महात्मा शेख़सादी/७ सादी की लोकोक्तियां

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महात्मा शेख़सादी  (1917) 
द्वारा प्रेमचंद
[ ६७ ]

सादी की लोकोक्तियां

किसी लेखक की सर्वप्रियता इस बात से भी देखी जाती है कि उसके वाक्य और पद कहावतों के रूप में कहां तक प्रचलित हैं। मानवचरित्र, पारस्परिक व्यवहार, आदि के सम्बन्ध में जब लेखक की लेखनी से कोई ऐसा सारगर्भित वाक्य निकल जाता है जो सर्व-व्यापक हो तो यह लोगों की ज़वान पर चढ़जाता है। गोस्वामी तुलसीदासजी की कितनी ही चौपाइयां कहावतों के रूप में प्रचलित हैं। अंग्रेज़ी में शेक्सपियर के वाक्यों से सारा साहित्य भरा पड़ा है। फारसी में जनता ने यह गौरव शेख़सादी को प्रदान किया है। इस क्षेत्र में वह फ़ारसी के समस्त कवियों से बढ़े चढ़े हैं। यहां उदाहरण के लिए कुछ वाक्य दिये जाते हैं—

अगर हिन्ज़िल खुरी अज़ दस्ते ख़ुशख़ूय,
वेह अज़ शीरोनी अज़ दस्ते तुरुशरूय।

कवि रहीम के इस दोहे में यही भाव इस तरह दर्शाया गया है— [ ६८ ]

अमी पियावत मान बिन, रहिमन हमें न सुहाय।
प्रेम सहित मरिबो भलो, जो विष देइ बुलाय॥




आनांकि ग़नीतरन्द मुहताजतरन्द।
धन के साथ साथ तृष्णा भी बढ़ती जाती है।




हर ऐब कि सुल्तां बेपसन्दद हुनरस्त।

यदि राजा किसी ऐव को भी पसन्द करे तो वह हुनर हो जाता है।


हाजते मश्शाता नेस्त रूय दिलाराम रा।
सुन्दरता बिना शृंगार ही के मन को मोहती है॥

स्वाभाविक सौन्दर्य्य जो सोहे सब अंग माहिं।
तो कृत्रिम आभरन की आवश्यकता नाहिं॥




परतवे नेकां न गीरद हरकि बुनियादश बदस्त।

जिसकी प्रकृति अच्छी नहीं उस पर सज्जनों के सत्संग का कुछ असर नहीं होता।


[ ६९ ]

दुश्मन रा न तवां हक़ीर व बेचारा शुमुर्द।
शत्रु को कभी दुर्बल न समझना चाहिये॥




आक़बत गुर्गज़ादा गुर्ग शवद।
भेड़िये का बच्चा भेड़िया ही होता है॥




दर बाग़ लाला रोयेद व दर शोरा वूम ख़स।
लाला फूल, बाग़ में उगता है, ख़स जो घास है, ऊसर में।




तवंगरी बदिलस्त न वमाल,
व बुज़ुर्गी बअक़लस्त न बसाल।

धनी होना धन पर नहीं वरन् हृदय पर निर्भर है और वृद्धता अवस्था पर नहीं वरन् बुद्धि पर निर्भर है।


सधन होन तैं होत महि, कोऊ लछिमीवान।
मन जाको धनवान है, सोई धनी महान॥


[ ७० ]

हसूद राचे कुनम को ज़ेख़ुद बरंज दरस्त।

ईर्ष्यालु मनुष्य स्वयं ही ईर्ष्या-आग में जला करता है। उसे और सताना व्यर्थ है।


क़द्रे आफ़ियत कसे दानद कि वमुसीबत गिरफ़तार आयद।

दुःख भोगने से सुख के मूल्य का ज्ञात होता है।
विपति भोग भोगे गरू, जिन लोगनि बहु बार।
सम्पति के गुण जानहीं, वे ही भले प्रकार।


चु अज़वे बदर्द आवरद रोज़गार, दिगर अज़बहारा न मानद क़रार।</poem>}}

जब शरीर के किसी अंग में पीड़ा होती है तो सारा शरीर व्याकुल हो जाता है।


हर कुजा चश्मये वुवद शीरीं,
मरदुमो मुर्ग़ो मोर गिर्दायन्द।

विमल मधुर जल सों भरा, जहां जलाशय होय।
पशु पक्षी अरु नारि नर, जात जहां सब कोय॥


[ ७१ ]

आरां कि हिसाब पाकस्त अज़ मुहासिवा चे वाक।

जिसका लेखा साफ़ है उसे हिसाब समझनेवाले का क्या डर?


