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भ्रमरगीत-सार/२११-ऊधो तुम सब साथी भोरे

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भ्रमरगीत-सार
रामचंद्र शुक्ल

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १६१

 

राग मलार
ऊधो! तुम सब साथी भोरे।

मेरे कहे बिलग मानौगे, कोटि कुटिल लै जोरे॥
वै अक्रूर क्रूर कृत तिनके, रीते भरे, भरे गहि ढोरे[]
वै घनस्याम, स्याम अंतरमन, स्याम काम महँ बोरे॥
ये मधुकर दुति निर्गुन गुनते, देखे फटकि पछोरे।
सूरदास कारन संगति के कहा पूजियत[] गोरे?॥२११॥

  1. ढोरे=ढाले, ढरकाए।
  2. पूजियत=पूरे पड़ते हैं, पहुँचते हैं।