राबिन्सन-क्रूसो/क्रूसो की खेती।
क्रूसो की खेती।
ब्रेज़िल में आने के कुछ ही दिन बाद कप्तान ने एक भलेमानस के यहाँ मेरी सिफ़ारिश कर दी । उनके ऊख की खेती और चीनी की कारखाना था । कुछ दिन उनके यहाँ रह कर मैंने ऊख की खेती और चीनी बनाने की रीति सीखी । देखा, किसान लोग खेती की बदौलत सहज ही और शीघ्र धनवान् हो जाते हैं । इससे मेरी इच्छा भी खेती करने की हुई । मेरे पास जो कुछ पूँजी थी उसमें जितनी जमीन मिली, मैंने ले ली; और इँगलैन्ड में कप्तान को विधवा स्त्री के पास मेरा जो रुपया जमा था वह मँगा लेने का विचार किया ।
मेरे खेत से सटा हुआ जिसका खेत था वह लिसबन
शहर का एक पोर्तुगीज़ था । उसके माँ-बाप अँगरेज थे ।
नाम उसका वेल्स था । मेरी ही ऐसी उसकी भी कई बार
दुर्दशा हो चुकी थी । हम दोनों, दो वर्ष तक, केवल पेट
भरने को अन्न संग्रह करने के लिए ही खेती करते रहे,
लाभ के लिए नहीं ! हम लोग क्रम क्रम से खेती बढ़ाने लगे ।
तीसरे साल हम लोगों ने तम्बाकू की खेती की और उसके
अग्रिम वर्ष में ऊख बोने की तैयारी करने लगे । किन्तु हम
दोनों को खेत आबाद करने के लिए मज़दूरो की आवश्यकता
होने लगी । तब मैंने समझा कि इकजूरी को छोड़ देना
अच्छा नहीं हुआ । किन्तु बीती हुई बात के लिए सोच
करने से फल ही क्या ? मैंने जब कभी अपनी भूल समझी
तब बहुत विलम्ब से; दूसरी बात यह कि तब भूल-संशोधन करने का कोई उपाय भी न रहता था ।
मेरे पिता ने जिस पेशे का अवलम्बन करके घर पर रहने की बात कही थी, अब वही पेशा करने को मैं बाध्य हुआ । उस समय मैंने पिताजी का आश्रय और सदुपदेश त्याग दिया था । इस काम को यदि तभी स्वीकार कर लेता तो अपने देश से पाँच हज़ार मील पर, अपरिचित और असभ्य लोगों के बीच अकेले रह कर, इस प्रकार निःशङ्क भाव से मुसीबतों का सामना न करना पड़ता । यहाँ मेरा कोई संगी साथी न था । मानों मैं किसी स्वजनशून्य देश में निर्वासित हुआ था । इस अवस्था में रहना मुझे विशेष कष्टकर जँचता था । जो हो, इस प्रकार अकेले रहने का अभ्यास हो जाने के पीछे इससे मुझे बहुत लाभ हुआ ।
मैं इँगलैन्ड से अपना संचित रुपया मँगाने की बात सोच रहा था । मेरे उद्धारकर्ता कप्तान साहब ने उसे ला देना स्वीकार कर लिया । मैंने उनकी मारफ़त अपने पुराने मित्र की स्त्री को अपनी अवस्था के सविस्तर समाचार सहित एक पत्र लिख भेजा ।
लिसबन जाकर कप्तान ने एक व्यापारी अँगरेज़ के मारफ़त मेरी चिट्ठी इँगलैन्ड भेज दी । उस समय चिट्ठी बाँटने
के लिए हरेक देश में डाक का बन्दोबस्त न था । मेरी
मित्र-भार्या ने चिट्ठी पाकर रुपया तो भेज़ ही दिया इसके
सिवा उसने अपनी ओर से मेरे उद्धारकारी कतान को
एक सुन्दर उपहार भी भेज दिया । कप्तान मेरे रुपये से मेरी
खेती बारी के उपयुक्त अनेक वस्तु--यथा हल, फाल, कुदाल,
खुरपी, इत्यादि खरीद कर अपने साथ लेते आये । मैंने ये
चीजें लाने के लिए उनसे न कहा था । वे अपनी दूरदर्शिनी
