सामग्री पर जाएँ

भ्रमरगीत-सार/८९-सँदेसनि मधुबन-कूप भरे

विकिस्रोत से

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १२१

 

राग मलार
सँदेसनि मधुबन-कूप भरे।

जो कोउ पथिक गए हैं ह्याँ तें फिरि नहिं अवन करे॥
कै वै स्याम सिखाय समोधे[] कै वै बीच मरे?
अपने नहिं पठवत नँदनंदन हमरेउ फेरि धरे॥
मसि खूँटी, कागर जल भीजे, सर दव[] लागि जरे।
पाती लिखें कहो क्यों करि जो पलक-कपाट अरे?॥८९॥

  1. समोधे=समझा बुझा दिया।
  2. दव=दावाग्नि, आग।