राबिन्सन-क्रूसो/द्वीप में असभ्यों का दुबारा उपद्रव

विकिस्रोत से

[ २९६ ]

द्वीप में असभ्यों का दुबारा उपद्रव

धीरे धीरे पाँच छः महीने बीत गये। असभ्यों के आने की कहीं कुछ भनक न पाई गई। द्वीपनिवासियों ने समझा कि या तो वे लोग द्वोप के मामले को भूल गये हैं या भय से इस तरफ़ नहीं आते हैं।

एक दिन उन लोगों ने अकस्मात् देखा कि धनुष-बाण, लाठी और लकड़ी की तलवार श्रादि अनेक अस्त्र-शस्त्र लिये असभ्य लोग एक साथ अट्ठाइस डोंगियों पर सवार हो टापू में उतर आये।

यह देख कर द्वीपवासियों के भय की सीमा न रही। असभ्य लोग सन्ध्या समय टापू में आ पहुँचे इसलिए द्वीप वालों को सारी रात सलाह-विचार करते ही बीती। अन्त में यही तय हुआ कि इतने दिन हम लोग छिप कर ही बेखटके रहे हैं इसलिए अब भी छिपकर रहना ही अच्छा है। यह निश्चय करके सभी ने दोनों अँगरेज़ों के घर को उजाड़ कर उसका चिह्न तक न रहने दिया; और बकरों को गुफा के भीतर छिपा कर बन्द कर रक्खा। असभ्य लोग सिर्फ उन्हीं दोनों अँगरेज़ों के निवास स्थान का पता जानते थे इसलिए वे लोग पहले इसी स्थान पर आक्रमण करेंगे, यह सोच कर हम लोग वहीं एकत्र होकर उनके आने की प्रतीक्षा करने लगे। सुबह होते ही कोई डेढ़ सौ असभ्य वहाँ आकर इकट्ठे हुए। हम लोगों के दल में बहुत कम आदमी थे। सत्रह स्पेनियर्ड, पाँच अँगरेज़, [ २९७ ] फ़्राइडे का बाप, और छः विश्वासी नौकर। हम लोगों की संख्या अल्प थी सो तो थी ही, उस पर अस्त्रों की कमी और भी असुविधा दे रही थी। हमारे दल में सब के पास यथेष्ट अस्त्र-शस्त्र न थे। भृत्यों को बन्दूक़ें नहीं दी गई थीं। उन लोगों के हाथ में सिर्फ एक एक खंजर था। दो स्त्रियाँ युद्ध-क्षेत्र से किसी तरह विमुख न हुई। वे धनुष-बाण ले, कमर कस कर, युद्ध करने के लिए तैयार हो गई। उनकी कमर में एक एक खंजर भी था।