बुद्धि की प्रेरणा से ही लाये थे । उन चीज़ो से भविष्य में
मेरा यथेष्ट उपकार और सुविधायें हुई थीं । अपने पास से
रुपया देकरछः वर्ष के करार परवे मेरे लिए एक नैकर
मोल लेकर साथ लाये थे । इन अनेक अनुग्रहो के बदले, उनसे
यह कह कर कि यह मेरे खेत की तम्बाकू है, मैंने कुछ
तम्बाकू ले लेने के लिए उन्हें राजी किया ।
उस समय मेरी दशा बहुत उत्तम हो चली थी, और खेती का कारबार भी बढ़ गया था । मैंने कप्तान के दिये नौकर के अलावा दो नौकर और ख़रीदे-—एक हबशी और एक फिरंगी ।
ब्रेज़िल में मेरे चार वर्ष गुजर गये । खेती में मुझे खासा लाभ हुआ । यदि मैं कुछ दिन और सन्तोषपूर्वक खेती का व्यवसाय करता रहता तो मेरे पिता ने मेरे लिए जैसा कुछ गृहस्थी का सुख सोच रक्खा था वैसा ही सुख पाकर मैं एक सम्पन्न गृहस्थ हो जाता । किन्तु चुपचाप बैठकर घर का सुस्वादु अन्न खाना मेरी तकदीर में लिखा ही न था । मेरे सुख के पीछे पीछे सनीचर लगा फिरता था । मैंने आप ही अपना सर्वनाश करने को कमर बाँधी थी । यहाँ भी उसका व्यतिक्रम न हुआ ।
मैंने यहाँ की सब प्रकार की भाषायें सीखी थीं और
पड़ोस के कितने ही किसानों के साथ तथा सन्त सालवाडोर
बन्दर के व्यापारियों के साथ मेरी जान पहचान हो गई थी ।
मैं प्रसंगवश उन लोगों से गिनी उपकूल में हबशियों के साथ
वाणिज्य व्यवहार करने के लाभ की बात कहा करता था ।
काँच के टुकड़े, आइना, छुरी, कैंची, खिलौना, माला आदि
सामान्य वस्तुओं के बदले वहाँ स्वर्णरेणु, अनाज, हाथीदाँत
आदि कीमती चीजें-—यहाँ तक कि हबशी नौकर तक मिलते हैं ।
हबशी नौकर लाने से हम लोगों के खेती के कामों में बहुत
कुछ मदद मिल सकती है, यह भी मैं उन लोगों को समझा ।
देता था । वे लोग मेरी बातों को खूब जी लगाकर सुनते थे । "
एक दिन सवेरे मेरे परिचितों में से तीन व्यक्तियों ने आकर यह प्रस्ताव किया--आप दो बार गिनी-उपकूल में जा चुके हैं । अतएव नौकर लाने के लिए आपही को जाना होगा । इसके लिए जहाज़ और खर्च का प्रबन्ध हम लोग कर देंगे । नौकर ले आने पर, आपके परिश्रम के बदले हम लोग आपसे बिना कुछ लिए ही नौकर का बराबर हिस्सा आप को देंगे ।
यह प्रस्ताव मुझे बहुत अच्छा जान पड़ा । दूसरा कोई आदमी होता तो इस प्रस्ताव में सम्मत न होता; किन्तु में तो चिरकाल से अपने सुख पर आप ही पानी फेर रहा था । मैं इस प्रलोभन को न रोक सका । तुरन्त स्वीकृत कर कहा--“यदि तुम लोग मेरे परोक्ष में मेरी खेती-बारी का काम सँभाले रहो और यदि मैं मर जाऊँ तो मेरे कथनानुसार मेरी सम्पत्ति की व्यवस्था करना स्वीकार करो तो मैं जा सकता हूँ ।" उन लोगों ने मेरी शर्त पर राज़ी होकर एक स्वीकारपत्र लिख दिया । मैंने भी एक वसीयत-नामा (सम्पत्ति-विभागपत्र)लिखा । उसमें अपने उद्धारकर्ता कप्तान को ही मैंने अपना उत्तराधिकारी किया । मेरी मृत्यु के अनन्तर मेरी सारी सम्पत्ति का आधा अंश वे लेकर बाकी आधी सम्पत्ति का मूल्य इँगलेण्ड में मेरे पिता के पास पहुँचा दें।