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भ्रमरगीत-सार/३५३-ऊधो! धनि तुम्हरो ब्यवहार

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बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ २१३

 

राग नट

ऊधो! धनि तुम्हरो ब्यवहार।
धनि वै ठाकुर, धनि वै सेवक, धनि तुम बर्तनहार॥
आम को काटि बबूर लगावत, चन्दन को कुरवार[]
सूर स्याम कैसे निबहैगी अन्धधुन्ध सरकार॥३५३॥

  1. कुरवार=कुरवारि, खोदकर।