स्पनियर्डों के सर्दार इन थोड़े से सिपाहियों के सेनापति हुए और अँगरेज़ों में जो सबसे बढ़कर बदमाश था वह सहकारी सेनापति नियत हुआ। उसका नाम विल एटकिंस था। वह अत्यन्त क्रूर और अन्यायी होने पर भी खूब बहादुर था। वह छः मनुष्यों के साथ एक झुरमुट के भीतर छिप रहा। जब असभ्य उस झुरमुट के सामने से होकर निकलेंगे तब वह उन पर आक्रमण करेगा। असभ्य लोग सिंहनाद करते, उछलते-कूदते हुए हम लोगों पर आक्रमण करने के लिए चले आ रहे थे। जब असभ्यों की कुछ संख्या झुरमुट से कुछ आगे निकल आई तब एटकिंस ने अपने दल के तीन व्यक्तियों को उन पर गोली बरसाने का हुक्म दिया। उन्होंने एक एक बन्दूक में छः छः सात सात गोलियाँ भर कर चलाई। असभ्यों के दल में कितने ही हत और कितने ही आहत हुए। वे सब के सब भौंचक से खड़े हो रहे। उनके आश्चर्य और भय की सीमा न रही। एकाएक इस प्रकार भीषण शब्द होने और अकारण अपने साथियों के मारे जाने की बात पर वे लोग आपस में मिलकर कोलाहल कर ही रहे थे कि एटकिंस आदि तीन व्यक्तियों ने फिर गोली मार कर कितनों ही को धराशायी कर दिया। इसी [ २९८ ] समय प्रथम तीन व्यक्तियों ने झट बन्दूक़ें भर लीं और एक ही बार गोली बरसा कर उन असभ्यों को छिन्न भिन्न कर डाला। इस अचानक अभिघात का कुछ कारण न समझ कर अवशिष्ट असभ्य लोग किंकर्तव्य-विमूढ़ हो रहे। बीच में झाड़ी की ओट रहने के कारण असभ्य लोग किसी को न देख कर शायद यह समझ रहे थे कि "देवता का गुप्त वज्रास्त्र हम लोगों का नाश करने के लिए उदीप्त हो उठा है।" यदि एटकिंस इस समय चुपचाप वहाँ से हट जाता तो बड़ा अच्छा होता। असभ्य लोग देवकर्तृक भय मान कर भाग जाते; किन्तु एटकिंस ने इस विषय में बार बार चिताये जाने पर भी उसका पालन न किया। वह उजड्ड था न। वहीं रह कर वह फिर बन्दूक़ भरने लगा। उधर जो असभ्य पीछे से आ रहे थे उन्होंने एटकिंस प्रभृति को देख कर एकाएक उन पर आक्रमण किया। एटकिंस आदि छः व्यक्तियों ने लगातार गोली बरसा कर बीस-पचीस आदमियों को धरती पर लिटा दिया, तो भी असभ्य पीछे न हटे। उन्होंने तीर से एक अँगरेज़ को मार डाला, और एटकिंस को भी घायल किया। फिर एक स्पेनियर्ड और एक असभ्य नौकर को भी मार गिराया। वह असभ्य नौकर बड़ा साहसी वीर था। उसने मरते मरते भी सिर्फ लाठी की मार से पाँच दुश्मनों को मार डाला था।

हमारे दल वाले भयंकर रूप से श्राक्रान्त होने पर दौड़ कर एक टीले पर चढ़ गये। हम लोगों ने भागते भागते भी तीन बार बन्दुके चलाईं। किन्तु असभ्य लोग ऐसे हठी थे कि पचास-साठ मनुष्यों को हत और इससे भी अधिक व्यक्तियों को घायल होते देख कर भी हम लोगों का पीछा नहीं छोड़ते [ २९९ ] थे और बराबर आगे बढ़े ही आते थे। उन्होंने इतने बाण चलाये कि बाणों से आकाश-मण्डल भर गया। उन असभ्यों में जो व्यक्ति घायल हुए थे, पर पूरे तौर से ज़ख़्मी नहीं हुए थे, उन लोगों के सिर पर खून सवार हो गया था। इसीसे वे लोग पागल की भाँति युद्ध करते थे।

असभ्य लोग अँगरेज़ और स्पेनियर्ड की लाश को देख उस पर हथियार चलाने लगे, मरे को मारने लगे। उन मुर्दों के हाथ-पैर, और गला काट कर मृत-शरीर को खण्ड खण्ड कर के उन्होंने अपनी नीचता का परिचय दिया। हम लोगों को भागते देख कर उन लोगों ने दूर तक पीछा न किया। सभी ने मण्डलाकार खड़े होकर दो बार उच्चस्वर से जयध्वनि की। किन्तु उनके घायल आदमी अधिक लहू बहने के कारण मुर्च्छित तथा प्राण-हीन हो होकर गिरने लगे। यह देख कर वे लोग फिर दुःखी हुए।

