राबिन्सन-क्रूसो/द्वीप में असभ्यों का उपद्रव

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द्वीप में असभ्यों का उपद्रव

सभी लोग सुख-स्वच्छन्द से अपने अपने घर का काम धन्धा कर रहे थे। एक दिन सबेरे असभ्यों से भरी हुई पाँच छः नावें इस द्वीप में आ पहुँचीं। मालूम होता है, वे लोग नर-मांस खाने ही के लिए आये होंगे। द्वीप-वासी सभी लोग इस बात को अच्छी तरह समझ गये थे कि उन लोगों की दृष्टि से बच कर रहने में विपत्ति की कोई सम्भावना नहीं है। इसलिए सभी लोग छिपे रहे। असभ्य लोग अपना काम निकाल कर चले गये। [ २८८ ]उन लोगों के चले जाने पर द्वीप-वासियों ने एक बार वहाँ जाकर देख पाना चाहा कि असभ्यगण क्या करने आये थे। सभी लोगों ने वहाँ जाकर देखा, जहाँ वे उतरे थे। तीन असभ्य धरती पर लेटे घोर निद्रा में अचेत पड़े थे। शायद ये लोग बेअन्दाज़ नर-मांस खाकर, अफर कर, सो रहे थे। निद्रित होने के कारण इन्हें मालूम ही नहीं हुआ कि साथी लोग कब चले गये। संभव है, इनकी नींद न टूटी हो और वे लोग बिना जगाये चल दिये हों अथवा ये लोग जंगल में घूमने गये होंगे। जब इन लोगों ने लौट कर देखा होगा कि साथी चले गये तब निश्चिन्त होकर सो रहे होंगे। जो हो, उनको सोते देख सभी भय और आश्चर्य से ठिठक रहे। सभी ने सर्दार से पूछा कि इन लोगों के साथ कैसा बर्ताव करना चाहिए। सर्दार की समझ में भी कुछ न आता था जो अपनी राय जाहिर करते। द्वीप-वासियों के पास बहुत से दास थे ही, वे और लेकर करेंगे ही क्या, या उन्हें खाने ही को क्या देंगे? तब इन असभ्यों को मार डालना चाहिए। किन्तु इन लोगों का अपराध ही क्या है? निर्दोष बेचारों को प्राणदण्ड देना भी तो ठीक नहीं। निरपराधियों को मारने में राक्षसों का भी हाथ सहसा नहीं उठता। बड़े बड़े निर्दय और नृशंस भी ऐसे काम में सङ्कुचित हो उठते हैं। वे असभ्य जागने पर चले जाते तब तो सब बखेड़ा ही मिट जाता। किन्तु बिना नाव के वे लोग जायँगे कैसे? जागने पर वे लोग द्वीप भ्रमण में प्रवृत्त होंगे और द्वीपवासियों का पता पाकर अनर्थ का बीज बोयेंगे। अन्ततोगत्वा यही स्थिर हुआ कि उन लोगों को क़ैद करके रखना चाहिए। वे जगा कर कैद कर लिये गये। जब उनके हाथों [ २८९ ] में हथकड़ी डाली गई तब वे बहुत भयभीत हुए। उन्होंने समझा कि "अब की बार अपने विजयी के भोज में हमारा कबाब बने बिना न रहेगा।" उनका इस तरह सोचना स्वाभाविक ही था। मनुष्य दूसरे को बहुत करके अपने ही जैसा समझता है। द्वीप-निवासियों ने उन्हें समझा-बुझा कर निर्भय कर दिया।

बन्दियों को वे लोग मेरे कुञ्जभवन में ले गये। उन्होंने उन बन्दियों को किले का पता न बता कर अच्छा ही किया था। क्योंकि दो-एक दिन के बाद उनमें से एक आदमी काम करते करते न मालूम किस तरह सब की नज़र बचा कर जङ्गल में भाग गया। बहुत खोजने पर भी वह कहीं न मिला। कई दिन पीछे असभ्यों का एक दल नाव पर चढ़ कर द्वीप में नरमांस खाने आया था। वह उन्हीं लोगो के साथ देश लौट गया होगा। यदि यह बात सच है तब तो सर्वनाश होना ही सम्भव है। असभ्य लोग टापू में मनुष्य की गन्ध पा कर राक्षस की भाँति झुंड के झुंड आकर अनर्थ करेंगे। असंख्य राक्षसों का मुकाबला यहाँ के इने गिने साधारण अधिवासी कैसे कर सकेंगे? कुशल इतना ही है कि वे किले का हाल नहीं जानते और बन्दको की गोलियों की मार के सामने वे लोग देर तक ठहर सकेंगे, इसकी भी संभावना नहीं है।

