भ्रमरगीत-सार/३३१-माधव सों न बनै मुख मोरे

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राग धनाश्री

माधव सों न बनै मुख मोरे।
जिन्ह नयनन्ह ससि स्याम बिलोक्यो ते क्यों जात तरनि[१] सों जोरे।
मुनि-मन-रमन ये जोग, कमठ तन मँदर-भार सहै क्यों[२], ओ रे!
तरुनी-हृदय-कुमुद के बँधन कुंजर क्यों न रहत बिनु तोरे॥
नीलांबर-घनस्याम नीलमनि पैयत है क्यों धूम के भोरे[३]
सूर भृँग कमलन के बिरही चँपक मन लागत कहुँ थोरे॥३३१॥

  1. तरनि=सूर्य।
  2. क्यों=कैसे।
  3. भोरे=धोखे में, धोखा खाकर।