विकिस्रोत:आज का पाठ/२३ दिसम्बर
खड़ी बोली में काव्यत्व का स्फुरण रामचंद्र शुक्ल द्वारा रचित हिन्दी साहित्य का इतिहास का एक अंश है जिसके दूसरे संस्करण का प्रकाशन काशी के नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा १९४१ ई॰ में किया गया।
"द्वितीय उत्थान के भीतर हम दिखा आए हैं कि किस प्रकार काव्य-क्षेत्र का विस्तार बढ़ा, बहुत-से नए नए विषय लिए गए और बहुत से कवि कवित्त, सवैया लिखने से बाज आकर संस्कृत के अनेक वृत्तों में रचना करने लगे। रचनाएँ चाहे अधिकतर साधारण गद्य-निबंधों के रूप में ही हुई हो, पर प्रवृत्ति अनेक विषयों की ओर रही, इसमें संदेह नहीं। उसी द्वितीय उत्थान में स्वतंत्र वर्णन के लिये मनुष्येतर प्रकृति को कवि लोग लेने लगे पर अधिकतर उसके ऊपरी प्रभाव तक ही रहे। उसके रूप-व्यापार कैसे सुखद, सजीले और मुहावने लगते हैं, अधिकतर यही देख-दिखाकर उन्होंने संतोष किया। चिर-साहचर्य से उत्पन्न उनके प्रति हमारा राग व्यंजित न हुआ।..."(पूरा पढ़ें)