दोस्त आँ बाशद कि गीरद दस्ते दोस्त,
दर परेशाँ हाली ओ दरमाँदगी।

मित्र वही है जो विपत्ति में काम आवें।


तू पाक बाश बिरादर मदार अज़ कस बाक,
ज़नन्द जामये नापाक गाज़ुराँ बर संग।

कलह से दूर रह तो तेरा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सक्ता। धोबी केवल मैले कपड़े को पत्थर पर पटकता है।


चु अज़ कौमे यके बेदानिशी कर्द,
न केहरा मन्ज़िलत मानद न मेहरा।

किसी जाति के एक आदमी से बुराई हो जाती है तो सारी की सारी जाति बदनाम हो जाती है।


पाय दर ज़ंजीर पेशे दोस्ताँ,
बेह कि बा वेगानगाँ दर बोस्ताँ।

[ ७२ ]

मित्रों के साथ बन्दीगृह भी स्वर्ग है पर दूसरों के साथ उपवन भी नर्क समान है।


नेक बाशी व बदत गोयद ख़ल्क़,
बेह कि बद बाशी ब नेकत गोयन्द।

सन्मार्ग पर चलते हुए अगर लोग बुरा कहें तो यह उससे अच्छा है कि कुमार्ग पर चलते हुए लोग तुम्हारी प्रशंसा करें।


बातिलस्त उन्चे मुद्दई गोयद,
विपक्षी की बात मिथ्या समझी जाती है।


मर्द बायद कि गीरद अन्दर गोश,
गर नबिश्तास्त पन्द वर दीवार।

मनुष्य को चाहिए कि यदि दीवार पर भी उपदेश लिखा हुआ मिले तो उसे ग्रहण करे।

हमराह अगर शिताब कुनद हमरहे तो नेस्त।
जल्दबाज़ का साथ अच्छा नहीं।


[ ७३ ]

हक्क़ा कि वा उक़ूवत दोज़ख़ वराबरस्त,
रफ़तन व पायमर्दी हमसाया दर बहिश्त।

पड़ोसी की सिफ़ारिश से स्वर्ग में जाना नर्क में जाने के तुल्य है।


रिज़्क़ हरचन्द बेगुमां बरसद,
शर्त अल्क़स्त जुस्तन अज़ दरहा।

यद्यपि भूखों कोई नहीं मरता, ईश्वर सब की सुधि लेता है, तथापि बुद्धिमान आदमी का धर्म है कि उसके लिए प्रयत्न करे।


वदोज़द तमा दीदये होशमन्द।
तुष्णा चतुर को भी अन्धा बना देती है।


गरदने वेतमा वुलन्द वुवद।
निस्पृह मनुष्य का सिर सदा ऊंचा रहता है।


निकोई वा वदां करदन चुनानस्त,
कि वद करदन बजाए नेक मरदां।

[ ७४ ]दुर्जनों के साथ भलाई करना सज्जनों के साथ बुराई करने के समान है।

यके नुक़सान माया दीगर शुमातत हमसाया।
गांठ से धन जाय लोग हंसे।


ख़ताये बुजुर्गां गिरफ़्तन ख़तास्त।
बड़ों की निन्दा करना भूल है।


ख़रे ईसा अगर वमक्का रवद,
चूं बयायद हनोज़ ख़र बाशद।

कौवा कभी हंस नहीं हो सकता।


जौरे उस्ताद बेह ज़मेहरे पिदर।
गुरु की ताड़ना पिता के प्यार से अच्छी है।


करीमांरा बदस्त अन्दर दिरम नेस्त,
ख़ुदावन्देन्यामतरा करम नेस्त।

[ ७५ ]दानियों के पास धन नहीं होता और धनी दानी नहीं होते।

परागन्दा रोज़ी परागन्दा दिल।

वृत्तिहीन मनुष्य का चित्त स्थिर नहीं रहता।


पेशे दीवार उन्चे गोई होशदार,
ता न बाशद दर पसे दीवार गोश।

दीवार के भी कान होते हैं इसका ध्यान रख।


कि ख़ुब्स नफ़्स न गरदद व सालहा मालूम।

स्वभाव की नीचता सालों में भी नहीं मालूम होती।


मुश्क आनस्त कि ख़ुद बबूयद, न कि अत्तार बगोयद।

कस्तूरी की पहचान उसकी सुगन्धि से होती है गन्धी के कहने से नहीं।


कि बिसियार ख़्वारस्त बिसियार ख़्वार।

पेटू आदमी का कभी आदर नहीं होता।


[ ७६ ]

