राबिन्सन-क्रूसो/क्रूसो के अनुपस्थित-समय का इतिहास
क्रूसो के अनुपस्थित-समय का इतिहास
मैंने उन स्पेनियर्ड लोगों से उनका वृत्तान्त पूछा। स्पेनियर्ड-कप्तान मेरे अनुपस्थित-समय का इतिहास कहने लगा। वह मेरे पास से बिदा हो कर अपने साथियों के पास गया था। उसे देख उसके साथी अत्यन्त विस्मित और आनन्दित हुए। जब उन लोगों ने कप्तान के मुँह से अपने उद्धार की बात सुनी तब उन्हें यह शुभ-संवाद सपने की सम्पत्ति की भाँति अत्यन्त सुखद प्रतीत होने लगा। परन्तु कप्तान के पास अस्त्र-शस्त्र देख कर उन्हें विश्वास हुआ। वे यात्रा की तैयारी करने लगे। यात्रा के लिए सबसे प्रथम आवश्यक नाव थी। उन लोगों ने अपने आश्रय-दाता असभ्यों से मछली मारने को जाने का बहाना कर के दो डोंगियाँ माँग लीं। उन्हीं पर सवार हो कर वे लोग यहाँ चले आये।
इन लोगों के साथ वे तीनो अँगरेज़ नाविक पहले अच्छा सलूक करते थे। स्पेनियर्ड लोग ढूँढ़ ढूँढ़ कर खाद्य सामग्री लाते थे और वे लोग बाबू साहब की भाँति बड़े चैन से खाते और द्वीप में इधर उधर घूम फिर कर सैर करते थे। फिर उन्होंने क्रम क्रम से इन लोगों पर अत्याचार करना आरम्भ किया। कभी इन लोगों का खेत काट कर पशुओं को खिला देते थे, कभी पालतू बकरों को मार डालते थे और कभी गोली भर कर मारने का भय दिखलाते थे। कभी घर में आग लगाने की धमकी देते थे। एक दिन एक स्पेनियर्ड ने उनके इस नीच व्यवहार का प्रतिवाद किया। क्रमशः बात ही बात में झगड़ा बढ़ चला। तब उन्होंने स्पेनियों को पराजित करने का संकल्प किया। इसलिए स्पेनियों ने उनसे हथियार छीन लिये। निरस्त्र होने पर वे दुष्ट क्रोध से एकदम पागल हो उठे और स्पेनियर्डों से सम्पर्क त्याग कर चले गये।
पाँच दिन के बाद तीनों आदमी घूमते-फिरते थके-माँदे भूख से व्याकुल होकर लौट आये और बड़े विनीत भाव से उन लोगों से आश्रय की प्रार्थना की। स्पेनियर्डों ने बड़ी शिष्टता से उन्हें खाने-पीने को दिया और बड़ी मुलायमियत से समझा दिया कि इस सुदूरवर्ती द्वीप में हम लोग इने गिने कई मनुष्य हैं। यदि इन कई व्यक्तियों में परस्पर मेल न रहा, सद्भाव न रहा तो यह बड़ी लज्जा का विषय है। इस प्रकार की शिक्षा और मीठे तिरस्कार से उन लोगों ने अपनी भूल स्वीकार की और अपराध के लिए क्षमा प्रार्थना की। फिर वे इस शर्त पर रख लिये गये कि जिन कामों को वे बिगाड़ गये हैं उनका फिर से सुधार करें। वे लोग इस शर्त पर राज़ी होकर बड़ी योग्यता से काम करने लगे। उनके अच्छे आचरण से सन्तुष्ट होकर स्पेनियर्डों ने उन्हें फिर अस्त्र दे दिये।
हाथ में अस्त्र आते ही उन अकृतज्ञों ने फिर रङ्ग बदला। एक दिन स्पेनियर्डों के सरदार रात में बिछौने पर पड़े हुए अपने ऊपर बीती बातें सोच रहे थे। बहुत चेष्टा करने पर भी जब उन्हें नींद न आई तब वे बिछौने पर लेटे न रह सके। उठ कर ज्योंही किले के बाहर आये त्योंही उन्होंने कुछ दूर पर आग जलती देखी और साथ ही मनुष्यों के बोलने की ध्वनि भी सुनी। वह भी दो चार की नहीं, बहुतों की। उन्होंने झट लौट कर साथियों को जगाया और सब बातें कहीं। यह समाचार सुन कर सभी डर गये। सभी ने बाहर आकर देखा कि बहुत से असभ्य तीन जगह आग जलाये अपनी अपनी गोष्ठी बाँधे बैठे हैं, उनमें कोई कोई घूम भी रहे हैं।
