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लेखाञ्जलि/१—भेड़ियों की माँद में पली हुई लड़कियाँ

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लेखाञ्जलि
महावीर प्रसाद द्विवेदी

कलकत्ता: हिंदी पुस्तक एजेंसी, पृष्ठ १ से – ७ तक

 

लेखाञ्जलि

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१-भेड़ियोंकी माँदमें पली हुई लड़कियाँ।

कोई सौ सवा सौ वर्ष पहले इस देशके प्रायः प्रत्येक प्रान्तमें जङ्गली हिंस्र जीवों का बड़ा आधिक्य था। भेड़िये, रीछ, लकड़बग्घे आदि की तो बात ही नहीं; शेर, बाघ और हाथीतक घने जङ्गलों में घूमा करते थे, और कभी-कभी वस्तियों के भीतरतक आकर उत्पात मचाते थे। पर अब यह बात नहीं। अब तो शेर, बाघ और हाथी उन्हीं जगहोंमें कुछ रह गये हैं जहाँ घोर जंगल हैं और दूर-दृरतक फैले हुए हैं। इनकी संख्या भी बहुत ही कम रह गई है। भय है कि यदि इन जीवोंका नाश इसी गति से होता गया, जिस गतिसे कि इस समय हो रहा है, तो शायद किसी दिन इनका समूल ही क्षय हो जायगा। भेड़ियों, रीछों तथा अन्य छोटे-छोटे हिंस्र जानवरों के विषय में यह बात चरितार्थ नहीं। कारण यह

है कि एक तो उनकी संख्या अधिक है, दूसरे वे छोटे-छोटे जंगलों, नदी-नालों के कछारों तथा और भी कुछ जगहोंमें रह सकते हैं। और, देहातियों के पास बन्दूकें न होनेसे उनका नाश भी बहुत ही कम होता है। तथापि वे भी कम ही होते चले जा रहे हैं, क्योंकि सरकार ने उनको मारनेवालों के लिए इनाम मुकर्रर कर दिये हैं।

जिस समय रेल और तारका अस्तित्व न था तथा सड़कें भी कम थीं उस समय रीछ और भेड़िये प्रायः सभी कहीं बहुत अधिक संख्यामें पाये जाते थे। रीछ तो उतने न थे, पर भेड़िये बहुत अधिक थे। वे कुत्तों, बकरियों, भेड़ों और गाय-भैंसों के बदोंपर दिन-दहाड़े छापा मारते और उन्हें उठा ले जाते थे। यहांतक कि देहात में यदा कदा वे छोटे-छोटे लड़कों और लड़कियों को भी उठा ले जाते और उन्हें मार खाते थे। इस प्रकार की दुर्घटनायें अब भी कभी-कभी हो जाती हैं। भेड़ियों के सम्बन्धमें एक बड़ी ही विचित्र बात सुनी जाती है। सुनी क्या जाती है उसके सच होने के कितने ही प्रमाण भी मिले और पुस्तकों तकमें लिखे जा चुके हैं। वह यह कि भेड़िये जिन बच्चों को उठा ले जाते हैं उन्हें वे कभी-कभी मारते नहीं, किन्तु अपनी माँद में पालते हैं। कोई सौ वर्ष पहले इस देश में भ्रमण करनेवाले कई अंगरेज़ अफ़सरों ने इन घटनाओंका आँखों देखा वर्णन अपनी पुस्तकों में किया है।

जिस समय अवध प्रान्त में लखनऊ के नवाब-वज़ीरों का राज्य था उस समय स्लीमन नाम के एक साहब लखनऊ में रेज़िडेंट थे। उन्होंने अपने समयमें इस सूबे की देहात में दूर-दूरतक दौरा किया था। अपने

इस भ्रमणमें देखी गई अनेक आश्चर्यजनक बातों का बड़ा ही मनोरंजक वर्णन उन्होंने अपनी एक पुस्तक में किया है। यह पुस्तक प्रकाशित हुए बहुत समय हुआ। पर शायद बड़े-बड़े पुस्तकालयों में यह अबतक उपलब्ध हो। इस पुस्तक में स्लीमन साहब ने कुछ ऐसे लड़कों का हाल लिखा है जो भेड़ियों की मांदमें पले थे और जिन्हें उन्होंने खुद देखा था। मुझे याद पड़ता है कि इस तरहके लड़कों के सम्बन्ध में दो एक बड़े ही मनोरंजक लेख किसी मासिक पुस्तक में बहुत पहले प्रकाशित हो चुके हैं।

