राबिन्सन-क्रूसो/फ़्राइडे की शिक्षा

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राबिनसन-क्रूसो  (1922) 
द्वारा डैनियल डीफो, अनुवादक जनार्दन झा

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फ़्राइडे की शिक्षा

आध घंटे तक उस पलायित व्यक्ति की आँखें झपी रहीं। इसके बाद वह जाग उठा और गुफा से निकल कर मेरे पास पाया। मैं बाहर बकरी दुह रहा था। वह मुझको देखते ही दौड़कर मेरे पास आया और मेरे प्रति दासत्व और कृतज्ञता का भाव प्रकट करने लगा। वह मेरे पैर को अपने माथे पर रखकर अपनी इच्छा से दासत्व स्वीकार करने लगा। मैं उसके संकेत से उसका मानसिक भाव अच्छी तरह समझ जाता था। मैंने भी उसको अच्छी तरह समझा दिया कि मैं तुम्हारे आचरण से सन्तुष्ट हूँ। थोड़ेही दिनों में मैं उसके साथ बात चीत करने लगा। मैंने उसे बोलना सिखला दिया। [ १७० ]पहले मैंने उसे यह समझा दिया कि तुम्हारा नाम मैंने फ़्राइडे (शुक्रवार) रक्खा है, क्योंकि शुक्रवार को ही वह मुझे मिला था। यह भी सिखला दिया कि तुम मुझको प्रभु कहा करो । उसको हाँ, नहीं, आदि अँगरेज़ी के छोटे छोटे शब्द भी सिखला दिये।

एक मिट्टी के बर्तन में मैंने उसको थोड़ा सा दूध और रोटी खाने को दी और स्वयं दूध में रोटी मिला कर खाकर दिखला दिया कि दूध-रोटी इस तरह खाई जाती है। उसने खाकर इशारे से बतलाया कि दूध-रोटी खाने में बहुत बढ़िया है। उसी के साथ मैंने गुफा के भीतर रात बिताई।

सवेरे उठ कर मैंने उससे कहा-"चलो तुमको कुछ कपड़े हूँ।" यह सुनकर वह बहुत खुश हुआ और मेरे साथ चला। अभी तक वह एक प्रकार से नंगा ही था।

गुफा से चलकर हम दोनों वहाँ पाये जहाँ फ्राइडे ने दोनों असभ्यों की लाश को बालू में गाड़ रक्खा था। फ्राइडे ने ठीक जगह दिखला कर इशारा किया "आओ, हम लोग इन्हें उखाड़ कर खा लें।" इससे मैंने अत्यन्त क्रोध प्रकट करके अपनी घृणा सूचित की। मैंने इशारे से दिखाया कि ऐसी बात कहने से मुझे उबकाई आती है। ऐसी बात फिर कभी मुँह से न निकालना। मैंने उसको वहाँ से चले आने का इशारा किया। उसने बड़े बिनीत भाव से मेरी आज्ञा का पालन किया।

इसके बाद मैं उसको साथ लेकर पहाड़ पर चढ़ा। दूरबीन लगा कर देखा तो अग्निकुण्ड के पास एक भी असभ्य न था। उन लोगों की डोंगियाँ भी न थीं। वे अपने साथियों की [ १७१ ] कोई खोज ख़बर न लेकर उधर के उधर ही चले गये। तब मैंने वहाँ जा कर देखना चाहा कि वे लोग वहाँ क्या कर रहे थे। मैंने दो बन्दूक़े आप ली और फ्राइडे तीर-कमान को कन्धे पर लटका कर एक हाथ में मेरी तलवार और दूसरे हाथ में मेरी बन्दूक़ ले कर मेरे साथ साथ चला। फ़्राइडे तीर चलाने में बड़ा ही दक्ष था। वहाँ पहुँच कर मैं हक्काबका सा हो रहा। मेरा जी भिन्ना उठा, किन्तु फ़्राइडे के मन में ज़रा भी घृणा उत्पन्न न हुई, वह निर्विकार था। वहाँ के भीषणदृश्य का वर्णन करते मेरा हृदय काँपता है। मैंने देखा कि चारों ओर मुर्दे की ठठरी पड़ी है, इधर उधर अधजला, आधा खाया हुआ नर-मांस बिखरा पड़ा है; कहीं हड्डियाँ लहू मास से भरी पड़ी हैं, कहीं सूखी हड्डियों का ढेर लगा है। मनुष्य के रक्त से भूमि लाल हो गई है। तीन मुण्ड और पाँच हाथ कटे पड़े हैं। फ़्राइडे ने संकेत द्वारा मुझ से कहा-वे लोग चार कैदियों को लाये थे। जिनमें तीन आदमियों को मार कर खा गये, चौथा मैं ही था। दोनों दलों में खूब युद्ध हुआ था। युद्ध में जो बन्दी होते हैं उनकी प्रायः यही दशा होती है।

