राबिन्सन-क्रूसो/मदागास्कर टापू में हत्याकाण्ड

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मदागास्कर टापू में हत्याकाण्ड

ब्रेज़िल से बिदा हो हम लोग अटलांटिक महासागर पार करके गुडहोप अन्तरीप में पहुँचे। रास्ते में कोई विघ्न नहीं हुआ। यहाँ से समुद्र-पथ हम लोगों के लिए अनुकूल हुआ। स्थल-मार्ग ही विघ्नों का घर हो उठा। अब से जो कुछ विपत्ति आई वह स्थलमार्ग में ही, समुद्र-पथ में नहीं।

गुडहोप अन्तरीप में पानी लेने के लिए जितनी देर तक रहना दरकार था उतनी देर जहाज़ रोक रक्खा गया। वहाँ से रवाना होकर जहाज मदागास्कर टापू में जा लगा। वहाँ के निवासी अत्यन्त नृशंस थे। वे बाणविद्या और शक्तिप्रक्षेप में सुपटु थे, फिर भी उन लोगों ने हमारे साथ अच्छा बर्ताव किया। हम लोगों ने उन्हें छुरी, कैंची आदि सामान्य वस्तुएँ उपहार में दीं। इसीमें सन्तुष्ट हो कर उन लोगों ने हमको ग्यारह हृष्ट-पुष्ट बछड़े ला दिये।

देश देखने का उन्माद विशेष कर मुझी को था। ज़रा सा सुयोग पाते ही मैं स्थल में उतर जाता था और समुद्र-तटवर्ती लोग चारों ओर इकट्ठे हो चुपचाप खड़े होकर देखते थे। उन लोगों में सन्धि-स्थापन की प्रणाली बड़ी विचित्र थी। [ ३२८ ] एक तरह के वृक्ष की तीन डालें काट कर एक जगह गाड़ देते थे। यदि अपर पक्ष के लोग इस सन्धि से सम्मत होते थे तो वे भी उनके सामने इसी तरह तीन वृक्ष-शाखाएँ गाड़ देते थे। दोनों दलों के सन्धिस्थापन के बीच की जगह वाणिज्य-व्यवहार और बात-चीत के लिए निर्दिष्ट होती थी। उस मध्यवर्ती स्थान में यदि कोई जाना चाहता था तो उसे निरस्त्र होकर जाना पड़ता था।

एक दिन सन्ध्या-समय हम लोग स्थल में उतर पड़े। वहाँ के रहने वालों ने चारों ओर से आकर हम लोगों को घेर लिया। किन्तु उन लोगों ने कोई प्रतिकूल आचरण न कर बडे शान्त भाव से हम लोगों के साथ सन्धि का बर्ताव किया। हम लोगों ने भी सन्धि-शाखा गाड़ कर के वहीं रात बिताने की इच्छा से कई तम्बू खड़े किये।

सभी लोग निश्चिन्त हो कर सो रहे। किन्तु न मालूम मुझे नींद क्यों न आई। तब मैं नाव पर गया और नाव के ऊपर पेड़ के डाल-पत्तों का एक छप्पर छा दिया। उसके नीचे पाल बिछा कर मैं सो रहा। नाव की रक्षा के लिए दो आदमी और भी नाव पर थे। मैंने नाव को किनारे से ज़रा हटा कर लंगर डाल दिया।

दो बजे रात को हम लोगों के साथी खूब ज़ोर से चिल्ला कर नाव को किनारे लगाने के लिए हम लोगों के नाम ले ले कर पुकारने लगे। इसके साथ साथ पाँच बार बन्दूक़ की आवाज़ सुनाई दी। कुछ कारण न समझने पर भी हम लोगों ने झट पट नाव को किनारे लगा दिया और तीन बन्दूक़ें लेकर हम लोग उनकी सहायता के लिए प्रस्तुत हुए। [ ३२९ ]किन्तु नाव किनारे भिड़ते न भिड़ते हमारे साथी लोग नाव पर चढ़ने के लिए पानी में धँस पड़े। उनके पीछे पीछे तीन चार सौ आदमी दौड़े चले आ रहे थे। हम लोगों के श्रादमी गिनती में कुल नौ थे, जिनके साथ सिर्फ पाँच बन्दूक़ें थीं।

