राबिन्सन-क्रूसो/चोरी के जहाज़ पर क्रूसो

विकिस्रोत से
राबिनसन-क्रूसो  (1922) 
द्वारा डैनियल डीफो, अनुवादक जनार्दन झा

[ ३४९ ]

चोरी के जहाज़ पर क्रूसो

इसके कुछ दिन बाद बाताविया से एक पोर्तगाल का जहाज़ पाया। जहाज़ के मालिक ने उस जहाज के बेचने का विज्ञापन दिया। मैंने जहाज मोल लेने का निश्चय करके अपने साझी से कहा। वे भी राजी हुए। हमने मूल्य देकर जहाज ले लिया। हमने जहाज के नाविको को नौकर रखने की इच्छा से उनको खोजने जाकर देखा कि जहाज पर एक भी प्राणी नहीं है। सभी न मालूम कहाँ चम्पत हुए। खबर मिली कि वे लोग यहाँ से मुग़लों की राजधानी आगरा जायँगे। वहाँ से सूरत, और सूरत से फ़ारस की खाड़ी होते हुए अपने देश को लौट जायँगे। [ ३५० ]देश लौटने के लिए ऐसे संगी और सुयोग को हाथ से जाते देख मेरे मन में कई दिनों तक शान्ति न रही। नाविकों के रहने से तिजारत करने जाकर एक के दो करता। नये नये देश देखने में आते और जब चाहता घर को लौट चलता। किन्तु कुछ दिन के बाद मालूम हुआ कि वे लोग (अर्थात् जहाज के विक्रेता और उनके साथी) सत्यवादी नहीं, बड़े धूर्त थे। यह जहाज मलयदेश में वाणिज्य करने गया था। जहाज़ के कप्तान और कई नाविकों को मलयवासियों ने मार कर समुद्र में डाल दिया। इस दुर्वृत्तियोग से नाविक जहाज़ लेकर यहाँ भाग आये और दूसरे का जहाज़ अपने नाम से बेच कर चम्पत हुए।

हम लोगों ने इस बात को सुन कर भी इस पर विशेष ध्यान न दिया। उन लोगों ने चोरी की तो की, उससे हम लोगों का क्या? हम लोगों ने तो वाजिब दाम दे कर खरीदा है। चोरी का माल समझ कर तो लिया ही नहीं। हम लोगों ने कई अँगरेज़ और देशी नाविकों को नौकर रख करके फ़िलिपाइन और मलका आदि टापुओं से लवङ्ग और इलायची प्रभृति सौदा लाने के हेतु जाने की तैयारी की।

रवाना होने पर कई दिन तक हम लोग प्रतिकूल वायु के कारण मलक्के की खाड़ी में अटक रहे। हवा का ज़ोर कुछ कम पड़ने पर जहाज का लंगर उठा लिया गया। समुद्र में प्रवेश करने पर देखा कि जहाज के भीतर पानी आता है। हम लोग बहुत चेष्टा करने पर भी निश्चय न कर सके कि छिद्र कहाँ है, किधर से पानी पा रहा है। तब हम लोगों ने किसी बन्दर में आश्रय लेने के लिए कम्बोडिया नदी के मुहाने में प्रवेश किया। [ ३५१ ] कम्बोडिया नदी के किनारे जहाज़ लगा कर उसकी मरम्मत की तैयारी की जा रही थी। इसी अवसर पर एक दिन एक अँगरेज़ ने आकर मुझसे कहा-"महाशय! आप मेरे अपरिचित हैं तथापि मैं आपसे एक ऐसी बात कहना चाहता हूँ जिससे आपका विशेष उपकार होगा।" मैं उसका इङ्गित, आकार और चेष्टा देख कर विस्मित हो उसके मुँह की ओर चुपचाप देखता रहा। सचमुच ही मैंने उसको कभी कहीं नहीं देखा था। वह मुझसे क्या कहेगा? मैंने पूछा "एकाएक आपको परोपकार की इच्छा इतनी प्रबल क्यों हो उठी?" उसने कहा-"मैं देखता हूँ कि आप बड़ी विपत्ति में फँसे हैं पर आपको कुछ मालूम नहीं कि क्या हो रहा है।" मैंने कहा-विपत्ति की बात तो मैं भी प्रत्यक्ष देख रहा हूँ कि मेरे जहाज़ में पानी आ रहा है। इसके पेंदे में कहाँ छेद है, यह खोजने से भी नहीं मिलता। इससे कल जहाज़ को किनारे लगा कर देखूँगा कि इसमें कहाँ छेद है।