मैंने फ़्राइडे से कहा कि उन ठठरियों और अधजले मांस-हड्डियों को एकत्र कर के उनमें आग लगा दे। वह नरमांस खाने के लिए फ्राइडे की लार टपक रही थी। उसकी राक्षसी-प्रकृति जाग उठी थी। उसको खाने के लिए उद्यत देख कर मैं उस पर बहुत बिगड़ा। मेरी अत्यन्त घृणा और चिढ़ने का भाव देख कर वह रुक गया। मैंने उसे अच्छी तरह समझा दिया कि अब यदि तू कभी नरमांस खायगा तो मैं तुझे भी मार डालूँगा। [ १७२ ]उन नर-कङ्कालों को अच्छी तरह जला कर मैं अपने घर लौट आया। फ़्राइडे को एक जोड़ी सूती पाजामा दिया और चमड़े का कुरता और टोपी सी कर दी। फ़्राइडे अपने प्रभु की ऐसी पोशाक पहनने को पा कर बहुत प्रसन्न हुआ। किन्तु पहले पहल कपड़ा पहनने में उसे बड़ा ही कष्ट होता था। उसे ऐसा जान पड़ता था जैसे पोशाक पहनने का उसे अभ्यास हो गया।

अब मुझे इस बात की फ़िक्र हुई कि इसको रहने के लिए कहाँ जगह देनी चाहिए। इसको ऐसी जगह रखना चाहिए जहाँ यह आराम से रह सके और मैं भी निर्भय हो कर रहूँ। कारण यह कि राक्षसी प्रकृति के मनुष्य का विश्वास ही क्या? क्या मालूम किस दिन उसकी चित्त-वृत्ति कैसी हो। उसका राक्षसी स्वभाव जिस घड़ी प्रबल हो उठेगा उस घड़ी सर्वनाश होना ही सम्भव है।

मैंने सोच-विचार कर निश्चय किया कि बाहर और भोतर के घेरों के बीच की जगह में उसके लिए एक तम्बू खड़ा कर देना चाहिए। मैंने एक छोटा सा तम्बू खड़ा कर दिया। यहाँ से गुफा के पास वाले दर्वाज़े से मेरे तम्बू में जाने का एक रास्ता था। उसमें मैंने एक फाटक लगा दिया। उसका द्वार अपने तम्बू की ओर रहने दिया और उसमें जञ्जीर भी लगा दो। जञ्जीर लगा देने और बाहर से सीढ़ी खींच कर भीतर रख देने पर सोने की अवस्था में भय की कोई सम्भावना न थी। फ़्राइडे अब सहज ही मेरे घेरे के भीतर आ कर मुझ पर आक्रमण न कर सकेगा। यदि किसी दिन घेरे को लाँघ कर मुझ पर आक्रमण करने का संकल्प करेगा भी [ १७३ ] तो वह बिना खड़खड़ाहट के न पा सकेगा, कारण यह कि मैंने खम्भों पर एक छप्पर खड़ा कर के उसे पेड़ के डालपातों से छा कर उस पर धान का पयाल बिछा दिया था। उस छप्पर के नीचे मेरा तम्बू था। जहाँ सीढ़ी लगा कर मैं बाहर निकलता था वहाँ की जगह खाली थी। उसमें भी मैने किवाड़ लगा दिये। रात को मैं सब अस्त्र-शस्त्र अपने पास रख कर सोता था।

किन्तु इतना सावधान हो कर रहने की कोई ज़रूरत न थी। क्योंकि फ्राइडे को अपेक्षा विशेष विश्वासपात्र, विनीत और निश्छल मृत्य हो सकता है, यह मैं नहीं जानता। न वह कभी क्रोध करता था, न उसके चेहरे पर कभी विरक्ति का भाव झलकता था। वह सदा प्रसन्न और सभी कामों में अग्रसर रहता था। वह मुझको अपने बाप के बराबर मानने लग गया था। प्रयोजन होने पर वह मेरे लिए प्राण तक दे सकता था।

यह देख कर मैंने समझा कि विधाता ने मानव जाति को सर्वत्र एक ही प्रकार के गुणों से भूषित किया है। मैं फ्राइडे के आचरण से अत्यन्त प्रसन्न हो कर उसको अपना कामधन्धा और भाषा सिखलाने लगा। वह अच्छा ध्यानी शिष्य था। कोई बात जब मैं उसे समझाता था या वह समझता तो वह ऐसा खुश होता था कि उसको शिक्षा देने में बड़ा ही आनन्द मिलता था। अभी मेरे दिन बड़ी खुशी से कटते थे।

