बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ २१३
राग नट
ऊधो! धनि तुम्हरो ब्यवहार। धनि वै ठाकुर, धनि वै सेवक, धनि तुम बर्तनहार॥ आम को काटि बबूर लगावत, चन्दन को कुरवार[१]। सूर स्याम कैसे निबहैगी अन्धधुन्ध सरकार॥३५३॥