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विकिस्रोत:आज का पाठ/११ फ़रवरी

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संग्राम में साहित्य प्रेमचंद द्वारा रचित साहित्य का उद्देश्य का एक अंश है जिसका प्रकाशन जुलाई १९५४ ई॰ में इलाहाबाद के हंस प्रकाशन द्वारा किया गया था।


"घोर संकट में पड़ने पर ही आदमी की ऊँची से ऊँची, कठोर से कठोर और पवित्र से पवित्र मनोवृत्तियों का विकास होता है। साधारण दशा में मनुष्य का जीवन भी साधारण होता है। वह भोजन करता है, सोता है, हँसता है, विनोद का आनन्द उठाता है। असाधारण दशा में उसका जीवन भी असाधारण हो जाता है और परिस्थितियों पर विजय पाने, या विरोधी कारणों से अपनी आत्म-रक्षा करने के लिये उसे अपने छिपे हुए मनोऽस्त्रों को बाहर निकालना पड़ता है। आत्म-त्याग और बलिदान के, धैर्य और साहस के, उदारता और विशालता के जौहर उसी वक्त खुलते है, जब हम बाधाओं से घिर जाते हैं।..."(पूरा पढ़ें)