हम लोग बड़े कष्ट से सात मनुष्यों को नाव पर चढ़ा सके। उनमें तीन व्यक्ति बहुत घायल थे। किन्तु नाव पर आजाने पर भी छुटकारा नहीं हुआ। वहाँ के निवासी लोग अँधाधुन्ध बाण बरसा रहे थे। दैवयोग से नाव में कई तख्ते और बेञ्च थीं। उन्हीं को खड़ा कर कर के हम लोग उनकी आड़ में छिप रहे। द्वीप-निवासियों का जैसा अचूक बाण चलता था उससे यदि दिन का समय होता तो हम लोगों के शरीर का कोई अंश सामने पड़ जाने पर फिर उनके हाथ से बचना मुश्किल था। हम लोगों के भाग्य से उस समय रात थी। चाँदनी रात में तख्तों के छिद्र से देखा कि वे लोग किनारे खड़े होकर हम लोगों पर बाण बरसा रहे हैं। हम लोगों ने बन्दूक़ें भर कर एक साथ गोली चलाईं। उन लोगों की चिल्लाहट से मालूम हुआ कि कई आदमी घायल हुए हैं। किन्तु वे लोग बन्दूक की विशेष परवा न करके सबके सब पाँत बाँध कर प्रभात की अपेक्षा से खड़े रहे। कारण यह कि दिन के उजेले में वे लोग अच्छी तरह लक्ष्य करके हम लोगों पर बाण चलावेंगे।

हम लोग उनके डर से बड़े दुखी हुए। न हम लोग लङ्गर उठा सकते थे, न पाल तान सकते थे और न लग्गे से नाव ही खे सकते थे। ये सब काम करने के लिए खड़ा होना पड़ेगा, और वे लोग जिसे खड़ा देखेंगे उसे बाण से मार गिरावेंगे। अब हम लोगों ने अपने जहाज़ वाले साथियों को विपत्ति [ ३३० ] का संकेत किया। जहाज़ यद्यपि किनारे से करीब एक मील पर था तथापि जहाज़ के कप्तान मेरे भतीजे ने हम लोगों की बन्दूक की आवाज़ सुनी और दूरबीन से देख कर उसने अच्छी तरह जान लिया कि हम लोग कैसी अवस्था में हैं। उसने तुरन्त लङ्गर उठा कर यथासंभव जहाज़ को किनारे की ओर हटा लिया और एक नाव पर दस आदमियों को सवार करा के मेरी सहायता के लिए भेजा। इस नाव के आरोहियों को हम लोगों ने खूब ज़ोर से चिल्ला कर अपनी नाव के निकट आने से रोका। तब उस नाव में से एक आदमी खूब मोटा रस्सा लेकर पानी में उतरा और नाव की ओट ही ओट से तैर कर हमारी नाव के पास आ गया और नाव को उस रस्से से खूब कस कर के बाँध दिया। तदान्तर दूसरी नाव के माँझी उस रस्से को खींच कर हमारी नाव को वहाँ से हटा कर दूर ले गये। अब हम लोग उन द्वीप-निवासियों के बाण के लक्ष्य से बाहर निकल गये।

हम लोगों की नाव, जहाज़ और किनारे के बीच से, दूर हटते ही जहाज़ की तोपों से गोले बरसने लगे। जो द्वीपवासी किनारे खड़े थे वे सबके सब उन गोलों की मार से एक ही बार जल भुन कर ख़ाक़ हो गये। हम लोग जहाज़ पर बेखटके सवार हो गये। तब मैंने द्वीपवासियों के अकस्मात् श्राक्रमण का कारण अनुसन्धान कर के मालूम किया कि हम लोगों के एक नाविक ने उनकी एक स्त्री का अपमान किया था; इसीसे उन लोगों ने सन्धि को तोड़ कर रमणी के अपमान का बदला लेने के लिए एकत्र होकर हम लोगों के नाविकों पर आक्रमण किया था। जो नाविक इस अनर्थ की जड़ था वह हम लोगों के साथ लौट कर न पा सका। हम लोगों ने उसके [ ३३१ ] प्रत्यागमन की आशा से दो दिन जहाज़ को रोक रक्खा और उसको लौट आने के लिए अनेक प्रकार के संकेत किये। किन्तु संकेत का कोई उत्तर न पाकर हम लोगों ने उसकी आशा छोड़ दी।