अपने रहने के स्थान को मैं जिस तरह छिपा रखने का यत्न करता था, वैसा ये लोग न करते थे। इससे इन लोगों को यह सोच कर डर लगा कि असभ्य गण मनुष्य की बस्ती का चिह्न देख कर फ़सल और पशुओं को नष्ट कर के कहीं सर्वस्वान्त न कर डालें। उन लोगों ने बहुत सोच-विचार करके फ़्राइडे के पिता को जासूस बना कर खोज-ख़बर लेने के लिए भेजा। फ़्राइडे का बाप एकदम नग्न होकर उन लोगों के दल में जा मिला और दो घंटे के बाद ख़बर लाया कि वे दो जातियों के दो दल हैं। देश में उन लोगों की परस्पर ख़ूब लड़ाई हुई है। बन्दियों को मार कर खाने के लिए दोनों दल इस द्वीप में आये हैं। दैवयेाग से दोनों दल एक ही जगह आ गये हैं इससे दोनों दलों के भोज का आनन्द नष्ट हो गया है। संभव है, सुबह होने पर फिर दोनों दल परस्पर युद्ध करें। किन्तु अभी तक उन लोगों को मनुष्य की बस्ती का कुछ पता नहीं लगा। फ़्राइडे के पिता की बात खतम होते न होते देखा कि वे असभ्य लोग बिकट चीत्कार कर के युद्ध-ताण्डव में मत्त हो उठे।
उन का युद्ध देखने के लिए सभी व्यग्र हो उठे। फ़्राइडे का पिता सबको समझाने लगा कि "उन लोगों से छिप कर रहने ही में भला है। जाहिर होने में शायद कोई संकट आ पड़े। वे लोग आपस में लड़ झगड़ कर कट मरेंगे। जो बचेंगे वे अपने देश को लौट जायँगे।" पर कौन किसकी सुनता है? विशेष कर अँगरेज़ों को रोक रखना कठिन हुआ। तमाशा देखने की लालसा ने उन लोगों की हित-बुद्धि को मन्द कर डाला। वे लोग छिप कर जंगल के भीतर से युद्ध देखने गये।
सुबह होते होते खूब भयङ्कर युद्ध हुआ। दो घंटे पीछे एक दल युद्ध में हार कर भागने लगा। तब हम लोगों के पक्षवालों को भय होने लगा। भय का कारण यह था कि उन भागने वालों में से यदि कोई मेरे घर के सामने की उपवाटिका में आ छिपेगा तो सहज ही हम लोगों के घर का पता लग जायगा। इसके बाद उसके पीछा करने वालों से भी पता छिपा न रहेगा। इसलिए जितने स्पेनियर्ड थे सभी ने सशस्त्र होकर रहने का विचार किया और यह भी सोचा कि जो इस तरफ़ छिपने आवेंगे उन्हें फ़ौरन मार डालेंगे, जिसमें कोई अपने देश तक ख़बर न पहुँचा सके। परन्तु यह कार्य बन्दूक़ से न किया जाय क्योंकि उसका शब्द और लोग सुन लेंगे। यह काम बन्दूक के कुन्दे और तलवार से लेना ही ठीक होगा।
जिस बात की आशङ्का थी वही हुई। तीन पराजित असभ्य भाग कर उपवाटिका में आ छिपे। पर उन लोगों को खोजने कोई न आया। यह देख कर स्पेनियर्ड कप्तान ने कहा-"इन्हें मत मारो। ये लोग मरने ही के भय से तो यहाँ भाग कर आ छिपे हैं। गुप्त रीति से तुम लोग इन पर आक्रमण करो और इन्हें गिरफ्तार करके ले आओ।" दयालु कप्तान की आज्ञा के अनुसार ही काम हुआ। अवशिष्ट पराजित असभ्य अपनी डोंगी पर सवार हो कर समुद्र पार चले गये। विजयी दल भी विजय के उल्लास से दो बार खूब ज़ोर से गरजा और दिन को पिछले पहर चला गया। इसके बाद इस द्वीप में स्पेनियर्ड लोगों का ही एकाधिपत्य हुआ। असभ्य लोग कई वर्ष तक इस द्वीप में फिर न आये।
उन असभ्यों के चले जाने पर स्पेनियर्ड लोग किले से निकल कर रणभूमि देखने गये। देखा, बत्तीस आदमी युद्धक्षेत्र में मरे पड़े हैं। उनमें एक भी व्यक्ति घायल न था। घायलों को वे लोग अपने साथ उठा ले गये थे।
