भारत का संविधान/भाग १७

विकिस्रोत से
भारत का संविधान  (1957) 
अनुवादक
राजेन्द्र प्रसाद

[ १२८ ] 

भाग १७[१]
राजभाषा
अध्याय १.––संघ की भाषा

३४३. (१) संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के राजकीय प्रयोजनों के लियेसंघ की राजभाषा प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अन्तर्राष्ट्रीय रूप होगा।

(२) खंड (१) में किसी बात के होते हुए भी इस संविधान के प्रारम्भ से पन्द्रह वर्ष की कालावधि के लिये संघ के उन सब राजकीय प्रयोजनों के लिये अंग्रेजी भाषा प्रयोग की जाती रहेगी जिनके लिये ऐसे प्रारम्भ के ठीक पहिले वह प्रयोग की जाती थी :

परन्तु राष्ट्रपति उक्त कालावधि में, आदेश द्वारा, संघ के राजकीय प्रयोजनों में से किसी के लिये अंग्रेजी भाषा के साथ साथ हिन्दी भाषा का तथा भारतीय अंकों के अन्तर्राष्ट्रीय रूप के साथ साथ देवनागरी रूप का प्रयोग प्राधिकृत कर सकेगा।

(३) इस अनुच्छेद में किसी बात के होते हुए भी संसद् उक्त पन्द्रह साल की कालावधि के पश्चात् विधि द्वारा––

(क) अंग्रेजी भाषा का, अथवा
(ख) अंकों के देवनागरी रूप का,

ऐसे प्रयोजनों के लिये प्रयोग उपबन्धित कर सकेगी जैसे कि ऐसी विधि में उल्लिखित हों।

३४४. (१) राष्ट्रपति, इस संविधान के प्रारम्भ से पांच वर्ष की समाप्ति पर तथा तत्पश्चात् राजभाषा के लिये
आयोग और संसद
की समिति
ऐसे प्रारम्भ से दस वर्ष की समाप्ति पर, आदेश द्वारा एक आयोग गठित करेगा जो एक सभापति और अष्टम अनुसूची में उल्लिखित भिन्न भाषाओं का प्रतिनिधित्व करने वाले ऐसे अन्य सदस्यों से मिल कर बनेगा जैसे कि राष्ट्रपति नियुक्त करे, तथा आयोग द्वारा अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया भी आदेश परिभाषित करेगा।

(२) राष्ट्रपति को––

(क) संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिये हिन्दी भाषा के उत्तरोत्तर अधिक प्रयोग के;
(ख) संघ के राजकीय प्रयोजनों में से सब या किसी के लिये अंग्रेजी भाषा के प्रयोग पर निबंधनों के,
(ग) अनुच्छेद ३४८ में वर्णित प्रयोजनों में से सब या किसी के लिये प्रयोग की जाने वाली भाषा के, [ १२९ ] 

भाग १७––राजभाषा––अनु॰ ३४४––३४७

(घ) संघ के किसी एक या अधिक उल्लिखित प्रयोजनों के लिये प्रयोग किये जाने वाले अंकों के रूप के,
(ङ) संघ की राजभाषा तथा संघ और किसी राज्य के बीच अथवा एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच संचार की भाषा तथा उनके प्रयोग के बारे में राष्ट्रपति द्वारा आयोग से पृच्छा किये हए किसी अन्य विषय के,


बारे में सिपारिश करने का आयोग का कर्तव्य होगा।

(३) खंड (२) के अधीन अपनी सिपारिशें करने में आयोग भारत की औद्योगिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक उन्नति का तथा लोक-सेवाओं के बारे में अहिन्दी भाषाभाषी क्षेत्रों के लोगों के न्यायपूर्ण दावों और हितो का सम्यक् ध्यान रखेगा।

(४) तीस सदस्यों की एक समिति गठित की जायेगी जिन में से बीस लोक-सभा के सदस्य होंगे तथा दस राज्य-सभा के सदस्य होंगे जो कि क्रमशः लोक-सभा के सदस्यों तथा राज्य-सभा के सदस्यों द्वारा अनुपाती प्रतिनिधित्व-पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा निर्वाचित होंगे।

(५) खंड (१) के अधीन गठित आयोग की सिपारिशों की परीक्षा करना तथा उन पर अपनी राय का प्रतिवेदन राष्ट्रपति को करना समिति का कर्तव्य होगा।

(६) अनुच्छेद ३४३ में किसी बात के होते हुए भी राष्ट्रपति खंड (५) में निर्दिष्ट प्रतिवेदन पर विचार करने के पश्चात् उस सारे प्रतिवेदन के या उसके किसी भाग के अनुसार निदेश निकाल सकेगा।

अध्याय २. प्रादेशिक भाषाएं

राज्य की राजभाषा
राजभाषायें
३४५. अनुच्छेद ३४६ और ३४७ के उपबन्धों के अधीन रहते हए राज्य का विधानमंडल विधि द्वारा उस राज्य के राजकीय प्रयोजनों में से सब या किसी के लिये प्रयोग के अर्थ उस राज्य में प्रयुक्त होने वाली भाषाओं में से किसी एक या अनेक को या हिन्दी को अंगीकार कर सकेगा :