कुहन जामये ख़ेश आरास्तन,
वेह अज़ जामये आरियत ख़्बास्तन।

अपने पुराने कपड़ों की मरम्मत करके पहनना मंगनी के कपड़ों से अच्छा है।


चु सायल अज़ तो बज़ारी तलब कुनद चीज़े,
वेदेह वगर न सितमगर वज़ोर बसितानद।

जो आदमी दीनों को नहीं देता वह अत्याचारियों का शिकार होता है।

सखुनश तल्ख़ न ख़्वाही दहनश शीरीं कुन।

अगर किसी की कड़वी बात नहीं सुनना चाहते तो उसका मुंह मीठा करो।


मोरचगांरा चु बुवद इत्तफ़ाक़,
शेरेज़ियां रा बदरानन्द पोस्त।

ऐसा संयोग भी आता है कि चिउंटियां शेर की खाल नोचती हैं।


[ ७७ ]

हुनर बकार न आयद चु बख़्त बदबाशद।

भाग्यहीन मनुष्य के गुण भी काम नहीं आते।


हरकि सुख़न न संजद अज़ जवाब बरंजद।

जो आदमी तौल कर बात नहीं करता उसे कठोर बातें सुननी पड़ती हैं।


अन्दक अन्दक बहम शवद बिसियार।

एक एक दाना मिलकर ढेर हो जाता है।

यद्यपि सादी ने जो उपदेश किये हैं वह अन्य लेखकों के यहां भी पाये जाते हैं, लेकिन फ़ारसी में सादी की सी ख्याति किसी ने नहीं पाई थी। इससे विदित होता है कि लोकप्रियता बहुत कुछ भाषा सौन्दर्य्य पर अवलम्बित होती है। यहां हमने सादी के कुछ वाक्य दिये हैं लेकिन यह समझना भूल होगी कि केवल यही प्रसिद्ध हैं। सारी गुलिस्ताँ ऐसे ही मार्मिक वाक्यों से परिपूर्ण है। संसार में ऐसा एक भी ग्रन्थ नहीं है जिसमें ऐसे वाक्यों का इतना आधिक्य हो जो कहावत बन सक्ते हों। [ ७८ ]गोस्वामी तुलसीदास जी पर यह दोषारोपण किया जाता है कि उन्होंने कई भ्रमोत्पादक चौपाइयां लिख कर समाज को बड़ी हानि पहुंचाई है। कुछ लोग सादी पर भी यही दोष लगाते हैं, और यह वाक्य अपने पक्ष के पुष्टि में पेश करते हैं—

अगर शहरोज़ रा गोयद शबस्त ईं,
बबायद गुफ़्त ईनक माहो परवीं।

अगर बादशाह दिन को रात कहे तो कहना चाहिये कि हां, हुजूर, देखिए चांद निकला हुआ है।

इसपर यह आक्षेप किया जाता है कि सादी ने बादशाहों की झूठी ख़ुशामद करने का परामर्श दिया है। लेकिन जिस निर्भयता और स्वतन्त्रता से उन्होंने बादशाहों को ज्ञानोपदेश किया है उस पर विचार करते हुए सादी पर यह आक्षेप करना बिलकुल न्याय संगत नहीं मालूम होता। इस का अभिप्राय केवल यह है कि ख़ुशामदी लोग ऐसा करते हैं। इसी तरह लोग इस वाक्य पर भी एतराज़ करते हैं—

दरोग़े मसलहत आमेज़ बेह, अज़ रास्ती फ़ितना अंगेज़।

वह झूठ जिस से किसी की जान बचे उस सच से उत्तम है जिस से किसी की जान जाय। कहा जाता है कि सत्य सर्वथा अक्षम्य है और सादी का यह वाक्य झूठ के लिये रास्ता खोल देता है। लेकिन विवाद के लिए [ ७९ ]इस वाक्य की उपेक्षा चाहे की जाय, और आदर्श के उपासक चाहे इसे निन्द्य समझें, पर कोई सहृदय मनुष्य उसकी उपेक्षा न करेगा। इसके साथ ही सादी ने आगे चल कर एक और वाक्य लिखा है जिससे विदित होता है कि वह स्वार्थ के लिए किसी हालत में भी झूठ बोलना उचित नहीं समझते थे:

गर रास्त सुख़न गोई ब दर बन्द बेमानी,
वह जांकि दरोगत देहद अज वन्द रिहाई।

यदि सच बोलने से तुम क़ैद हो जाओ तो यह उस झूठ से अच्छा है जो क़ैद से मुक्त कर दे। इससे यह जान पड़ता है कि पहला वाक्य केवल दूसरों की विपत्ति के पक्ष में है, अपने लिए नहीं।