यह मामला देख-सुन कर वे अँगरेज़ कई दिनों तक कुछ शान्तभाव धारण किये रहे। मनुष्य को मनुष्य खालेता है, इस अद्भुत व्यापार ने उनके मन में भय उत्पन्न कर दिया था। पर कुछ ही दिनों में उनका क्रूरस्वभाव फिर प्रबल हो उठा।
वे इन तीनों बन्दियों से नौकर का काम लेने लगे। किन्तु मैंने जिस तरह फ़्राइडे को शिक्षा देकर एकदम अपना अङ्ग बना लिया था वैसा वे लोग न कर सके। धर्म-शिक्षा तो दूर की बात है, साधारण शिक्षा भी उन्होंने उन असभ्यों को न दी। इससे वे मजबूर होकर काम करते थे, पर मन से नहीं करते थे। इस कारण, सेव्य-सेवकों में प्रीति और विश्वास का नितान्त अभाव था।
एक दिन सभी मिल कर खेती का काम कर रहे थे। एक अँगरेज़ ने असभ्य जाति के एक नौकर से कोई काम करने को कहा। वह उस काम को वैसा न कर सका जैसा उसे करने को उस अँगरेज़ ने बताया था। इससे क्रुद्ध हो कर उस बदमिज़ाज अँगरेज़ ने कमरबन्द से खंजर निकाल कर उस बेचारे दास के कन्धे पर एक हाथ जमा दिया। यह देख कर एक स्पेनियर्ड ने झट जा कर उस अँगरेज़ का हाथ पकड़ लिया। इससे वह एकदम क्रोधान्ध हो कर स्पेनियर्ड का ही खून करने पर उद्यत हो गया। इस पर सभी स्पेनियर्ड बिगड़ गये और इसी कारण अँगरेज़ों तथा स्पेनियों में एक छोटी सी लड़ाई हो गई। स्पेनियर्ड दल में अधिक लोग थे इससे अत्याचारी अँगरेज़ शीघ्र ही पराजित हो कर बन्दी हुए। तब यह प्रश्न उपस्थित हुआ कि इन दुर्दान्त पशुबुद्धियों को कौन सी सज़ा दी जाय। ये लोग जैसे उग्र, उद्दण्ड, आलसी और अपकारक हैं इससे इन लोगों को ले कर गृहस्थी का काम करना कठिन है। इन्होंने बार बार जैसा अत्याचार और विद्रोह किया है और कर रहे हैं इससे इनके साथ रहने में प्राणों को हथेली पर रख कर रहना होगा।
स्पेनियर्ड मुखिया ने कहा-यदि ये हमारे स्वदेशो होते तो इन लोगों को फाँसी दे कर कमी के इस झंझट को किनारे कर देते। जो लोग समाज-द्रोही हैं उनके दूर होने ही में समाज का मङ्गल है। किन्तु ये लोग अँगरेज़ हैं। इधर एक अँगरेज़ की ही दया से हम लोगों के प्राण बचे हैं और वही इन लोगों को यहाँ रख गये हैं। अब इन्हें मार कर हम लोग उनको क्या जवाब देगे? इसलिए इन लोगों काविचार नितान्त दयालुभाव से करना होगा।
बहुत तर्क-वितर्क के बाद यह तय हुआ कि इन लोगों के हथियार ज़ब्त करके इन्हें अपने दल से निकाल देना चाहिए। अब इन्हें बन्दूक़, गोली-बारूद, तलवार या दूसरा कोई हथियार न देना चाहिए। इन लोगों की जहाँ इच्छा हो वहाँ जा कर रहें। हम लोगों में कोई इनसे वार्तालाप न करे। वे लोग अपनी एक निर्दिष्ट सीमा का अतिक्रम करके स्पेनियर्डों की सीमा के भीतर पैर न रक्खें। इस प्रकार परित्यक्त होने पर भी यदि वे किसी का कुछ अपकार या नुकसान करेंगे तो उनको मृत्यु निश्चित है, तब उनकी एक भी उन न सुनी जायगी।