परन्तु जब तक राज्य का विधानमंडल विधि द्वारा इस से अन्यथा उपबन्ध न करे तब तक राज्य के भीतर उन राजकीय प्रयोजनों के लिये अंग्रेजी भाषा प्रयोग की जाती रहेगी जिनके लिये इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहिले वह प्रयोग की जाती थी।

एक राज्य और दूसरे
के बीच में अथवा राज्य
और संघ के बीच में
संचार के लिए राजभाषा
३४६. संघ में राजकीय प्रयोजनों के लिये प्रयुक्त होने के लिये तत्समय प्राधिकृत भाषा एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच में तथा किसी राज्य और संघ के बीच में संचार के लिये राजभाषा होगी :

परन्तु यदि दो या अधिक राज्य करार करते हैं कि ऐसे राज्यों के बीच में संचार के लिये राजभाषा हिन्दी भाषा होगी तो ऐसे संचार के लिये वह प्रयोग की जा सकेगी।

किसी राज्य के
जनसमुदाय के
किसी विभाग
द्वारा बोली जाने
वाली भाषा के
सम्बन्ध में विशेष
उपबन्ध
३४७. तद्विषयक मांग की जाने पर यदि राष्ट्रपति का समाधान हो जाये कि किसी राज्य के जनसमुदाय का पर्याप्त अनुपात चाहता है कि उस के द्वारा बोली जाने वाली कोई भाषा राज्य द्वारा अभिज्ञात की जाये तो वह निदेश दे सकेगा कि ऐसी भाषा को भी उस राज्य में सर्वत्र अथवा उसके किसी भाग में ऐसे प्रयोजन के लिये, जैसा कि वह उल्लिखित करे, राजकीय अभिज्ञा दी जाये। [ १३० ]

भाग १७––राजभाषा––अनु० ३४८––३४९
अध्याय ३.––उच्चतमन्यायालय, उच्चन्यायालयों आदि की भाषा



उच्चतमन्यायालय
और उच्चन्यायालयों
में तथा अधिनियमों,
विधेयकों आदि
में प्रयोग की
जाने वाली भाषा

३४८. (१) इस भाग के पूर्ववर्ती उपबन्धों में किसी बात के होते हुये भी जब तक संसद् विधि द्वारा अन्यथा उपबन्ध न करे, तब तक––

(क) उच्चतमन्यायालय में तथा प्रत्येक उच्चन्यायालय में सब कार्यवाहियां,
(ख) जो––
(१) विधेयक, अथवा उन पर प्रस्तावित किये जाने वाले जो संशोधन संसद् के प्रत्येक सदन में अथवा राज्य के विधान मंडल के सदन या प्रत्येक सदन में पुरःस्थापित किये जायें उन सब के प्राधिकृत पाठ,
(२) अधिनियम संसद् द्वारा या राज्य के विधानमंडल द्वारा पारित किये जायें, तथा जो अध्यादेश राष्ट्रपति या राज्यपाल[२]1* * * द्वारा प्रख्यापित किये जायें, उन सब के प्राधिकृत पाठ, तथा
(३) आदेश, नियम, विनियम और उपविधि इस संविधान के अधीन, अथवा संसद् या राज्यों के विधानमंडल द्वारा निर्मित किसी विधि के अधीन, निकाले जायें उन सबके प्राधिकृत पाठ;
अंग्रेजी भाषा में होंगे।

(२) खंड (१) के उपखंड (क) में किसी बात के होते हए भी किसी राज्य का राज्यपाल1* * * राष्ट्रपति की पूर्व सम्मति से हिन्दी भाषा का या उस राज्य में राजकीय प्रयोजन के लिये प्रयोग होने वाली किसी अन्य भाषा का प्रयोग उस राज्य में मुख्य स्थान रखने वाले उच्चन्यायालय में की कार्यवाहियों के लिये प्राधिकृत कर सकेगा :

परन्तु इस खंड की कोई बात वैसे उच्चन्यायालय द्वारा दिये गये निर्णय, आज्ञप्ति अथवा आदेश को लागू न होगी।

(३) खंड (१) के उपखंड (ख) में किसी बात के होते हुये भी, जहां किसी राज्य के विधानमंडल ने, उस विधानमंडल में पुरःस्थापित विधेयकों या उसके द्वारा पारित अधिनियमों में अथवा उस राज्य के राज्यपाल1* * * द्वारा प्रख्यापित अध्यादेशों में अथवा उस उपखंड की कंडिका (३) में निर्दिष्ट किसी आदेश, नियम, विनियम या उपविधि में प्रयोग के लिये अंग्रेजी भाषा से अन्य किसी भाषा के प्रयोग को विहित किया है वहां उस राज्य के राजकीय सूचना-पत्र में उस राज्य के राज्यपाल1* * * के प्राधिकार से प्रकाशित अंग्रेजी भाषा में उसका अनुवाद उस खंड के अभिप्रायों के लिये उस का अंग्रेजी भाषा में प्राधिकृत पाठ समझा जायेगा।