डेढ़-दो महीने बाद एक दिन सूर्योदय के साथ साथ छः नावों पर असभ्य लोग आकर इस द्वीप में उतरे। वे कुल पचास-साठ आदमी होंगे। उन्होंने कुञ्जभवन ही की ओर नावें लगाईं। उस कुञ्जभवन में दो अँगरेज़ रहते थे। असभ्य लोग किनारे से कोई आध मील पर थे तभी अँगरेज़ों ने उनको [ २९० ] आते देख लिया। समुद्र-तट से कुञ्जभवन भी एक मील से कम न था। इसलिए अँगरेज़ों को सावधान होने का थोड़ा सा समय मिल गया। किन्तु द्वीपनिवासी समस्त व्यक्तियों को यह ख़बर देने का उन्हें अवसर न मिला। सारे द्वीपनिवासी एक जगह आ कर खड़े हो जाते तो उतना भय न था। किन्तु पचास-साठ योद्धाओं का सामना करना दो व्यक्तियों के लिए यथार्थ में कठिन काम था।

दोनों अँगरेज़ उन असभ्यों की चाल-ढाल देख कर ही समझ गये कि वे लोग ख़बर पा कर पा रहे हैं। इसलिए उन्होंने फ़रार-असामी के दोनों साथियों को फ़ौरन बाँध लिया और दो विश्वास-पात्र असभ्य-नौकरों के साथ उन को और अपनी स्त्रियों को कृत्रिम गुफा के भीतर भेज दिया। उन्होंने नौकरों और स्त्रियों से घर की आवश्यक चीज़ उठवा कर प्रस्थान किया। इसके बाद उन्होंने पालतू बकरों को, स्थान का फाटक खोल कर, जङ्गल में इसलिए भगा दिया कि असभ्यगण उन बकरों को जङ्गली समझ कर छोड़ देंगे। इन कामों का झटपट प्रबन्ध कर के उन्होंने एक असभ्य नौकर के द्वारा स्पेनियडौँ तथा उन तीनों अँगरेज़ों को ख़बर भेज दी। फिर आप दोनों आदमी बन्दूक़ और गोली-बारूद लेकर जङ्गल में जा छिपे, और उन असभ्यों पर तेज़ निगाह डाले रहे।

वे दोनों उस गुप्त स्थान से छिप कर देखने लगे। इधर झुंड बाँध बाँध कर असभ्यगण कुञ्जभवन में आकर एकत्र होने लगे। कुञ्जभवन में आते ही उन लोगों ने घर-द्वार, खेत-खलिहान में आग लगा दी। सभी एक साथ जल उठे। बड़े कष्ट से बनाये हुए घर-द्वार को अपनी आँखों के सामने जलते देख [ २९१ ] कर उन दोनों अँगरेज़ों का हृदय भी जलने लगा। असभ्यगण धीरे धीरे जङ्गल और झाड़ी में गृहवासियों को खोजने लगे। असभ्यों के झुंड को आगे बढ़ते देख कर अँगरेज़ कुछ और पीछे हट गये। जङ्गल में एक बहुत मोटा पेड़ था जो सूख कर खोखला हो गया था। वे दोनों अँगरेज़ उसीके भीतर छिप कर असभ्यों को देखने लगे। कुछ ही देर बाद उन्होंने देखा कि दो असभ्य उनकी ओर दौड़े आ रहे हैं। उनकी चेष्टा देखने से यही मालूम होता था कि वे गुप्तस्थान का पता पाकर अँगरेज़ों को पकड़ने के लिए पा रहे हैं।

यह सोच कर अँगरेज़ बहुत घबराये। वे भागे या वहीं रहे, इसकी चिन्ता हुई। भागे ही तो कहाँ जायँ? असभ्य लोग चारों ओर जंगल में फैल गये थे। भागने से अधिक संभव था कि उनके सामने जा पड़ते। यह सोच-विचार कर उन्होंने जहाँ थे वहीं स्थिर रहना उचित समझा। यदि किसी तरह की गड़बड़ देखने में आती तो वे पेड़ पर चढ़ जाते।

