विकिस्रोत:आज का पाठ/१० नवम्बर
गद्य का विकास रामचंद्र शुक्ल द्वारा रचित हिन्दी साहित्य का इतिहास का एक अंश है जिसके दूसरे संस्करण का प्रकाशन काशी के नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा १९४१ ई॰ में किया गया।
"आधुनिक काल के पूर्व हिंदी गद्य का अस्तित्व किस परिमाण और किस रूप में था, संक्षेप में इसका विचार कर लेना चाहिए । अब तक साहित्य की भाषा ब्रजभाषा ही रही है, इसे सूचित करने की आवश्यकता नहीं। अतः गद्य की पुरानी रचना जो थोड़ी सी मिलती है वह ब्रजभाषा ही में। हिंदी पुस्तकों की खोज में हठयोग, ब्रह्मज्ञान आदि से संबंध रखनेवाले कई गोरखपथी ग्रंथ मिले हैं जिनका निर्माण-काल संवत् १४०७ के आसपास है। किसी किसी पुस्तक में निर्माण काल दिया हुआ है । एक पुस्तक गद्य में भी है जिसका लिखनेवाला 'पूछिबा', 'कहिबा' आदि प्रयोगों के कारण राजपूताने का निवासी जान पडता है । इसके गद्य को हम संवत् १४०० के आसपास के ब्रजभाषा-गद्य का नमूना मान सकते है ।..."(पूरा पढ़ें)