एटकिंस की इच्छा थी कि फिर दल-बल के साथ उन पर आक्रमण किया जाय किन्तु सर्दार ने कहा-"नहीं, इसकी अब ज़रूरत नहीं। कल सबेरे फिर देखा जायगा। आज अब शान्त होकर रहना ही ठीक है। असभ्यों के घायलों की भली भाँति सेवा-शुश्रूषा न होने से उनकी हालत बुरी हो जायगी। अधिक रक्त-क्षय होने से वे दुर्बल हो जायँगे और घाव की पीड़ा से चल-फिर न सकेंगे तब हम लोगों के शत्रुओं की संख्या और भी कम होगी।" एटकिंस ने जरा हँस कर और ज़ोर देकर कहा-हाँ हाँ, कल मेरी भी तो वैसी ही दशा होगी। इसी कारण तो चटपट आज ही काम चुका लेना चाहता हूँ। [ ३०० ]सर्दार-नहीं भाई, आज तुमने बड़ी बहादुरी के साथ लड़ाई की है। यदि कल तुम युद्ध न भी कर सकोगे तो तुम्हारी ओर से खुद में युद्ध करूँगा।

चटकीली चाँदनी रात है। हम लोगों ने देखा कि असभ्य लोग अपने मुदौ और घायलों को लेकर बड़ी चिन्ता में पड़े हैं। सभी आपस में अपने मन की बातें कर रहे हैं। यह देख कर सर्दार ने उन असभ्यों पर एक बार रात में ही आक्रमण करने का विचार किया। हम लोग जंगल के भीतर ही भीतर छिप कर इधर उधर चक्कर काटते हुए एकदम असभ्यों के समीप जा पहुँचे। हम लोगों ने एक साथ आठ बन्दू के दाग दी। आध मिनट के बाद फिर आठ बन्दूक़ों की आवाज़ हुई। कितने ही मरे, और कितने ही घायल हुए। असभ्य लोग किधर भागे, कुछ निर्णय न कर जहाँ के तहाँ खड़े हो मरने लगे।

हमारे आठ आठ आदमियों की तीन टोलियाँ हो गईं और तीनों तरफ से एक साथ सिंहनाद करके उन असभ्यों पर टूट पड़े, और उन सबों को लाठी, बन्दूक़ के कुन्दे, फरसे और कुल्हाड़ी आदि हथियारों से मारने लगे। थोड़ी ही देर में असंख्य असभ्य भूतलशायी हो गये। दो-एक ने तीर मारने की चेष्टा की थी किन्तु उन्हें अवसर न मिला। एक तीर ने फ्राइडे के पिता को किञ्चित् घायल किया था। जो असभ्य बचे वे चिल्लाते हुए जहाँ तहाँ भाग गये। हम लोग उनको मारते मारते थक गये थे इस लिए उनका पीछा न कर सके। कुल १८० असभ्य मारे गये। बचे हुए असभ्य दौड़ कर समुद्रतट में अपनी नाव पर सवार होने गये। किन्तु उन लोगों पर [ ३०१ ]विपत्ति पर विपत्ति आने लगी। सन्ध्याकाल से ही हवा बहुत तेज़ बह रही थी। इसलिए उन को शीघ्र भागने का भी अवसर न मिला। हवा समुद्र से किनारे की ओर बह रही थी। हवा की झोंक और ज्वार की लहर से नावे एकदम सूखे में आ लगी थीं और हवा लगने से एक की टक्कर दूसरी में लगते लगते टूट फूट गई थीं।

हमारे सैनिक विजय प्राप्त कर के उल्लसित हो उठे, किन्तु उस रात में उन लोगों को विश्राम नसीब न हुआ। वे लोग कुछ देर दम लेकर देखने गये कि असभ्य-लोग क्या करते हैं। युद्ध-स्थल के भीतर होकर जाते समय उन लोगों ने देखा कि तब भी कोई कोई असभ्य ऊपर को दम खींच रहे हैं, पर अधिक देर तक उनके बचने की संभावना न थी। उन की अन्त-कालिक अवस्था देख कर हमारे दल के लोग दुःखी हुए, कारण यह कि युद्ध में शत्रुओं का निपात करते दुःख नहीं होता, किन्तु उनका दुःख देख कर सुखी होना सहृदयता का लक्षण नहीं। जो हो, हम लोगों के असभ्य नौकरों ने कुठार के आघात से, उन आसन्नमृत्यु शत्रु-सैनिको को सब कष्टों से छुड़ा दिया।

