बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ २०२
राग मलार
बारक जाइयो मिलि माधौ। को जानै कब छूटि जायगो स्वाँस, रहै जिय साधौ॥ पहुनेहु नंद बबा के आबहु देखि लेहुँ पल आधौ। मिल ही में[१] बिपरीत करी बिधि, होत दरस को बाधौ॥ सो सुख सिव सनकादि न पावत जो सुख गोपिन लाधो[२]। सूरदास राधा बिलपति है हरि को रूप अगाधो॥३१५॥