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भ्रमरगीत-सार/१६४-कबहूँ सुधि करत गोपाल हमारी

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बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १४७

 

राग सारंग
कबहूँ सुधि करत गोपाल हमारी?

पूछत नंद पिता ऊधो सों अरु जसुमति महतारी॥
कबहुँ तौ चूक परी अनजानत, कह अबके पछिताने?
बासुदेव घर-भीतर आए हम अहीर नहिं जाने॥
पहिले गरग कह्यो हो हमसों, 'या देखे जनि भूलै'।
सूरदास स्वामी के बिछुरे राति-दिवस उर सूलै॥१६४॥