स्पेनियर्डों के मुखिया बड़े ही दयालु थे। उन्होंने कहा, एक बात और सोच लेनी चाहिए। ये लोग हमारे समाज से निकाले जाने पर क्या खायँगे? अनाज उपजाने में भी समय लगेगा। इन लोगों को भूखों मार डालना उचित नहीं। इन लोगों के लिए खाने-पीने को कुछ व्यवस्था कर के तब समाज से अलग कर देना ठीक होगा। इन्हें आठ महीने का खाद्य और बीज के उपयुक्त अनाज, छः बकरियाँ, चार बकरे तथा खेती करने का सामान्य उपकरण देकर बिदा कर दो।" यही हुआ। उन लोगों से इस बात का मुचलका ले लिया गया कि अब वे भविष्य में किसी साधारण से भी साधारण व्यक्ति का कुछ अपकार न करेंगे। इसके बाद सर्दार की प्राज्ञा के अनुसार उन्हें जीवन-यात्रा के लिए वे सब वस्तुएँ दे दी गईं। इन वस्तुओं को लेकर वे लोग बहुत उलझन में पड़े। न उनसे जाते ही बनता था और न ठहरते ही। आखिर वे लोग क्या करते। लाचार हो कर वहाँ से बिदा हुए और अपने रहने को जगह ढूँढ़ने लगे।
उन्होंने टापू के दूसरी ओर एक सुभीते की जगह ढूँढ़ ली। तीनों अँगरेज़ वहाँ घर बनाकर एक साथ रहने लगे। मारने लायक़ हथियार के सिवा उन लोगों को और किसी वस्तु की कमी न रही। इस प्रकार स्वतन्त्रता-पूर्वक उन्होंने छः मास बिताये। जब उन लोगों की गृहस्थी का कारबार जम गया तब फिर उनको शैतानी करने की सूझी। उन लोगों को जीवन-निर्वाह का यह श्रमसाध्य ढंग अच्छा नहीं लगा। उन्होंने सोचा कि असभ्य देश में जाकर दो-चार असभ्यों को पकड़ लावें और उनसे नौकर का काम लें। इस विचार को चरितार्थ करने के लिए वे लोग व्यग्र हो उठे। एक दिन उन्होंने स्पेनियों की निर्दिष्ट सीमा के पास आकर स्पनियों को एक बात सुनने के लिए पुकारा। स्पेनियर्ड जब सुनने गये तब उन्होंने अपना मतलब कह सुनाया और स्पेनियों से एक डोंगी तथा आत्मरक्षा के लिए एक बन्दूक़ उधार माँगी।
स्पेनियर्ड तो चाहते ही थे कि किसी तरह इन दुष्टों की संगति से छुट्टी मिले-"बरु भल वास नरक कर ताता, दुष्ट संग जनि देहिं विधाता।" इसलिए अँगरेज़ों के इस प्रस्ताव को उन लोगों ने सहर्ष माना। तथापि उन लोगों ने शिष्टता को जगह देकर अँगरेज़ों को बहुत तरह से समझाया कि तुम्हारा यह संकल्प बहुत ही विपद्-मूलक है। वे उस देश में जाकर या तो भूखों मरेंगे या वहाँ के निवासी नर-पिशाचों के मुँह के आहार होकर प्राण गवाँवेंगे। किन्तु वे लोग अपने संकल्प पर दृढ़ थे। उन्होंने कहा कि हम लोग यहाँ भी भूखों ही मरेंगे। कारण यह कि हम लोग परिश्रम करके अपनी जीविका नहीं चला सकते। बिना श्रम के रोटी पैदा करना कठिन है। इसलिए जब मरना ही होगा तब एक बार साहस करके विदेश को देख-सुन कर ही मरेंगे। यदि विदेशीय असभ्य हम लोगों को मार डालेगे तो सब बखेड़ा तय हो जायगा। हम लोगों के न स्त्री है न बाल-बच्च, जो शोकाकुल होकर रोयें-कलपेंगे। आप लोग अस्त्र दें या न दें, हम लोग ज़रूर जायँगे।
तब स्पेनियर्डों ने उन लोगों को अपनी सामान्य पूँजी में से दो बन्दूक़ें, एक पिस्तौल, एक तलवार और थोड़ी सी गोली-बारूद दी। उन लोगों ने एक महीने के लायक भोजन साथ रख लिया। थोड़ा सा मांस, एक जीवित बकरा, एक टोकरी सूखे अंगूर और एक घड़े भर जल लेकर समुद्र-यात्रा की। समुद्र का दूसरा तट कम से कम चालीस मील पर होगा। स्पेनियर्डों ने उन को बिदा करके एक तरह से अपनी बला को टाल दिया। उन अँगरेज़ों से दुबारा भेंट होने की आशा किसी को न थी। उनके जाने से सभी निश्चिन्त हुए।
