भ्रमरगीत-सार
मूल्य सवा दो रुपया
प्राप्ति-स्थान
शारदा-साहित्य-सदन,
'भ्रमरगीत' सूरसागर के भीतर का एक सार रत्न है। समग्र सूरसागर का कोई अच्छा संस्करण न होने के कारण 'सूर' के हृदय से निकली हुई अपूर्व रसधारा के भीतर प्रवेश करने का श्रम कम ही लोग उठाते हैं। मैंने सन् १९२० में भ्रमरगीत के अच्छे पद चुनकर इकट्ठे किए और उन्हें प्रकाशित करने का आयोजन किया। पर कई कारणों से उस समय पुस्तक प्रकाशित न हो सकी। छपे फार्म कई बरसों तक पड़े रहे। इतने दिनों पीछे आज 'भ्रमरगीत-सार' सहृदय-समाज के सामने रखा जाता है।
कहने की आवश्यकता नहीं कि 'सूरसागर' के जितने संस्करण उपलब्ध हैं उनमें से एक भी शुद्ध और ठिकाने से छपा हुआ नहीं है। सूर के पदों का ठीक पाठ मिलना एक मुश्किल बात हो रही है। 'वेंकटेश्वर प्रेस' का संस्करण अच्छा समझा जाता है पर उसमें पाठ की गड़बड़ी और भी अधिक है। उदाहरण के लिए दो पदों के टुकड़े दिए जाते हैं––
(क) अति मलीन बृषभानु-कुमारी।
अधोमुख रहति, उर्ध नहिं चितवति ज्यों गथ हारे थकित जुआरी॥
(ख) मृग ज्यों सहत सहज सर दारुन, सन्मुख तें न टरै।
समुझि न परै कौन सचु पावत, जीवत जाय मरै॥
(क) अलि मलीन बृषभानुकुमारी।
अधोमुख रहत ऊरध नहिं चितवत ज्यों गथ हारे थकित जुथअरी॥
(ख) मग ज्यों सहत सहज सरदारन सनमुख तें न टरै।
समुझि न परै कवन सच पावत जीवत जाइ मरै॥
इस संग्रह में भ्रमरगीत के चुने हुए पद रखे गए हैं। पाठ, जहाँ तक हो सका है, शुद्ध किया गया है। कठिन शब्दों और वाक्यों के अर्थ फुटनोट में दे दिए गए हैं। सूरदास जी पर एक आलोचनात्मक निबंध भी लगा दिया गया है, जिसमें उनकी विशेषताओं के अन्वेषण का कुछ प्रयत्न है।
गुरुधाम, काशी श्रीपंचमी, १९८२ |
रामचन्द्र शुक्ल |
१. | वक्तव्य | ... | १—२ |
२. | महाकवि सूरदासजी (आलोचना) | १—७७ | |
३. | भ्रमरगीत-सार | ... | १—१५५ |
४. | चूर्णिका (अंत में) | १—१३ |
- भूमिका
- वक्तव्य
- १-पहिले करि परनाम नंद सों समाचार सब दीजो
- २ कहियो नन्द कठोर भए
- ३ तबहिं उपंगसुत आय गए
- ४-हरि गोकुल की प्रीति चलाई
- ५-जदुपति लख्यो तेहि मुसकात
- ६-सखा! सुनो मेरी इक बात
- ७-उद्धव! यह मन निस्चय जानो
- ८-उद्धव! बेगि ही ब्रज जाहु
- ९-पथिक! सँदेसो कहियो जाय
- १०-नीके रहियो जसुमति मैया
- ११-उद्धव मन अभिलाष बढ़ायो
- १२-सुनियो एक सँदेसो ऊधो तुम गोकुल को जात
- १३-कोऊ आवत है तन स्याम
- १४-है कोई वैसीई अनुहारि
- १५-देखो नंदद्वार रथ ठाढ़ो
- १६-कहौ कहाँ तें आए हौ
- १७-ऊधो को उपदेस सुनौ किन कान दै
- १८-हमसों कहत कौन की बातें
- १९-तू अलि! कासों कहत बनाय
- २०-हम तो नंदघोष की वासी
- २१-गोकुल सबै गोपाल-उपासी
- २२-जीवन मुँहचाही को नीको
- २३-आयो घोष बड़ो ब्योपारी
- २४-जोग ठगौरी ब्रज न बिकैहैं
- २५-आए जोग सिखावन पाँड़े
- २६-ए अलि! कहा जोग में नीको
- २७-हमरे कौन जोग ब्रत साधै
- २८-हम तो दुहूं भाँति फल पायो
- २९-पूरनता इन नयन न पूरी
- ३०-हमतें हरि कबहूँ न उदास
- ३१-तेरो बुरो न कोऊ मानै
- ३२-घर ही के बाढ़े रावरे
- ३३-स्याममुख देखे ही परतीति
- ३४-लरिकाई को प्रेम, कहौ अलि, कैसे करिकै छूटत
- ३५-अटपटि बात तिहारी ऊधो सुनै सो ऐसी को है
- ३६-बरु वै कुब्जा भलो कियो
- ३७-हरि काहे के अंतर्यामी
- ३८-बिलग जनि मानहु, ऊधो प्यारे
- ३९-अपने स्वारथ को सब कोऊ
- ४०-तुम जो कहत सँदेसो आनि
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