विकिस्रोत:आज का पाठ/१४ अक्टूबर

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भक्तिकाल की फुटकल रचनाएँ रामचंद्र शुक्ल द्वारा रचित हिन्दी साहित्य का इतिहास का एक अंश है जिसके दूसरे संस्करण का प्रकाशन काशी के नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा १९४१ ई॰ में किया गया था।


"जिन राजनीतिक और सामाजिक परिस्थितियों के बीच भक्ति का काव्य- प्रवाह उमड़ा उनका संक्षिप्त उल्लेख आरंभ में हो चुका है। वह प्रवाह राजाओं या शासकों के प्रोत्साहन आदि पर अवलंबित न था । वह जनता की प्रवृत्ति का प्रवाह था जिसका प्रवर्तक काल था। न तो उसको पुरस्कार या यश के लोभ ने उत्पन्न किया था और न भय रोक सकता था । उस प्रवाह-काल के बीच अकबर ऐसे योग्य और गुणग्राही शासक को भारत के अधीश्वर के रूप में प्रतिष्ठित होना एक आकस्मिक बात थी । अतः सूर और तुलसी ऐसे भक्त कवीश्वरो के प्रादुर्भाव के कारणों मे अकबर द्वारा संस्थापित शांति-सुख को गिनना भारी भूल है । उस शांति-सुख का परिणामस्वरूप जो साहित्य उत्पन्न हुआ। वह दूसरे ढंग का था । उसका कोई निश्चित स्वरूप न था; सच पूछिए तो वह उन कई प्रकार की रचना-पद्धतियो का पुनरुत्थान था जो पठानों के शासन-काल की अशांति और विप्लव के बीच दब-सी गई थीं और धीरे-धीरे लुप्त होने जा रही थीं।..."(पूरा पढ़ें)