उन लोगों के चले जाने पर स्पेनियर्ड-लोग आपस में कहने लगे,-"उन पाखण्डियों के चले जाने से हम लोगों का समय अब बड़े आराम और आनन्द से कटेगा। आफ़त टली।" किन्तु वास्तव में उन लोगों की आफ़त टली न थी। बाईस दिन के बाद एक व्यक्ति ने देखा कि तीन आदमी टापू में आये हैं। उनके कन्धे पर बन्दूक़ें हैं। वह गिरता पड़ता हाँफता हुआ सर्दार के पास दौड़ कर आया और उनसे कहा कि टापू में कोई बड़ा आदमी आया है। सर्दार ने कहा-"असभ्य लोग आये होंगे।" उसने कहा-"नहीं नहीं, असभ्य नहीं हैं। पोशाक पहने हैं, कन्धे पर बन्दूक रक्खे हैं।" सर्दार ने कहा-तो फिर डरने की क्या बात है? यदि वे लोग असभ्य नहीं हैं तो वे हमारे मित्र ही होंगे, क्योंकि किसी सभ्य जाति से हम लोगों का मङ्गल के सिवा अमङ्गल होने की आशङ्का नहीं है।
इस तरह बातचीत हो ही रही थी कि इतने में उन तीनों अँगरेज़ों ने किले के समीपवर्ती उपवन से निकल कर स्पेनियर्डों को पुकारा। वे अपने परिचित अँगरेज़ों का कण्ठस्वर पहचान कर भेद समझ गये। परन्तु वे अँगरेज़ कहाँ से, और किस उद्देश्य से, लौट आये हैं इसका असली तत्त्व समझने की चिन्ता भी तो कुछ कम न थी।
स्पेनियर्डों ने उन्हें किले के भीतर बुला कर उनसे वृत्तान्त पूछा। अँगरेज़ों ने यों कहना प्रारम्भ किया-
"हम लोग दो दिन में समुद्र के उस पार गये, किन्तु वहाँ के निवासी हम लोगों के आगमन से डर कर तीर-धनुष सँभाल कर के हमारी अभ्यर्थना करने लगे। हम लोग सशस्त्र अभ्यर्थना को पसन्द न करके वहाँ उतरने का साहस न कर सके। छः सात घंटे किनारे किनारे नाव ले जाकर हम लोगों ने और भी कई टापू देखे। एक जगह हम लोग अपने भाग्य के भरोसे उतर पड़े। वहाँ के रहनेवालों ने हम लोगों को भ्रातृ-भाव से ग्रहण किया और फल-मूल तथा सूखी मछलियाँ खाने के लिए देकर आतिथ्य-सत्कार किया। क्या स्त्री क्या पुरुष, सभी हम लोगों के अभाव-मोचन के लिए उत्साह पूर्वक दूर दूर से अपने सिर पर आवश्यक वस्तुएँ ढो ढो कर लाने लगे। हम लोग यहाँ चार दिन रहे और इशारे से उनसे आसपास के द्वीप-निवासियों के शील-स्वभाव का हाल पूछने लगे। असभ्यों ने संकेत द्वारा कहा-'सभी टापुओं के मनुष्य नर-मांस खाते हैं, केवल हम लोग ऐसे हैं जो सब मनुष्यों का मांस नहीं खाते। किन्तु हम लोग भी युद्ध में गिरफ़्तार हुए नर-नारियों को मार कर विजय के उपलक्ष में भोज ज़रूर करते हैं। अभी हाल ही में हम लोगों ने ऐसा ही नर-मेध किया है। हम लोगों के महाराज ने दो सौ दुश्मनों को बन्द कर रक्खा है। अभी वे खूब खिला-पिला कर पुष्ट किये जा रहे हैं। इसके बाद एक दिन बहुत बड़ा भोज होगा।' उन सब बन्दियों को देखने के लिए हम लोग अधिक उत्कण्ठित हुए। उन बन्दियों के देखने का बड़ा कुतूहल हुआ। किन्तु उन असभ्यों ने इस कुतूहल को नर-मांस-लोलुपता समझ कर इशारे से कहा-'इसके लिए इतनी आतुरता क्या? कल तुम लोगों को भी कुछ मनुष्य ला देंगे, उन्हें खा लेना।' दूसरे दिन सबेरे ग्यारह पुरुष और पाँच स्त्रियाँ लाकर हम लोगों को उपहार में दीं। मानो इन मनुष्य का मूल्य भेड़-बकरों से अधिक नहीं है। हम लोग निर्दय और घातक होने पर भी नर-मांस खाने का नाम सुन कर सहम उठे। हम लोगों को उबकाई आने लगी और असभ्यों की इस राक्षसी प्रकृति पर हमें बड़ी घृणा हुई, किन्तु नरबलि का उपहार लौटाना असभ्यों के आतिथ्य का विषम अपमान है। इसलिए हम लोग बड़े संकट में पड़े। इतने लोगों को लेकर हम क्या करेंगे? तथापि हमें यह उपहार स्वीकार करना ही पड़ा और उपहार के बदले हमने उन असभ्यों को एक कुल्हाड़ी, एक टूटी कुञ्जी, एक