अस्तु। पुरानी बातें तो गई। अब इस तरहकी एक नई घटनाका वर्णन स्टेट्स्मैन आदि अखबारों में, अभी कुछ ही समय पूर्व प्रकाशित हुआ है। कलकत्तेमें एक कालेज है। नाम उसका है बिशप्स कालेज। बिशप, अर्थात् बड़े पादरी,एच० पेकनहम-वाल्श, उसमें अध्यापक या अधिकारि-पदारूढ़ हैं। उन्होंने ऐसी दो लड़कियों का हाल प्रकाशित कराया है जो भेड़ियों की माँदमें पली थीं और उन्हीं को मादसे निकाली गई हैं। अब आप अगली बातें पादरी साहब ही के मुखसे सुनिये— पश्चिमी बङ्गाल में मिदनापुर नामका एक शहर है। वह अपने नामके ज़िले का सदर मुक्काम है। वहीं एक अनाथालय है। पादरी सिंह और उनकी स्त्री उसकी देखभाल करती हैं।

पादरी सिंहको कभी-कभी मिदनापुर के देहात में भी जाना पड़ता है। एक बार दौरा करते समय उनसे कुछ देहातियांने कहा कि वहीं कुछ दूरपर एक ऐसी जगह है जहाँ भूत-प्रेत रहते हैं। इस कारण वे लोग उस तरफ जानेकी हिम्मत नहीं करते। उन्होंने यह भी कहा

कि दीमक या चीटोंकी एक बाबीके पास एक बड़ासा बिल है। उसीमें उन्होंने भूतोंको घुसते प्रत्यक्ष देखा है। इसपर सिंह महाशयने कहा कि जरा वह जगह हमें भी दिखाओ। यह बात उन लोगोंने मान ली और अपने साथ ले जाकर उन्होंने वह बिल सिंह महाशयको दिखा दिया। परन्तु वहाँ कोई भूत न दिखाई दिया। तब पादरी साहबके कहने से १६ आदमियों ने उस बिलको खोदना शुरू किया। कुछ देर बाद उससे दो भेड़िये निकले और बड़ी तेज़ी से भाग गये। खुदाई जारी रक्खी गई। कुछ देरतक और खोदनेपर एक मादा भेड़िया भीतर से निकली और बिलके मुंहपर आकर गुर्राने और दाँत दिखाने लगी। उसने वहाँसे हटना न चाहा; जहाँ खड़ी थी वहीं डटी खड़ी रही। लाचार होकर सिंह महाशय ने उसे अपनी बन्दूक का निशाना बनाया। फिर खुदाई शुरू की गई। जब मांद की तहतक खोदनेवाले पहुंच गये तब उन्होंने देखा कि वहां भेड़ियेके दो बच्चे और दो ही लड़कियां एक दूसरीपर पड़ी हैं। आदमियोंको देखते ही लड़कियां सजग हो गईं। एककी उम्र कोई २ और दूसरीकी कोई ८ वर्षकी थी। उन्होंने भयानक चीत्कार की और जंगली जानवरों की जैसी चेष्टा करके वहाँसे हाथ-पैरके बल भाग निकलीं। वे इस तेजीसे दौड़ी कि जो लोग वहाँ उपस्थित थे उनमेंसे कोई भी उन्हें पकड़ न सका। भागकर वे एक झाड़ीके भीतर घुस गईं। बड़ी मुश्किलों से वे किसी तरह पकड़ी गई। देखनेपर मालूम हुआ कि हाथ-परके बल ज़मीनपर चलने और मिट्टी कुरेदनेके कारण उनके नाखून नुकीले हो गये हैं।
मिदनापुरहीमें नहीं, देहातमें सर्वत्र ही किसानों की स्त्रियाँ अपने बच्चोंको अपने झोपड़ोंमें सुलाकर खेतपर काम करने चली जाती हैं। कुछ स्त्रियाँ तो उन्हें अपने साथ भी ले जाती हैं और खेतकी मेंड़ या खेतही में उन्हें सुलाकर काम करने लगती हैं। ऐसी जगहों में यदि भेड़ियों का आधिक्य हुआ तो वे यदा-कदा उन बच्चोंको उठा ले जाते और मार खाते हैं। किसानोंकी स्त्रियां लड़कियों के विषयमें और भी बे-परवाही करती हैं, क्योंकि उनकी शादी आदिमें खर्च बहुत पड़ता है। उससे कोई-कोई कुटुम्ब बहुत कर्जदार हो जाता है। परन्तु इतनी निर्दय माता शायद ही कोई होगी जो अपने बच्चे को भेड़ियों का शिकार बनाने के लिए उसे खेतपर छोड़ दे। कुछ भी हो, ये दोनों लड़कियां भेड़ियों ही के द्वारा उठाई जाकर मांदमें पहुंची थीं। इसमें सन्देह नहीं। जान पड़ता है कि लड़कियों के बदनपर पहनाया गया कपड़ा दांतसे पकड़कर भेड़िया उसे उठा ले गया होगा। पहली लड़की ले जानेके पांच छः वर्ष बाद मादा भेड़िया दूसरी लड़की उठा ले गई होगी। उसने देखा होगा कि पहली लड़की उसके बच्चों की तरह जल्द नहीं बड़ी हो गई, वह छोटी हो बनी रही और अधिकतर मांदके भीतर ही रहती रही। इससे उसे खुशी हुई होगी और मिलनेपर दूसरी लड़कीको भी वह उठा ले गई होगी। परन्तु ये हिंस्र जंतु बच्चों को मारकर खा जानेके बदले उन्हें पालते क्यों हैं, इसका कारण अभीतक ज्ञात नहीं हो सका।

