सामग्री पर जाएँ

भ्रमरगीत-सार/९१-मधुबनियाँ लोगनि को पतिआय

विकिस्रोत से

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १२२

 

मधुबनियाँ लोगनि को पतिआय?

मुख औरै अंतर्गत औरै पतियाँ लिखि पठवत हैं बनाय॥
ज्यों कोइलसुत काग जिआवत भाव-भगति भोजनहिं खवाय।
कुहकुहाय[] आए बसंत ऋतु, अंत मिलै कुल अपने जाय॥
जैसे मधुकर पुहुप-बास लै फेरि न बूझै वातहु आय।
सूर जहाँ लौं स्यामगात हैं तिनसों क्यों कीजिए लगाय[]?॥९१॥

  1. कुहकुहाय=कूकती है।
  2. लगाय=लन, प्रीति।