छुरी, और पाँच छः शीशे की गोलियाँ दीं। इन कई साधारण वस्तुओं को पाकर वे असभ्य गण मारे खुशी के उछल उठे। इसके बाद उन असभ्यों ने बन्दियों के हाथ-पैर बाँध कर उन्हें नाव में रख दिया। हम लोगों ने वहाँ विलम्ब करना उचित न समझ शीघ्र यात्रा की। कौन जाने, पीछे वे असभ्य हमें नर-मांस खाने के लिए कहीं निमन्त्रण ही दे बैठे। हम लोगों ने रास्ते में एक द्वीप में आठों बन्दियों को उतार कर छोड़ दिया। हम इतने लोगों को लेकर क्या करते? या उन्हें खाने ही को क्या देते? स्त्रियों को स्वस्थ और सबल देख कर हम लोगों ने अपने लिए रख छोड़ा। बाकी बन्दियों के साथ हमने बातचीत करने की चेष्टा की, पर कुछ फल न हुआ। हम लोग जभी कुछ पूछते थे तभी वे भय से काँपने लगते थे। वे समझते थे कि इसी बार हम लोग उन्हें खा डालेंगे। हम लोगों ने ज्योंही उनका बन्धन खोलना चाहा त्योंहीं वे आर्तस्वर से चिल्ला उठे मानो अभी उनके गले पर तेज़ छुरी फेरी जायगी। उनको जब कुछ खाने के लिए दिया जाता तब वे यही समझते कि उनको मोटा-ताज़ा करने का उपाय किया जा रहा है। किसी की ओर देखने से वह सकुच जाता था। वह समझता था कि वह मारे जाने के योग्य हृष्ट-पुष्ट है या नहीं, इसीकी तजवीज हो रही है। उन लोगों के साथ विशेष सद्व्यवहार करने पर भी उनके जी में मारे जाने की आशङ्का प्रतिपल बनी ही रहती थी। हम लोग उन्हें इस द्वीप में ले आये हैं और घर के भीतर बन्द कर आये हैं।"
यह अद्भुत वृत्तान्त सुन कर सभी स्पेनियर्ड कुतूहलाक्रान्त होकर उनको देखने चले। उन लोगों ने अँगरेज़ों के घर जाकर देखा कि सभी के हाथ बँधे हैं। स्त्री-पुरुष दोनों बिलकुल नङ्ग धड़ङ्ग हैं और सब एक ही साथ बैठे हैं। यह दृश्य स्पेनियर्डों की आँखों में बेतरह बुरा मालूम हुआ।
पुरुष अच्छे हट्टे-कट्टे और बलिष्ठ थे। क़द लम्बा सा, शरीर सुगठित, चेहरा देखने में बुरा न था। उम्र तीस से पैंतीस के भीतर थी। स्त्रियाँ भी बदसूरत न थीं। शरीर लावण्य-युक्त था। केवल रङ्ग साँवला था। यदि बदन का रंग गोरा होता तब तो वे ख़ास लन्दन की सुन्दरियों में परिगणित होतीं और आदर पातीं। उनमें दो स्त्रियाँ तीस-चालीस वर्ष की थीं। दो स्त्रियों की उम्र चौबीस-पच्चीस वर्ष की थी। एक नव-यौवना थी। उसकी उम्र सोलह सत्रह वर्ष से अधिक न थी। सब की अपेक्षा यही विशेष रूपवती थी।
फ़्राइडे के पिता ने दुभाषिया बन कर उन असभ्यों को समझा दिया कि 'तुम लोगों को प्राणों का भय न होगा। सभ्यजाति के लोग मनुष्य का मांस नहीं खाते।' यह आश्वासन-वाक्य सुन कर उन लोगों के हर्ष का वारापार न रहा। वे अपने हृदय का उल्लास इस प्रकार प्रकट करने लगे, जिसका वर्णन करना कठिन है।
इसके बाद उन लोगों से यह बात पूछी गई कि तुम हमारे समाज की अधीनता स्वीकार कर काम करने को राजी हो या नहीं। यह प्रश्न सुनते ही वे लोग मारे खुशी के नाचने लगे। इसका आशय यही कि हम लोग हृदय से काम करना पसन्द करते हैं।
किन्तु स्पेनियर्डों के सर्दार स्त्रियों के आने से डर गये। अँगरेज़ लोग यों ही आपस में लड़ते-झगड़ते थे। अब इन स्त्रियों के कारण, मालूम होता है भारी फ़साद उठ खड़ा होगा।' उन्होंने अँगरज़ों से पूछा, तुम लोग इन स्त्रियों को लेकर क्या करोगे? दासी बना कर रक्खोगे या पत्नी?