भाषा सम्बन्धी
कुछ विधियों
के अधिनियमित
करने के लिये
विशेष प्रक्रिया

३४९. इस संविधान के प्रारंभ से पन्द्रह वर्षों की कालावधि तक अनुच्छेद ३४८ के खंड (१) में वर्णित प्रयोजनों में से किसी के लिये प्रयोग की जाने वाली भाषा के लिये उपबन्ध करने वाला कोई विधेयक या संशोधन संसद् के किसी सदन में राष्ट्रपति की पूर्व मंजूरी के बिना न तो पुरःस्थापित और न प्रस्तावित किया जायेगा तथा ऐसे किसी विधेयक के पुरःस्थापित अथवा ऐसे किसी संशोधन के प्रस्तावित किये जाने की मंजूरी अनुच्छेद ३४४ के खंड (१) के अधीन गठित आयोग की सिपारिशों पर, तथा उस अनुच्छेद के खंड (४) के अधीन गठित समिति के प्रतिवेदन पर विचार करने के पश्चात् ही राष्ट्रपति देगा। [ १३१ ]

भाग १७––राजभाषा––अनु॰ ३५०––३५१
अध्याय ४.––विशेष निदेश

व्यथा के निवारण
के लिये अभिवेदन
में प्रयोक्तव्य भाषा
३५०. किसी व्यथा के निवारण के लिये संघ या राज्य के किसी पदाधिकारी या प्राधिकारी को यथास्थिति संघ में या राज्य में प्रयोग होने वाली किसी भाषा में अभिवेदन देने का प्रत्येक व्यक्ति को हक्क होगा।


प्राथमिक प्रक्रम
में मातृभाषा में
शिक्षा देने के
लिए सुविधाएं
[३][३५०क. प्रत्येक राज्य और राज्य के अन्दर प्रत्येक स्थानीय प्राधिकारी का यह प्रयास होगा कि भाषाजात अल्पसंख्यक वर्गों के बालकों को शिक्षा के प्राथमिक प्रक्रम में मातृभाषा में शिक्षा देने के लिये पर्याप्त सुविधायें उपबन्धित की जाये, और राष्ट्रपति किसी राज्य को ऐसे निदेश दे सकेगा जैसे कि वह ऐसी सुविधाओं का उपबन्ध सुनिश्चित कराने के लिये आवश्यक या उचित समझता है।

भाषाजात
अल्पसंख्यकों के
लिए विशेष
पदाधिकारी
३५०ख. (१) भाषाजात अल्पसंख्यकों के लिये एक विशेष पदाधिकारी होगा जो राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जायेगा।

(२) भाषाजात अल्पसंख्यकों के लिये जो परित्राण इस संविधान के अधीन उपबन्धित है उनसे संबद्ध सब विषयों का अनुसन्धान करेगा और ऐसी अन्तरावधियों पर उन विषयों के संबंध में, जैसे कि राष्ट्रपति निर्दिष्ट करें, राष्ट्रपति को प्रतिवेदन देना विशेष पदाधिकारी का कर्त्तव्य होगा, और राष्ट्रपति ऐसे सब प्रतिवेदनों को संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवायेगा और संबंधित राज्यों की सरकारों को भिजवायेगा।]

हिन्दी भाषा
के विकास के
लिये निदेश
३५१. हिन्दी भाषा की प्रसार वृद्धि करना, उस का विकास करना ताकि वह भारत की सामाजिक संस्कृति के सब तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम हो सके, तथा उसकी आत्मीयता में हस्तक्षेप किये बिना हिन्दुस्तानी और अष्टम अनुसूची में उल्लिखित अन्य भारतीय भाषाओं के रूप, शैली और पदावलि को आत्मसात करते हुये तथा जहां तक आवश्यक या वांछनीय हो वहां उसके शब्द-भंडार के लिये मुख्यतः संस्कृत से तथा गौणतः अन्य भाषाओं से शब्द ग्रहण करते हुए उस की समृद्धि सुनिश्चित करना संघ का कर्त्तव्य होगा।

  1. इस भाग के उपबन्ध जम्मू और कश्मीर राज्य को केवल वहीं तक लागू होंगे जहां तक कि वे––
    (१) संघ की राजभाषा,
    (२) एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच अथवा किसी राज्य और संघ के बीच संचार की राजभाषा, और
    (३) उच्चतम न्यायालय में कार्यवाहियों की भाषा,
    से सम्बन्धित है।
  2. "या राजप्रमुख" शब्द संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा २९ और अनुसूची द्वारा लुप्त कर दिये गये।
  3. संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा २१ द्वारा अन्तःस्थापित।