भ्रमरगीत-सार/३२२-ऐसो सुनियत हैं द्वै सावन
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राग मलार
ऐसो सुनियत हैं द्वै सावन।
वहै बात फिरि फिरि सालति है स्याम कह्यो है आवन॥
तब तो प्रीति करी, अब लागीं अपनो कीयो पावन।
यहि दुख सखी निकसि उत जैये जिते सुनै कोउ नावँ न।
एकहि बेर तजी हम्ह, लागे मथुरा नेह बढ़ावन।
सूर सुरति कत होति हमारी, लागीं नीकी[१]भावन॥३२२॥
- ↑ नीकी=अच्छी या सुन्दरी स्त्रियाँ।