अँगरेज़-हम लोग उनसे दोनों ही काम लेंगे। वे हमारी दासी भी होंगी और पत्नी भी।
स्पेनियर्ड-सरदार-"अच्छी बात है, मैं इस विषय में तुम्हें कोई बाधा न दूँगा। तुम जो अच्छा समझो, करो। किन्तु मुझे यह व्यवस्था कर देनी चाहिए जिसमें तुम लोग आपस में किसी तरह की तकरार न करो। इसलिए तुम लोगों से मेरा एक अनुरोध है कि तुम लोग एक स्त्री से अधिक ग्रहण न करो। दार-परिग्रह के अनन्तर तुम सब आपस में मिल जुल कर रहो। कोई किसी के अधिकार पर हस्तक्षेप न करे। सब अपनी अपनी स्त्री का भरण-पोषण करें।" इन प्रस्तावों पर अँगरेज़ सहज ही में सम्मत हो गये। उन्होंने स्पेनियर्डों से पूछा-"क्या तुम लोगों में कोई ब्याह करना चाहता है?" उन सब ने एक साथ इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर के अपने आत्म-निग्रह और धर्मनिष्ठा का परिचय दिया। उनमें कितने ही यह कह कर, कि देश में हमारी स्त्री और बालबच्चे हैं, पुनर्विवाह करने पर स्वीकृत न हुए। किसी किसी ने असभ्य जाति की स्त्रियों से ब्याह करना पसन्द न किया।
अँगरेज़ों ने विवाहित होकर अपना नया घर बसाया। स्पेनियर्ड लोग और फ़्राइडे का पिता मेरे ही पुराने घर में रहते थे। उन लोगों ने गुफ़ा के भीतरी हिस्से को खोद कर खूब लम्बा-चौड़ा कर लिया था। इसके पूर्व उन लोगों ने असभ्यों के पारस्परिक युद्ध के समय जिन तीन व्यक्तियों को गिरफ़्तार किया था, उन पर किसी तरह का अत्याचार न कर के उनसे नौकर का काम लेने लगे। इस निर्जन द्वीप में यही तीन नौकर उन लोगों के प्रधान आश्रयवर्ती थे। वे सभी लोगों के लिए आहार का संग्रह करते और यथासाध्य हर एक काम में अपने पालकों को मदद देते थे।
विवाह के समय उन लोगों में किसी तरह का कुछ असमञ्जस न हुआ। पहले किसका ब्याह हो? इसका निश्चय इस प्रकार हुआ कि तीनों के नाम काग़ज़ के तीन टुकड़ों पर लिखे गये। तीनों टुकड़े मोड़ कर एक जगह रक्खे गये। एक व्यक्ति ने आँख मूँद कर उनमें से एक टुकड़ा उठा लिया। उस टुकड़े में जिसका नाम निकला उसीका पहले ब्याह हुआ। उसने उन स्त्रियों में जिसे पसन्द किया उसे अपनी अर्धाङ्गिनी बनाया। आश्चर्य का विषय यह है कि जिस व्यक्ति ने पहिले ब्याह किया था उसने उन स्त्रियों में जो सब से पुरानी थी उसीको पसन्द किया। मालूम होता है, उन स्त्रियों में वही प्रधान थी। दूसरी बार जिसका नाम निकला उसने अधेड़ स्त्री को लिया। तीसरे व्यक्ति ने नवयुवती का पाणिग्रहण किया। मेरे जहाज़ के दो अँगरेज़-नाविक और इस द्वीप में रहते थे। उन्होंने अन्य दो स्त्रियों के साथ ब्याह कर लिया।