आख़िर उन्होंने देखा कि एक जगह लगभग सौ हतावशिष्ट असभ्य ज़मीन में बैठे हैं और घुटनों पर हाथ और हाथ पर सिर रक्खे अपनी दुर्दशा को सोच रहे हैं।

हमारे पक्ष के लोगों ने उन्हें डरवाने के लिए सर्दार की आज्ञा से दो बन्दूकों की खाली आवाज़ की। शब्द सुनते ही वे लोग डर गये और चिल्लाते हुए जङ्गल के भीतर जा छिपे। अब एटकिंस ने उनकी डोंगियों को नष्ट कर डालने की [ ३०२ ] राय दी। किसी किसी ने उसका प्रतिवाद कर के कहा कि, ऐसा करने से बड़ी खराबी होगी। जाने का उपाय न रहने से वे लोग मरने पर कमर कस कर नाना प्रकार के उपद्रव करेंगे। हिंस्र पशुओं की भाँति जङ्गल भर में घूमते फिरेंगे। उन लोगों के भय से हम लोगों को अकेले बाहर निकल कर काम करना कठिन हो जायगा। तब उन्हें वन्य जन्तुओं की तरह ढूँढ़ ढूँढ़ कर मारना होगा, नहीं तो वे लोग अपने पेट की आग बुझाने के लिए हम लोगों के खेत, खलिहान और पालतू पशुओं को लूट ले जायँगे। एटकिंस ने कहा-यह सही है, सौ मनुष्यों का सामना मैं स्वयं कर सकता हूँ पर सौ जातियों का धक्का कौन सँभालेगा? ये लोग देश को लौट जायँगे तो हम लोगों का प्राण बचना कठिन होगा। असंख्य असभ्य बार बार आकर हम लोगों को सतावेंगे।

उसकी यह बात सभी ने पसन्द की। सभी लोग कुछ सूखी लकड़ियाँ बटोर लाये और आग को अच्छी तरह प्रज्वलित कर डोंगियों को जलाने लगे। यह हाल देख कर असभ्य लोग दौड़ आये और हाथ जोड़ कर धरती में घुटने टेक कर डोंगियों की भिक्षा माँगने लगे। वे लोग इशारे से जताने लगे कि ऐसा अपकर्म हम फिर कभी न करेंगे। एक बार देश जाने ही से हम लोग फिर कभी इस टापू में न आवेंगे। किन्तु उन लोगों का देश लौटना तो हम लोगों के लिए हितकर न था। क्योंकि एक व्यक्ति के लौट कर घर जाने और खबर देने से इतना अनिष्ट हुआ है, जब ये सब के सब देश में जा कर लोगों से यहाँ की बात कहेंगे तब तो हम लोगों का सर्वनाश होना ही सम्भव है। हमारे दल के लोगों ने उन की कातर दृष्टि और गिड़गिड़ाहट पर ध्यान न दे कर उनकी डोंगियों को [ ३०३ ] नष्ट कर डाला। यह देखकर वे विकट चीत्कार करते हुए पागल की भाँति जङ्गल में इधर उधर दौड़ने लगे। वे लोग खेतों को रौंदने लगे; अधपके अंगूरों को तोड़ तोड़ कर कुछ खाने और कुछ फेंकने लगे। ऐसे ही और भी अनेक उत्पात करने लगे। किन्तु भाग्यवशात् उन लोगो ने हमारे किले का और गुफा के भीतर वाले पालतू बकरों का कुछ पता न पाया था, इसी से कितनी ही वस्तुएँ बच गई थीं। तब भी वे गिनती में इतने अधिक और दौड़ने में ऐसे तेज थे कि निरस्त होने पर भी उन पर एकाएक आक्रमण करने का साहस कोई नहीं करता था। क्रमशः उन लोगों की दशा शोचनीय हो उठी और साथ साथ हमारे पक्ष की भी। हम लोगों की दुरवस्था का कारण खाद्य-सामग्रियों का अभाव न था; कारण था दुर्दम्य हिंस्र मनुष्यों का उत्पात। असभ्य लोग भूख से व्याकुल होकर चारों ओर विभीषिका फैलाते फिरते थे। द्वीप-निवासियों को उनका उपद्रव असह्य हो उठा। आख़िर उन लोगों ने अपने बचाव के लिए असभ्यों का शिकार करना निश्चय किया। यदि उनमें कोई अधीनता स्वीकार कर आज्ञानुसार काम करने को राजी होगा तो वे और असभ्य नौकरों की भाँति किसी काम में लगा लिये जायँगे। अब हम लोगों की तरफ़ के आदमी उन असभ्यों को देखते ही बाघ-भालू की तरह मारने लगे। आख़िर वे लोग ऐसे सीधे हो गये कि उनकी और बन्दूक़ उठाते ही वे जमीन पर गिर पड़ते थे। प्राणों के भय से सभी घने जङ्गल के भीतर छिप कर रहने लगे और भूखों मरने लगे।