अग्रवर्ती दोनों असभ्य उनके पास से होकर आगे बढ़ गये। इससे मालूम हो गया कि उन्होंने अँगरेज़ों को नहीं देखा। किन्तु उनके पीछे तीन आदमी और उनके भी पीछे के पाँच आदमी बिलकुल सामने उसी पेड़ की ओर आने लगे। तब अँगरेज़ भरी हुई बन्दूक का लक्ष्य ठीक करके उनको अपने समीपवर्ती होने की अपेक्षा करने लगे। जब वे असभ्य कुछ और अग्रसर हुए तब अँगरेज़ों ने पहचाना कि उनमें एक वही था जो पहले बन्दी हुआ था। उसको देखते ही अँगरेज़ों के हृदय में एकाएक आग बल उठी। उन्होंने निश्चय किया [ २९२ ] कि चाहे जो हो, इस साले को यहाँ से जीते जी जाने न देंगे। उसके निकटवर्ती होते ही अँगरेज़ ने उसे गोली मार दी। एक ही आवाज़ में तीन आदमी गिरे। उनमें एक तो उसी घड़ी मर गया और दो घायल हुए। घायलों में पलायित व्यक्ति बहुत ज़ख्मी हुआ। तीसरे व्यक्ति का सिर्फ कन्धा गोली से छिल गया था, पर वह उतने ही में भय से अधमरा सा हो गया और खूब ज़ोर से चिल्ला कर आर्तनाद करने लगा।

इन तीनों के पीछे जो पाँच आदमी थे वे विपत्ति का पूरा हाल न समझ कर केवल शब्द से ही डर कर जहाँ के तहाँ खड़े हो रहे। घने वन में बन्दूक का शब्द बड़ा ही गम्भीर और भयोत्पादक हुआ। जंगल के एक प्रान्त से दूसरे प्रान्त तक शब्द की बार बार भीषण प्रतिध्वनि हुई। अगणित पक्षियों के उड़ने तथा कल कल शब्द से सारा जंगल भर गया। ऐसा अश्रुतपूर्व शब्द सुन कर असभ्य गण जो चकित, भीत और स्तब्ध हो तो आश्चर्य ही क्या। थोड़ी ही देर में फिर सर्वत्र सन्नाटा छा गया। असभ्य लोग इस अपूर्व शब्द का कुछ कारण न समझ कर धीरे धीरे उन आहत व्यक्तियों के पास आये। इन अभागों को इस बात की आशङ्का तक न हुई कि हमारे ऊपर भी वही विपत्ति आवेगी जो कि साथियों पर आ पड़ी है। उन लोगों ने वहाँ पर घायलों को घेर कर समाचार पूछा। तीसरे व्यक्ति को बहुत ही हलका ज़ख्म हुआ था। उसने कहा कि "हम लोगों पर देवता का कोप हुआ है। पहले बिजली की तरह एक चमक पैदा हुई, उसके बाद वज्रपात होने से दो आदमी मर गये हैं और मैं घायल हुआ हूँ।" सांसारिक विषयों में जो अनभिज्ञ है उसका इस प्रकार व्याख्यान देना स्वाभाविक ही है। क्योंकि जहाँ लोगों का नाम [ २९३ ] निशान नहीं वहाँ अकस्मात् ऐसी दुर्घटना दैवी नहीं तो क्या है?

ऐसे मूर्ख-जो विपत्ति के मुख में पहुँच कर भी निरुद्विग्न भाव से खड़े हैं, इन असभ्यों को मारने में अँगरेज़ों का मन व्यथित होता था, किन्तु आत्म-रक्षा के लिए क्या करते? उन्होंने फिर गोली चलाई। चार आदमी घायल हो कर गिर पड़े। पाँचवें व्यक्ति को कुछ चोट न लगने पर भी वह केवल डर से ही मृतप्राय हो गिर पड़ा। अँगरेज़ों ने सबको गिरते देख समझा कि सभी मर गये।

सभी मर चुके, इसी विश्वास पर दोनों अँगरेज अपनी बन्दूक़ों को बिना भरे ही साहस कर के अपने गुप्त स्थान से निकल कर वहाँ गये। खाली बन्दूक़ लेकर बाहर निकलना भारी मूर्खता हुई थी, क्योंकि जब वे उन असभ्यों के पास पहुँचे तब देखा कि तीन-चार आदमी जीवित हैं। उनमें दो व्यक्तियों को बहुत कम चोट लगी थी और एक तो गोली से बेलाग बचा हुआ था। उसे कुछ भी चोट न लगी थी। यह देख कर अँगरेज़ बन्दूक के कुन्दे से काम लेने लगे। पहले उस विश्वासघाती भगोड़े का काम तमाम किया। फिर अन्य दो व्यक्तियों को संसार-यातना से छुड़ा दिया। यह देख कर, जिसे कुछ आघात न लगा था वह उन अँगरेज़ों के सामने हाथ जोड़ घुटने टेक कर दया की प्रार्थना करने लगा। उसने गिड़गिड़ा कर बड़ी दीनता दिखाई, पर उसका एक अक्षर भी उन दोनों की समझ में न आया। तब उन अँगरेज़ों ने उस असभ्य के हाथ-पैर रस्सी से बाँध कर एक पेड़ के नीचे छोड़ दिया। इसके बाद वे अग्रगामी दो असभ्यों की खोज में चले। [ २९४ ] यदि वे किसी तरह जङ्गल के भीतर की गुफा का पता पा ले तो एकदम सर्वनाश हो सकता है। इसलिए उनको रोक देना चाहिए। वे दोनों असभ्य बहुत दूर पर दिखाई दिये। पर वे गुफा की तरफ़ नहीं, उसकी प्रतिकूल दिशा में अर्थात् समुद्र की ओर जा रहे थे। यह देख कर अँगरेज़ निश्चिन्त हो उस पेड़ के नीचे लौट आये जहाँ वह बन्दी असभ्य था। वहाँ आकर देखा रस्सी पड़ी है, बन्दी का कहीं पता नहीं। अँगरेज़ों ने समझा कि उसके साथी बन्धन खोल कर उसे ले गये होंगे।

