नँदनंदन के अंग अंग प्रति उपमा न्याय दई[१]॥
कुंतल, कुटिल, भँवर, भरि भाँवरि मालति भुरै लई।
तजत न गहरु[२] कियो कपटी जब जानी निरस गई॥
आनन-इंदुबरन-सँमुख तजि करखे तें न नई।
निरमोही नहिं नेह, कुमुदिनी अंतहि हेम[३] हई॥
तन घनस्याम सेइ निसिबासर, रटि रसना छिजई।
सूर विवेकहीन चातक-मुख बूँदौ तौ न सई[४]॥१०७॥