उसने कहा-"छेद हो या न हो,-खोजने से वह मिले चाहे न मिले,-जहाज़ को कल किनारे लगाना बुद्धिमानी का काम न होगा। क्या आप नहीं जानते कि दो बड़े अँगरेज़ी जहाज़ और तीन पोर्चगीज़ जहाज़ यहाँ से बहुत करीब ही आ लगे हैं?" मैंने कहा-"लगे रहे, इससे मुझे क्या?" उस व्यक्ति ने कहा-"जो लोग आपकी भाँति मतलबी काम में लगे रहते हैं वे आसपास की कोई खोज-खबर न रखकर निश्चिन्त रहे, यह बड़े आश्चर्य की बात है। क्या आप अपने मन में यह समझते हैं कि आप लोग उनका मुकाबला कर सकेंगे?" उसकी ऐसी भेद-भाव से भरी ऊटपटाँग बाते सुन कर मुझे बड़ा कुतूहल हुआ। मैंने कहा-"भाई, साफ़ साफ़ [ ३५२ ] क्यों नहीं कह डालते कि क्या मामला है? हम लोग न चोर हैं न डाकू हैं, तब हम लोगों को किसीसे डरने की क्या वजह हो सकती है?" उसने कहा-"मैं देखता हूँ कि आप फायदे की बात न सुनेगे, परामर्श की बात पर ध्यान न देंगे। यदि मैं दूसरे किसीका इतना बड़ा उपकार करता तो वह आपकी अपेक्षा मेरे साथ अवश्य ही अच्छा व्यवहार करता। ठहरिए, यदि आप इसी घड़ी जहाज़ को यहाँ से अन्यत्र न ले जायँगे तो आप ही इसका मज़ा चखेंगे। जब वे लोग आपको लुटेरा समझ कर फाँसी देंगे तब आपको मेरी कृतज्ञता की बात सूझेगी।" मैंने कहा-"जो व्यक्ति मेरे उपकार की चेष्टा कर रहे हैं उनके निकट मैं कभी अकृतज्ञ नहीं हो सकता। जब आप कह रहे हैं कि मेरी विपत्ति आसन्न है तब मैं अभी यहाँ से भागता हूँ। किन्तु भाई साहब, क्या आप भय का कारण कुछ खुलासा करके नहीं बतला सकते?" उसने कहा-"मुखतसर बात इतनी ही है कि तुम यह जहाज़ लेकर सुमात्रा टापू गये थे। तुम्हारे कप्तान और कई एक नाविक वहाँ मारे गये। इसके बाद तुम जहाज़ लेकर वहाँ से चम्पत हुए। इस समय तुम लोग उद्दण्ड होकर समुद्र में जहाज़ पकड़ते फिरते हो। यह ख़बर तुम्हारे निकट नई नहीं है। यह मैं अच्छी तरह जानता हूँ, किन्तु अब किसी बड़े जहाज के हाथ पड़ जाओगे तो तुम्हारा उद्धार होना कठिन है।" मैंने आगे-पीछे की बातें सोचकर कहा-"भाई, इतनी देर बाद तुमने सब बाते सीधे तौर से कह सुनाई। यद्यपि हम लोगों ने यह जहाज जैसा आप समझते हैं उस तरह नहीं लिया है तो भी आपके कथनानुसार हम लोग अभी यहाँ से भागते हैं। किन्तु मेरे [ ३५३ ] मित्र! मैं तुम्हारे इस उपकार का बदला कैसे चुकाऊँगा?" उसने कहा-मैं नाविक हूँ और एक पोर्चुगीज मेरा सङ्गी है। हमारा आठ नौ महीने का वेतन बाकी है। यदि आप वह दे दें तो हम आप ही के यहाँ रह जायें। इसके बाद जो आपके धर्म में आवे, हमें दीजिएगा।

मैं इस शर्त पर राज़ी होकर उन्हें साथ ले जहाज़ पर सवार हुआ। जहाज़ पर पाँव रखते ही मेरा साथी अँगरेज़ खुशी से चिल्ला कर बोला-वाह, वाह, छेद तो बन्द हो गया। बिलकुल बन्द हो गया।