किन्तु उसकी कोई खबर न पाकर मैं स्थिर न रह सका। इस घटना के तीन दिन बाद मैं अँधेरे में अपने बदन को भली भाँति ढक कर किनारे पर उतरा और उन असभ्य लोगों की खोज में चला। मेरे साथ कुछ नाविक भी चले। मैं अच्छा काम करने जाकर फिर एक भारी अनर्थ कर बैठा।

मेरे साथ क़रीब २०, २२ आदमी बड़े बलिष्ठ थे। दस बजे रात को हम लोग चुपचाप स्थल में उतरे और साथ के लोगों को दो भागों में बाँटकर एक के परिचालन का भार मैने लिया तथा दूसरे भाग का भार जहाज़ के माँझी ने लिया। हम लोगों ने चन्द्रमा के प्रकाश में देखा कि कुल बत्तीस आदमी हम लोगों की गोली से मर कर समुद्र के किनारे पड़े थे। घायलों को शायद द्वीप-निवासी उठाकर ले गये थे।

मैंने यहीं से जहाज़ में लौट चलने का प्रस्ताव किया किन्तु माँझी को यह प्रस्ताव स्वीकृत न हुआ। उसने कहा कि "मैं एक बार इन नारकी कुत्तों (इसी तरह अवज्ञा के साथ वह बोला) के शहर में जाऊँगा और वहाँ जाकर उन का धन लूट लाऊँगा। वहाँ जाने से कदाचित् खोये हुए नाविक टाम जेफ्री का भी कुछ पता लग जाय।" उसने मुझसे भी चलने के लिए अनुरोध किया। किन्तु मैं उसके इस अति साहसिक काम का अनुमोदन न कर सका। मैं उसी घड़ी जहाज़ में लौट आया। मेरे दल के लोग जाने के लिए [ ३३२ ] मुझसे बार बार आग्रह करने लगे। मैं उन लोगों को रोकने की चेष्टा करने लगा। किन्तु इससे असन्तुष्ट हो वे सबके। सब मुझसे बिगड़ गये, और कहने लगे, "तुम हमारे रोकने वाले कौन?" यह कह कर एक एक कर सभी चले गये । मेरे बहुत कहने-सुनने पर एक नाविक और एक लड़का मेरे साथ नाव पर रहा।

जब वे नाविक मेरे आदेश की उपेक्षा कर जाने लगे तब उन्हें मैंने कितना ही समझाया कि तुम्हीं लोगों के जीवन और शुभाशुभ पर जहाज़ का शुभाशुभ अवलम्बित है। तुम लोगों को इस उजड्डपन के लिए यहाँ और परलोक की अदालत में धर्मराज के सामने जवाबदेही करनी होगी। किन्तु कौन किसकी सुनता है? वे लोग शहर में जाने के लिए क्रुद्ध हो उठे थे। मेरा कहना अरण्य-रोदन के समान हुआ। वे इतना कह गये कि "आप रुष्ट न हो, हम लोग अभी एक आध घंटे में लौट आते हैं।" मैंने बड़ी स्पष्टता के साथ उनसे कह दिया, "जाते हो तो जाओ। किन्तु मेरी बात को अच्छी तरह याद रखना, तुम लोगों में कितनों ही की दशा टाम जेफ़्री की भाँति होगी।" जो लोग किसी तरह बच आवेंगे उनकी प्रतीक्षा करके हम लोग बैठ रहे।

