भ्रमरगीत-सार/२६४-मधुकर की संगति तें जनियत बंस अपन चितयो
[ १८१ ]
राग मारू
मधुकर की संगति तें जनियत बंस अपन चितयो[१]।
बिन समझे कह चहति सुन्दरी सोई मुख-कमल गह्यो॥
ब्याधनाद कह जानै हरिनी करसायल की नारि?
आलापहु, गावहु, कै नाचहु दावँ परे लै मारि॥
जुआ कियो ब्रजमंडल यह हरि जीति अबिधि सों खेलि।
हाथ परी सो गही चपल तिय, रखी सदन में हेलि[२]॥
ऊनो[३] कर्म कियो मातुल[४] बधि मदिरा-मत्त प्रमाद।
सूर स्याम एते औगुन में निर्गुन तें अति स्वाद॥२६४॥