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विकिस्रोत:आज का पाठ/१० फ़रवरी

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जड़वाद और आत्मवाद प्रेमचंद द्वारा रचित साहित्य का उद्देश्य का एक अंश है जिसका प्रकाशन जुलाई १९५४ ई॰ में इलाहाबाद के हंस प्रकाशन द्वारा किया गया था।


"विद्वानों की दुनिया में आजकल आस्तिक और नास्तिक का पुराना झगड़ा फिर उठ खड़ा हुआ है। यह झगड़ा कभी शान्ति होने वाला तो है नहीं, हाँ, उसके रूप बदलते रहते हैं। आज के पचास साल पहले, जब विज्ञान ने इतनी उन्नति न की थी, और संसार में बिजली और भाप और भाँति भाँति के यन्त्रों की सृष्टि होने लगी, तो स्वभावतः मनुष्य को अपने बल और बुद्धि पर गर्व होने लगा, और अनन्त से जो अनीश्वरवाद या जड़वाद चला आ रहा है, उसे बहुत कुछ पुष्टि मिली। विद्वानों ने हमेशा ईश्वर के अस्तित्व में सन्देह किया है।..."(पूरा पढ़ें)