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भ्रमरगीत-सार/३७७-जो पै राखति हौ पहिंचानि

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बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ २२२

 

राग सारंग

जो पै राखति हौ पहिंचानि।
तौ बारेक मेरे मोहन को मोहिं देहु दिखाई आनि॥
तुम रानी बसुदेवगिरहिनी हम अहीर ब्रजबासी।
पठै देहु मेरो लाल लड़ैतो बारों ऐसी हाँसी[]
भली करी कंसादिक मारे अवसर-काज कियो।
अब इन गैयन कौन चरावै भरि भरि लेत हियो॥
खान, पान, परिधान, राजसुख केतोउ लाड़ लड़ावै।
तदपि सूर मेरो यह बालक माखन ही सचु[] पावै॥३७७॥

  1. बारों ऐसी हाँसी=ऐसी हँसी चूल्हे में जाय।
  2. सचु=सुख।