वे सबके सब चले गये। यद्यपि यह विषम साहसिक कर्म पागलपन के सिवा और क्या कहा जा सकता है तथापि वे लोग बड़ी सावधानी के साथ जाने लगे। ऐसे साहसी और हथियारबन्द लोग प्रायः बहुत कम ऐसे बुरे काम में प्रवृत्त होते हैं। उन लोगों के साथ बन्दूक़, बर्छा, तलवार, कुल्हाड़ी और बम आदि सभी कुछ यथेष्ट परिमाण में थे। [ ३३३ ]उन लोगों का प्रधान उद्देश्य था लूटना। उन लोगों ने समझा था कि लूट में बहुत सोना और जवाहरात मिलेंगे। वे लोग घटनाक्रम से एक दम शैतानी से मत्त हो उठे। कुछ श्रागे बढकर उन्होंने देखा कि सिर्फ बारह तेरह घर की एक बस्ती है। क्या इस देश का यही शहर है? हा, सभी के मुँह फीके पड़ गये। तथापि एकदम हताश न होकर उन लोगों ने स्थिर किया कि एक बार खोजकर देखना चाहिए कि शहर कहाँ है। किन्तु शहर किस तरफ है, इसका पता कैसे लगेगा? यह बात किसीसे पूछने का भी साहस नहीं होता था, क्योंकि बस्ती वाले सो रहे थे। इस सोच विचार में इधर-उधर घूमते फिरते उन लोगों ने एक पेड़ के नीचे एक पशु बँधा हुआ देखा। इसी पशु को उन लोगों ने पथ-प्रदर्शक बनाने का निश्चय किया। "पशु छोड़ देने पर यदि वह छोटी बस्ती की ओर जायगा तब तो शहर का पता लगाना कठिन होगा किन्तु यदि वह शहर का होगा तो शहर ही की ओर जायगा। तब उसके पीछे पीछे हम लोग शहर में सहज ही पहुँच जायँगे। पीछे जो होगा देखा जायगा"। यह सोचकर उन लोगों ने पशु का बन्धन काट दिया। बन्धन कटते ही पशु शहर की ओर चला। ये लोग भी उसके पीछे पीछे चले। थोड़ी देर में वे लोग उसके साथ साथ शहर में पहुँच गये। उन्होंने शहर में घूमकर देखा, प्रायः दो सौ घर की आबादी थी। किसी घर में परिवार की संख्या कुछ अधिक थी। घर सभी फूस के थे।

शहर वाले सभी सो रहे थे। सर्वत्र निद्रादेवी की शान्त निःस्तब्धता विराज़मान थी। शहर के निवासी बेचारे स्वप्न में भी न जानते थे कि सभ्यताभिमानी दुरन्त नीचाशय मनुष्यों [ ३३४ ] का एक दल हमारा सर्वनाश करने के लिए आया है। नाविकों ने आपस में सलाह की कि हम लोग तीन भागों में विभक्त होकर तीन ओर से शहर में आग लगा दें और जो भयार्त नर-नारियाँ घर से बाहर निकलें उन्हें गिरफ्तार करलें। जो कोई इस निष्ठुर कार्य में बाधा डालने आवेगा उसकी क्या दशा होगी, यह कहने की आवश्यकता नहीं। इसके बाद वे लोग बेरोक लूटपाट मचावेंगे।

इस इरादे से कुछ आगे बढ़ कर उन लोगों ने देखा कि एक पेड़ में उन के लापता संगी टाम जेफ़्री का धड़ टँगा है। उसका गला कटा है। बदन पर एक भी कपड़ा नहीं है। एक हाथ रस्सी से बँधा है जिसके सहारे वह झूल रहा है। उसके समीप ही एक मकान में समाज के कुछ प्रधान व्यक्ति एकत्र हो आपस में गपशप कर रहे थे। शायद टाम जेफ़्री के सन्धिभङ्ग की बात हो रही थी। यह देखकर नाविकों के सिर पर खून सवार हो गया। उन्होंने अपने साथी की मृत्यु का भरपूर बदला लेने की प्रतिज्ञा की और संकल्प किया कि स्त्री-पुरुष बाल-वृद्ध, कोई हो, किसी पर दया न की जाय।

