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भ्रमरगीत-सार/१४६-मधुकर! स्याम हमारे चोर

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बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १४०

 

मधुकर! स्याम हमारे चोर।

मन हरि लियो माधुरी मूरति चितै नयन की कोर॥
पकर्‌यो तेहि हिरदय उर-अंतर प्रेम-प्रीति के जोर।
गए छंड़ाय छोरि सब बंधन दै गए हँसनि अंकोर[]
सोवत तें हम उचकि परी हैं दूत मिल्यो मोहिं भोर।
सूर स्याम मुसकनि मेरो सर्वस लै गए नंदकिसोर॥१४६॥

  1. अंकोर=भेंट।