दो तीन दिन बाद मैंने सोचा कि फ़्राइडे को नरमांस खाने का स्वाद भुलाने के लिए अन्य जन्तुओं का मांस खिलाना आवश्यक है। एक दिन सवेरे उसको साथ ले कर मैं [ १७४ ] जङ्गल की ओर चला। मैं अपना पालतू बकरा काटने को जा रहा था, किन्तु मार्ग में मैंने देखा कि एक वृक्ष की छाया में एक बकरी सोरही है और उसके पास दो बच्चे बैठे हैं। मैंने फ़्राइडे को पकड़ कर चुपचाप खड़ा रहने का इशारा किया। इसके बाद गोली चलाई जिससे एक बच्चा मर गया।

कई दिन हुए, फ़्राइडे ने इसी तरह दूर से अपने शत्रु को मारते देखा था। वह मारे डर के थर थर काँपने लगा। ऐसा जान पड़ा कि अब वह मूर्च्छित होकर गिर पड़ेगा। वह कुर्ता उतार कर अपने शरीर को चकित-दृष्टि से देखने लगा कि कहीं आहत तो नहीं हुआ है। मैंने उसको धमकाया कि अब की बार मैं तुम्हें मारूँगा। तब वह दौड़ कर मेरे पास आया और मेरे पैरों से लिपट कर न मालूम क्या क्या विनय करने लगा। उसकी बातें तो मेरी समझ में आईं नहीं, हाँ इतना मैंने ज़रूर समझा कि वह मुझसे प्राण-भिक्षा चाहता है।

मैंने उसे अच्छी तरह समझा दिया कि मैं तुझे न मारूँगा। उसको मैंने बकरी का मरा हुआ बच्चा दिखला दिया। वह अवाक् होकर बड़े गौर के साथ उसको देखने लगा। मैंने फ़्राइडे की आँख बचा कर उसी समय फिर बन्दूक में गोली भर ली। मैंने देखा कि एक पेड़ पर एक सुग्गा बैठा है। फ़्राइडे को वह पक्षी और अपनी बन्दूक दिखा कर समझा दिया कि इस दफ़े मैं उस पक्षी को मारूँगा और इसके बाद इशारे से पेड़ के नीचे की जगह बतला कर यह भी कह दिया कि वह मर कर यहीं गिरेगा। मैंने बन्दूक की आवाज़ की। सुग्गा मर कर पेड़ के नीचे गिर पड़ा। फ़्राइडे फिर मेरी ओर देख कर चुप हो रहा। उसने मुझको [ १७५ ] बन्दूक़ भरते नहीं देखा था। उसने अपने मन में समझा कि बन्दूक़ के भीतर मृत्यु विचित्र ढङ्ग से ढेर की ढेर घुसी है। उसका विस्मय और भय दूर होने में बहुत दिन लगे। यदि मैं उसे न रोकता तो वह शायद मेरा और बन्दूक का पूजन करता। वह बहुत दिनों तक साहस कर के भी बन्दूक को छूता न था। जब वह अकेला रहता था तब चुपचाप बन्दूक के पास जाकर अपनी दीनता दिखलाता था। और हाथ जोड़ कर बन्दूक से विनती कर के कहता था-हे देव! मेरे प्राण बचाओ।

मैं बकरी के मरे बच्चे को उठा कर अपने घर ले आया और उसका बहुत बढ़िया झोल बनाया। मांस के साथ मुझको नमक खाते देख कर फ़्राइडे को बड़ा आश्चर्य हुआ। इशारे के द्वारा उसने मुझ से कहा-"छिः, नमक खाते हो? उसका कैसा बुरा स्वाद होता है।" उसने मेरी देखादेखी थोड़ा सा नमक मुँह में डाल कर थूक दिया और कुल्ला करके फिर भोजन करने बैठा। मैंने भी उसको दिखला कर बे नमक का मांस मुँह में रखकर उसी की तरह थूक दिया। किन्तु इससे कोई फल न हुआ। वह किसी तरह नमक खाने को राज़ी न हुआ।

दूसरे दिन मैंने उसको कबाब खिलाया। उसके आनन्द का क्या पूछना है! उसने बार बार उमँग कर मुझे समझाया कि यह बड़ा ही अच्छा है, खाने में खूब स्वादिष्ट है। उसने कहा, "अब मैं कभी नर-मांस न खाऊँगा"। यह सुन कर मैं प्रसन्न हुआ।

तब मैंने उसको धान कूटना और आटा पीसना आदि सिखलाया। उसने बात की बात में ये सब काम सीख लिये। [ १७६ ] इसके बाद मैंने उसको रोटी बनाना सिखलाया। थोड़े ही दिनों में वह मेरे ही ऐसा घर के काम-धन्धों में प्रवीण हो गया।

अब मुझे दो व्यक्तियों के आहार की चिन्ता हुई। मैंने खेती का कारबार बढ़ाया। ज़्यादा ज़मीन तैयार की। फ्राइडे बड़ी खुशी के साथ अपने मन से खेती में परिश्रम करने लगा। वह मेरी प्राज्ञा पालने के लिए सदा तत्पर रहता था।