इसके बाद उन लोगों ने घर घर में आग लगा दी। सबसे पहले वही घर जलाया गया जिसमें शहर के मुखिया लोग ग़पशप कर रहे थे। फूस का छप्पर था। आग लगते ही ले उड़ा। घर घर भाग नाचने लगी। सभी लोग बड़े आराम से पहली नींद सो रहे थे। गृहदाह की बात सुनते ही सब लोग हड़बड़ा उठे। क्या स्त्री क्या पुरुष, डर कर, सभी घर के भीतर से दौड़ कर बाहर हुए। बाहर आते ही वे लोग अँगरेज़ नर-पिशाचों के हाथ से अशेष यन्त्रणा भोग कर [ ३३५ ] फिर जलते हुए घर के भीतर ही घुसने लगे। वे लोग उन नर-पिशाचों के तेज़ बरछे की चोट की अपेक्षा धधकती हुई श्राग का आलिङ्गन अच्छा समझते थे। जहाज़ के माँझी लोग घर के द्वार पर खड़े हो, प्राणभय से भीत, नर-नारियों को बरछे की नोक से बींध कर जलते हुए घर के भीतर लौटा देते थे। जो नहीं लौटते थे उन्हें तलवार से टुकड़े टुकड़े कर के आग में फेंक देते थे। किसीके अङ्ग-प्रत्यङ्ग में बरछी भोक कर बड़ी निर्दयता के साथ मारते थे। जहाँ बहुत लोगों को एक स्थान में जमा देखते थे वहाँ बम का गोला फेंक कर सभीको चौपट कर अपनी शैतानी का अन्त कर दिखलाते थे।

माँझियों ने अब तक एक भी बन्दूक की आवाज न की थी, कारण यह कि बन्दूक का शब्द सुन कर बहुत लोग जाग उठते। किन्तु थोड़ी ही देर में चारों ओर आग फैल गई। तब सभी जाग गये। फूस का घर झटपट जल कर भस्म होने लगा। आग के दाह से नाविकों को मार्ग में खड़ा होना कठिन हो गया। तब वे भी आग के साथ साथ आगे बढ़ने लगे। वे नाविक रास्ते में जिसको पाते उसीको आग में ढकेल देते थे या उसे तलवार से टुकड़े टुकड़े कर डालते थे। अब वे लोग धड़ाधड़ बन्दूक़ें भी चलाने लगे।

मैं नाव पर से यह भीषण अग्नि-प्रसार देख कर डर गया। जहाज़ का कप्तान सो गया था। माँझियों ने जाकर उसे जगाया। वह आँख मलता हुआ उठा और उठते ही एकाएक इतनी बड़ी अग्निज्वाला देख कर और बन्दूक़ों की आवाज़ सुन कर मेरे लिए उद्विग्न हो उठा। यद्यपि उसके पास थोड़े से नाविक रह गये थे तथापि वह तेरह [ ३३६ ] नाविकों को साथ ले एक नाव पर सवार हो स्वयं किनारे आ पहुँचा।

मेरा भतीजा (कप्तान) किनारे आकर और दूसरी नाव पर मुझे देख कर बहुत खुश हुआ, किन्तु और लोगों के लिए उसको कम उत्कण्ठा न हुई। तब भी आग वैसे ही धधक रही थी और शोर-गुल भी उसी तरह हो रहा था। ऐसी अवस्था में कुतूहलाक्रान्त चित्त को रोक चुप साध कर बैठ रहना एक प्रकार से असंभव था। भतीजे ने कहा-"जो भाग्य में बदा होगा सो होगा, एक बार वहाँ जाकर देखूँ तो क्या हाल है"। मैं उसे समझाने लगा कि "ऐसा मत करो, क्योंकि जहाज का भला-बुरा तुम्हारे ही ऊपर निर्भर है। इसलिए उस भयङ्कर स्थान में तुम्हारा जाना उचित नहीं, बल्कि कहो तो दो आदमी साथ लेकर मैं जाता हूँ और देख आता हूँ कि क्या मामला है।" मेरा सब समझाना वृथा हुआ। कितना ही मना किया पर उसने न माना। वह चला ही गया। मैं करता ही क्या? मैं अब हाथ पाँव मोड़ कर चुपचाप बैठा न रह सका। मैं भी उसके साथ साथ चला। जहाज के पैंसठ नाविकों में दो व्यक्ति मारे गये, और कुछ पहले ही शहर देखने जा चुके थे, कुछ मेरे साथ चले। सिर्फ सोलह आदमी जहाज़ पर रह गये।

