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भ्रमरगीत-सार/१२२-ऊधो! जाहु तुम्हैं हम जाने

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बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १३३ से – १३४ तक

 

राग रामकली
ऊधो! जाहु तुम्हैं हम जाने।

स्याम तुम्हैं ह्याँ नाहिं पठाए तुम हौ बीच भुलाने॥
ब्रजवासिन सौँ जोग कहत हौ, बातहु कहन न जाने।
बड़ लागै न विवेक तुम्हारो ऐसे नए अयाने॥
हमसोँ कही लई सो सहिकै जिय गुनि लेहु अपाने॥
कहँ अबला कहँ दसा दिगंबर सँमुख करौ, पहिचाने॥

सांच कहौ तुमको अपनी सौं[] बूझति बात निदाने।
सूर स्याम जब तुम्हैं पठाए तब नेकहु मुसुकाने?॥१२२॥

  1. सौं=कसम, सौगंध।