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भ्रमरगीत-सार/३१५-बारक जाइयो मिलि माधौ

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बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ २०२

 

राग मलार

बारक जाइयो मिलि माधौ।
को जानै कब छूटि जायगो स्वाँस, रहै जिय साधौ॥
पहुनेहु नंद बबा के आबहु देखि लेहुँ पल आधौ।
मिल ही में[] बिपरीत करी बिधि, होत दरस को बाधौ॥
सो सुख सिव सनकादि न पावत जो सुख गोपिन लाधो[]
सूरदास राधा बिलपति है हरि को रूप अगाधो॥३१५॥

  1. मिल ही में=सब बातें बन जाने पर भी।
  2. लाधो=लब्ध किया, पाया।