बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १२१
जो कोउ पथिक गए हैं ह्याँ तें फिरि नहिं अवन करे॥ कै वै स्याम सिखाय समोधे[१] कै वै बीच मरे? अपने नहिं पठवत नँदनंदन हमरेउ फेरि धरे॥ मसि खूँटी, कागर जल भीजे, सर दव[२] लागि जरे। पाती लिखें कहो क्यों करि जो पलक-कपाट अरे?॥८९॥