मैं सच कहो, धन्य परमेश्वर! तो अब देर करने की क्या ज़रूरत? अभी लंगर उठाओ।

शरीक-लंगर उठावे! यह क्यों? मैं इस प्रश्न का उत्तर पीछे दूँगा। अभी एक मिनट भी विलम्ब करने का समय नहीं है। सभी लोग मिल कर जहाज़ को शीघ्र यहाँ से ले चलो।

सभी लोगों ने बड़े अचम्भे में आकर तुरन्त जहाज़ खोल दिया। मैं अपने साथी अँगरेज़ को कमरे में बुला कर यह सब वृत्तान्त कही रहा था कि इतने में एक नाविक ने आकर खबर दी-हम लोगों को पकड़ने के लिए पाँच जहाज बड़ी तेज़ी से दौड़े आ रहे हैं।

मैंने सब नाविकों से कह दिया कि वे लोग हमें लुटेरे (जलदस्यु) समझ कर पकड़ने आ रहे हैं। यदि तुम लोग हमारी सहायता करने को प्रस्तुत हो तो मैं उन लोगों से एक बार भिड़ जाऊँ। मेरी राय मान कर सभी ने मेरी आज्ञा का पालन करना स्वीकार किया। [ ३५४ ]जहाज़ के गोलन्दाज़ ने टूटे फूटे लोहे के काँटों और छड़ों से और जो कुछ कठिन पदार्थ हाथ में आ गये उनसे दो तोपें भर रक्खीं। हमारा जहाज़ अनुकूल वायु पाकर सुदूर समुद्र में ठिकाने के साथ चला जा रहा था। किन्तु कई नावे पाल तान कर तीर को तरह तीव्रगति से पीछे आ रही थीं। दो नावें बड़े वेग से हमारी ओर भारही थीं। वे दोनों कुछ देर में ज़रूर ही हमारे जहाज के पास पहुँच जायँगी-यह जान कर हम लोगों ने तोप की एक ख़ाली आवाज़ की। किन्तु वे इसको कुछ परवा न कर के अग्रसर होने लगीं। तब हम लोगों ने श्वेत-पताका उड़ा कर सन्धि का संकेत किया। पर वे उसे भी अग्राह्य कर के समीप आ गई। तब हम लोगों ने सफ़ेद झण्डी हटा कर विरोध-सूचक लाल-पताका उड़ाई और भेरी बजा कर उन्हें दूर रहने को कहा। किन्तु इस पर भी उन्होंने कुछ ध्यान न दिया। वे लोग और भी तेजी से आगे की ओर बढ़ने लगे। तब जहाज को उनके सामने तिर्यक खड़ा कर के एक ही बार पाँच तोपें छोड़ी। गोले की चोट से एक नाव का पिछला हिस्सा एकदम उड़ गया। नाव के सवार झटपट पाल गिरा कर नाव के पिछले भाग की ओर इसलिए एकत्र हो गये कि नाव कहीं डूब न जाय। अब हम लोग उस नाव के आक्रमण से निश्चिन्त हुए। पीछे की नाव अग्रसर होकर टूटी हुई नाव के सवारों को लेने लगी और पहली नाव एकाएक हमारे जहाज़ के पास आ पहुँची। हम लोगों ने उन्हें फिर समझाने की चेष्टा की। पर वे लोग हमारी बात को अनसुनी कर के हमारे जहाज पर चढ़ने की चेष्टा करने लगे। [ ३५५ ]तब गोलन्दाज़ ने फिर तोप छोड़ी। किन्तु गोला लक्ष्यभ्रष्ट होने से नाव के लोग मारे ख़ुशी के उल्लसित होकर अग्रसर होने लगे। किन्तु गोलन्दाज़ ने तुरन्त ही फिर तोप दाग कर नाव को खण्ड खण्ड कर डाला। नाव के सवार पानी में गिर कर तैरने लगे। हम लोगों ने डूबते हुए तीन व्यक्तियों को जहाज़ पर ले लिया। इसके बाद पाल तान कर हम लोग भाग चले। पीछे वाली तीन नावे पानी में गिरे हुए लोगों के उद्धार करने में व्यस्त हो रहीं, हम लोगों का पीछा न कर सकीं।