हम लोग इतनी तेजी से दौड़ चले कि धरती पर प्रायः पैर न लगते थे। आग को लक्ष्य कर हम लोग उसी तरफ़ दौड़ चले। उस समय रास्ते का खयाल किसीको थोड़े ही था। समीप जाकर कासर नर-नारियों का आर्तनाद सुन कर हम लोगों का हृदय काँप उठा। इतिहास में कितने ही नगरों [ ३३७ ] के विध्वंस की बात पढ़ी है, एक ही दिन में सहस्र सहस्र नर-नारी और बाल-वृद्धों के विनाश का वृत्तान्त सुना है किन्तु मेरी धारणा में न था कि वह व्यापार इतना घृणोत्पादक और बीभत्स होता है।

हम लोग शहर में जा पहुँचे। किन्तु आग को चीर कर किसका सामर्थ्य था जो रास्ते पर चलता? कितने ही घर जल कर खाक हो गये थे। उस भस्म-राशि में और उसके पास कितने ही जले और अस्त्र-हत लोग इधर उधर मरे पड़े थे। चारों ओर हाहाकार मच रहा था। हम लोगों के साथ के आदमी इतने बड़े शैतान और राक्षस होंगे, यह विश्वास के बाहर की बात थी। जो लोग ऐसा अमानुषी काम कर सकते हैं उनका उचित दण्ड घोर यन्त्रणामय मृत्यु के सिवा और हो ही क्या सकता है?

हम लोग धीरे धीरे आगे बढ़ने लगे। जहाँ आग खूब तेजी पर थी वहाँ जाकर देखा कि तीन स्त्रियाँ बिलकुल नङ्ग-धड़ङ्ग इस प्रकार दौड़ी हुई आ रही थीं जैसे उड़ती आती हों और उनके पीछे वहीं के सोलह सत्रह पुरुष उसी तरह भय से व्याकुल होकर बेतहाशा दौड़े आ रहे थे। तीन नृशंस अँगरेज उनका पीछा कर रहे थे। जब वे उन भगोड़े स्त्री-पुरुषों को न पकड़ सके तब उन पर गोली चलाई। हम लोगों की आँखों के सामने ही एक आदमी गोली की चोट खा कर गिर पड़ा। बचे हुए स्त्री-पुरुषों ने दौड़ कर आते आते सामने हम लोगों को देखा। वे लोग हम लोगों को भी हत्याकारी शत्रु समझ कर चिल्ला उठे। पीछे शत्रु, आगे शत्रु; वे लोग भागे तो किधर? स्त्रियाँ ऐसी भयभीत हुईं कि उनमें दो मूर्च्छित होकर गिर पड़ी। [ ३३८ ] यह घोर अत्याचार देखकर मेरा सर्वाङ्ग शून्य सा हो गया। मेरा अन्तःकरण विकल हो उठा। उन नगर-निवासियों को खदेड़ते हुए वे दुष्ट नाविक यदि मेरे पास आते तो आश्चर्य नहीं कि मैं उनको गोली मार देता। हम लोगों ने उन भयार्त नर-नारियों को अभय दिया। तब वे हम लोगों के सामने घुटने टेक कर बैठे और अत्यन्त कातर हो रो रोकर प्राण की भिक्षा चाहने लगे। हम लोगों ने उन्हें पूर्णरूप से आश्वासन दिया। तब वे इकट्ठे होकर हमारा आश्रय ग्रहण कर हमारे पीछे पीछे चले। मैंने अपने साथवाले नाविकों से कहा―“तुम लोग उन आततायी नाविकों में से किसी के साथ जा मिलो। किन्तु ख़बरदार! किसीको व्यर्थ न सताना। उन उद्दण्ड माँझियेां को समझा दो कि रात में ही यहाँ से भाग चलें नहीं तो सबेरे लाखों आदमी इस पैशाचिक कर्म का बदला लेने आवेंगे।” इसके बाद हमने दो आदमियों को साथ ले उन भयभीत नर-नारियों के समीप जाकर बड़ा ही भयानक दृश्य देखा। हाय! हाय! कोई कोई भयानक रूप से आग में पड़कर झुलस गये हैं। एक स्त्री दौड़ने के समय अग्निकुण्ड में जा गिरी थी, उसका सारा अङ्ग जल गया था। दो एक व्यक्तियों की पीठ और पसुली में माँझियों ने तलवार मार दी थी। एक आदमी को किसीने गोली मार दी थी। वह मेरी आंखों के सामने ही मर गया।

