भ्रमरगीत-सार/९१-मधुबनियाँ लोगनि को पतिआय

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मधुबनियाँ लोगनि को पतिआय?

मुख औरै अंतर्गत औरै पतियाँ लिखि पठवत हैं बनाय॥
ज्यों कोइलसुत काग जिआवत भाव-भगति भोजनहिं खवाय।
कुहकुहाय[१] आए बसंत ऋतु, अंत मिलै कुल अपने जाय॥
जैसे मधुकर पुहुप-बास लै फेरि न बूझै वातहु आय।
सूर जहाँ लौं स्यामगात हैं तिनसों क्यों कीजिए लगाय[२]?॥९१॥

  1. कुहकुहाय=कूकती है।
  2. लगाय=लन, प्रीति।