विकिस्रोत:आज का पाठ/२४ दिसम्बर

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रहस्यवाद प्रतीकवाद छायावाद रामचंद्र शुक्ल द्वारा रचित हिन्दी साहित्य का इतिहास का एक अंश है जिसके दूसरे संस्करण का प्रकाशन काशी के नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा १९४१ ई॰ में किया गया।


"ये कवि जगत् और जीवन के विस्तृत क्षेत्र के बीच नई कविता का संचार चाहते थे। ये प्रकृति के साधारण, असाधारण सब रूपों पर प्रेम दृष्टि डालकर, उसके रहस्य-भरे सच्चे संकेतों को परखकर, भाषा को अधिक चित्रमय, सजीव और मार्मिक रूप देकर कविता का एक अकृतिम, स्वछंद मार्ग निकाल रहे थे। भक्तिक्षेत्र में उपास्य की एकदेशीय या धर्मविशेष में प्रतिष्ठित भावना के स्थान पर सार्वभौम भावना की ओर बढ़ रहे थे। जिसमें सुंदर रहस्यात्मक संकेत भी रहते थे। अतः हिदी-कविता की नई धारा का प्रवर्तक इन्हीं को-विशेषतः श्री मैथिलीशरण गुप्त और मुकुटधर पांडेय को-समझाना चाहिए।..."(पूरा पढ़ें)