने की शक्ति जिस अन्य प्राधिकारी में उपखंड (क) के अधीन निहित है उसकी,
(ग) जब लोक-सभा सत्र में न हो तब व्यय के लिये संसद् की मंजूरी लंबित रहने तक राज्य की संचित निधि में से ऐसे व्यय को प्राधिकृत करने की राष्ट्रपति की क्षमता होगी।

(२) राज्य के विधानमंडल की शक्ति के प्रयोग में संसद् द्वारा अथवा राष्ट्रपति अथवा खंड (१) के उपखंड (क) में निर्दिष्ट अन्य प्राधिकारी द्वारा निर्मित कोई विधि, जिसे अनुच्छेद ३५६ के अधीन की गई उद्घोषणा के अभाव में संसद् या राष्टपति या ऐसा अन्य प्राधिकारी बनाने के लिये सक्षम न होता, उद्घोषणा के प्रवर्तन में न रहने के पश्चात एक वर्ष की कालावधि की समाप्ति पर अक्षमता की मात्रा तक सिवाय उन बातों के प्रभाव में न रहेगी जो उक्त कालावधि की समाप्ति से पूर्व की गई या की जाने से छोड़ दी गई थी जब तक कि वे उपबन्ध, जो इस प्रकार प्रभावी न रहेंगें, समुचित विधानमंडल के अधिनियम द्वारा उस से पहिले ही या तो निरसित और या रूपभेदों के सहित या बिना पुनः अधिनियमित न कर दिय गये हो;

आपातों में अनुच्छेद
१९ के उपबन्धों
का निलम्बन
३५८. जब आपात की उद्घोषणा प्रवर्तन में है तब अनुच्छेद १९ की किसी बात से राज्य की कोई ऐसी विधि बनाने की अथवा कोई ऐसी कार्यपालिका कार्यवाही करने की भाग ३ में परिभापित शक्ति, जिसे वह राज्य उस भाग में अन्तर्विष्ट उपबन्धों के अभाव में बनाने अथवा करने के लिये सक्षम होता, निबंन्धित नहीं होगी किन्तु इस प्रकार निर्मित कोई विधि उद्घोषणा के प्रवर्तन में न रहने पर अक्षमता की भाषा तक तुरन्त प्रभावशून्य हो जायेगी शिवाय उन बातों के जो विधि के इस प्रकार प्रभावशून्य होने से पहिले की गई या की जाने से छोड़ दी गई थी।

आपात में भाग ३
द्वारा प्रदत्त अधि-
कारों के प्रवर्तन
का निलम्बन
३५९. (१) जहां कि आपात की उद्घोषणा प्रवर्तन में है वहां राष्ट्रपति आदेश द्वारा घोषित कर सकेगा कि भाग ३ द्वारा दिये गये अधिकारों में से ऐसों को प्रवर्तित कराने के लिये, जैसे कि उस आदेश में वर्णित हों, किसी न्यायालय के प्रचालन का अधिकार तथा इस प्रकार वर्णित अधिकारों को प्रवर्तित कराने के लिये किसी न्यायालय में लंबित सब कार्यवाहियां उस कालावधि के लिये, जिसमें कि उद्घोषणा लागू रहती है, अथवा उस से छोटी ऐसी कालावधि के लिये, जैसी कि आदेश में उल्लिखित की जाये, निलम्बित रहेगी।

(२) उपरोक्त प्रकार दिया हुआ आदेश भारत के समस्त राज्यक्षेत्र में अथवा उस के किसी भाग पर विस्तृत हो सकेगा।

(३) खंड (१) के अधीन दिया प्रत्येक आदेश उसके दिये जाने के पश्चात् यथासंभव शीघ्र संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखा जायगा।

वित्तीय आपात के
बारे में उपबन्ध
[६]३६०. यदि राष्ट्रपति का समाधान हो जाये कि ऐसी स्थिति पैदा हो गई है जिससे भारत अथवा उसके राज्यक्षेत्र के किसी भाग का वित्तीय स्थायित्व या प्रत्यय संकट में है तो वह उद्घोषणा द्वारा उस बात की घोषणा कर सकेगा। [ १३६ ]

भाग १८—आपात-उपबन्ध—अनु॰ ३६०

(२) अनुच्छेद ३५२ के खंड (२) के उपबन्ध इस अनुच्छेद के अधीन निकाली गयी उद्घोषणा के सम्बन्ध में वैसे ही लागू होंगे जैसे कि अनुच्छेद ३५२ के अधीन निकाली गयी आपात की उद्घोषणा के लिये लागू होते हैं।

(३) उस कालावधि में, जिसमें कि खंड (१) में वर्णित कोई उद्घोषणा प्रवर्तन में रहती है संघ की कार्यपालिका शक्ति किसी राज्य को वित्तीय औचित्य सम्बन्धी ऐसे सिद्धान्तों का पालन करने के लिये निदेश देने तक, जैसे कि निदेशों में उल्लिखित हों, तथा ऐसे अन्य निदेश देने तक, जिन्हें राष्ट्रपति उस प्रयोजन के लिये देना आवश्यक और समुचित समझे, विस्तृत होगी।

(४) इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी—

(क) ऐसे किसी निदेश के अन्तर्गत—
(१) राज्य के कार्यों के सम्बन्ध में सेवा करने वाले व्यक्तियों के सब या किन्हीं वर्गों के वेतनों और भत्तों में कमी की अपेक्षा करने वाले उपबन्ध,
(२) धन-विधयकों अथवा अन्य विधयकों को जिन को अनुच्छेद २०७ के उपबन्ध लागू है, राज्य के विधानमंडल के द्वारा उन के पारित किये जाने के पश्चात् राष्ट्रपति के विचार के लिये रक्षित करने के लिये उपबन्ध, भी हो सकेंगे;
(ख) उस कालावधि में, जिस में कि इस अनुच्छेद के अधीन निकाली गयी उद्घोषणा प्रवर्तन में है, उच्चतमन्यायालय और उच्चन्यायालयों के न्यायाधीशों के सहित संघ के कार्यों के सम्बन्ध में सेवा करने वाले व्यक्तियों के सब या किसी वर्ग के वेतनों और भत्तों में कमी के लिये निदेश निकालने के लिये राष्ट्रपति सक्षम होगा।

  1. जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू होने में अनुच्छेद ३५२ में निम्नलिखित नया खंड जोड़ दिया जायेगा, अर्थात्–
    "(४) केवल आभ्यान्तरिक अशांति या उसके सन्निकट संकट के ही आधार पर की गयी आपात की उद्घोषणा (अनुच्छेद ३५४ के विषय के सिवाय) जम्मू और कश्मीर राज्य के सम्बन्ध में तब तक लागू न होगी जब तक कि वह उस राज्य की सरकार की प्रार्थना पर या उसकी सहमति से नहीं की गई है।"
  2. अनुच्छेद ३५६ जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू न होगा।
  3. "या राजप्रमुख" शब्द संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा २९ और अनुसूची द्वारा लुप्त कर दिये गये।
  4. उपरोक्त के ही द्वारा "यथास्थिति राज्यपाल या राजप्रमुख" के स्थान पर रख गये।
  5. अनुच्छेद ३५७ जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू न होगा।
  6. अनुच्छेद ३६० जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू न होगा।