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मन हरि लियो माधुरी मूरति चितै नयन की कोर॥ पकर्यो तेहि हिरदय उर-अंतर प्रेम-प्रीति के जोर। गए छंड़ाय छोरि सब बंधन दै गए हँसनि अंकोर[१]॥ सोवत तें हम उचकि परी हैं दूत मिल्यो मोहिं भोर। सूर स्याम मुसकनि मेरो सर्वस लै गए नंदकिसोर॥१४६॥