यह देख़ कर सभी का चित्त दया से द्रवित हो उठा, विशेष कर सर्दार का। उन्होंने सबसे कहा कि एक जीवित [ ३०४ ] असभ्य को पकड़ कर उसे सब बातें भली भाँति समझा कर कह देनी चाहिएँ। इसके बाद उन लोगों से सन्धि स्थापन करानी चाहिए।

बहुत दिनों के अनन्तर एक असभ्य गिरफ्तार किया गया। किन्तु पकड़े जाने से वह बड़ा दुखी हुआ। उसने खाना-पीना छोड़ दिया। आख़िर जब उसने देखा कि उसके साथ दया का व्यवहार हो रहा है तब वह कुछ शान्त हुआ और उसका चित्त स्थिर हुआ। फ़्राइडे के बाप ने उसे समझा दिया कि तुम लोग यदि हमारे साथ अच्छा बर्ताव करोगे तो हम तुम्हें न सतावेंगे, बल्कि तुम लोगों को सब तरह से सहायता देंगे। जो कदाचित् तुम लोग इस प्रस्ताव पर सम्मत न होगे तो तुम लोगों की मृत्यु निश्चित है।

उस व्यक्ति से सन्धि का प्रस्ताव पाकर सभी असभ्य हम लोगों के पास आये। उन्होंने कुछ खाने को माँगा। अब भी उनमें ३७ व्यक्ति जीवित थे। उन लोगों की प्रार्थना पर भात, रोटी और तीन जीवित बकरे उनको दिये गये। भोजन पाकर उन लोगों ने पूर्ण रूप से कृतज्ञता प्रकट की। टापू के दक्षिण भाग में, एक पहाड़ की तराई में, उन लोगों के रहने के लिए जगह दी गई। वे लोग अब भी शान्ति-पूर्वक वहीं रहते हैं। किसी वस्तु की नितान्त आवश्यकता न हो तो वे हम लोगों के अधिकार में किसी प्रकार का दस्तन्दाज़ी नहीं करते। हमारे दलवालों ने उन्हें खेती करना, रोटी बनाना, पशुओं का पालना और दूध दुहना आदि काम सिखलाया है। उनके समाज में सिवा स्त्री के और किसी वस्तु की कमी नहीं है। उन लोगों के अधिकार में डेढ़ मील दौड़ी और चार मील लम्बी भूमि दी गई है जिसमें [ ३०५ ] वे लोग निर्द्वन्द्व होकर घूमते-फिरते हैं और अपनी खेती-बाड़ी करते हैं। अब वे लोग बड़े सीधे सादे हो गये हैं और हम लोगों की आज्ञा के अनुसार काम करते हैं। वे लोग अब वृथा समय नष्ट न कर भाँति भाँति के टोकरे, डलियाँ, चलनी, कुरसी, टेबल, खाट, आलमारी, बक्स, आदि सुन्दर सुन्दर काम की चीज़े तैयार करके सबका अभाव दूर करते हैं। वे लोग अब अच्छे शिष्ट और सभ्य बन गये हैं।