सिंह महाशयने इन दोनों लड़कियोंको देहातियोंहीके सिपुर्द कर दिया और कहा कि हम गाड़ी लेकर पीछेसे आगे और इन्हें ले

जायेंगे। देहातियोंने लड़कियोंको एक बाड़ा बनाकर उसके भीतर रख दिया। मिस्टर सिंह लौटे तो उन्होंने देखा कि लड़कियों के बदनपर सर्वत्र फोड़ेसे हो रहे हैं और ये बहुत ही कमज़ोर, प्रायः म्रियमाण दशामें हैं। पास पहुंचनेपर उन्होंने विशेष उछल-कूद न की। वे भागी भी नहीं। सिंह महाशय उन्हें गाड़ीपर रखकर अपने अनाथालयमें ले आये । वहीं उनकी स्त्रीने उनको खिलाने-पिलाने और रखनेका भार अपने ऊपर लिया। पर छोटी लड़की को अतीसार हो गया और वह मर गई। बड़ी लड़की धीरे-धीरे चङ्गी हो गई। इस समय बड़ी लड़की क़दमें अपनी उम्रकी लड़कियोंके बराबर ही है।

अनाथालयमें आनेपर देखा गया कि लड़कियोंकी आँखोंकी पुतलियां या ढेले उसी तरह घूमते हैं जिस तरह कि जानवरोंकी आँखोंके घूमते हैं। वे बैठती भी उसी तरह हैं जिस तरह जानवर बैठते हैं। कच्चा मांस उन्हें बहुत प्रिय था। कोई चीज़ खाने या पीनेके पहले वे उसे सूंघ लेती थीं। मांस यदि कहीं दूर भी रक्खा होता तो गन्धसे वे जान लेती थीं कि वह कहाँपर है और झट वहीं पहुँच जाती थीं। मांस देखनेपर उनकी लार टपकने लगती थी और जबड़े हिलने लगते थे। वे दांत भी पीसने लगती थीं और एक अजीब तरहका शब्द करती थीं। अनाथालयके बच्चोंकी सङ्गति उन्हें पसन्द न थी। हां, कुत्तों, बिल्लियों और मुर्गियों के साथ रहना उन्हें अधिक पसन्द था। कपड़ोंसे वे नफरत करती थीं। पहनानेसे वे उन्हें फाड़ बालती थीं। रातको वे एक दूसरीपर लदकर, कुत्ते के बच्चोंकी तरह,

सो जाती थीं। सोनेके पहले बड़ी लड़की बाहरसे घासफूस उठा लाती। उसीको विछाकर दोनों एक दूसरीपर पड़ रहती थीं।

छोटी लड़की तो मर गई। बड़ी लड़की इस समय १४ वर्षकी है। अब वह कपड़े पहनने लगी है। पहले खूब कसकर तङ्ग कपड़े उसे पहनाये जाते थे जिसमें वह उन्हें फाड़ न डाले। धीरे-धीरे कपड़े फाड़ने की उसकी आदत जाती रही। अब तो उसने बंगला भाषा के कुछ शब्द भी याद कर लिये हैं। किसीके आनेपर अब वह हाथ जोड़कर "नमस्कार" कहने लग गई है। उसे चुपचाप रहना अधिक पसन्द है। घंटों वह मौन बनी वेकार बैठी रहती है। नाम उसका रक्खा गया है-कमला। वह यद्यपि अब भेड़ियोंके सदृश भूंकती नहीं, तथापि हँसना या रोना वह अबतक नहीं जानती। पकड़े जाने के बहुत दिन बाद तक वह भेड़ियों ही की तरह मुँहसे चीज़ उठाकर खाती और उसी तरह पानी पीती थी। पर अब उसने हाथसे खाना सीख लिया है। खेलना-कूदना उसे पसन्द नहीं। उसे खिलौने या गुड़ियाँ यदि दी जाती हैं तो उन्हें काटकूटकर फेंक देती है। उसकी यह आदत धीरे धीरे छूट रही है। पर अबतक वह नहाना नहीं चाहती। सिंह महाशय को स्त्री हीसे वह विशेष प्रेम करती है, और किसीसे नहीं। मिस्टर सिंह कहते हैं कि कुछ ही दिनोंमें उसकी असभ्यता जाती रहेगी और उसमें स्वाभाविक स्त्रीत्व पूरे तौरपर आ जायगा।