अब वे दोनों किंकर्तव्य-विमूढ़ हो खड़े रहे। क्या करें, किधर जायँ, कुछ निश्चय न कर सकते थे। आखिर उन्होंने अपनी स्त्रियों के पास गुफा में जाने ही का निश्चय किया। गुफा के भीतर जा करके देखा, सभी सुख-चैन से हैं, केवल स्त्रियाँ बहुत भयभीत हो रही हैं। आक्रमणकारी उनके स्वदेशी हैं फिर भी उनके भय की सीमा नहीं, वे बेहद डर रही हैं। कारण यह कि वे आक्रमणकारियों के स्वभाव से भली भाँति परिचित थीं। असभ्य लोग गुफा के बिलकुल समीप आकर लौट गये हैं। घने पेड़ों की आड़ होने के कारण उन्हें गुफा देख न पड़ी, इसीसे इधर वे लोग न आये। आते तो भारी उपद्रव मचाते।

असभ्यों के आने की ख़बर पा कर सात व्यक्ति स्पेनियर्ड, अँगरेजो की सहायता के लिए आये। यह देख कर अँगरेज़ों को धैर्य हुआ और उनका साहस बढ़ गया। अन्य दस व्यक्ति स्पेनियर्ड और फ़्राइडे का पिता किले के समीपवर्ती खेत-खलिहान की रक्षा के लिए पहरे पर रहे। किन्तु असभ्य उधर भूल कर भी नहीं गये। सात स्पेनियर्डों के साथ अँगरेजों का वह [ २९५ ] बन्दी-भृत्य भी पाया जो स्पेनियों को खबर देने गया था, और वह क़ैदी भी पाया है जिसे कुछ देर पहले हाथ-पैर बाँध कर पेड़ के नीचे डाल दिया था। स्पेनियर्डों ने आते समय उसके हाथ-पैरों का बन्धन खोल कर उसे साथ ले लिया था। गुफाके भीतराने पर बन्दी को फिर बाँध कर दूसरे दो बन्दियों के साथ बैठा दिया।

द्वीपवासियों को ये बन्दी भार-स्वरूप जान पड़े। क्योंकि ये लोग अधीनता में नहीं रहना चाहते थे। उनको घर में खाली बिठा कर खिलाना भी कठिन है; और जो छोड़ दें तो वे देश जाकर अनर्थ खड़ा करेंगे। ऐसी हालत में उनके बध के सिवा और कोई उपाय नहीं। किन्तु सर्दार उन लोगों को मारने की अनुमति नहीं देते। उन्होंने हुक्म दिया कि ये बन्दी अभी मेरी बड़ी गुफा में रहे, दो स्पेनियर्ड उनके पहरे पर रहेंगे, और स्पेनियर्ड लोग उनके खाने-पीने का प्रबन्ध करेंगे।

स्पेनियर्डों के आने से साहस पाकर अँगरेज़ उन असभ्यों की खोज में बाहर निकले और बड़ी सावधानी से कुछ दूर आगे जाकर देखा कि सभी असभ्य जाने के लिए नाव पर सवार हो रहे हैं। उन लोगों के चलते समय बन्दूक की गोली से एक बार बिदाई का संभाषण न कर सकने के कारण वे उदास हुए। किन्तु उन को जाते देख कर प्रसन्न भी हुए। अँगरेज़ों का घर-द्वार खेती बाड़ी सब नष्ट हो गई थी। इस कारण सभी ने मिलकर हाथों-हाथ थोड़े ही दिनों में उनकी गृहस्थी का सब सामान ठीक कर दिया। यहाँ तक कि उन तीन दुःशील अँगरेज़ों ने भी उनकी सहायता से मुँह न मोड़ा।

असभ्यों के चले जाने पर भारी तूफ़ान उठा। दो दिन के बाद द्वीपवासियों ने बड़ी खुशी के साथ देखा कि असभ्यों, [ २९६ ] की तीन डोंगियाँ और समुद्र में डूब कर मरे हुए दो असभ्यों की लाशें बही जा रही हैं।