इस राक्षसी व्यवहार का कारण जानने के लिए मेरे मन में बड़ी ही व्यग्रता हो रही थी। किन्तु जानता कैसे? द्वीप- निवासियों ने इशारे से जताया कि इस आकस्मिक आक्र- मण का कारण हम कुछ भी नहीं जानते। मुझसे अब रहा न गया। मैं शहर के भीतर जाने और जिस तरह हो इस घोर [ ३३९ ] हत्याकाण्ड को रोकने के लिए चञ्चल हो उठा। मैं अपने साथियों को पुकार कर चलना ही चाहता था कि इतने में जहाज़ का माँझी और चार नाविक हताहत स्त्री-पुरुषों के शरीर को पैरों से कुचलते, उछलते-कूदते मेरे पास आये।

उनका शरीर लह से लथपथ था तो भी उन लोगों की रक्तपिपासा अब तक मिटी न थी। भूखे बाघ की भाँति वे लोग तब भी अनावश्यक नरहत्या के लिए लोलुप बने फिरते थे। हमारे साथियों ने उन्हें पुकार कर बुलाना चाहा, पर वह पुकार क्या उनके कानों में प्रवेश करती थी? बड़ी बड़ी मुश्किल से एक ने हम लोगों की पुकार पर ध्यान दिया। पीछे सभी मेरे पास आ गये।

माँझी हम लोगों को देखते ही मारे उल्लास के सिंहनाद कर उठा। उसने समझा कि उनके इस पैशाचिक कर्म के पृष्ठ-पोषक और भी कई व्यक्ति आये हैं। वह मेरी बात सुनने की कुछ अपेक्षा न करके उच्चवर से बोला-"कप्तान, कप्तान! आप आये हैं, अच्छा हुआ। हम लोगों को अब भी आधा काम करना है। टाम जेफ़्री के सिर में जितने बाल हैं उतने मनुष्यों का जब तक बलिदान न करेंगे तब तक हम लोग दम न लेगे। इन दोज़ख़ी कुत्तो का इस दुनिया से नाम-निशान मिटाकर ही यहाँ से हम लोग जायँगे। अभी क्या हुआ है?" यह कहकर उन लोगों ने दौड़ लगाई। मेरी एक भी बात सुनने की अपेक्षा न की।

उनको रोकने के लिए मैंने चिल्लाकर कहा-"अरे नीच, पिशाच! तुझे क्या सूझा है? ख़बरदार! अब एक आदमी को भी तू न मार सकेगा। किसी पर हाथ चलाया कि समझ रख [ ३४० ] तू अपनी जान से हाथ धो बैठेगा।" माँझी इस बात से ज़रा ठिठक कर बोला-"क्यों महाशय! क्या आप नहीं जानते कि इन सालों ने कैसा अनर्थ किया है? यदि नहीं जानते तो इस तरफ़ श्राकर देखिए।" उसने मुझे अपने साथ ले जाकर टाम जेफ़्री की टँगी हुई लाश दिखला दी।

यह देखकर मेरा भी चित्त उत्तेजित हो उठा। किन्तु मैंने अपने हृदय के आवेग को रोक कर विचार किया कि इस हत्या का बदला बहुत अधिक लिया जा चुका है। इससे मैं चुप हो रहा। किन्तु मेरे साथी लोग चिढ़ गये, यहाँ तक कि मेरा भतीजा कप्तान पर्यन्त बिगड़ उठा। अपने पोताध्यक्ष को अपने दल में सम्मिलित देखकर नाविकगण उद्दण्ड होकर हत्या में प्रवृत्त हुए। मैं उन लोगों को रोकने में अक्षम हो चिन्ताकुल चित्त से लौट चला। हाय! ऐसा निर्दय हत्याकाण्ड क्या देखने को वस्तु है! इन आक्रान्त घायल नर-नारियों का आर्तनाद क्या सुना जाता था!

