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भ्रमरगीत-सार/११९-ऊधो! जो तुम हमहिं सुनायो

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बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १३२

 

राग जैतश्री
ऊधो! जो तुम हमहिं सुनायो।

सो हम निपट कठिनई करिकै या मन कोँ समुझायो॥
जुगुति जतन करि हमहुँ ताहि गहि सुपथ[] पंथ लौँ लायो।
भटकि फिर्‌यो बोहित के खग ज्योँ, पुनि फिरि हरि पै आयो॥
हमको सबै अहित लागति है तुम अति हितहि बतायो।
सर-सरिता-जल होम किये तें कहा अगिनि सचु[] पायो?
अब वैसो उपाय उपदेसौं जिहि जिय जात जियायो।
एक बार जौ मिलहिं सूर प्रभु कीजै अपनो भायो॥११९॥

  1. सुपथ=अच्छा मार्ग।
  2. सचु=मुख, संतोष।