स्त्रियों ने जब देखा कि एक एक व्यक्ति घर में आता है और क्रमशः एक एक स्त्री को लिये जाता है तब उन्होंने निश्चय किया कि इस बार हमारी जान न बचेगी। तीसरे व्यक्ति ने जब जा कर युवती का हाथ पकड़ा तब सभी औरतें आर्तस्वर से चिल्ला उठीं, और उस युवती के बदन से लिपट गईं। सभी ने उसको गले लगा कर इस करुणभाव से उससे बिदा माँगी, जिसे देख कर मनुष्य की तो कुछ बात ही नहीं पत्थर का हृदय भी बिना पसीजे न रहता। तब फ़्राइडे के बाप ने उन स्त्रियों को बहुत तरह से समझाया कि वे मारी जाने के लिए नहीं, ब्याह करने के लिए बुलाई जा रही हैं।
इस प्रकार वैवाहिक विधि सम्पन्न होने पर अँगरेज़ों ने गृहस्थी की ओर ध्यान दिया। स्पेनियर्ड उन सभों को यथासाध्य सहायता देने लगे। अँगरेज़ों में जो सब से बढ़ कर दुश्शील था उसीको सबसे बढ़ कर सुशीला और गुणवती स्त्री मिली। ईश्वर का विधान और उनकी लीला सर्वत्र ऐसी ही विचित्र देखने में आती है। वे सर्वत्र ही कमी-वेशी और भाव-अभाव को मिला कर परस्पर के न्यूनाधिक्य को पूरा कर देते हैं। और स्त्रियाँ भी पहली की तरह सुशीला और विनीत न होने पर भी गुणहीन न थीं। सभी गृहस्थी के काम में प्रवीण और शील-सम्पन्न थीं। अँगरेज़ों ने अपनी अपनी स्त्री की सहायता से भली भाँति घर का प्रबन्ध कर लिया। घर के चारों ओर वृक्ष रोप कर घेरा बना दिया। उन वृक्षों पर अंगूर की लतायें चढ़ा दीं और पहाड़ को खोद कर एक कृत्रिम गुफा बना कर के विपद आ पड़ने पर छिपने की एक जगह बना ली।
वे तीनों उद्धत अँगरेज़ कोमल-स्वभावा रमणियों की संगत से बहुत कुछ सीधे और शान्त हो गये। किन्तु उन लोगों का आलस्य किसी तरह दूर न हुआ। उन लोगों के खेतों के चारों ओर छोटे पौधों का घेरा था, जिसे लाँघ कर जङ्गली बकरे खेत चर जाया करते थे। कहावत है, 'चोर भागने पर बुद्धि बढ़ती है।' धान चर जाने पर सूखी लकड़ियों से वे उस रास्ते को बन्द करले थे जिधर से बकरे खेत में घुस कर फसल चर जाते थे। वे लोग दिन-रात इसीके पीछे हैरान रहा करते थे। किन्तु अन्य दो अँगरेज़-नाविकों का घर-बार खेती-बाड़ी सभी मानो खिल खिला कर हँस रही थी। वे सभी काम आलस्य छोड़ कर करते थे, इसीसे उनके एक भी काम में व्यतिक्रम न था। जहाँ श्रम है वहीं लक्ष्मी का वास है। जहाँ तत्परता है वहीं उन्नति है। जहाँ मनोयोग है वहीं सौन्दर्य है। जहाँ आलस्य है वहाँ दरिद्र का निवास है। आलसी मनुष्य के सभी काम बेतरतीब होते हैं। आलसियों के भाग्य में सुख कहाँ? जो श्रम-विमुख हैं उन्हें सभी वस्तुओं का अभाव रहता है। उन्हें अभाव नहीं रहता है केवल दुःख और दारिद्रय का। परिश्रमी को किसी बात की तकलीफ़ नहीं रहती। उसके चारों ओर आनन्द छाया रहता है। दरिद्रता पास फटकने नहीं पाती। उन तीनों आलसी अँगरेज़ों की स्त्रियाँ बड़ी सुघड़ थीं इसीसे उन लोगों का किसी तरह समय कट जाता था, नहीं तो वे अपनी मक्खियाँ भी न हाँक सकते।