मैं किसी को नहीं लोटा सका। केवल तीन आदमी मेरे साथ लौट चले। किन्तु इस घोर अत्याचार के समय ऐसे बलहीन होकर लौट जाना हमारे लिए नितान्त असम साहस का काम हुआ। सुबह को सफ़ेदी आसमान में छाती जा रही थी। उधर हम लोगों के अत्याचार की खबर गाँव गाँव में फैलती जा रही थी। एक गाँव में चालीस आदमी धनुष, बाण, और भाले आदि अनेक अस्त्र लिये खड़े थे। दैवयोग से हम लोग उस रास्ते से न जाकर दूसरी राह से एकदम समुद्र के किनारे जा पहुँचे। उस रास्ते से जाते तो अनर्थ होता। हम लोग जब समुद्र-तट पर पहुँचे तब प्रातःकाल की [ ३४१ ] प्रभा स्पष्ट हो चुकी थी। मैं नाव के सहारे जहाज़ में जा बैठा और नाव को वापस कर दिया। यदि कोई वहाँ से लौट आवे तो उसे चढ़ाकर ले आवेगी।

धीरे धीरे आग बुझ गई। हल्ला भी कम हुआ। इससे जान पड़ा कि वे अत्याचारी अब लौटे श्रा रहे हैं। कुछ देर के बाद एक साथ कई बन्दूकों की आवाज़ सुन पड़ी। रास्ते में ग्रामवासियों के सोलह मनुष्यों को मारकर और कितने ही घरों को जलाकर कीर्तिमान् लोग लौट आये। वे दल बाँध कर नहीं पाते थे। सभी अलग अलग घूमते फिरते आ रहे थे। यदि कोई साहस करके उन पर आक्रमण करता था तो उसका प्राण बचना कठिन हो जाता था। समूचे देश में बड़ी सनसनी फैल गई। पाँच नाविकों को देखकर सौ द्वीपनिवासी जान लेकर भागते थे। अँधेरे में एकाएक आक्रान्त होने के कारण उनकी अक्ल यहाँ तक मारी गई थी कि उनमें किसी को हिम्मत न पड़तो थी कि कोई उन दुराचारियों के दुष्कर्म में बाधा डाले। इससे हमारे नृशंस नाविकों को ज़रा भी चोट न आई; सिर्फ एक आदमी का पैर मोच खा गया था, और एक आदमी का हाथ जल गया था।

मैं सभी के ऊपर अत्यन्त रुष्ट था, विशेष कर अपने भतीजे के ऊपर। वह कैसा निर्बुद्धि था, वह जहाज़ का कप्तान होकर ऐसे बुरे कामों में फँस पड़ा! जहाज़ का भला-बुरा सब उसी के ऊपर निर्भर था। उसने अपने अधीन कर्मचारियों को विपत्तिजनक नीचकर्म से निवृत्त न करके उन्हें और उत्तेजित किया। मेरी झिंड़कियाँ खाकर मेरे भतीजे ने बड़ी मुलायमियत के साथ मुझे उत्तर दिया-"हाँ, अन्याय मुझ से बेशक हुआ [ ३४२ ] है। पर क्या किया जाय? मैं भी मनुष्य ही हूँ। अपने नाविक की ऐसी निर्दय हत्या देखकर मैं स्थिर न रह सका।" नाविकगण जानते थे कि वे मेरे अधीन नहीं हैं। इसलिए मेरे तिरस्कार की उन्होंने कुछ परवा न की।

तथापि मैंने उन लोगों का तिरस्कार करना न छोड़ा। जभी मौका मिल जाता उन लोगों का तिरस्कार किये बिना न रहता था। माँझी अपने पक्ष के समर्थन की चेष्टा करते थे। मैं उन लोगों को खूनी कहता था और जब तब उन लोगों से कह दिया करता था कि तुम लोग भगवान् के रोषानल में अवश्य पड़ोगे। तुम्हारी वाणिज्ययात्रा कभी शुभप्रद न होगी।